काम के अधिकार के लिए और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ मनरेगा यूनियन का प्रदर्शन

आशु

20 सितम्बर। कलायत तहसील में क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन के बैनर तले चौशाला, रामगढ़, बाह्मणीवाल व अन्य गाँव के मज़दूरों ने विरोध प्रदर्शन किया। यूनियन की ओर एक प्रतिनिधि मण्डल ने एसडीएम सुशील कुमार को मनरेगा मज़दूरों की समस्या से अवगत करते हुए अपनी माँगों का ज्ञापन भी सौंपा। यूनियन प्रभारी रमन ने बताया कि कलायत ब्लॉक के बीडीपीओ कार्यालय में प्राशासनिक कार्यों की कोई जवाबदेही तय नहीं है। बीडीपीओ कार्यालय के पास मनरेगा योजना को सुचारू रुप से चलाने का भी उत्तरदायित्व है। मनरेगा एक्ट के तहत 100 दिन के रोज़गार की गारण्टी दी गयी है। लेकिन कलायत ब्लॉक के मज़दूर परिवारों को मुश्किल से 30-40 दिन ही काम मिल पाता है। मनरेगा क़ानून के तहत काम के आवेदन के 15 दिनों के भीतर अगर काम नहीं मिलता है, तो आवेदक मज़दूरों को बेरोज़गारी भत्ता देने का प्रावधान है। लेकिन कलायत के एबीपीओ व बीडीपीओ का साफ़ कहना है कि बेरोज़गारी भत्ता नहीं दिया जायेगा। यूँ तो भारतीय संविधान ने व सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में रोज़गार के अधिकार को भी शामिल किया गया है। लेकिन एबीपीओ व बीडीपीओ द्वारा मज़दूरों के इन मौलिक अधिकार को छीनने का प्रयास लगातार किया जा रहा है। साफ़ तौर पर रोज़गार गारण्टी के तहत काम न देना व बेरोज़गारी भत्ता न देना मज़दूरों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। साथ ही कलायत के मनरेगा कार्यालय में कर्मचारियों की बात की जाये तो पूरे माह में केवल 8 दिन ही कर्मचारी उपलब्ध होता है, जिसके कारण भी मनरेगा मज़दूरों को बहुत-सी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है। चौशाला गाँव की मीना ने बताया कि कलायत तहसील में मज़दूरों को साल में मुश्किल से 25-30 दिन ही काम मिलता है। यही आँकड़े पूरे हरियाणा और देश स्तर के हैं। हम जानते हैं कि मनरेगा एक्ट के तहत 100 दिन के काम की ज़िम्मेदारी राज्य और केन्द्र सरकार की बनती है। लेकिन मनरेगा कार्यालय में कर्मचारियों की कमी और सरकारों की मज़दूर-विरोधी नीतियों के कारण मनरेगा बजट का सदुपयोग नहीं हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ़ काम के आवेदन के बावजूद भी मज़दूरों को काम नहीं मिल पा रहा है। साथ ही मेट मज़दूरों का भुगतान भी एक-एक साल बाद होता है, ऐसे में मेटों के परिवारों को आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ता है। इसलिए मेटों के लम्बित वेतन का भुगतान किया जाये व भविष्य में अन्य मज़दूरों के साथ ही मेट मज़दूरों का भुगतान किया जाये, यह माँग यूनियन द्वारा उठायी गयी।
यूनियन के साथी अजय ने बताया कि सरकार के अनुसार पूरे देश में लगभग 13 करोड़ मनरेगा मज़दूर पंजीकृत हैं। आज जहाँ इस संख्या बल को देखकर मनरेगा बजट में मोदी सरकार को बढ़ोत्तरी करनी चाहिए, वहीं उल्टे इस बार यानी वित्त वर्ष 2022-23 के लिए मनरेगा बजट को 73000 करोड़ रुपये रखा है जो बीते वित्त वर्ष के संशोधित बजट 98000 करोड़ रुपये से 25.5 फ़ीसदी कम है यानी सीधे तौर पर 25000 करोड़ रुपये की कटौती। अभी हाल के आँकड़ों के अनुसार हरियाणा सरकार द्वारा मनरेगा बजट का 100 प्रतिशत से ज़्यादा ख़र्च किया जा चुका है जबकि वित्तीय वर्ष में छह महीने शेष हैं।
जहाँ एक तरफ़ मोदी सरकार कॉर्पोरेट टैक्स में भारी छूट दे रही है वहीं दूसरी तरफ़ पीडीएस, रसोई गैस से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य में मिलने वाली सब्सिडी का बजट घटा रही है। इससे साफ़ तौर पर मज़दूरों पर महँगाई का बोझ बढ़ेगा। वैसे देखा जाये तो कोरोना महामारी की आपदा को अवसर में बदलने में भाजपा सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। इस दौरान मज़दूरों की जो दुर्गति हुई है इसका अन्दाज़ा शायद सरकार अपने पूरे कार्यकाल में कभी भी नहीं लगा पायेगी या वह लगाना ही नहीं चाहती है।
मनरेगा मज़दूरों के प्रदर्शन को समर्थन दे रही भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (आरडब्ल्यूपीआई) के साथी प्रवीन ने कहा कि देश दुनिया की सारी वस्तुओं का निर्माण करने वाली मेहनतकश आबादी को वेतन-भत्ते की लड़ाई को सत्ता की लड़ाई तक पहुँचाना होगा। मज़दूरों को अपने आर्थिक हितों की लड़ाई भी अवश्य लड़नी होगी, लेकिन इस प्रक्रिया में यह समझना होगा कि उसकी आर्थिक समस्याओं के लिए समूची राजनीतिक व सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था यानी पूँजीवादी व्यवस्था ज़िम्मेदार है और इसलिए उसे अपनी आर्थिक लड़ाइयाँ भी राजनीतिक तरीक़े से लड़नी होंगी। इसके लिए सर्वहारा वर्ग को जनसमुदायों में राजनीतिक चेतना का विकास करना होगा, उनके बीच क्रान्तिकारियों के विचारों का प्रचार-प्रसार और राजनीतिक पाठशालाओं का आयोजन करना होगा। लेनिन के शब्दों में कहें तो यूनियन मज़दूरों की पहली पाठशाला होती है जहाँ एक मज़दूर, मज़दूर चेतना से सर्वहारा चेतना की तरफ़ पहला क़दम बढ़ाता है और अपनी वर्ग एकजुटता को अच्छे से समझता है।
क्रान्तिकारी मनरेगा मज़दूर यूनियन की माँगें :
1. विभाग द्वारा 16 दिवसीय काम का मस्टररोल निकाला जाये व मनरेगा का काम सुचारू रूप से चालू करवाया जाये।
2. सभी गाँव के मेटों के लम्बित भुगतान किये जायें।
3. नये जॉब कार्ड तय समयसीमा में बनाये जायें व ब्लॉक में तीन दिवसीय कैम्प लगाकर जॉब कार्ड की समस्याओं का समाधान किया जाये।
4. 15 दिन के अन्दर काम मुहैया न करवाने की सूरत में बेरोज़गारी भत्ते का भुगतान करना सुनिश्चित करें।
5. मनरेगा के बजट में बढ़ोत्तरी की जाये व मनरेगा मज़दूरों की दिहाड़ी 800 रुपये की जाये।

मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2022


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments