मालिकों के शोषण का शिकार जीएस ऑटो इण्टरनेशनल के मज़दूर

लखविन्दर

जीएस ऑटो इण्टरनेश्नल लुधियाना की एक पुरानी कम्पनी है। ढण्डारी पुल से जीटी रोड की दूसरी तरफ़ ढण्डारी कलाँ में एक़दम सड़क किनारे स्थित इस कारख़ाने में लगभग 700 मज़दूर काम करते हैं। यहाँ ट्रेक्टरों, कारों, मोटर साईकिल आदि वाहनों के पुर्जे बनते हैं। जीएस ऑटो ग्रुप 80 वर्ष पुराना है। इण्टरनेश्नल कम्पनी के साथ ही जीएस ऑटोकॉम और जीएस रेडीएटर हैं। दो वर्ष पहले इण्टरनेश्नल और ऑटोकॉम इकट्ठा थे। लेकिन इसके बाद दोनों अलग हो गये।

पिछले दिनों जीएस ऑटो इण्टरनेश्नल के मज़दूरों से बात हुई। उन्होंने मालिकों द्वारा मज़दूरों की हो रही लूट के बारे में काफ़ी कुछ बताया। इस कारख़ाने के मज़दूरों से सख़्त मेहनत का काम लिया जाता है, लेकिन पैसा बहुत कम दिया जाता है। उन्हें आठ घण्टे काम के सिर्फ़ सात-साढे़ हज़ार रुपये दिये जाते हैं। यहाँ तक कि जो मज़दूर 20-20, 25-25 वर्ष से काम कर रहे हैं, उन्हें भी इससे अधिक पैसे नहीं मिलते। स्त्री मज़दूरों को तो सिर्फ़ 4500 रुपये महीना वेतन ही दिया जाता है। बहुत-सी स्त्री मज़दूरों ने कम वेतन के कारण इस कम्पनी की नौकरी से ही तौबा कर ली। इस तरह स्पष्ट है कि श्रम क़ानूनों के मुताबिक़ न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता। मैनेजमेण्ट मज़दूरों से ओवरटाइम काम तो लेती है, लेकिन जब ओवरटाइम का पैसा देने की बात आती है, तो कह दिया जाता है कि अभी नहीं मिलेगा। अकसर ओवरटाइम  के पैसों की अदायगी लटका दी जाती है। यही नहीं बल्कि वेतन बनाने में बड़ी गड़बड़ियाँ की जाती हैं। हिसाब में गड़बड़ करके वेतन कम बना दिया जाता है। पिछले तीन-चार महीनों में तो यह घपला कुछ ज़्यादा ही बढ़ गया है। वेतन और ओवरटाइम के हिसाब में गड़बड़ करके काफ़ी पैसे काट लिये जा रहे हैं। शिकायत करने पर सुनवाई भी नहीं होती। कुछ मज़दूरों को लगता है कि एसआर विभाग के राजीव शर्मा और मनोज द्वारा ही यह बेईमानी की जा रही है, लेकिन यह सब मालिकों की जानकारी में नहीं होगा, इसकी सम्भावना नहीं है। अकसर मालिक मैनेजरों को आगे करके ऐसे काम करते हैं ताकि मज़दूरों को लगे कि मालिक तो बहुत अच्छे हैं, बस मैनेजमेण्ट ही गड़बड़ियाँ कर रही है। उदाहरण के तौर पर मज़दूरों ने बताया कि क्वालिटी चैकिंग का काम करने वाले एक मज़दूर के जून महीने के वेतन में से 4500 रुपये नाजायज़ तौर पर काट लिये गये। एक अन्य मज़दूर के 1000 रुपये नाजायज़ काट लिये गये। इस तरह अनेकों मज़दूरों के वेतन में से नाजायज़ कटौती कर ली गयी है। पिन गरायण्डर, यू बोल्ट, बीआरडी, गेज़ आदि अनेकों विभागों के मज़दूरों के वेतन और ओवरटाइम के पैसों में कटौती कर ली गयी है। कईयों के तो मई महीने के ओवरटाइम के पैसे तक नहीं दिये गये हैं। जब मैनेजरों को इस बारे में शिकायत की गयी तो हिसाब माँगते हैं।

मज़दूरों ने बताया कि ढाई वर्ष से कच्चे मज़दूरों को पक्का न करने की नीति अपनायी जा रही है। पहले मज़दूरों को दो-तीन महीनों में पक्का कर दिया जाता था। अगर मज़दूर मैनेजमेण्ट को पक्का करने के लिए कहते हैं तो जवाब मिलता है कि अगर काम करना है तो करो नहीं तो जाओ। इस समय कुल 700 में से लगभग आधे मज़दूर कच्चे हैं। मज़दूरों का कहना है कि असल में मालिक कारख़ाने में ठेकेदारी व्यवस्था लागू करना चाहते हैं। एक तो ईपीएफ़़ का खाता सभी मज़दूरों का नहीं खुला हुआ है। जिनका है भी, उनके साथ भी घपला किया जा रहा है। घपला यह है कि मालिक का बनता हिस्सा भी मज़दूरों से ही लिया जा रहा है, जो एक बड़ी लूट है। मज़दूरों की हादसों, बीमारियों से सुरक्षा के लिए ज़रूरी है कि उन्हें इसके लिए ज़रूरी सामान दिया जाये। कम्पनी मज़दूरों को हेल्मट, बूट, मास्क वग़ैरा मुहैया नहीं करवाती। हाँ, अगर कभी कारख़ाने में किसी प्रकार की चेकिंग करनी हो तो मज़दूरों को ये चीज़ें देकर कुछ समय के लिए ”सुरक्षा” दे दी जाती है। यहाँ भी हम साफ़ देख सकते हैं कि कम्पनी को सिर्फ़ मुनाफ़े की फि़क्र है। मज़दूरों की जि़न्दगियों की कम्पनी को कोई परवाह नहीं है।

पहले मज़दूरों को महीने में दो बार में वेतन मिलता था। 25 तारीख़ को मिलने वाले पैसे को एडवांस कहा जाता है। महीने में दो बार पैसे मिलने से मज़दूरों को पैसे सम्भालने, ख़र्चे चलाने आदि में काफ़ी मदद मिलती है। लेकिन दो वर्ष से एडवांस भी बन्द कर दिया गया है। मज़दूरों के मन में इसके बारे में भी काफ़ी रोष है।

ऐसा नहीं है कि मज़दूर चुपचाप हमेशा लूट-शोषण सहते रहे हैं। सन 2006 से लेकर अब तक पाँच बार हड़ताल हो चुकी है। एक बार हड़ताल तब हुई जब कम्पनी के एक मैनेजर द्वारा बुरे व्यवहार, तीन मज़दूरों को काम से निकाले जाने, मज़दूरों के साथ हुई बदसलूकी, मन्दी के बहाने मज़दूरों के वेतन में कटौती, कुछ मज़दूरों के दोपहर के खाने के समय की मज़दूरी काटने की कोशिश और न्यूनतम वेतन (ग्रेड) लागू न करने के खि़लाफ़ मज़दूर एकजुट हुए थे। इस हड़ताल के बाद कम्पनी को मज़बूर होकर निकाले गये मज़दूरों को नौकरी पर बहाल करना पड़ा, वेतन में कटौती वापिस लेनी पड़ी। मैनेजर के खि़लाफ़ सख़्त क़दम उठाने का वादा भी हुआ। एक बार बोनस ना मिलने के खि़लाफ़ हड़ताल हुई। एक वर्ष पहले मज़दूरों ने तब कारख़ाना ठप्प कर दिया, जब मैनेजर मज़दूरों को काफ़ी परेशान करने लग पड़े थे। ड्यूटी से एक घण्टा पहले बुला लिया जाता था। गालियाँ दी जाती थीं। बुरे शब्द इस्तेमाल किये जाते थे। खाना खाने के लिए बैठने को जगह नहीं थी। जिन बोरियों पर बैठकर मज़दूर खाना खाते थे, वे मैनेजर ने जानबूझकर उठवा दी थीं। मज़दूरों ने तंग आकर हड़ताल कर दी। कम्पनी ने संघर्ष के आगे झुकते हुए माँगें मान लीं। खाना खाने के लिए बैठने के लिए मैट भी लाकर दिये गये।

लेकिन मज़दूरों को इसके भी आगे सोचना होगा। मज़दूरों का मालिकों के खि़लाफ़ रोष और कभी-कभार हड़तालों के रूप में संघर्ष स्वागत-योग्य तो है, लेकिन नाकाफ़ी है। मज़दूरों को बाकायदा यूनियन के रूप में संगठित होना होगा। मालिकों की दलाल यूनियनों द्वारा की गयी दलाली के कारण लुधियाना के मज़दूरों में यूनियन बनाने के प्रति काफ़ी पूर्वाग्रह हैं। लेकिन मज़दूरों को यह समझना चाहिए कि मज़दूरों की एक सच्ची यूनियन बना पाना सम्भव है और यह बहुत ज़रूरी है। इसके बिना मज़दूर मालिकों द्वारा लूट का मुकाबला नहीं कर सकते। एक ऐसी यूनियन बनायी जानी चाहिए, जिसमें एक-दो व्यक्ति ही नेता न बनकर बैठ जायें, बल्कि कमेटी चुनी जानी चाहिए। यूनियन के सारे चन्दों-ख़र्चों का हिसाब बाकायदा सभी मैम्बरों को दिया जाये। यूनियन के फै़सले बहुमत के उसूल के ज़रिये आपसी सलाह-मशवि‍रे से जनवादी ढंग से होने चाहिए। और अगर मज़दूरों को अपने अधिकारों के बारे में, समेत क़ानून श्रम अधिकारों के, जानकारी न हो तो यूनियन मज़बूत नहीं हो सकती। मज़दूरों की एक सच्ची यूनियन वही हो सकती है, जो उन्हें उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करे, जो उन्हें मालिकों द्वारा उनकी की जा रही लूट-खसोट का मुकाबला करने के लिए ज़रूरी शिक्षा दे। इसके साथ ही अन्य कारख़ानों के मज़दूरों से भी एकता बनाने के लिए आगे आना चाहिए, क्योंकि उनके भी वही हालात हैं। जब अलग-अगल कारख़ानों के मालिकों के संगठन बने हुए हों और वे आपस में मिलकर मज़दूरों को लूटने-दबाने की तरकीबें गढ़ते हों, तब अलग-अलग कारख़ानों के मज़दूरों को भी आपस में एकता बनानी होगी।

इसलिए जीएस ऑटो इण्टरनेश्नल के मज़दरों को भी अपना एक जुझारू संगठन बनाने के लिए ज़ोर लगाना चाहिए, ताकि संघर्ष को योजनाबद्ध और जुझारू ढंग से चलाया जा सके।

 

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त 2018


 

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