मज़दूर वर्ग की पार्टी कैसी हो? (दूसरी क़िस्त)
मज़दूर वर्ग की पार्टी का प्रचार क्रान्तिकारी प्रचार होता है

सनी

मज़दूर वर्ग की पार्टी का प्रचार क्रान्तिकारी होता है। यह प्रचार मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश जनता से ही निर्धारित होता है। यानी क्रान्तिकारी प्रचार के लिए सही विचार, सही नारे, और सही नीतियाँ आम मेहनतकश जनता के सही विचारों को संकलित कर, उसमें से सही विचारों को छाँटकर, सही विचारों के तत्वों को छाँटकर और उनका सामान्यीकरण करके ही सूत्रबद्ध किये जा सकते हैं। लेनिन बताते हैं कि “मज़दूरों के आम हितों और आकांक्षाओं के आधार पर, ख़ासकर उनके आम संघर्षों के आधार पर, कम्युनिस्ट प्रचार और आन्दोलन की कार्रवाई को इस प्रकार चलाना चाहिए कि वह मज़दूरों के अन्दर जड़ें जमा ले।” यही बात आम मेहनतकश जनता के बीच किये जाने वाले प्रचार के लिए भी सही है। इसका मतलब यही होता है कि मज़दूर वर्ग की पार्टी का प्रचार क्रान्तिकारी जनदिशा के उसूल से निर्देशित होता है। पार्टी को जनता के बीच बिखरे सही विचारों को समेटकर, उनमें से बुनियादी तत्वों को छाँटकर, उनका सामान्यीकरण कर एक सही राजनीतिक लाइन को सूत्रबद्ध करना चाहिए और उसे वापस जनता के बीच ले जाना चाहिए। केवल तभी जब ये विचार नारों और प्रचार सामग्री के रूप में जब जनता तक पहुँचते है तो जनता उन्हें अपनाती है। जब जनता मज़दूर वर्ग की पार्टी के सही विचारों को आत्मसात कर लेती है तो “ये विचार एक ऐसी भौतिक शक्ति में बदल जाते हैं जो समाज को और दुनिया को बदल डालते हैं।”(माओ)

जनता की चेतना को उन्नत करने के साथ-साथ आन्दोलनों में जनता को नेतृत्व देने के लिए मज़दूर पार्टी को अपने प्रचार को बेहद गम्भीरता से तैयार करना चाहिए। ख़ास तौर पर आज के दौर में और भारत सरीखे देशों में जहाँ मेहनतकश जनता का विशाल बहुमत क्रान्तिकारी चेतना तक नहीं पहुँचा है, हमें कम्युनिस्ट प्रचारों के नित नये रूपों की तलाश करनी चाहिए। लेनिन इसी बाबत कहते हैं कि “उन पूँजीवादी देशों में जहाँ सर्वहारा वर्ग का विशाल बहुमत क्रान्तिकारी चेतना के स्तर पर अभी नहीं पहुँच पाया है, कम्युनिस्ट आन्दोलनकारियों को इन पिछड़े हुए मज़दूरों की चेतना को ध्यान में रखते हुए और क्रान्तिकारी क़तारों में इनका प्रवेश आसान बनाने के लिए लगातार कम्युनिस्ट प्रचार के नये रूपों की खोज करते रहना चाहिए। अपने नारों के ज़रिए कम्युनिस्ट प्रचार को उन प्रस्फुटित होती हुई, अचेतन, अपूर्ण, ढुलमुल और अर्द्धपूँजीवादी क्रान्तिकारी प्रवृत्तियों को उभारना और सामने लाना चाहिए जो मज़दूरों के दिमाग़ों में पूँजीवादी परम्पराओं और अवधारणओं के ऊपर हावी होने के लिए संघर्ष कर रही होती हैं। साथ ही, कम्युनिस्ट प्रचार को सर्वहारा जनसमुदाय की सीमित एवं अस्पष्ट माँगों और आकांक्षाओं तक ही सीमित रहकर सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। इन माँगों और आकांक्षाओं में क्रान्तिकारी भ्रूण मौजूद रहते हैं और ये सर्वहारा वर्ग को कम्युनिस्ट प्रचार के प्रभाव के अन्तर्गत लाने का साधन होती हैं।।”

पहली बात यह कि जनता की माँगों और आकांक्षाओं की जानकारी तभी हासिल की जा सकती है जब कि पार्टी के कार्यकर्ताओं की जनता के बीच पैठ हो और वे जनता के जीवन और उसकी तकलीफ़ों से वाक़िफ़ हो। दूसरी यह कि जनता के अस्पष्ट और अधूरे सही विचारों और वर्ग संघर्ष के व्यवहार के अनुभवों को समेटकर मज़दूर पार्टी मार्क्सवादी विज्ञान तथा दर्शन की रोशनी में उसके सारभूत तत्वों को छाँटकर तथा उसका सामान्यीकरण कर नारे तथा कम्युनिस्ट प्रचार सामग्री तैयार करती है। पार्टी के नारे तथा प्रचार सामग्री मार्क्सवादी विज्ञान और दर्शन की रोशनी में और क्रान्तिकारी जनदिशा के अमल के ज़रिए ही गढ़े जा सकते है। “जनसमुदाय से जनसमुदाय तक” ले जाने का रास्ता यही है। माओ समझाते हैं कि “जनसमुदाय के विचारों को (बिखरे हुए और अव्यवस्थित विचारों को) एकत्र करो और उनका निचोड़ निकालो (अध्ययन के ज़रिए उन्हें केन्द्रित और सुव्यवस्थित विचारों में बदल डालो), इसके बाद जनसमुदाय के बीच जाओ, इन विचारों का प्रचार करो और जन समुदाय को समझाओ जिससे वह उन्हें अपने विचारों के रूप में अपना ले, उन पर दृढ़ता से क़ायम रहे और उन्हें कार्य रूप में परिणित करे, तथा इस प्रकार की कार्रवाई के दौरान इन विचारों के अचूकपन की परख कर लो। इसके बाद फिर एक बार जनसमुदाय के विचारों को एकत्र करके उनका निचोड़ निकालो और फिर एक बार जन समुदाय के बीच जाओ ताकि उन विचारों पर अविचल रहा जा सके और उन्हें कार्यान्वित किया जा सके। इस प्रकार की प्रक्रिया को एक अन्तहीन चक्र के रूप में बार-बार दोहराते रहने से वे विचार हर बार पहले से ज़्यादा सही, पहले से ज़्यादा सजीव और पहले से ज़्यादा समृद्ध बनते जायेंगे। यही है मार्क्सवाद का ज्ञान-सिद्धान्त।”

जनान्दोलनों, मज़दूरों के आर्थिक और राजनीतिक आन्दोलनों में मज़दूर पार्टी की प्रचार सामग्री तथा ठोस नारे जीवित शक्ति बन जाते हैं। पर यहाँ पहुँचने पर यह प्रक्रिया थमती नहीं है बल्कि पुनः मज़दूर पार्टी को जनता के बीच उनके विचारों को एकत्रित करती है, उनके सारभूत तत्वों को अलग करती है और सामान्यीकरण पुनः प्रचार सामग्री तथा ठोस नारों को जनता के समक्ष रखती है। यह प्रक्रिया अनन्त बार दोहरायी जाती है।

माओ के ‘घिसे-पिटे पार्टी लेखन का विरोध करो’ लेख में कम्युनिस्ट प्रचार कैसा हो इसे लेनिन के हवाले से स्पष्ट किया गया है। लेनिन ने 1894 में बाबुश्किन की मदद से सेण्ट पीटर्सबर्ग के हड़ताली मज़दूरों के नाम पर्चा लिखा। लेनिन ठोस जाँच-पड़ताल और अध्ययन के आधार पर ही प्रचार सामग्री तैयार करते थे। माओ दिमित्रोव व लेनिन के हवाले से बताते हैं कि प्रचार की शैली स्पष्ट, सरल और जनता की भाषा में होनी चाहिए। वे बोल्शेविक पार्टी के इतिहास पुस्तिका के निम्न हिस्से को उद्धृत करते हैं :

“लेनिन के मार्गदर्शन में ‘मज़दूर वर्ग के मुक्ति संघर्ष की सेण्ट पीटर्सबर्ग समिति’ ने सबसे पहले रूस में समाजवाद को मज़दूर आन्दोलन के साथ मिलाने की शुरुआत की। किसी कारख़ाने में हड़ताल हो जाने पर यह ‘संघर्ष समिति’, जिसको अपने दलों के सदस्यों के ज़रिए कारख़ानों की हालत के बारे में अच्छी तरह से जानकारी हासिल होती रहती थी, फौरन पर्चे लेकर और समाजवादी ऐलानों के ज़रिए मज़दूरों का समर्थन करती थी। इन पर्चों में उद्योगपतियों द्वारा मज़दूरों के उत्पीड़न का पर्दाफ़ाश किया जाता था, मज़दूरों को यह बताया जाता था कि उन्हें अपने हितों के लिए किस प्रकार संघर्ष करना चाहिए, और उनमें मज़दूरों की माँगों को पेश किया जाता था। ये पर्चे पूँजीवाद के नासूरों के बारे में, मज़दूरों की ग़रीबी के बारे में, 12 से 14 घण्टे तक कमरतोड़ सख़्त मेहनत वाले उनके श्रमदिन के बारे में और उनके अधिकारों के पूर्ण अभाव के बारे में सच्चाई को स्पष्ट रूप से पेश करते थे। उनमें उचित राजनीतिक माँगों को भी पेश किया जाता था।”

महत्वपूर्ण बात है कि मज़दूर पार्टी का प्रचार क्रान्तिकारी होने का अर्थ ही यह है कि यह प्रचार केवल मज़दूरों की आर्थिक माँगों तक सीमित नहीं रह सकता है। आर्थिक माँगों से यहाँ आशय केवल व्यावसायिक या ट्रेड यूनियन माँगों से है। इस मसले पर रूस में लेनिन की अर्थवादियों से बहस हुई थी। अर्थवादियों का कहना था कि आर्थिक माँगों पर संघर्ष के ज़रिए ही मेहनतकश जनता को राजनीतिक संघर्ष में खींचा जा सकता है और यह कि आर्थिक माँगों पर संघर्ष ही आगे चलकर ख़ुद-ब-ख़ुद राजनीतिक संघर्ष में बदल जाता है। लेनिन ने इसे प्रतिक्रियावादी और हानिकारक विचार बताया। लेनिन ने बताया कि यह मध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों का पूर्वाग्रह है कि मज़दूर केवल अपने वेतन-भत्ते की माँगों पर ही सोच और लड़ सकता है और उसकी शुद्धतः राजनीतिक मसलों में कोई दिलचस्पी नहीं होती है। लेनिन ने इस बहस के ज़रिए ट्रेडयूनियनवादी प्रचार और क्रान्तिकारी प्रचार के बीच अन्तर भी स्पष्ट किया। मज़दूर वर्ग की पार्टी के प्रचार का सार क्या हो वह इस बहस में लेनिन की अवस्थितियों के ज़रिए स्पष्ट हो जाता है।

 1861 में रूस में भूदास प्रथा ख़त्म हुई थी और प्रशियन पथ के ज़रिए क्रमिक पूँजीवादी विकास हुआ। फ़ैक्टरी कारख़ानों में 1880 से तेज़ी आयी। नये-नये विकसित हुए उद्योगों में मज़दूरों की ज़िन्दगी नर्क समान थी। इस नर्क सरीखी जि़न्दगी के ख़िलाफ़ ही रूस में 1890 से फ़ैक्टरी कारख़ानों में हड़तालों का दौर शुरू हुआ। हड़तालों की तीव्रता नई सहस्राब्दी में और बढ़ गयी और उसमें क्रान्तिकारियों का हस्तक्षेप भी बढ़ता गया। मज़दूर वर्ग का आन्दोलन 1905 की पहली रूसी जनवादी क्रान्ति की एक प्रमुख शक्ति बना। मज़दूर न सिर्फ़ अपनी आर्थिक माँगों के लिए संघर्ष कर रहे थे, बल्कि वे ज़ारकालीन रूस में सीधे राजनीतिक जनवाद की माँग के लिए भी लड़ रहे थे। हड़ताल आन्दोलन में कम्युनिस्टों ने बढ़-चढ़कर नेतृत्व दिया। इसमें लेनिन की अहम भूमिका थी। लेनिन ने 1894-1895 में सेण्ट पीटर्सबर्ग के मज़दूरों के बीच हड़ताल को संगठित किया और साथ ही इन आन्दोलनों में सघन क्रान्तिकारी प्रचार भी किया। मज़दूर कारख़ानों की नर्क सरीखी स्थितियों के भण्डाफोड़ को लेकर मज़दूर बड़ी मात्रा में छापना चाहते थे। लेनिन बताते हैं कि ऐसे “ ‘पर्चों’ में ज़्यादातर कारख़ानों की हालत का भण्डाफोड़ रहता था, और शीघ्र ही मज़दूरों में इस तरह के भण्डाफोड़ की धुन पैदा हो गयी। जैसे ही मज़दूरों को यह महसूस हुआ कि कम्युनिस्ट समूह उन्हें एक नये तरह के परचे देना चाहते हैं और दे सकते हैं, जिनमें ग़रीबी से ग्रस्त उनके जीवन के बारे में उनकी कमरतोड़ मेहनत और अधिकारों के अभाव के विषय में पूरा सत्य लिखा रहेगा, वैसे ही कारख़ानों और फ़ैक्टरियों से पत्रों का ताँता बंध गया। इस ‘भण्डाफोड़ करनेवाले साहित्य’ से न सिर्फ़ उस ख़ास कारख़ाने में, जिसकी हालत का उसमें भण्डाफोड़ किया गया था, बल्कि जहाँ कहीं भी उस भण्डाफोड़ की ख़बर पहुँचती थी, उन तमाम कारख़ानों में भी सनसनी पैदा हो जाती थी। चूँकि अलग-अलग उद्योगों तथा अलग-अलग पेशों के मज़दूरों की आवश्यकताएँ और विपत्तियाँ मोटे तौर पर एक समान ही हैं, इसलिए ‘मज़दूरों की ज़िन्दगी के बारे में सचाई’ सभी मज़दूरों को आन्दोलित करती थी।” (लेनिन, क्या करें)

परन्तु कुल मिलाकर इन संघर्षों में मज़दूर अपने श्रम-शक्ति रूपी माल को ज़्यादा बेहतर दामों में बेचने को लेकर “ख़रीदार से लड़ना-झगड़ना सीखते थे।” फ़ैक्टरी की हालात का भण्डाफोड़ करने से आगे बढ़कर इसे सर्वांगीण राजनीतिक भण्डाफोड़ तक पहुँचाना लेनिन के अनुसार मज़दूर पार्टी का अहम कार्यभार था। लेनिन स्पष्ट करते हैं कि मज़दूर वर्ग की पार्टी केवल श्रमशक्ति की बिक्री के बेहतर दाम हासिल करने के लिए नहीं, बल्कि उस सामाजिक व्यवस्था को मिटाने के लिए भी मज़दूर वर्ग के संघर्ष का नेतृत्व करती है “जो सम्पत्तिहीन लोगों को धनिकों के हाथों बिकने के लिए मजबूर करती है।” लेनिन स्पष्ट करते हैं मज़दूर वर्ग की पार्टी मज़दूरों की केवल मालिकों के सम्बन्ध में ही हिरावल नहीं होती बल्कि असल में “समाज के हर वर्ग के साथ तथा एक संगठित राजनीतिक शक्ति के रूप में राज्यसत्ता के साथ उसके सम्बन्ध के मामले में” (लेनिन) हिरावल होती है। मज़दूर वर्ग एक राजनीतिक वर्ग के तौर पर पार्टी के ज़रिए ही संगठित हो सकता है। राजनीतिक वर्ग के रूप में संगठित होने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है मज़दूर वर्ग के उन्नत तत्वों को एक राजनीतिक परियोजना से लैस करना; दूसरे शब्दों में, राजनीतिक वर्ग वह वर्ग होता है, जिसका लक्ष्य पूँजीवादी राज्यसत्ता का ध्वंस और अपनी राज्यसत्ता की स्थापना करना होता है। पूँजीपति वर्ग के लिए भी यह भूमिका उसका हिरावल निभाता है और सर्वहारा वर्ग के लिए भी यह भूमिका उसके हिरावल तत्व ही निभाते हैं। इन हिरावल तत्वों को मार्क्सवादी दर्शन व विज्ञान से लैस और क्रान्तिकारी जनदिशा लागू करने वाली पार्टी के नेतृत्व में ही गोलबन्द और संगठित किया जा सकता है। उसके बिना मज़दूर वर्ग महज़ जनसमुदायों का अंग बना रहता है, उन्हें नेतृत्व देने वाली हिरावल शक्ति यानी एक राजनीतिक वर्ग, सर्वहारा वर्ग, में तब्दील नहीं हो पाता।

मज़दूर पार्टी के प्रचार की राजनीतिक शिक्षा कैसी हो, इसका ठोस जवाब देते हुए लेनिन कहते हैं कि :

कम्युनिस्टों का “आदर्श ट्रेड यूनियन का सचिव नहीं, बल्कि एक ऐसा जन नायक होना चाहिए, जिसमें अत्याचार और उत्पीड़न के प्रत्येक उदाहरण से वह चाहे किसी भी स्थान पर हुआ हो और उसका चाहे किसी भी वर्ग या स्तर से सम्बन्ध हो, विचलित हो उठने की क्षमता हो, उसमें इन तमाम उदाहरणों का सामान्यीकरण करके पुलिस की हिंसा तथा पूँजीवादी शोषण का एक अविभाज्य चित्र बनाने की क्षमता होनी चाहिए; उसमें प्रत्येक घटना का, चाहे वह कितनी ही छोटी क्यों न हो, लाभ उठाकर अपने समाजवादी विश्वासों तथा अपनी जनवादी माँगों को सभी लोगों को समझा सकने और सभी लोगों को सर्वहारा के मुक्ति संग्राम का विश्व-ऐतिहासिक महत्व समझा सकने की क्षमता होनी चाहिए।” मज़दूर वर्ग की पार्टी को मज़दूर वर्ग को समूची आबादी के जीवन तथा व्यवहार का भौतिकवादी मूल्यांकन करना सिखाना चाहिए। लेनिन के ही अनुसार “मज़दूर वर्ग की चेतना उस वक्त तक सच्ची राजनीतिक चेतना नहीं बन सकती, जब तक कि मज़दूरों को अत्याचार, उत्पीड़न, हिंसा और अनाचार के सभी मामलों का जवाब देना, चाहे उनका सम्बन्ध किसी भी वर्ग से क्यों न हो, नहीं सिखाया जाता। और उनको कम्युनिस्ट दृष्टिकोण से जवाब देना चाहिए, न कि किसी और दृष्टिकोण से। आम मज़दूरों की चेतना उस समय तक सच्ची वर्ग चेतना नहीं बन सकती जब तक कि मज़दूर ठोस और सामयिक (फ़ौरी) राजनीतिक तथ्यों और घटनाओं से दूसरे प्रत्येक सामाजिक वर्ग का उसके बौद्धिक, नैतिक एवं राजनीतिक जीवन की सभी अभिव्यक्तियों में अवलोकन करना नहीं सीखते, जब तक कि मज़दूर आबादी के सभी वर्गों, स्तरों और समूहों के जीवन तथा कार्यों के सभी पहलुओं का भौतिकवादी विश्लेषण और भौतिकवादी मूल्यांकन व्यवहार में इस्तेमाल करना नहीं सीखते।” केवल इसके ज़रिए ही मज़दूर वर्ग छात्रों, किसानों, निम्न बुर्जुआ व अन्य तबकों की आर्थिक प्रकृति और उनके सामाजिक तथा राजनीतिक गुण का स्पष्ट चित्र बना सकते हैं। केवल तभी मज़दूर वर्ग तथा आम मेहनतकश जनता उन नारों और बारीक सूत्रों का मतलब समझ सकते हैं जिनके पीछे प्रत्येक वर्ग और उसका प्रत्येक संस्तर “अपने दिल की बात छिपाता” है। इसे ही लेनिन सर्वांगीण राजनीतिक भण्डाफोड़ कहते हैं जो मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश जनता की क्रान्तिकारी क्रियाशीलता को प्रशिक्षित करने की बुनियादी शर्त है।

हम राजनीतिक प्रचार के सार की बात को संक्षिप्त में समझ चुके हैं। परन्तु मज़दूर पार्टी के प्रचार में इस सार को भी अलग-अलग तौर पर प्रकट किया जाता है। मज़दूर वर्ग की पार्टी के क्रान्तिकारी प्रचार को प्रकट करने के दो प्रकार होते हैं : प्रचारात्मक (प्रोपगेण्डा) और उद्वेलनात्मक (एजिटेशन)। यह कोई दो अलग-अलग प्रचार नहीं है बल्कि एक ही सारतत्व को प्रकट करने के भिन्न तरीक़े हैं। लेनिन प्रचारक और उद्वेलनकर्ता के प्रचार के अन्तर को स्पष्ट करते हैं : अगर “…बेकारी के प्रश्न पर प्रचारक बोलता है, तो उसे आर्थिक संकटों के पूँजीवादी स्वरूप को समझाना चाहिए, उसे बताना चाहिए कि वर्तमान समाज में इस प्रकार के संकटों का आना क्यों अवश्यम्भावी है और इसलिए क्यों इस समाज को समाजवादी समाज में बदलना ज़रूरी है, आदि। सारांश यह कि प्रचारक को जनता के सामने बहुत-से विचार पेश करने चाहिए, इतने सारे विचार कि केवल (अपेक्षाकृत) थोड़े-से लोग ही उन्हें एक अविभाज्य और सम्पूर्ण इकाई के रूप में समझ सकेंगे। परन्तु इसी प्रश्न पर जब कोई उद्वेलनकर्ता बोलेगा, तो वह किसी ऐसी बात का उदाहरण देगा, जो सबसे अधिक ज्वलन्त हो और जिसे उसके सुनने वाले सबसे व्यापक रूप से जानते हों – मसलन, भूख से किसी बेरोज़गार मज़दूर के परिवार वालों की मौत, बढ़ती हुई ग़रीबी, आदि – और फिर इस मिसाल का इस्तेमाल करते हुए, जिससे सभी लोग अच्छी तरह परिचित हैं, वह “आम जनता” के सामने बस एक विचार रखने की कोशिश करेगा, यानी यह कि यह अन्तरविरोध कितना बेतुका है कि एक तरफ़ तो दौलत और दूसरी तरफ़, ग़रीबी बढ़ती जा रही है। इस घोर अन्याय के विरूद्ध उद्वेलनकर्ता जनता में असन्तोष और ग़ुस्सा पैदा करने की कोशिश करेगा तथा इस अन्तरविरोध का और पूरा स्पष्टीकरण करने का काम वह प्रचारक के लिए छोड़ देगा। अतएव प्रचारक छपी हुई सामग्री का इस्तेमाल करता है और उद्वेलनकर्ता जीवित शब्दों का प्रयोग करता है।”

प्रचारक पूँजीवादी व्यवस्था के अन्तरविरोध को उसकी समस्त जटिलता में समझाता है और इसलिए ही जनता के सामने विचारों की कड़ियों के ज़रिए पूरी तस्वीर उकेरता है जबकि उद्वेलनकर्ता इस अन्तरविरोध के एक प्रातिनिधिक पहलू को पकड़कर असन्तोष और ग़ुस्सा पैदा करता है।

मज़दूर पार्टी के प्रचार से जुड़ा आख़िरी बिन्दु प्रचार के रूपों का है। मज़दूर वर्ग की पार्टी के प्रचार के तीन रूप होते हैं : व्यक्तिगत रूप से किया गया मौखिक अभियान, राजनीतिक और मज़दूर आन्दोलनों में किया गया प्रचार तथा पत्र-पत्रिकाओं और साहित्य द्वारा किया जाने वाला प्रचार। मज़दूर पार्टी के कार्यकर्ता को प्रचार के इन तीन रूपों में नियम से  किसी न किसी प्रचार में भाग लेना ही चाहिए। अगली कड़ी में हम मज़दूर पार्टी द्वारा आम जनता के संघर्षों में भागीदारी और राजनीतिक संघर्ष पर बात करेंगे।

मज़दूर बिगुल, जनवरी 2022


 

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