उद्योगपतियों को खरबों की सौगात देने वाली झाारखण्ड सरकार को ग़रीब कुपोषित बच्चों को पौष्टिक भोजन देना ”महँगा” लग रहा है!

पावेल पाराशर

झारखंड सरकार ने मिडडे मील के तहत बच्चों को मिलने वाले अंडों में कटौती करते हुए इसे हफ्ते में तीन से दो करने का फैसला किया है। सरकार ने कहा है कि हर दिन बच्चों को अंडा खिलाना सरकार को “महँगा” पड़ रहा है।
बाकी औने पौने दाम पर खनिज संपदाओं, जंगलों को अपने कॉर्पोरेट मित्रों को बेचना सरकार को “महँगा” नहीं पड़ता। गौरतलब है झारखंड देश के सबसे कुपोषित राज्यों में से एक है और झारखंड के कुल 62% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। कुल कुपोषित बच्चों में से 47% बच्चों में stunting यानी उम्र की अनुपात में औसत से कम लंबाई पाई गई है जो कि कुपोषण की वजह से शरीर पर पड़ने वाले स्थाई प्रभावों में से एक है।
ध्यान रहे कि मिडडे मील योजना का लक्ष्य बच्चों के लिए ज़रूरी कैलोरी के एक तिहाई हिस्से व ज़रूरी प्रोटीन के 50% हिस्से की आपूर्ति सुनिश्चित करना था। अंडे में मौजूद एल्ब्यूमिन प्रोटीन, “प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण” से पीड़ित बच्चों के लिए गुणात्मक रूप से प्रोटीन का सर्वोत्तम स्रोत है और मिडडे मील में हर बच्चे को रोज़ाना एक अंडा सुनिश्चित करके कुपोषण के इन भयानक आंकड़ों में कई गुना तक सुधार लाया जा सकता है। लेकिन खनिज व प्राकृतिक संपदाओं से भरपूर झारखंड की सरकार के लिए इन संपदाओं को चवन्नी के भाव कॉर्पोरेट घरानों को बेचना कभी भी “महँगा” सौदा महसूस नहीं हुआ। 7% की दर से “विकास” का दावा ठोंकती रघुबर सरकार के पास अपने इस “विकास” का एक छोटा सा हिस्सा इस राज्य में विकराल मुंह बाए खड़े कुपोषण रूपी राक्षस से लड़ने हेतु भी खर्चने को नहीं है।
“भात भात” कहते हुए मर गई संतोषी को सख्त हिदायत है कि जितना मिल रहा है, उतने में ही “संतोष” करो और अपनी हड्डियों का पाउडर बनाकर इस पूँजीवादी व्यवस्था के मुनाफे के लिए पेश होते रहो । वरना तुम्हें “देशद्रोही”, “नक्सली” करार दिया जाएगा।

मज़दूर बिगुल, जनवरी 2019


 

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