नोएडा-ग्रेटर नोएडा औद्योगिक क्षेत्र : लगातार बढ़ रहे शोषण के ख़िलाफ़ जारी है मज़दूरों का असंगठित प्रतिरोध

– सत्येन्द्र

दिल्ली के ओखला औद्योगिक क्षेत्र के विस्तार के तौर पर नवीन ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (न्यू ओखला इण्डस्ट्रियल डेवलपमेण्ट अथॉरिटी) की स्थापना की गयी। आपातकाल के दौर में 17 अप्रैल 1976 को नोएडा अस्तित्व में आया। प्रारम्भ में 12 सेक्टर बसाये गये जिसमें सेक्टर 1 से 10 औद्योगिक थे और 11 मिश्रित तथा 12 आवासीय सेक्टर था। दूसरे दौर 1985 में फ़ेज़-2 को औद्योगिक क्षेत्र के रूप में तैयार किया गया जो भारत का पहला विशेष आर्थिक क्षेत्र (NSEZ) था।
दिल्ली से नज़दीक होने के कारण अस्तित्व में आने के बाद से ही नोएडा में औद्योगिक क्षेत्रों का तेज़ी से विकास हुआ। देशी-विदेशी कम्पनियाँ यहाँ पर अपनी उत्पादन इकाइयों का तेज़ी से विस्तार करने लगीं। ग़ैर-परम्परागत औद्योगिक इकाइयों के साथ यहाँ पर बड़ी संख्या में आईटी कम्पनियाँ हैं। साथ ही नोएडा आईटी सेवाओं को आउटसोर्स करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का एक प्रमुख केन्द्र है।
नोएडा-ग्रेटर नोएडा औद्योगिक क्षेत्र में एक अनुमान के मुताबिक़ क़रीब 6 लाख प्रवासी मज़दूर काम करते हैं। नोएडा एण्टरप्रेनयोर्स एसोसिएशन के मुताबिक़ नोएडा-ग्रेटर नोएडा औद्योगिक क्षेत्र में 11,000 पंजीकृत इकाइयाँ हैं जिनमें 3,000 इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं के निर्माण में लगी हुई हैं। ग़ैर-पंजीकृत इकाइयों को भी जोड़ दें तो ज़िले में 20 हज़ार औद्योगिक उत्पादन केन्द्र हैं जिनमें से छोटे और मध्यम उत्पादन केन्द्रों की संख्या 16 हज़ार है।
6 लाख प्रवासी मज़दूरों के अलावा बड़ी संख्या में स्थानीय मेहनतकश आबादी और आसपास के ज़िलों से भी लोग काम की तलाश में नोएडा-ग्रेटर नोएडा पर निर्भर रहते हैं। हाल के दिनों में विशेष तौर पर लॉकडाऊन के बाद से यहाँ पर मज़दूरों के लिए काम के हालात बेहद मुश्किल हो गये हैं। लॉकडाउन से पहले की तुलना में मज़दूरों के काम के घण्टे अधिक हो गये हैं, रोज़गार की असुरक्षा बढ़ी है, वेतन कम हो गया है, साप्ताहिक छुट्टी नहीं मिल रही है और बेरोज़गारी का आलम यह है कि कई जगहों पर हेल्पर के काम के लिए 30 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को नहीं रखा जा रहा है।
लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में यहाँ के मज़दूरों को मालिकों ने पिछला हिसाब नहीं दिया था। लौटकर आने के बाद भी मुश्किल से 10-20 फ़ीसदी मज़दूरों को ही उनका बकाया मिल सका बाक़ी मालिक और उनके चमचों ने ग़बन कर लिया। लॉकडाउन से पहले फ़ैक्टरियों में काम करने वालों में बहुत-से मज़दूर छँटनी के बाद दिहाड़ी मज़दूर बन गये हैं और महीने में बमुश्किल 15-20 दिन काम पा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के दूसरे ज़िलों, बिहार सहित अन्य जगहों से अच्छी “नौकरी” की तलाश में आने वाले नौजवान महीनों भटकने के बाद मजबूरी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे हैं। यहाँ भी रात में लगातार 12-12 घण्टे काम करने के बाद भी उन्हें कोई साप्ताहिक अवकाश नहीं मिलता है और वेतन के नाम पर 12-13 हज़ार रुपये मिल रहे हैं।
नोएडा-ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के मातहत काम करने वाले सफ़ाईकर्मियों की हालत भी ख़राब है नौकरी पर रखने से पहले ठेकेदार उनसे घूस के तौर पर 70 हज़ार से 1 लाख रुपये तक ले रहे हैं। फिर भी उनकी नौकरी का कोई ठिकाना नहीं है। मुख्य नियोक्ता होने के बावजूद नोएडा विकास प्राधिकरण ने अपनी ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया है।
ऐसा नहीं है कि इन परिस्थितियों को मज़दूरों ने अपना नसीब मानकर स्वीकार कर लिया है और वह किसी तरह का विरोध नहीं करते हैं। बल्कि हालात इसके विपरीत हैं फ़ैक्टरियों और कार्यस्थलों पर अपने ख़िलाफ़ हो रही ज़्यादतियों को लेकर मज़दूरों का ग़ुस्सा अक्सर फूटता रहता है। लेकिन संगठित क्रान्तिकारी ताक़त के अभाव में वे पूँजीपतियों से लम्बे समय तक लड़ नहीं पाते और हालात से समझौता कर लेते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में अलग-अलग समय पर मज़दूरों का ग़ुस्सा फूटता रहा है। काम करने के मुश्किल हालात और बढ़ते शोषण के ख़िलाफ़ मज़दूरों की नाराज़गी आये दिन सड़कों पर दिख जाती है।

हाल के वर्षों में मज़दूरों के कुछ प्रदर्शनों पर एक नज़र

• सेक्टर-63 स्थित कपड़ा एक्सपोर्ट करने वाली ओरिएण्ट क्राफ़्ट लिमिटेड कम्पनी में 2 अक्टूबर 2016 को कर्मचारियों और प्रबन्धन में विवाद हो गया। छँटनी का विरोध करने पर साथी से मारपीट से नाराज़ 3 हज़ार मज़दूरों ने विरोध प्रदर्शन किया। जीएम की शिकायत पर पुलिस ने 50 मज़दूरों को नामज़द करते हुए 200 अज्ञात मज़दूरों के ख़िलाफ़ कई गम्भीर धाराओं के तहत केस दर्ज कर 23 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया ।
• हाईपैड टेक्नोलॉजी इण्डिया नाम की कम्पनी में 29 नवम्बर 2018 को नौकरी से निकाले जाने से नाराज़ 200 मज़दूरों ने प्रदर्शन किया। कम्पनी कई महीनों से लगातार मज़दूरों को बिना किसी नोटिस के निकाल रही थी जिससे मज़दूर नाराज़ थे। 200 मज़दूरों को कम्पनी ने फिर 15 दिनों के लिए छुट्टी पर भेज दिया। मज़दूरों ने अन्दर जाने की कोशिश की तो बाउंसरों ने उनके साथ मारपीट की। पुलिस ने उल्टे 5 नामज़द सहित 200 अज्ञात मज़दूरों के ख़िलाफ़ केस दर्ज कर दिया।
• 17 नवम्बर 2019 को ग्रेटर नोएडा के एलजी इलेक्ट्रानिक्स कम्पनी में भी लगभग 850 मज़दूर महीनों तक धरने पर बैठे रहे। कम्पनी मज़दूरों को यूनियन नहीं बनाने दे रही थी। लम्बे समय तक चलने वाले इस संघर्ष में भी मज़दूरों को अन्त में झुककर समझौता ही करना पड़ा।
• 1 जुलाई 2020 को फ़ेस-3 थाना क्षेत्र के सेक्टर 63 में ओरिएण्ट क्राफ़्ट कम्पनी के 300 मज़दूरों ने 3 महीने से वेतन नहीं मिलने से नाराज़ होकर प्रदर्शन शुरू कर दिया।
• 11 अगस्त थाना ईकोटेक-3 क्षेत्र में एटीएस बिल्डर की निर्माणाधीन साइट पर करण्ट लगने से एक मज़दूर की मौत के बाद सड़क पर प्रदर्शन कर रहे 60 मज़दूरों के ख़िलाफ़ पुलिस ने मुक़दमा दर्ज कर लिया। ये मज़दूर मृतक के परिजनों को उचित मुआवज़ा देने की माँग कर रहे थे।
• लॉकडाउन के दौरान ही गौतमबुद्ध यूनिवर्सिटी ने 280 सफ़ाईकर्मियों को बिना किसी नोटिस के बाहर निकाल दिया था। क़रीब 4 महीनों तक यूनिवर्सिटी के गेट पर प्रदर्शन करने के बाद भी मज़दूरों को कुछ हासिल नहीं हुआ।
• नोएडा अथॉरिटी के मातहत काम करने वाले 3,500 सफ़ाई मज़दूरों को लगातार शोषण का शिकार होना पड़ता है। अथॉरिटी ने भी ठेकेदारों को खुली छूट दे रखी है। मज़दूरों को कभी भी समय पर मानदेय नहीं मिलता और लगातार वे प्रदर्शन करते रहते हैं।
इस समय लॉकडाउन की वजह से मज़दूरों को काम नहीं मिल रहा था। वे अपने बकाया वेतन के भुगतान के लिए बार-बार कम्पनी के पास जाते थे और हर बार उन्हें अगली तारीख़ देकर वापस भेज दिया जाता था। जब मज़दूर इससे तंग आये तो उन्होंने प्रदर्शन करने का रास्ता चुना। लेकिन लाठी खाने और मुक़दमा दर्ज हो जाने के बाद भी सैकड़ों को वेतन नहीं मिला।
सीवर की सफ़ाई के दौरान भी आये दिन नोएड-ग्रेटर नोएडा में हादसे होते रहते हैं जिनमें मज़दूरों की मौत हो जाती है। ठेकेदारों, मालिकों द्वारा बकाया वेतन नहीं देने या मामूली ग़लती पर ज़्यादा पैसा काट लेने की घटनाएँ तो आम हैं। बिना नोटिस के काम से निकाले जाने और सुरक्षा उपकरणों के अभाव में मज़दूरों के साथ दुर्घटनाओं की संख्या में तेज़ी से इज़ाफ़ा हुआ है। कारण कि रोज़गार की सम्भावनाओं में तेज़ी से गिरावट हुई है।
नोएडा-ग्रेटर नोएडा औद्योगिक क्षेत्र में पिछले एक दशक की घटनाओं पर नज़र डालें तो स्पष्ट नज़र आता है कि पहले जो आन्दोलन होते थे वे संगठित होते थे जिसके कारण मज़दूरों का जुझारूपन दिखता था। लेकिन श्रम क़ानूनों के ढीला होने और संशोधनवादी पार्टियों की ट्रेड यूनियनों का समझौतापरस्त और दलाल चरित्र मज़दूरों के सामने उजागर होने के साथ-साथ मज़दूरों के संगठित आन्दोलनों में कमी आयी है।
समय-समय पर मज़दूरों का ग़ुस्सा फूट पड़ता है। ज़्यादातर यह स्वत: स्फूर्त होता है। योजनाबद्ध संगठित ताक़त के अभाव में ज़्यादातर ऐसे विरोध प्रदर्शनों का अन्त मज़दूरों को निराशा और पस्तहिम्मती की ओर धकेलता है। पूँजीपति और पुलिस प्रशासन गठजोड़ के साझा हमलों और दमन की कार्रवाइयों का जबाब देने के लिए मज़दूरों का अपना क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियन नेतृत्व होना चाहिए।

मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2021


 

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