12 जुलाई को क्लस्टर बसों के संवाहकों ने की एक दिवसीय हड़ताल

बिगुल संवादाता

बीती 12 जुलाई को दिचाउँ कलाँ क्लस्टर बस डिपो के संवाहकों ने एक दिवसीय हड़ताल की। दिल्ली की सड़कों पर दिन-रात सवारियों को ले जाने का अधिकांश भार डीटीसी और क्लस्टर बस के ऊपर आता है। दिल्ली की सड़कों पर दौड़ने वाली कुल बसों की संख्या क़रीब साढ़े पाँच हज़ार है, जिसमें से क़रीब 2000 बस कलस्टर बस सर्विस के तहत चलायी जाती हैं। क्लस्टर बस दिल्ली सरकार द्वारा पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के तहत चलायी जाती है। दिल्ली इण्टीग्रेटेड मल्टी मोडल ट्रांज़िट सिस्टम (डीआईएमटीएस) दिल्ली सरकार और आईडीएफ़सी फ़ाउंडेशन का जॉइण्ट वेंचर है जिसकी ज़िम्मेदारी क्लस्टर बस को चलाने की है। डीआईएमटीएस के द्वारा कूटा जाने वाला अकूत मुनाफ़ा निर्भर करता है बसों के असल परिचालन में लगे चालकों, संवाहकों, सफ़ाई-कर्मचारियों इत्यादि की मेहनत की लूट पर। इस पीपीपी मॉडल के तहत चालकों की नियुक्ति की ज़िम्मेदारी जहाँ निजी पूँजीपतियों के हिस्से पड़ती है, वहीं संवाहकों/संचालकों की नियुक्ति की ज़िम्मेदारी दिल्ली सरकार के ऊपर है। संवाहकों का काम स्थायी प्रकृति का है, किन्तु दिल्ली सरकार संवाहकों की नियुक्ति का काम सीधे न करके इसकी ज़िम्मेदारी ‘मानव संसाधन’ को “ठेके” पर मुहैया करने वाली एजेंसियों मसलन ट्रिग, पाराग्रीन, एसआईइस, ग्रूप 4 आदि को सौंपती है और इस तरह संवाहकों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी व जवाबदेही से बच निकलती है। हर छह महीने पर एक संवाहक जिस एजेंसी के तहत रजिस्टर होता है, उसका रजिस्ट्रेशन दूसरी एजेंसी के द्वारा कर दिया जाता है और उसका पिछला पूरा रिकॉर्ड गायब कर दिया जाता है।

क़रीब 2000 क्लस्टर बसों में काम करने के लिए क़रीब 5000 संवाहक मौजूद हैं। आमतौर पर एक संवाहक की एक दिन में डबल ड्यूटी लगती है यानी कि आठ-आठ घण्टे की दो पारियाँ। संवाहकों से काम डेली बेसिस पर लिया जाता है यानी उन्हें हर रोज़ अपने लिए ड्यूटी लेनी होती है और उसी हिसाब से उनका मासिक वेतन तय किया जाता है। दिल्ली सरकार द्वारा तय किया गया न्यूनतम वेतन तक संवाहकों को नहीं दिया जाता है। किसी अन्य किस्म का बोनस, भत्ता तो दूर की बात है, न कोई रविवार की छुट्टी दी जाती है, न ही कोई अन्य सरकारी छुट्टी। जैसे लेबर चौक पर मज़दूर अपनी श्रमशक्ति बेचने के लिए आपस में होड़ करते हैं, वैसे ही संवाहकों के बीच होड़ पैदा की जाती है। संवाहकों की संख्या जानबूझकर ज़रूरत से ज़्यादा रखी जाती है, ताकि एक संवाहक के ऊपर डीआईएमटीएस जब चाहे तब दबाव बना सके। संवाहकों के ऊपर लगतार ‘नो ड्यूटी’ की एक तलवार लटकती रहती है। ‘नो ड्यूटी’ एक किस्म का निलम्बन है जिसके तहत किसी संवाहक को अनिश्चित सीमा तक ड्यूटी मुहैया नहीं करायी जाती है। संवाहकों का कहना है कि ‘नो ड्यूटी’ की कहीं कोई अधिकारिक परिभाषा नहीं है। कई बार बिना किसी ठोस कारण या जाँच के किसी को ‘नो ड्यूटी ‘ कर दिया जाता है। ऐसा किसी लिखित दस्तावेज़ के द्वारा नहीं, बल्कि बाबुओं द्वारा मुँहजबानी किया जाता है।

इस दबाव के कारण डीआईएमटीएस संवाहकों के सामने मनचाही और बेतुकी शर्तें रखता है। उन पर दबाव बनाया जाता है कि हर चक्कर पर एक निश्चित राशि जमा की जाये, चाहे सवारी मिले या न मिले, अन्यथा ‘नो ड्यूटी’ कर दिया जायेगा। आमतौर पर ट्रैफि़क की वजह से तय किये गये चक्कर को पूरा करने में चालक और संवाहक को अपनी दोनों पारियों से क़रीब 3 से 4 घण्टे का अतिरिक्त समय लगता है, इस अतिरिक्त समय के लिए किसी भी किस्म का ओवरटाइम नहीं दिया जाता है। सेहत खराब होने से लेकर गाड़ी खराब होने तक की हालत में तय की गयी राशि एक संवाहक को डीआईएमटीएस को वसूल कर देना होता है। राशि जमा कराते वक्त 2 कम या ज़्यादा होना संवाहकों के लिए ‘नो ड्यूटी’ का सबब बन जाता है। वहीं दूसरी तरफ़ बाबू को भी ख़ुश करना पड़ता है ताकि अगले रोज़ उनको काम मिल सके। चेकिंग स्टाफ़ से लेकर बाबुओं की बदतमीज़ी संवाहकों के लिए आम बात है, ड्यूटी के लिए बाबू पर निर्भर रहने के साथ-साथ चेकिंग स्टाफ़ से ज़िल्लत सहना उनके लिए रोज़मर्रा की बात है।

काम की इन भयंकर परिस्थितियों से परेशान होकर संवाहकों ने स्वतःस्फूर्त ढंग से संघर्ष की शुरुआत की। बिगुल मज़दूर दस्ता के सम्पर्क में आने के बाद उन्होंने ‘क्लस्टर कण्डक्टर संघर्ष समिति’ के तहत अपने माँगपत्रक का परचा निकालकर अन्य डिपो के संवाहकों के बीच वितरित किया और उनका आह्वान किया कि हरेक डिपो में संवाहकों की परिस्थितियां एक-सी हैं, इसीलिए अपनी यूनियन रजिस्टर करवाकर अपने संघर्ष को सुदृढ़ किया जाये। उनकी मुख्य माँगें स्थायी श्रमिक का दर्जा दिये जाने, न्यूनतम वेतन 21,000 रुपये प्रतिमाह करने, नियुक्ति पत्र, पहचान पत्र, पेमेण्ट स्लिप, बोनस आदि अन्य भत्ते दिये जानेे, जबरन ओवरटाइम बन्द करवाने तथा ओवरटाइम की सूरत में डबल रेट से भुगतान करने, जबरन ‘नो ड्यूटी’ बन्द करवाने आदि हैं। बारह जुलाई को की गयी हड़ताल से संवाहकों को कुछ रियायतों का आश्वाशन मिला है – जैसे, जमा की जाने वाली राशि में 35 रुपये ऊपर-नीचे होने की सूरत में ‘नो ड्यूटी’ न किया जाना, जबरन ओवरटाइम की हालत में ट्रिप छोटा करने की अनुमति।

अभी, संवाहक साथियों को अपने संघर्ष को आगे की मंज़िल में ले जाना होगा। उन्हें अपनी यूनियन दर्ज कराकर स्थाई श्रमिक का दर्जा प्राप्त करने के लिए अधिक से अधिक संवाहकों तक पहुँचना होगा, और एक डिपो के स्तर पर नहीं बल्कि सारे डिपो के स्तर तक संघर्ष को फैलाना होगा।

 

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2018


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments