झूठी बातों से सच को हमेशा दबाया नहीं जा सकता
आतंक का राज क़ायम करके लोगों को उठ खड़े होने से रोका नहीं जा सकता

सम्‍पादक मण्‍डल, मज़दूर बिगुल

बच्चे को भूख लगी हो और उसका ख़याल रखने के लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति उसके हिस्से का ख़ाना अपने दोस्तों  के साथ मिलकर चट कर गया हो, तो वह क्या करेगा? तरह-तरह के झुनझुने बजाकर, इधर-उधर की चीज़ें दिखाकर बच्चे का ध्यान भटकायेगा। मगर कब तक? लोगों की ज़िन्दगी की बुनियादी ज़रूरतें पूरी न हो रही हों, महँगाई ने जीना दूभर कर रखा हो, बेरोज़गारी करोड़ों परिवारों का भविष्य अन्धकारमय बना रही हो, लोगों से उनको मिले हक़ एक-एक करके छीने जा रहे हों, करोड़ों लोगों को उनकी जगह ज़मीन से उजाड़ा जा रहा हो – और यह सब देश की सरकारें चन्द पूँजीपतियों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए कर रही हों, तो लोगों का ध्यान भटकाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा। कभी धर्म पर ख़तरा, कभी गौरक्षा, कभी राष्ट्रवाद का नशा देना तो पड़ेगा। मगर कब तक?

प्रख्यात सोवियत व्यंग्यकार, कार्टूनिस्ट और पोस्टर-कलाकार विक्तोर देनी (विक्तोर निकोलायेविच देनिसोव) का एक चित्र जो उन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान बनाया था : ‘पूँजी, फासिस्ट आतंक, भूख और युद्ध के विरुद्ध क्रांतिकारी लहर’ (1941)

लोग लोहे की दीवारों में क़ैद हों, तो भी जागेंगे। वे उठेंगे और दीवारों को तोड़ डालेंगे और उनका हक़ छीनने वालों को सबक़ सिखायेंगे। इसलिए ज़रूरी है कि हर विरोध को ख़त्म कर दिया जाये। भाजपा और आर.एस.एस. अच्छी तरह जानते हैं कि ये हालात बड़े पैमाने पर जन असन्तोष को जन्म देंगे। ये हर उस आवाज़ का गला घोंट देना चाहते हैं जो इनके काले कारनामों का विरोध कर सकती हो और इन्हें लोगों के बीच नंगा कर सकती हो। भाजपा और संघ का विरोध करने वाले किसी भी व्यक्ति को देशद्रोही और ‘अर्बन नक्सल’ घोषित कर हमले का शिकार बनाया जा सकता है। पर वे भी जानते हैं कि दमन चाहे जितना भी बढ़ जाये, उसका प्रतिरोध होकर रहेगा। इसीलिए वे धर्म, जाति, नकली राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों में एक-दूमरे के ख़िलाफ़ नफ़रत पैदा करने और आपसी फूट, अविश्वास और डर का माहौल बनाने में लगे हुए हैं ताकि लोग एकजुट न हो सकें।

मगर इतिहास ने बार-बार साबित किया है, लाशों की ढेरियों, खून की नदियों, जेलों, क़त्लगाहों, आतंक और सन्नाटे से भरे साम्राज्य कभी भी टिकाऊ नहीं होते। झूठी बातों से सच को हमेशा दबाया नहीं जा सकता। आतंक का राज क़ायम करके लोगों को उठ खड़े होने से रोका नहीं जा सकता। और जब लोग उठ खड़े होते हैं, तो दुनिया के तमाम फ़ासिस्ट और तानाशाह मिट्टी में मिल जाते हैं। पर तानाशाह कभी इतिहास के सबक़ पर ध्यान नहीं देते। वे इतिहास को बदल देने के भ्रम में रहते हैं और इतिहास उनके लिए कचरे की पेटी तैयार करता रहता है।

अब इस बात में कोई सन्देह नहीं कि फ़ासीवाद के ख़ि‍लाफ़ लड़ाई का मुख्य मोर्चा  सड़कों पर ही बँधेगा। उसके लिए फ़ासिस्टों की घिनौनी करतूतों, उनके काले इतिहास और उनके पूँजीपरस्त, धनलोलुप और लम्पट चरित्र का व्यापक पैमाने पर पर्दाफ़ाश करने की जुझारू मुहिम पुरज़ोर ढंग से छेड़नी होगी। हमें फ़ासीवादियों के सामाजिक आधार को छिन्न-भिन्न करने में जुट जाना होगा। हमें अपनी भरपूर ताक़त के साथ इसकी तैयारी में जुट जाना चाहिए। अगर हम एकजुट होकर इन्हें इतिहास के कूड़ेदान में धकेलने के लिए संघर्ष नहीं छेड़ेंगे तो वे इस मुल्क को आग और ख़ून के दलदल में तब्दील कर डालेंगे क्योंकि वे लगातार अपने काम में लगे हुए हैं।

 

 

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त 2019


 

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