वज़ीरपुर की एक और फ़ैक्टरी में करण्ट से एक मज़दूर की मौत! फिर भी ख़ामोशी!
कब तक चुप रहेंगे ग़ुलामों की तरह?
जब तक सुरक्षा के इन्तज़ाम नहीं होते मज़दूर मरते रहेंगे!

बिगुल टीम

03 अगस्त 2019 को शेड-103 फ़ैक्टरी में पॉलिश का काम करने वाले एक मज़दूर की करण्ट लगने से मौत हो गयी। दयाराम नाम का यह मज़दूर उत्तर प्रदेश के महराजगंज का मूल निवासी था और वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में बी-ब्लॉक में किराये पर कमरा लेकर रह रहा था, बिजली के तार की सही तरीक़े से व्यवस्था न होने के कारण करण्ट मशीन के स्टार्टर में भी आ गया और जब दयाराम ने मशीन चालू करने के लिए स्टार्टर को अपने हाथ से पकड़ा उसी समय वह करण्ट की चपेट में आ गया और तत्काल उसकी मौत हो गयी। हादसा होने के बाद फ़ैक्टरी मालिक गुलाबचन्द ने अपने आपको बचाने के लिए अन्य मज़दूरों को डराकर कहा कि कोई पूछे तो बताना कि हार्टअटैक के कारण बेहोश हो गया है, नहीं तो काम से निकाल  दिये जाओगे। बाद में मज़दूरों ने 100 नम्बर पर डायल कर पुलिस को यह जानकारी दी, जिसके बाद मृत शरीर को पोस्टमार्टम के लिए बाबू जगजीवन राम अस्पताल में लाया गया। इससे पहले पुलिस मालिक पर एफ़आईआर दर्ज करने को तैयार नहीं थी, परन्तु जब पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में बिजली के करण्ट से मौत की पुष्टि हुई तब जाकर मालिक के खि़लाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गयी। दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन के सदस्यों ने दौरान मालिक की फ़ैक्टरी का घेराव किया व क़ानूनी प्रक्रिया में लगातार नज़र रखी ताकि पुलिस इस मसले को कहीं रफ़ा-दफ़ा न कर दे और अन्तत: मालिक को धारा 304 ए के तहत गिरफ़्तार किया गया। 7 अगस्त को स्थानीय श्रम विभाग में यूनियन ने उपश्रमायुक्त को ज्ञापन सौंपकर फै़क्टरी की जाँच करने की माँग भी की। दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन के प्रतिनिधिमण्डल ने घटना पर रोष व्यक्त करते हुए निम्नलिखित माँग की –

  1. मृतक मज़दूर दयाराम के परिवार को मुआवज़ा देने के लिए श्रम विभाग आवश्यक कार्रवाई की प्रक्रिया को सुनिश्चित करे।
  2. मालिक, दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन और श्रम विभाग की एक त्रिपक्षीय कमेटी गठित की जाये जो सम्बन्धित फ़ैक्टरी की सुरक्षा व्यवस्था की जाँच करे।
  3. उक्त कमेटी द्वारा पूरे वज़ीरपुर की फै़क्टरियों में सुरक्षा व्यवस्था की जाँच की जाये।

एक और मौत और हम लोग बस यूँ ही काम कर रहे हैं! यह हादसा कोई दुर्घटना नहीं बल्कि हत्या है। और ऐसी हत्याएँ वज़ीरपुर की फै़क्टरियों में आये दिन होती रहती है। लेकिन फिर भी हम लोग मुर्दों की तरह शान्त बैठे रहते हैं। साथियो, हम इंसान हैं, कोई मवेशी नहीं कि हमारी लाश ऐसे ही सड़क पर पड़ी रहे। आखि़र हम लोग इतने शान्त और चुप क्यों हैं, जब हम फै़क्टरियों में रोज़-रोज़ मारे जा रहे हैं? कब तक हम इन मौतों पर लाशों की तरह चुप रहेंगे? शेड-103 फ़ैक्टरी के मज़दूर की मौत के बाद उसका शरीर ठण्डा पड़ चुका था। पर हमारे शरीर में तो गरम ख़ून दौड़ रहा है ना! हम तो ज़िन्दा हैं? हम लाश नहीं हैं। अगर लाश नहीं हैं, तो अब समय है उठ खड़ा होने का।

इन मौतों का दोषी कौन  है?

इन मौतों के दोषी वज़ीरपुर के मालिक हैं जो अपने मुनाफ़े को बचाने के लिए हमारी सुरक्षा के इन्तज़ाम पर सौ रुपये तक भी ख़र्च नहीं करते हैं। अपने दाँतों से सिक्के दबाकर बैठे इन मालिकों की हवस ने ही हमारे मज़दूर साथी की जान ली है। और साथ ही श्रम विभाग और सरकार भी उतनी ही जि़म्मेदार है क्योंकि बिना इनकी मिलीभगत के ये मालिक ऐसी हरकत नहीं कर सकते और ये इन पर किसी प्रकार की कार्रवाई भी नहीं होती है। इस बात को समझने के लिए हमें श्रम क़ानूनों और उनको लागू करने की प्रक्रिया को देख लेना चाहिए।

दिल्ली में मज़दूर कितने सुरक्षित हैं

दिल्ली में एक बहुत छोटी आबादी की श्रम क़ानूनों तक पहुँच है। 2015 की कैग की रिपोर्ट यह हक़ीक़त सामने ला देती है। इस रिपोर्ट के अनुसार कारख़ाना अधिनियम, 1948 (Factories Act, 1948) का भी पालन दिल्ली सरकार के विभागों द्वारा नहीं किया जा रहा है – वर्ष 2011 से लेकर 2015 के बीच केवल 11-25% पंजीकृत कारख़ानों का निरीक्षण किया गया। इनमें भी जो मज़दूर शिकायत करते है, उनमें से एक बेहद छोटी आबादी को ही न्याय मिलता है। वैसे तो काग़ज़ों में श्रम क़ानून के मुताबिक़ काम के घण्टे 8 हैं लेकिन वास्तविकता में हम जानते हैं कि ख़तरनाक कार्य स्थिति में मज़दूर 12 से 14 घण्टे तक काम करते रहते हैं।  भारत में 93 प्रतिशत से ज़्यादा मज़दूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं जहाँ श्रम क़ानून नाम की कोई चीज़ मौजूद नहीं है। अन्तरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर वर्ष कार्य स्थल पर दुर्घटनाओं की वजह से 48 हज़ार मज़दूरों की मौत होती है। इनमें सबसे ज़्यादा क़रीब 24.2 प्रतिशत निर्माण उद्योग क्षेत्र के मज़दूरों की जान जाती है। दरअसल ये दुर्घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि मुनाफ़े की हवस में की गयी मज़दूरों की हत्याएँ हैं। दिल्ली में औद्योगिक क्षेत्रों में ही रोज़ाना मशीनों से कटकर या फिर आग लगने की वजह से मज़दूरों की मौतें होती हैं। फ़ैक्टरी मालिकों द्वारा सुरक्षा के उपकरण न मुहैया कराने और सुरक्षा के सभी मानकों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाने की वजह से मौतों का चक्र जारी रहता है। उत्पादन की गति तेज़ करने के मक़सद से सेंसर आदि को हटाया जाता है, जिसकी वजह से मज़दूरों के अंग-भंग होते हैं और कभी-कभी जान तक चली जाती है। पूँजीपति का एकमात्र मक़सद होता है अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमाना और अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमाने के लिए वे मज़दूरों को कम से कम मज़दूरी में अधिक से अधिक काम करवाता है। ये बात किसी से नहीं छुपी है कि श्रम विभाग और सरकारें किस तरह से इन फ़ैक्टरी मालिकों का ही पक्ष लेती हैं और इनको बचाने का काम करती हैं। दूसरी तरफ फै़क्टरियों की संख्या के मुकाबले फ़ैक्टरी इंस्पेक्टर की संख्या बेहद कम है। एक आँकड़े के अनुसार क़रीब 506 पंजीकृत फ़ैक्टरियों पर एक फ़ैक्टरी इंस्पेक्टर है। जबकि हम सभी जानते हैं कि अपंजीकृत फै़क्टरियाँ की संख्या भी बहुत ज़्यादा है और वास्तव में ये आँकड़ा और भी ख़राब हो सकता है। दिल्ली की ही बात करें तो यहाँ क़रीब 80 लाख मज़दूर आबादी पर 10-11 फ़ैक्टरी इंस्पेक्टर हैं! समझा जा सकता है कि ये चाहकर भी उन सारी फै़क्टरियों का निरीक्षण नहीं कर सकते। हज़ारों ग़ैर-क़ानूनी और अपंजीकृत फै़क्टरियाँ, सरकार, पुलिस और श्रम विभाग की जानकारी और सहमति के बिना चलना सम्भव ही नहीं है। दिल्ली में आम आदमी का चोगा पहनकर सत्ता में आये केजरीवाल के ही कई विधायक और मंत्री हैं जिनकी ख़ुद की फै़क्टरियों में कोई श्रम क़ानून नहीं लागू होता है और सुरक्षा के इन्तज़ाम की तो बात ही करना बेमानी होगा। अब ऊपर से मोदी सरकार रहे-सहे श्रम क़ानून भी ख़त्म कर देने की तैयारी में है। मतलब अब ये गैर-क़ानूनी मौतों को भी क़ानूनी जामा पहनाने की तैयारी चल रही है!

मोदी सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों पर हमले को रोकना होगा

 नयी श्रम संहिता के अनुसार तो फ़ैक्टरी इंस्पेक्टर द्वारा फ़ैक्टरियों का निरिक्षण करना बाध्यकारी नहीं रह जायेगा। अब सिर्फ़ मालिक यह कह दे कि उनकी फ़ैक्टरी में 10 से कम मज़दूर काम करते हैं और फ़ैक्टरी में सब कुछ ठीक है तो उसकी बात मान ली जायेगी! मतलब अब चोर ख़ुद अपने बारे में फ़ैसला सुनायेगा! अब कभी भी किसी मज़दूर को बिना वजह बताये काम से बाहर निकाला जा सकेगा और इसके खि़लाफ़ श्रम विभाग में शिकायत भी नहीं की जा सकती है। आज हम जिन सुरक्षा के इन्तज़ामों की माँग कर रहे हैं, वे भी हमसे क़ानूनी तौर पर छीनने की तैयारी है। साथियो, हमें सुरक्षा के इन्तज़ाम के लिए एक संघर्ष की शुरुआत करनी होगी। हाल ही में हम ऐसा कर पाने में असफल रहे हैं। क्यों? क्योंकि हम एकजुट नहीं हैं। 2014 की हड़ताल के बाद से हम आज मालिकों के आगे कमजोर हुए हैं। हमें फिर से अपनी फ़ौलादी एकता क़ायम करनी होगी। तभी हम न सिर्फ़ वज़ीरपुर के मालिकों को झुका पायेंगे, बल्कि सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों को कमजोर बनाने के प्रयासों को भी रोक पायेंगे।

 

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त 2019


 

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