बरगदवाँ, गोरखपुर के मज़दूर मालिकों की मनमानी के विरुद्ध फिर आन्दोलन की राह पर

मोदी सरकार द्वारा चार लेबर कोड लाये जाने के बाद से देश भर में फ़ैक्ट्रियों-कारख़ानों के मालिकों के हौसले और बुलन्द हुए हैं। गोरखपुर के बरगदवाँ औद्योगिक क्षेत्र में स्थित वीएन डायर्स प्रोसेसर्स प्राइवेट लिमिटेड (कपड़ा मिल) में पिछले दिनों तीन मज़दूरों को ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से बाहर निकाल दिया गया। ये तीनों मज़दूर अरुण चौबे, संजय पाठक और आकाश चौबे पिछले लम्बे समय से इस कारख़ाने में काम कर रहे थे। इन मज़दूरों के निकाले जाने के बाद प्रबन्धन से कई बार बातचीत की गयी और उपश्रमायुक्त कार्यालय का भी मज़दूरों द्वारा दो बार घेराव किया जा चुका है, लेकिन प्रबन्धन अपनी मनमानी पर उतारू है।
वास्तव में कपड़ा मिल में हमेशा से श्रम क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाने का काम खुलकर होता रहा है। करीब 10 वर्ष पहले बिगुल मज़दूर दस्ता की अगुवाई में हुए आन्दोलनों के बाद कुछ श्रम क़ानून लागू होने शुरू हुए थे लेकिन बाद में आन्दोलन के बिखराव के साथ ही मालिकान की मनमानी बढ़ती गयी है। सात-आठ साल से भी ज़्यादा समय से काम करने वाले बहुत से मज़दूरों का ईपीएफ़-ईएसआई नहीं कटता। बहुत से मज़दूर कारख़ाने में कुशल मज़दूर की तरह काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अभी भी अर्द्धकुशल मज़दूरों की श्रेणी में रखा गया है। कारख़ाने में लगभग 250 मज़दूर डेली वेज पर काम कर रहे हैं, जिन्हें ना तो कोई सुरक्षा के उपकरण मिलते हैं और न ही प्रशासन की उनके प्रति कोई जवाबदेही बनती है। पिछले दिनों इसी कारख़ाने में बॉयलर लीकेज की चपेट में आकर विकास पाण्डेय नाम का एक मज़दूर बुरी तरह घायल हो गया था। उस मामले में भी प्रबन्धन ने लापरवाही दिखायी और मज़दूरों का दबाव बनने के बाद, पूरा दिन बीत जाने पर ही हरकत में आया।
लॉकडाउन के दौरान जहाँ एक तरफ़ मज़दूरों की स्थिति पर घड़ियाली आँसू बहाते हुए फ़ासीवादी सरकार कारख़ाना मालिकों से मज़दूरों को पूरी मज़दूरी देने की ‘अपील’ कर रही थी, वहीं उसी सरकार की शह पर इन कारख़ाना मालिकों ने सभी मज़दूरों को सड़क पर लाकर छोड़ दिया था।
वास्तव में, गोरखपुर के बरगदवाँ और गीडा औद्योगिक इलाक़े के सभी कारख़ानों की कहानी लगभग यही है। कारख़ाने के मज़दूरों को डरा-धमकाकर ओवरटाइम करा लेना, कारख़ाने में बिजली-पानी की सप्लाई रोककर मज़दूरों को परेशान करना, काम के घण्टे बढ़ाना, समय पर वेतन न देने जैसी माँगों पर आये दिन संघर्ष होता रहता है। बिगुल मज़दूर दस्ता और टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन द्वारा निकाले गये तीनों मज़दूरों को वापस काम पर रखने समेत कई माँगों को लेकर आन्दोलन चलाया जा रहा है। जब तक प्रशासन इन तीनों मज़दूरों को काम पर रखने और सभी माँगों को मानने के लिए तैयार नहीं हो जाता, तब तक यह आन्दोलन जारी रहेगा। आन्दोलन की माँगें इस प्रकार हैं –
1. अरुण चौबे, संजय पाठक, आकाश चौबे को तत्काल वापस लिया जाये।
2. न्यूनतम मज़दूरी कम से कम 15000 रुपये की जाये।
3. कुशल मज़दूरों का काम कर रहे जिन मज़दूरों को अर्ध-कुशल की श्रेणी में रखा गया है, उनको कुशल की श्रेणी में रखा जाये।
4. कारख़ाने में दुर्घटनाएँ होती रहती हैं, मज़दूरों के लिए कारख़ाने के अन्दर डॉक्टरी उपचार की व्यवस्था की जाये।
5. कारख़ाने के अन्दर कार्यरत कैज़ुअल और ई.एस.आई.-ई.पी.एफ़. पाने वाले मज़दूरों, जिनकी संख्या लगभग 400 से 450 है, समेत सभी मज़दूरों को लॉकडाउन की बन्दी और सेनिटाइज़ेशन के कारण बन्दी को शामिल कर कम से कम 200 दिन के पी.एल. की राशि का भुगतान किया जाये।
6. जो मज़दूर कारख़ाने में सात-आठ साल या उससे ज़्यादा समय से काम कर रहे हैं उनका ई.एस.आई.-ई.पी.एफ़. कैम्प लगाकर बनाया जाये।

मज़दूर बिगुल, मार्च 2021


 

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