25 अक्टूबर 1917* (प्रसिद्ध कविता ‘व्लादिमीर इलिच लेनिन’ का एक अंश)

व्लादिमीर मायकोवस्की

जब भविष्य से
पीछे मुड़
देखेंगे इस दिन को,
सर्वप्रथम,
लेनिन की आकृति उभरेगी,
जिन्होंने चाहत और अध्यवसाय से
पथ अवलोकित किया
ग़ुलामी की सहस्राब्दियों से
कम्‍यून के युग का।

वंचना के ये वर्ष
अतीत में धँस जायेंगे,
और कम्यून का ग्रीष्म
हमारी धरती को ताप देगा।
और ख़ुशी का वह
विशाल मीठा फल,
पक जायेगा
अक्टूबर के सुर्ख़ लाल फूल से।

और जब पाठक लेनिन के आदेशों को,
पीले पड़े पन्नों पर ग़ौर से पढ़ेंगे,
वे अपने सीने में एक गर्म ज्वार उठता पायेंगे,
उनकी आँखों में गर्म आँसू होंगे,
वह अहसास जिसे वे भुला चुके थे।

जब मैं अपने जीवन के महानतम दिन को
तलाशता हूँ,
उस सब में से जो भी
मैंने जिया और मैंने देखा है,
बिना शक़ और बिना द्वन्द्व के कहता हूँ :
25 अक्टूबर 1917।

स्मोल्‍नी उत्साह से थरथराता है,
नाविकों के बदन पर लटके बम तीतर की
तरह लगते हैं,
संगीनें बिजली की आड़ी-तिरछी लकीरों की
तरह चमकती हैं,
नीचे खड़े हैं मशीन-गनर कारतूसों की बेल्ट बाँधे,
गलियारों में कोई निरुद्देश्य चहलक़दमी नहीं,
बम और पिस्तौल सँभाले कोई नौसिखिया नहीं।
“कामरेड स्तालिन तुमसे मिलना चाहते हैं,
यह आदेश है :
बख़्तरबन्द गाड़ियाँ मुख्य पोस्ट ऑफ़िस पर”
“कामरेड त्रॉत्स्की का निर्देश”,
“ठीक है” कहकर वह आगे बढ़ा,
और उसके
नौसेना के रिबन पर लिखे ये शब्द चमकते हैं :
“अव्रोरा”;
कोई सन्देश लेकर दौड़ता है,
तो कुछ बहस करते हैं,
तो कुछ राइफ़ल के बोल्ट को चटकाते हैं,
कोई भी दो व्यक्ति एक जैसे नहीं दीखते।

महानता या शान की छाया
बिना ध्यान में आये तेज़ी से लेनिन प्रवेश करते हैं,
युद्ध में लेनिन के नेतृत्व में काम करने वाले लोग
उन्हें अभी चित्रों में अंकित लेनिन के रूप में
नहीं जानते;
हाथों का मिलना, छेड़खानी, हँसी-मज़ाक़
और कुछ प्रतिज्ञाओं के बाद
यह बेतक़ल्लुफ़-सी मुलाक़ात सम्पन्न हुई।

इस दीर्घ-प्रतीक्षित-लौह-झंझावात के बीच
थकन से जकड़े प्रतीत होते हैं लेनिन,
पर वे कमर के पीछे हाथ बाँधे,
तेज़ी से चलते, रुकते,
बहु-रंगीय दृश्य में अपनी आँखें गड़ाये हैं।

मैंने देखा उनकी तीक्ष्ण नज़रों को
पैरों में पट्टी बाँधे खड़े सैनिक को भेदते हुए,
अचूक निशानदेही
उस्तरे-सी तीखी नज़र,
सार को ऐसे जकड़ती जैसे सँडसी,
आत्मा को शब्दों और वाक्यों में से भींच लेती।

और मुझे पता था कि
इस नज़र के सामने
हर वह चीज़ खुल जाती और साफ़ हो जाती,
जिसपर भी यह जाकर टिकती थी;
जहाज़ के बढ़ई कहाँ खड़े हैं,
और कहाँ खड़े हैं खान-मज़दूर,
क्या चाहते हैं किसान और मज़दूर,
हर नस्ल को अपनी नज़र में रखा उन्होंने,
रातभर में अपने मस्तिष्क में
पूरी धरती के भार को मापा,
और सुबह :
“सभी को, हर किसी को
अमीर के ग़ुलाम जो एक दुसरे को गढ़ते हैं
हम इस घड़ी तुम्हारा आह्वान करते हैं :
सारी सत्ता सोवियतों की,
भूखों को रोटी,
किसानों को ज़मीन,
जनता और युद्धरत सेना को शान्ति”,
सैनिकों का ख़ून पीने में मशग़ूल
बुर्जुआ वर्ग यह सुन किकिया पड़ा,
“डुखोविन और कोरिलोव को
फ़ौरन तैयार करो,
दिखाओ कि कौन कौन है और क्या क्या है!
गुचकोव और केरेंस्की!”
पर अगले और पिछले ने एक भी गोली
चलाये बिना,
हथियार डाल दिये,
जैसे ही आज्ञप्ति पारित हुई,
उनपर अग्निवर्षा की तरह।

आज हम जानते हैं कि
किसने दिखाया कि :
“कौन कौन है और क्या क्या है!”
निरक्षर लोगों के दिलों में भी,
स्टील के जिस निश्चय को गढ़ा,
वह क़रीब से दूर तक लुढ़कता गया,
एक फुसफुसाहट से गर्जन में तब्दील हुआ :
“निचलों, ग़रीबों और झोपड़ियों
के लिए शान्ति!
युद्ध, महलों पर!
युद्ध, युद्ध, युद्ध!”
हम लड़े, बड़ी से लेकर छोटी फ़ैक्टरी तक,
उन्हें शहरों से मटर की तरह उखाड़ फेंक दिया,
अक्टूबर की ज्वाला ने,
जले महलों को
अपनी जीत के क़दमों को मापने के लिए
मील के पत्थर के रूप में छोड़ दिया।

उस ज़मीन को, जो पहले
थोक में पड़ने वाले कोड़ों की क़ालीन थी,
अचानक सख़्त हाथों ने समेटा,
नहरों, पहाड़ों और अन्य सम्पदा के साथ,
कसकर थाम लिया
ख़ून में भीगी इस भूमि को।

सफ़ेद क़मीज़पोशों और चश्मों से झाँकते चेहरों ने
हमारे इस कृत्य पर थूका,
और भाग खड़े हुए वहाँ,
जहाँ आज भी राजशाही और सल्तनत थी;
बला टली!
हम हर बावर्चिन को सिखाएँगे
ताकि वह चला सके देश, मज़दूरों के हित में।

* 25 अक्टूबर – पुराने रूसी कैलेण्डर के
अनुसार क्रान्ति शुरू होने का दिन)
(अनुवाद : सनी)

मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2022


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments