होण्डा, शिवम व अन्य कारख़ानों के संघर्ष को पूरी ऑटो पट्टी के साझा संघर्ष में तब्दील करना होगा

– ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन (AICWU)

मन्दी के नाम पर छँटनी का कहर केवल होण्डा के मज़दूरों पर ही नहीं बल्कि गुड़गाँव और उसके आसपास ऑटोमोबाइल सेक्टर की कंसाई नैरोलक, शिरोकी टेक्निको, मुंजाल शोवा, डेन्सो, मारुति समेत दर्जनों कम्पनियों में लगातार जारी है। दिहाड़ी, पीस रेट, व ठेका मज़दूर तो दूर स्थायी मज़दूर तक अपनी नौकरी नहीं बचा पा रहे हैं। होण्डा, शिवम, कंसाई नैरोलेक आदि कई कम्पनियों के स्थाई श्रमिक निलम्बन, निष्कासन, तबादले से लेकर झूठे केस तक झेल रहे हैं। होण्डा समेत कई कारख़ानों में चल रहे संघर्षों में कैज़ुअल मज़दूरों के समर्थन में उतरे जुझारू मज़दूरों को निलम्बित किया गया है।

इन संघर्षों को और व्यापक तथा धारदार बनाने के लिए ज़रूरी है कि हम इस वक़्त उत्पादन के तौर-तरीक़ों में आये बदलावों और उसकी वजह से आयी मन्दी के सवाल को अच्छी तरह समझ लें।

आर्थिक मन्दी क्या होती है?

मन्दी कोई कुदरत का कहर नहीं है, जिसे झेलने के अलावा हमारे पास कोई और विकल्प ना हो। और न ही इस मन्दी का शिकार मालिक वर्ग है, जैसा कि पेश किया जाता है। इसका शिकार हम और आप यानी मज़दूर वर्ग है। सितम्बर 2019 तक के आँकड़ों के मुताबिक़ करीब 52 हज़ार करोड़ रूपए की 35 लाख गाड़ियाँ शोरूम में पड़ी सड़ रही थीं। कारख़ानों और गोदामों में और भी अधिक गाड़ियाँ बेकार पड़ी हैं। मन्दी की वजह से ऑटो सेक्टर समेत अनेक क्षेत्रों में बहुत-सी कम्पनियों ने उत्पादन कम कर दिया है। कई कारख़ाने आंशिक या पूरी तरह से बन्द किये जा रहे हैं। महिन्द्रा, मारुति, होण्डा, हीरो, टाटा, बजाज आदि कम्पनियों के उत्पादन में भारी गिरावट आयी है। इसकी वजह से बेरोज़गारी, कामबन्दी, छँटनी, तालाबन्दी के सभी पुराने रिकॉर्ड टूटते जा रहे हैं। बाज़ार में माल पड़ा है लेकिन ख़रीदार नहीं हैं।

आइए, पहले इस मौजूदा मन्दी को समझा जाये। ऑटो सेक्टर में अधिकतर गाड़ियाँ, करीब 60 प्रतिशत तक़ कर्ज़ पर ख़रीदी जाती हैं। कर्ज़ देने वालों में बैंक और फ़ाइनेन्स कम्पनियाँ हैं। लेकिन आजकल बैंक भी क़र्ज़ देने से पहले पक्का हो लेना चाहते हैं कि ग्राहक के पास कर्ज़ा चुकाने की क्षमता है या नहीं। आज के हालात में, जब भारी संख्या में लोगों के पास पक्का रोज़गार ही नहीं है तो उन्हें बैंक से क़र्ज़ मिलना मुश्किल होता है। ऐसे में फ़ाइनेंस कम्पनियाँ (ग़ैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ) ऐसे ग्राहकों को क़र्ज़ मुहैया करवाती हैं जिन्हें बैंक क़र्ज़ नहीं देते हैं। वे अपनी साख पर बैंक से क़र्ज़ लेकर आगे ग्राहकों को महँगे ब्याज पर लोन देती हैं। फ़ाइनेंस कम्पनियों द्वारा पहले से लिया गया क़र्ज़ रियल एस्टेट में बिक्री न होने के कारण तथा ग्राहकों को दिये गये क़र्ज़ वापस न होने कारण खु़द संकट में फंस गया है। अब बैंकों ने इन पहले के कर्ज़ न चुकाने के कारण फ़ाइनेंस कम्पनियों को भी पैसा देना बन्द कर दिया है। इस तरह फ़ाइनेंस कम्पनियाँ बर्बाद होना शुरू हुईं, और अब पूरी अर्थव्यवस्था ही धीमी पड़ गई है। मन्दी रियल एस्टेट के बाद अब ऑटो सेक्टर व अन्य सेक्टरों में फैल रही है। बाज़ार गाड़ियों से अँटता जा रहा है और क़ारख़ानों में उत्पादन ठप्प होता जा रहा है। उत्पादन के सभी बुनियादी सेक्टरों में गिरावट रुकने का नाम नहीं ले रही है और पूरी अर्थव्यवस्था ही मन्दी के भँवर में धँसती जा रही है।

मन्दी का बुनियादी कारण क्या है?

पूँजीवाद में पूँजीपति दो तरह की होड़ में उलझे रहते हैं। पहली, क़ीमत कम कर बाज़ार में टिके रहने की होड़ जो पूँजीपतियों के बीच होती है। दूसरी, मज़दूर और पूँजीपति के बीच, मज़दूर द्वारा पैदा किये गये मूल्य को हड़पने के लिए होती है। पूँजीपति क़ीमतों को कम रखने की होड़ में और मज़दूरों द्वारा पैदा किये गये बेशी मूल्य में मज़दूरों का हिस्सा कम करने के लिए नयी मशीनरी लाता है, मज़दूरों के काम के घण्टे व सघनता बढ़ाता चला जाता है। दूसरी तरफ़, वह वेतन में कटौती तथा मज़दूरों की छँटनी करने के लिए नये-नये क़ानूनी और ग़ैर-क़ानूनी पैंतरे आज़माता रहता है। सभी मज़दूर अनुभव से जानते हैं कि मालिक लगातार उन्नत से उन्नत मशीन का प्रयोग कर मज़दूरों को काम से बाहर निकालता है। क़ीमत कम करने की होड़ में सभी उद्योगों में मशीनीकरण बढ़ता ही जाता है। इस तरह उत्पादन में मशीनरी का हिस्सा बढ़ने की वजह से माल उत्पादन की प्रक्रिया में मज़दूर की श्रमशक्ति अनुपात में कम होती चली जाती है। चूँकि मुनाफ़ा मज़दूर की श्रमशक्ति से पैदा होता है इसलिए इस प्रक्रिया से मुनाफ़े की दर गिरती चली जाती है। गिरती हुई दर का प्रभाव अतिउत्पादन के रूप में प्रकट होता है। यानी माल है पर ख़रीदार नहीं है। इस गिरती दर को रोकने के लिए ही मालिक छँटनी करते हैं, वेतन कम करते हैं। इसकी वजह से मज़दूरों के कंगालीकरण की प्रक्रिया तेज़ हो जाती है और उनकी ख़रीदने की क्षमता घटती है, जबकि दूसरी तरफ़ बाज़ार सामानों से अँटा पड़ा होता है। अगले चक्र में मालिक उत्पादन को कम करता चला जाता है और अपने मुनाफ़े को बचाने के प्रयास में मज़दूरी में कटौती, कामबन्दी, छँटनी, तालाबन्दी करता है। इसी प्रक्रिया से आज भारत में मन्दी गहराती जा रही है। जो आने वाले समय में इससे भी बड़े संकट की ओर इशारा कर रही है।

आर्थिक मन्दी का समाधान मज़दूरों-मेहनतकशों की सत्ता है!
जब तक पूँजीवाद रहेगा! मेहनतकश बर्बाद रहेगा!

आर्थिक संकट मुनाफ़ा आधारित पूँजीवादी समाज के बुनियादी टकरावों की उपज है। इसका आधार यह है कि उत्पादन तो सामाजिक है परन्तु उसके फल निजी तौर पर मालिक वर्ग द्वारा हड़प लिये जाते हैं। यानी फै़क्ट्री में मज़दूर जो भी पैदा करता है, उसकी मेहनत के उत्पाद पर मालिक का क़ब्ज़ा होता है। जैसे ऑटोमोबाइल सेक्टर में बन रही गाड़ियों या गारमेण्ट सेक्टर में बन रहे कपड़े, इन उद्योगों के मालिकों के होते हैं। और मज़दूर को मालिक महज़ ज़िन्दा रहने योग्य वेतन देकर लूट को जारी रखता है। इस कुचक्र को तोड़ने का एकमात्र तरीका मुनाफ़ा आधारित समाज को ख़त्म कर एक ऐसी सत्ता की स्थापना है जिसमें सामाजिक उत्पादन का सामूहिक मालिकाना हो और उसके फलों का मालिक पूरा समाज हो। मौजूदा व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव लाकर मज़दूरों-मेहनतकशों की सत्ता क़ायम करके ही ऐसा सम्भव हो सकता है।

लेकिन जबतक मज़दूर वर्ग की सत्ता नहीं आती है, तब तक हम क्या करें?

हमें अपने संघर्षों को मज़बूत करना होगा। रोज़मर्रा के संघर्षों के साथ-साथ आगे की लम्बी लड़ाई के लिए भी अपनेआप को तैयार करना होगा। हमें अपने सामने खड़ी चुनौतियों को साफ़-साफ़ पहचानना होगा।

एक तरफ़ कम्पनियाँ मन्दी का रोना रो रही है और दूसरी तरफ़ नयी भरती भी कर रही है। पुराने कुशल कैज़ुअल मज़दूरों को पक्का करने के बजाय बड़ी तादाद में कुशल मज़दूरों की छँटनी कर रही है। सरकार के कान पर जूँ तक नहीं रेंग रही। बल्कि पहले के संघर्षों और कुर्बानियों की बदौलत हासिल किये क़ानूनी अधिकारों को भी नये लेबर कोड के तहत श्रम क़ानूनों में बदलाव करके एक-एक कर छिना जा रहा है।

मालिकों ने उत्पादन को मदर और वेण्डर कम्पनी के साथ-साथ कई प्लाण्टों और इलाक़ों में बाँट दिया है, और मज़दूरों को एक कारख़ाने की चौहद्दी से निकालकर पूरे सेक्टर में बिखरा दिया है। वसकी वजह से आज ज़्यादातर मज़दूर आन्दोलन मालिकों और प्रबंधन के आगे टिक नहीं पा रहें हैं। पिछले एक दशक में मारुति, होण्डा, औमैक्स, ऑटोमैक्स, स्पीडोमैक्स, हीरो, शिवम से लेकर डाइकिन के आन्दोलन इस बात को दिखाते हैं कि कारख़ाना आधारित संघर्ष के बूते पर ऑटोमोबाइल सेक्टर और पूरी औद्योगिक पट्टी में मालिकों और प्रशासन के ख़िलाफ़ जीत पाना बेहद मुश्किल हो चुका है। बुनियादी समस्या किसी एक कारख़ाने से जुड़ी नहीं है, बल्कि ऑटो सेक्टर समेत बहुत से सेक्टरों से जुड़ी है। किसी एक कारख़ाने की चौहद्दी में मन्दी का सामना करने के बारे में सोचा तक नहीं जा सकता। दूसरे, मज़दूरों के ख़िलाफ़ सिर्फ़ उनके कारख़ाने के मालिक नहीं बल्कि गुड़गाँव-रेवाड़ी-नीमराणा क्षेत्र के तमाम मालिक अपने इंडस्ट्रियल एसोसिएशन में और वर्गीय तौर पर एकजुट हैं। सत्ता के सभी अंग उन्हीं के पक्ष में खड़े हैं। मज़दूरों के पास केवल अपनी एकता और संख्याबल की ताक़त है। मगर अभी वह बिखरी हुई है।

श्रम विभाग, पुलिस, प्रशासन, सरकार, बिकाऊ मीडिया और इस लूट में शामिल तमाम ठेकेदार और तथाकथित जनप्रतिनिधियों का नापाक गँठजोड़ खुलेआम मालिकों की सेवा में खड़ा है। श्रम न्यायालयों से लेकर हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक उन्हीं की ओर हैं। जहाँ मालिकों का पक्ष कमज़ोर हो, वहाँ फ़ैसले बरसों तक लटका दिये जाते हैं।

राज्य और केन्द्र की सरकारें और पूँजीपतियों की पार्टियाँ मज़दूर आन्दोलनों को कुचलने के लिए धर्म-जाति-क्षेत्र-भाषा आदि के ज़रिए अंग्रेज़ों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति पर चलते हुए मज़दूरों-मेहनतकशों के बीच तरह-तरह के बँटवारे पैदा करने के लिए रोज़ नयी से नयी चाल चल रही हैं।

आज महज़ अर्ज़ियों, माँगपत्रकों, वार्ताओं, प्रतीकात्मक जनसभाओं, कार्रवाइयों, प्रदर्शनों आदि से प्रबन्धन और प्रशासन के गँठजोड़ पर ज़्यादा असर नहीं पड़ने वाला। ऐसे में श्रम की ताक़तों को एकजुट होकर जनता के बीच जुझारू तरीके से अपना पक्ष लेकर जाना होगा। आम आबादी को अपनी माँगों से अवगत ही नहीं करवाना होगा बल्कि उन्हें अपने साथ खड़ा भी करना होगा।

अपने-अपने क़ारख़ानों में या अपने-अपने कमरे में चुपचाप मन्दी और छँटनी की इस समस्या से मुँह चुराकर हम अपना रोज़गार भी नहीं बचा पायेंगे। लगातार जारी शोषण व उत्पीड़न का मुकाबला करने के लिए और स्थायी, सुरक्षित और क़ानूनसम्मत रोज़गार का हक हासिल करने के लिए हमें सेक्टर के पैमाने पर और इलाक़ाई एकजुटता बनानी होगी। इस एकजुटता के बैनर तले मज़दूरों का जुझारू साझा संघर्ष ही एकमात्र विकल्प है और यही सफलता की गारण्टी है।

ये पूरे क्षेत्र के ऑटो सेक्टर के सभी मज़दूरों की साझा माँगें बनती हैं। इनके लिए साझा संघर्ष ही आगे बढ़ने का रास्ता है।

1. होण्डा व ऑटो सेक्टर के अन्य कारख़ानों के कैज़ुअल मज़दूरों को क़ानूनसम्मत स्थायी रोज़गार दो और वेतनसहित काम पर वापस लो!
2. होण्डा (मानेसर) और शिवम (बिनौला) व अन्य कारख़ानों के निलम्बित (सस्पेंड) व ट्रांसफ़र किये परमानेंट मज़दूरों को वेतनसहित काम पर वापिस लो!
3. मन्दी के नाम पर मज़दूरों की छँटनी बन्द करो! ‘स्थायी रोज़गार के अधिकार को मूलभूत अधिकार में शामिल करो!’
4. ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून’ (बसनेगा) पारित करो! पक्के रोज़गार की गारण्टी दो। बेरोज़गार होने की सूरत में 10,000 रुपये मासिक बेरोज़गारी भत्ता दो!
5. जेल में बन्द मारुति के मज़दूरों को रिहा करो! आन्दोलनों के दौरान मज़दूरों पर किये गये झूठे मुक़दमे तत्काल वापस लो! उन्हें वेतनसहित काम पर लो। मज़दूर आन्दोलनों, यूनियन अधिकारों और यूनियन पदाधिकारियों पर हमले बन्द करो!
6. यूनियन और प्रबन्धन के बीच हुए सामूहिक माँगपत्रक समझौतों को सम्मानपूर्वक लागू करो और विवादों को निपटाओ!
7. ठेका प्रथा (तिमाही, छमाही, नौमाही, वार्षिक) ख़त्म करो!  निश्चित अवधि रोज़गार (फ़िक्सड टर्म एम्प्लॉयमेंट – एफ़टीसी) पर तत्काल रोक लगाओ!
8. पहचान पत्र और सैलरी स्लिप पर काम की असली प्रकृति और कम्पनी व ठेकेदार का नाम दर्ज करो!
9. ट्रेनी व अप्रेण्टिस के नाम पर शोषण व स्थायी रोज़गार पर हमला बन्द करो!
10. गै़र-क़ानूनी छँटनी, निलम्बन, निष्कासन, तालाबन्दी व जबरिया रिटायरमेंट तथा मनमर्ज़ी तबादले (डिपार्टमेंट टू डिपार्टमेण्ट और प्लाण्ट टू प्लाण्ट) बन्द करो! मनमाने व ग़ैर-क़ानूनी नियमों द्वारा उत्पीड़न और शोषण तत्काल बन्द करो!
11. सभी श्रम क़ानूनों को लागू करो! श्रम क़ानूनों पर हमला बन्द करो! मज़दूर विरोधी श्रम क़ानूनों को वापस लो!
12. न्यूनतम वेतन 20,000 रुपये प्रतिमाह लागू करो!
13. काम के घण्टे 6 करो! जबरिया व सिंगल रेट पर ओवरटाइम करवाना बन्द करो! ओवरटाइम का डबल रेट से भुगतान सुनिश्चित करो!
14. सुरक्षा के पुख्ता इन्तज़ाम करो! दुर्घटना होने पर उचित मुआवज़ा दो!
15. पी.एफ. निकालने की प्रक्रिया को आसान करो! प्रबन्धन और ठेकेदारों की घपलेबाज़ी और चक्करबाज़ी पर रोक लगाओ!

 

साझी माँगें-साझी लड़ाई!
तभी होगी हमारी सुनवाई!
सेक्टरगत और इलाक़ाई एकता क़ायम करो!
मिलजुलकर संघर्ष करो!

मज़दूर बिगुल, जनवरी 2020


 

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