होण्डा मानेसर प्लाण्ट में परमानेंट मज़दूरों की वी.आर.एस. के नाम पर छँटनी का नोटिस जारी!

इस बार जापान की ऑटोमोबाइल निर्माता कम्पनी होण्डा मोटर साईकिल व स्कूटर इण्डिया (एच.एम. एस. आई.) ने मानेसर प्लाण्ट में भी तथाकथित वी.आर.एस.(सवैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना) के नाम पर छँटनी का नोटिस चिपका दिया गया है।

होण्डा ग्रेटर नोएडा प्लाण्ट में वीआरएस का सच:

ज्ञात रहे कि पिछले ही महीने होण्डा के चौपहिया वाहन के ग्रेटर नोएडा प्लाण्ट के मज़दूरों वहाँ कथाकथित वी.आर.एस. के नाम पर की गई छँटनी पर रोष व्यक्त कर रहे हैं कि किस तरह उन्हें डरा, धमकाकर,भरमाकर व जबरन वी.आर.एस. पर हस्ताक्षर करवाये गये और उन्हें काम न करने लायक (अनफिट) बता रही थी और पूरा मुआवजा भी नही दिया गया है। मज़दूर श्रम विभाग, प्रशासन, नेताओं व सरकार के आगे गुहार पर गुहार लगा रहे हैं कि वे रोज़गार के संकट से जूझ रहे हैं, उनके साथ अन्याय हो रहा है लेकिन कहीं भी उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा है। ऊपर से कम्पनी के परमानेंट मज़दूरों की यूनियन पर भी छँटनी हुए मज़दूरों का रोष है, क्योंकि उसने किसी तरह इस मैनेजमेंट की जबरन सेवानिवृत्ति के ख़िलाफ़ कोई चुनौतीपूर्ण संघर्ष नहीं किया। कम्पनी अपने अख़बारी बयानों से साफ़ में कह रही है कि वह मज़दूर यूनियन की सहमति से वीआरएस को लेकर आई है।

होण्डा मानेसर प्लाण्ट में दोबारा में छँटनी का दौर:

यह भी ज्ञात रहे एक साल पहले ही होण्डा के मानेसर प्लाण्ट के लगभग 2500 कैजुअल मज़दूरों की, जो कई सालों से काम कर रहे थे, एक झटके से छँटनी करके उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था। वहां महीनों आन्दोलन चलने के बावजूद और यूनियन बॉडी के कुछ लोगों के निलम्बन के बावजूद कम्पनी की परमानेंट यूनियन और इलाक़े की ट्रैड यूनियन काउंसिल भी कुछ नहीं कर पाई थी। कुछ बड़े यूनियन नेता, जो अपनी फेडरेशन के जिला स्तर के नेता भी थे, यूनियन में चुनाव के बाद चुपचाप वी.आर.आर. लेकर घर की राह पकड़ ली और कुछ न होता देख होण्डा के कैजुअल मज़दूरों को भी मज़बूरन हिसाब लेना पड़ा, जिस पर आज भी मज़दूरों के दिलों में रोष है।
इस पर ध्यान देने की सख़्त ज़रूरत है कि क्या मज़दूर वास्तव में स्वैच्छा से ही वी.आर.एस. ले रहें हैं या फिर ग्रेटर नोएडा की तरह उन्हें भी आपस में बाँट कर, एक-एक मज़दूर को डरा-धमकाकर, भरमाकर, लालच देकर सेवानिवृत्ति पर हस्ताक्षर कराया जा रहा है। यह भी देखना होगा कि, क्या इस बार मज़दूर एकजुट होकर प्रतिरोध कर पायेंगे या नहीं। साथ ही इस छँटनी पर अन्य परमानेंट मज़दूर, उनकी यूनियन, उनकी फेडरेशन, टी.यू.सी. कुछ कर पायेगी या फिर पुरानी कहानी ही दोहराई जायेगी और मज़दूर घर की राह पकड़ लेंगे।

कम्पनी का तर्क और उसकी सच्चाई

वैसे तो कम्पनी अपने नोटिस में भारतीय ऑटो उद्योग में कोरोना वायरस का संकट और आर्थिक गिरावट का रोना रो रही है। लेकिन वास्तव में ऑटो सेक्टर भारत की अर्थव्यवस्था समेत कोरोना काल से पहले से ही लम्बी मंद मंदी का शिकार थी, कोविड-19 ने तो महज संकट को एक और ज़ोरदार लात देकर इस संकट में धकेलने का ही काम किया है। और अब कम्पनियाँ इस आपदा में अवसर का लाभ लेते हुए परमानेंट मज़दूर से छुटकारा पाना चाह रहीं हैं ताकि आगे से कच्चे/ठेका मज़दूरों को ही काम पर रखा जा सके।
यह भी भूलना नहीं चाहिए कि कोरोना (कोविड-19) फैलने के पीछे वास्तव में मुनाफाख़ोर पूँजीवादी व्यवस्था और मोदी सरकार की लापरवाही ही जिम्मेदार है और बाद में कोरोना काल में मज़दूरों को उनके अपने हाल पर मरने के लिए सड़कों पर छोड़ दिया गया था। अब मज़दूरों को बेरोज़गार किया जा रहा है।
वास्तव में संकट का मूल कारण मुनाफ़ाख़ोर पूँजीवादी व्यवस्था की आपसी कुत्ताघसीटी ही है। मुनाफ़े के लिए पूँजीपति एक-दूसरे के मुँह से हड्डी झपटने में लगे रहते हैं। जिसकी वजह से पूूँजीपतियों के मुनाफ़े की दर घटने का रूझान बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में पूँजीपति अपने संकट का सारा बोझ मज़दूरों की छँटनी, वेतन कटौती, ज़्यादा व तेज़ उत्पादन टारगेटों की माँग का दबाव बनाकर, काम के घण्टे का बढ़ाकर आदि तरीकों से मज़दूर पर ही डालते हुए उसकी ज़िन्दगी और मुश्किल बना देते हैं।
मज़दूरों को अपने पर पड़ रहे संकट के बोझ को कम करने यानी अपने रोज़गार को बचाने व वेतन को बचाने, अपने कार्यकाल को बचाने के लिए पूरी पूँजीवादी उत्पादन प्रणाली की इस आदमख़ोर सच्चाई को समझना होगा ताकि अपनी एकताबद्ध कतारों से इसका मुकाबला करते हुए इससे सदा के लिए मुक्ति के रास्ते की ओर बढ़ सके।
ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन ने विभिन्न कम्पनियों के मज़दूरों से आग्रह किया है कि अपनी-अपनी कम्पनियों में हो रही छँटनी या पहले से हुई छँटनी के बारे में ज़रूर जानकारी दें ताकि इसके आधार पर कम्पनियों की तथाकथित मनमानियों-छँटनियों और सरकारों की अनदेखी और मज़दूर-विरोधी फ़ैसलों के ख़िलाफ़ संघर्ष को आगे बढ़ाया जा सके।

मज़दूर बिगुल, जनवरी 2021


 

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