आपस की बात

हमें अपनी मज़बूत यूनियन बनानी होगी

मोहम्मद मेहताब, मुंबई

मेरा नाम अंजुम है और मैं गुजरात के वडोदरा में एक ‍फैक्टरी में काम करने वाला मज़दूर हूँ। जिस फैक्टरी में मैं काम करता हूँ वहाँ करीब 60 आदमी काम करते हैं जिनमें 15-16 औरतें हैं। यहाँ पास में ही दो और फैक्ट्रियाँ भी हैं और तीनों फैक्ट्रियों में कुल मिलाकर लगभग 350 मजदूर काम करते हैं जिनमें लगभग 150 महिलाएं हैं। यहाँ पोलिशिंग का काम होता है काफी ख़तरनाक है। आए दिन फैक्ट्रियों में दुर्घटना होती रहती है। दुर्घटना होने पर मालिक थोड़ी-बहुत दवा-दारू करवा देता है ले‍किन मुआवजा कभी नहीं दिया जाता। दुर्घटना के बाद मालिक मजदूरों को काम पर भी नहीं रखता है।

काम करने के कोई घण्टे तय नहीं हैं और रोज 12-13 घण्टे से कम काम नहीं होता है। जिस दिन लोडिंग-अनलोडिंग का काम रहता है उस दिन तो 16 घं‍टे तक काम करना पड़ता है। हफ्ते में 2-3 बार तो लोडिंग-अनलोडिंग भी करनी ही पड़ती है। महँगाई को देखते हुए हमें मजदूरी बहुत ही कम दी जाती है। बिना छुट्टी लिए पूरा महीना हाड़तोड़ काम करके भी कुछ बचता नहीं है। हम चाह कर भी अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में नहीं भेज सकते। श्रम-कानूनों के बारे में किसी भी मज़दूर को नहीं पता है। यूनियन तो गुजरात में है ही नहीं। बहुत से मज़दूरों को फैक्टरी के अन्दर ही रहना पड़ता है क्योंकि किराया बहुत ज़्यादा है। ऐसे मजदूरों का तो और भी ज़्यादा शोषण होता है। उन्हें रोज़ ही काम करना पड़ता है।

मैंने कई सारे शहरों में मैंने काम किया है लेकिन सभी जगह मज़दूरों की हालत एक सी ही है। मेरे खयाल से हम सभी मजदूरों को एकजुट हो जाना चाहिए और अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए। हमें अपनी मज़बूत यूनियन बनानी होगी और तभी हम मालिकों से लड़ सकते हैं।

 इस व्यवस्था को चोट दो!

एक मज़दूर, करावल नगरदिल्ली

यह व्यवस्था पूरी तरह लूट और अन्याय पर आधारित है। इस व्यवस्था में कोई मजदूर कितना भी हाथ पाँव मारेगा वह अपना विकास नहीं कर पायेगा; क्योंकि यह मालिकों की व्यवस्था है। मजदूर को अपने विकास के लिए अलग व्यवस्था बनाना होगा। इसे एक उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है। धान की छँटाई करने वाले हालर का सिस्टम अलग होता है और गेहूँ की पिसाई करने वाली चक्की का सिस्टम अलग होता है। अगर आप चाहेंगे कि धान की छँटाई हम गेहूँ की पिसाई करने वाली चक्की में करें तो यह कतई नहीं होगा; और अगर आप चाहेंगे कि गेहूँ की पिसाई हम धान की छँटाई करने वाले हालर में करें तो यह कतई नहीं होगा। इसलिए हमसफर साथियों! हम मजदूरों को अपने विकास के लिए अलग व्यवस्था बनानी होगी और वह व्यवस्था होगी ‘मजदूर राज’। लेकिन यह अकेले सम्भव नहीं है। कहावत है – हाथी हाथ से ठेला नहीं जा सकता। हम सभी मजदूरों को मिलकर इस सड़ी-गली व्यवस्था पर एक साथ चोट करना होगा!

गीत

फाटल पैर बेवइया हो भैया
गर्मी के दुपहरिया में,
खून ई बनल पसीना भैया
गरमी की दुपहरिया में;
केतनों काम करीला
लेकिन मालिक के संतोष नहीं ,
अहंकार में डूबल हौवै,
वोकरे तनिकों होश नहीं;
मजूर कै संगी मजूर हौ,
येह दिल्ली नगरिया में ;
फाटल पैर बेवइया हो भैया….
केतनों जाँगर पेरा भैया
कम कइके बतावय ला,
आठ बजे तक काम से छोड़े
सगरो दिन दौड़ावे ला,
बाद में भैया चक्कर काटीं
आस में अपनी माजूरिया के;
फाटल पैर बेवइया हो भैया….

 

मज़दूर बिगुल, दिसम्‍बर 2023


 

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