आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश, 2021 के ज़रिए मज़दूरों के अधिकारों पर फ़ासीवादी सत्ता का एक और हमला!
मज़दूरों के हक़ों की क़ीमत पर पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े की हिफ़ाज़त में जुटी मोदी सरकार!

बीते 30 जून को फ़ासीवादी मोदी सरकार द्वारा आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश, 2021 लाया गया। ज्ञात हो कि यह अध्यादेश केन्द्र सरकार को आवश्यक रक्षा सेवाओं में लगे फ़ैक्टरी मज़दूरों के हड़ताल पर रोक लगाने समेत अनेक अधिकारों को निरस्त करने की अनुमति देता है।
इस अध्यादेश के मुताबिक़ सरकार किसी भी सेवा या प्रतिष्ठान को आवश्यक रक्षा सेवा के रूप में घोषित कर सकती है, यदि ऐसी सेवाओं या प्रतिष्ठानों में कामबन्दी या हड़ताल से :
(i) रक्षा उपकरणों या सामान का उत्पादन प्रभावित होता है,
(ii) औद्योगिक प्रतिष्ठानों या इकाइयों का संचालन प्रभावित होता है, या
(iii) रक्षा से जुड़े उत्पादों की मरम्मत या रखरखाव के काम में रुकावट आती है।
मोदी सरकार के मुताबिक़ जिन फ़ैक्टरियों में आवश्यक रक्षा सेवाओं के रखरखाव के लिए काम होता है, वहाँ मज़दूरों द्वारा काम बन्द करने पर, सामूहिक आकस्मिक अवकाश लेने पर, ओवरटाइम करने से मना करने पर या कोई अन्य आचरण जिसके परिणामस्वरूप आवश्यक रक्षा सेवाओं के काम में बाधा उत्पन्न होती है, उन्हें दण्डित किया जायेगा। ध्यान रखने की बात है कि रक्षा उत्पादन का एक अच्छा-ख़ासा हिस्सा अब निजी क्षेत्र की कम्पनियों को सौंपा जा चुका है और वे भी अपने कारख़ानों में मज़दूरों द्वारा हक़ माँगने के लिए आन्दोलन करने पर इस क़ानून का उपयोग कर सकते हैं।
अपने हक़ों के लिए हड़ताल करने पर मज़दूरों को एक साल तक की क़ैद या 10,000 रुपये ज़ुर्माना या दोनों से दण्डित करने की व्यवस्था इस अध्यादेश में की गयी है। अध्यादेश के तहत दण्डनीय सभी अपराध ग़ैर-ज़मानती होंगे।
फ़ासीवादी मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद से ही मज़दूरों-मेहनतकशों के रहे-सहे अधिकारों पर हमले शुरू हो गये थे और अब इस महामारी से पैदा हुई आपदा के दौर में पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े की पहले से ही गिरती दर से गहराये आर्थिक संकट को दूर करने की कोशिश में ये हमले और तेज़ कर दिये गये हैं।
उल्लेखनीय है कि ऑर्डिनेन्स फ़ैक्टरी के मज़दूर, स्टील फ़ैक्टरी के मज़दूर, रेल कर्मचारी व अन्य सेक्टरों में काम कर रहे मज़दूर-कर्मचारी लगातार सरकार की नीतियों के ख़िलाफ़, निजीकरण के ख़िलाफ़ प्रदर्शन और हड़तालें कर रहे हैं जिसको रोकने के लिए भी आनन-फ़ानन में मोदी सरकार ये नया अध्यादेश लेकर आयी है। विशाखापत्तनम स्टील प्लाण्ट को निजी हाथों में सौंपने के केन्द्र सरकार के निर्णय के ख़िलाफ़ वहाँ के मज़दूर-कर्मचारी पिछले क़रीब 5 महीनों से क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठे हैं मगर फ़ैक्टरी प्रबन्धन और सरकार को उनकी माँगों से कोई लेना-देना नहीं है।
मालूम हो कि बीते 23 जून को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को लिखे एक पत्र में ऑर्डिनेन्स फ़ैक्टरी के मज़दूरों की यूनियन ने निजीकरण को बढ़ावा देने वाली सरकारी नीतियों के ख़िलाफ़ 26 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की बात कही थी । देशभर में सुलग रहे मज़दूरों के ग़ुस्से को फूटने से रोकने के लिए ये दमनकारी क़ानून बिना संसद सत्र का इन्तज़ार किये मोदी सरकार लाने जा रही है। हालाँकि मज़दूरों से जुड़े मसलों में सभी बुर्जुआ पार्टियाँ एकमत ही होती हैं।
मेहनतकश जनता की गाढ़ी कमाई से खड़ी की गयी सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों को बेचने का काम मोदी सरकार दिन दोगुनी-रात चौगुनी रफ़्तार से कर रही है। रेलवे, बीएसएनएल, ओएनजीसी, एयर इण्डिया और एचएएल जैसे सार्वजनिक उपक्रमों का इस सरकार ने जो हश्र किया, उससे यह साफ़ है कि पहले इन कम्पनियों की हालत को बदतर किया जाता है, उन्हें घाटे में दिखाया जाता है और फिर उनकी “बेहतरी” के नाम पर उन्हें औने-पौने दामों पर निजी हाथों में सौंप दिया जाता है। इसके बाद पूँजीपतियों के मुनाफ़े की सुरक्षा के लिए क़ानून से लेकर पुलिस-फ़ौज तक लगा दी जाती है। निजीकरण न सिर्फ़ छँटनी-तालाबन्दी को बढ़ावा देता है बल्कि मज़दूरों के शोषण को भी बेइन्तहा बढ़ाता है।
पूँजीपतियों के मुनाफ़े को बरक़रार रखने के लिए मज़दूरों के ख़ून की आख़िरी बूँद को भी सिक्के में ढालने की तैयारी में एक के बाद एक ऐसे क़ानून बनाये जा रहे हैं, जिसमें न सिर्फ़ केन्द्र की मोदी सरकार ने मुस्तैदी दिखायी है, बल्कि सभी राज्य सरकारों ने भी पूँजीपति वर्ग के प्रति बार-बार अपनी वफ़ादारी ही प्रदर्शित की है। पहले चार लेबर कोड और अब आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश इसका हालिया उदाहरण है। रक्षा सेवाओं के नाम पर मोदी सरकार की इस रणनीति का असल मक़सद आर्थिक संकट से कराह रहे पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े को बनाये रखना है।
इस अध्यादेश के बिन्दुओं को देखने से यह साफ़ पता चलता है कि ये नियम सिर्फ़ रक्षा सेवा के क्षेत्र में लगे मज़दूरों पर नहीं बल्कि व्यापक मज़दूर आबादी पर लागू होंगे और उनके आन्दोलन करने के अधिकार तथा अन्य जनवादी अधिकारों को एक साथ ख़त्म कर देंगे। साथ ही, यह राज्यसत्ता की दमनकारी मशीनरी को भी चाक-चौबन्द करेंगे। या यूँ कहें कि यह क़ानून पूँजीपति वर्ग को मज़दूरों-मेहनतकशों को बिना किसी क़ानूनी रुकावट के लूटने की पूरी आज़ादी देगा और दूसरी तरफ़ मज़दूरों से उनके संगठित होकर प्रतिरोध करने के अधिकार तक को छीन लेगा!
आज मज़दूर आन्दोलन के बिखराव का फ़ायदा उठाकर सरकारें उनके अधिकारों पर हमला बोल रही हैं। मज़दूर अगर एकजुट नहीं हुए तो ये हमें पूरी तरह पीस डालेंगे।

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2021


 

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