लखनऊ में डिफ़ेंस एक्सपो : मुनाफ़े की हवस में युद्धोन्माद फैलाने का तामझाम

– अनुपम

बीती 5 फ़रवरी से 9 फ़रवरी तक लखनऊ शहर में डिफ़ेंस एक्सपो आयोजित किया गया जिसको मीडिया ने हाथों-हाथ लिया। हथियार बेचने की होड़ में लगे रक्षा क्षेत्र के पूँजीपतियों को रिझाने के लिए भारत सरकार की ओर से आयोजित इस प्रदर्शनी के शुरू होने से पहले ही शहर के मेट्रो स्टेशनों और चौराहों पर मोदी-राजनाथ के फ़ोटो लगे बड़े-बड़े होर्डिंग लगने शुरू हो गये थे। मीडिया में इसे एशिया की सबसे बड़ी रक्षा प्रदर्शनी कहकर आम जनता को इसके फ़ायदे बताये गये। आसमान में उड़ते लड़ाकू जहाज़ों, ड्रोनों, तोपों और मशीनगनों का प्रदर्शन करते हुए युद्धोन्माद और राष्ट्रभक्ति की बयार चलायी गयी, ताकि जनता इस एक्सपो से होने वाली परेशानियों को भूलकर राष्ट्र के विकास की इस मुहिम का भरपूर समर्थन करे। लेकिन इस युद्धोन्माद और राष्ट्रवाद की आँधी में बहने की बजाय ज़रूरत यह समझने की है कि जनता की जेब काटकर की गयी इस बेहद ख़र्चीली नौटंकी से आम जनता का क्या भला होने वाला है।

इस एक्सपो के बहाने ‘मेक इन इण्डिया’ के फुस्स हो चुके गुब्बारे में भी फिर से हवा भरने की कोशिश की गयी और भारत को रक्षा क्षेत्र का मैन्युफ़ैक्चरिंग हब बनाने के हवाई किले बनाये गये। इस एक्सपो में 1000 से भी ज़्यादा रक्षा कम्पनियाँ आयीं और 200 से भी ज़्यादा एमओयू पर दस्तख़त किये गये। यानी अब रक्षाक्षेत्र की ये विदेशी कम्पनियाँ भारत में रक्षा उत्पादों के निर्माण के लिए भारत सरकार और भारतीय कम्पनियों के सहयोग से काम करेंगी। हमें बताया गया कि इस प्रक्रिया में जो उपक्रम खड़े होंगे उससे नये रोज़गार पैदा होंगे और इससे देश रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भर हो जायेगा। अव्वलन तो इसकी कोई गारण्टी नहीं है कि इस बेहद ख़र्चीले तामझाम की बदौलत रोज़गार के कितने अवसर पैदा होंगे, लेकिन अगर सरकार के दावे को सच मान भी लिया जाये तो यह सवाल उठता है कि क्या सरकार यह मान चुकी है कि अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में रोज़गार पैदा नहीं किये जा सकते, इसलिए अब युद्ध और नरसंहार को बढ़ावा देने वाले क्षेत्र पर निर्भर होने के अलावा और कोई चारा नहीं है?

असलियत तो यह है कि मौजूदा दौर में पूरी दुनिया में मन्दी का आलम है और पूँजीवाद के तमाम नीमहकीमों द्वारा सुझाये गये नुस्खों पर अमल करने के बावजूद मन्दी से उबरने के आसार दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहे हैं। दुकानों में माल पटे हुए है लेकिन ख़रीदने वाले लोग ही नहीं हैं। बढ़ती बेरोज़गारी और कम मज़दूरी के चलते लोगों की जेब में पैसा नहीं है। पूँजीवाद में मुनाफ़े के इस संकट का समाधान बड़े पैमाने पर उत्पादक शक्तियों के विनाश के ज़रिये ही होता आया है। मुनाफ़े की होड़ से उपजे संकट की परिणति दो विश्वयुद्धों और अनगिनत क्षेत्रीय युद्धों में हुई है। दुनियाभर में अशान्ति फैलाकर मौत के सौदागर रक्षा क्षेत्र के एकाधिकारी घराने अपना मुनाफ़ा बढ़ाने की कोशिश में लगातार लगे रहते हैं। ये घराने और रक्षा क्षेत्र के दलाल विभिन्न देशों की सरकारों और राजनेताओं से साँठगाँठ करके डिफ़ेंस एक्सपो जैसे कार्यक्रम आयोजित कराते हैं ताकि उनके उत्पादों के लिए बाज़ार तैयार होता रहे।

लखनऊ में डिफ़ेंस एक्सपो के दौरान रक्षामंत्री राजनाथ ने कहा कि भारत रक्षा उत्पादों के मामले में लम्बे समय तक आयात पर निर्भर नहीं रह सकता। इसी बहाने भारत के 2024 तक विश्व की महाशक्ति बनने का जुमला भी फेंका गया। रक्षा क्षेत्र में मैन्युफ़ैक्चरिंग हब बनाने के सब्ज़बाग़ भी दिखाये गये। बात की गयी कि इस एक्सपो का उद्देश्य देश को सुदृढ़, सशक्त और  समृद्ध बनाना है। लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस देश में हज़ारों बच्चे रोज़ भूख, कुपोषण और छोटी-छोटी बीमारियों से मर जाते हैं, जहाँ आधी से ज़्यादा महिलाएँ ख़ून की कमी की शिकार हैं उसे हथियारों के निर्माण का केन्द्र बनाने की हसरत करना अपने आप में एक भद्दा मज़ाक़ नहीं है तो और क्या है? क्या लड़ाकू विमानो, तोपों, रडारों, ड्रोनों और मशीनगनों से इस देश की आबादी का पेट भर सकेगा?

मज़दूर बिगुल, मार्च 2020


 

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