दशकों से नासूर बनी हुई है, धारूहेड़ा क्षेत्र में फैक्ट्रियों से निकलने वाले केमिकल युक्त प्रदूषित पानी की समस्या!

रवि

पिछले लम्बे समय से हरियाणा के धारूहेड़ा से सटे राजस्थान के भिवाड़ी औद्योगिक क्षेत्र की फैक्ट्रियों से निकलने वाला केमिकल युक्त पानी गम्भीर समस्या बना हुआ है। इस प्रदूषित पानी की समस्या बरसात के मौसम में तो इतनी गम्भीर हो जाती है कि धारूहेड़ा के सोहना रोड व आस-पास के सेक्टरों में रहने वाले लोगों का घर से निकलना तक मुश्किल हो जाता है। यहाँ तक की यह पानी राष्ट्रीय राजमार्ग 48 को पार कर आसपास के गाँवों में पहुँच जाता है, जिसके कारण न सिर्फ़़ आये दिन एन.एच. 48 पर जाम की समस्या बनी रहती है, बल्कि साथ-साथ लम्बे समय से यह पानी कृषि योग्य भूमि में पहुँचने के कारण भूमि की उत्पादक क्षमता को भी ख़त्म करता जा रहा है। जहाँ-जहाँ से यह केमिकल युक्त पानी रास्ता बनाता हुआ गुज़रता है, वहाँ के क्षेत्र का पानी कुछ समय बाद पीने लायक भी नहीं रह जाता है। यह भूमि के नीचे के जल को भी बुरी तरह प्रदूषित कर रहा है। लम्बे समय तक दूषित पानी भरे रहने के कारण यह अनेक बीमारियों का भी कारण बनता जा रहा है। इस पानी की वजह से लोगों ने अपने रास्ते बदल लिये हैं। इसके कारण उस रूट पर स्थित दुकानों व बाईपास बाज़ार बुरी तरह प्रभावित है। लोगों को रोज़ी-रोटी के लाले पड़े हुए हैं। यह दूषित पानी की समस्या न सिर्फ़़ धारूहेड़ा के वासियों को प्रभावित करती है बल्कि आसपास के कई गाँव मालपुरा, राजपुरा, खटावली, गढ़ी, महेश्वरी, अकेड़ा आदि को भी प्रभावित करती हैं। इसकी वजह से एन.एच. 48 से गुजरने वाले राहगीरों को भी भारी परेशानी उठानी पड़ती है।

लेकिन इतनी गम्भीर समस्या होने के बावजूद यह आज तक सिर्फ़़ दिखावटी चुनावी मुद्दा ही बना रहा। इसके समाधान के नाम पर नगर पालिका, विधायक व सांसद तक के चुनाव लड़े जाते हैं। परन्तु चुनाव के बाद न तो इसका कोई ठोस समाधान होता है और न ही जनता को किसी तरह की कोई राहत मिलती है। फिर अगली योजनाओं में वही मसला बना रहता है। पिछले लम्बे समय के दौरान नगर पालिका के अध्यक्ष से लेकर अलग-अलग पार्टियों के विधायक-सांसद तक बदले, दोनों राज्यों यानी हरियाणा व राजस्थान की सरकारें तक बदलीं, कभी कांग्रेस आयी तो कभी भाजपा। कई डीसी आये और चले गये, कई प्रशासनिक अधिकारी बदल चुके हैं। न जाने कितने ज्ञापन, एनजीटी कोर्ट के आदेश, फैक्ट्रियों पर जुर्माने तक हुए, मगर यह समस्या ज्यों कि त्यों बनी हुई है, अभी तक  इसका कोई समाधान नहीं हुआ, यानी ढाक के तीन पात!

आखिर ऐसा क्यों?

ग़ौरतलब है कि भिवाड़ी बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। यह राजस्थान का सबसे बड़ा व देश का तीसरा बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। यहाँ 2,700 के लगभग छोटे-बड़े उद्योग स्थापित हैं। ज़ाहिरा तौर पर यहाँ से तमाम पार्टियों की सरकारें जीएसटी व वैट के रूप में कई सौ करोड़ रुपये बटोरती हैं, लेकिन क्षेत्र की जनता के लिए ज़रूरी विकास कार्यों की बात करें तो ये एकदम फिसड्डी हैं! ये सिर्फ़ अपनों यानी कारखानों मालिकों, प्रापर्टी डीलरों, ट्रांसपोर्टरों व अन्य बिचौलियों व दलालों का ही पेट भरती हैं। आम जनता से इनका कोई लेना-देना नहीं है। दूसरी तरफ़ सत्ता तक पहुँचने वाली किसी भी पार्टी की सरकार ने आज तक इन फैक्ट्रियों पर कोई सख़्त कार्रवाई नहीं की है। प्रदूषण मानकों का उल्लंघन होने के बावजूद इनपर कार्रवाई करना तो दूर, इन कम्पनियों का निरीक्षण तक नहीं होता है, न ही कोई रिपोर्ट जारी होती है। वजह साफ़ है: इन्हीं फैक्ट्री मालिकों के चन्दों पर इन पार्टियों की राजनीति चलती है, तो ज़ाहिरा तौर पर ये मालिकों की पार्टियाँ मालिकों की ही सेवा करेंगी।

वास्तव में ये फैक्ट्रियाँ मनमाने ढंग से ख़तरनाक स्तर तक प्रदूषित पानी बाहर बस्तियों-मोहल्लों में बिना प्रशोधन (ट्रीटमेण्ट) के छोड़ देती हैं। नतीजतन, सैकड़ों फैक्ट्रियों से निकलने वाला यह केमिकलयुक्त पानी धारूहेड़ा पहुँचते-पहुँचते विकराल रूप धारण करता जाता है। कभी बरसात के बहाने, कभी बिना बरसात के भी, इसे धारूहेड़ा की तरफ़ बहा दिया जाता है और जनता को उसके हालात पर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। बीच-बीच में जब प्रभावित आबादी बदहाल हो जाती है, तब वह आक्रोशित होकर स्वत:स्फूर्त ढंग से कुछ करने के लिए आगे बढ़ती है। तब इन पार्टियों के छुटभैया नेता लोग आगे आ जाते हैं। नेताओं और प्रशासन की मीटिंगों का सिलसिला चल पड़ता है। तब हवाबाज़ी करके ऐसे प्रचारित किया जाता है कि जैसे इस समस्या का इस बार पूर्ण समाधान होकर ही रहेगा! इस तरह तात्कालिक तौर पर जनता के गुस्से पर ठण्डा पानी डाल दिया जाता है। मगर इसके स्थायी समाधान के लिए इन सरकारों की तरफ़ से कभी कोई पर्याप्त या उचित कदम नहीं उठाये जाते हैं। जो दिखाने के लिए उठाये भी जाते हैं, वे ऐसे होते हैं जो दो राज्यों की जनता को ही आपस में लड़ा देते हैं और कभी स्थायी समाधान नहीं हो पाता। वैसे तो भाजपाई ‘अखण्ड भारत’ की बात करते हैं मगर ऐसे मसले के स्थायी समाधान की जगह यह दो राज्यों के बीच ही दीवार खड़ी कर देते हैं। फ़िलहाल इनके अभी तक किए गए समाधानों पर नज़र डालें तो लगता है जैसे दो राज्यों के बीच कुत्ता-बिल्ली की लड़ाई चल रही हो और इस समस्या के स्थायी समाधान का कोई आसार नज़र नहीं आता है।

अब चुनाव का मौसम चालू हो गया है और बरसात भी कुछ समय बाद चालू हो ही जायेगी। मगर अभी तक इस समस्या का समाधान नहीं हुआ है और यह फिर से विकराल रूप धारण कर लेगी। इससे पहले कि बरसात शुरू हो और धारूहेड़ा फिर से नरक में तब्दील हो, हमें समय रहते अपनी कमर कसनी होगी और जनता के बीच इस समस्या के असल कारण, यानी फैक्ट्री मालिकों और सरकार व सभी पूँजीवादी पार्टियों के छुटभैया नेताओं के गठबन्धन को बेनक़ाब करना होगा। चुनाव प्रचार के लिए आने वाली तमाम चुनावबाज़ पार्टियों के नेताओं से इस समस्या के स्थायी समाधान पर सवाल पूछने होंगे और जब तक इस समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं होता तब तक विशेष तौर पर सत्ताधारी भाजपा के बहिष्कार का नारा देना होगा।

यह बात भी ग़ौरतलब है कि इन पार्टियों के चुनावी ख़र्चे से लेकर नेताओं की अय्याशियों के ख़र्चे इन्हीं फैक्ट्रियों से मिलने वाले चन्दों के दम पर चलते हैं। अपने इन चन्दों के बदले में सत्ता में आने वाली सरकार न सिर्फ़़ इन कम्पनियों को पर्यावरण को बर्बाद करने की छूट देती है बल्कि साथ-साथ हम मज़दूरों को सस्ते में खटाने का खुला अवसर प्रदान करती है।

अब हमें इस बात को साफ़-साफ़ समझ लेना चाहिए कि मालिकों के मुनाफ़े को बनाये रखने व उसके हितों की रखवाली करने वाली ऐसी किसी भी जनविरोधी सरकार से उम्मीद करना भ्रम पालने के बराबर है। हमें जल्द ही इससे मुक्त होना होगा। हम मेहनतकशों को ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए अपने एकजुट जनबल का रास्ता अपनाना होगा। यानी अपने साफ़ व स्वच्छ पीने के पानी और वातावरण के अधिकार के लिए इलाक़ाई आधार पर अपनी जन कमेटियों/समितियों/मंचों का गठन करना होगा, जिनमें तमाम प्रभावित, पीड़ित व जागरूक आबादी को शामिल करना होगा। जनता की क्रान्तिकारी पहलकदमी के ज़रिये ही सत्ता की उपेक्षा, उत्पीड़न और शोषण के ख़िलाफ़ लड़ा जा सकता है।

मज़दूर बिगुल, मार्च 2024


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments