देशभर में जारी है ‘बीडीएस’ अभियान
इज़रायली हत्यारों से सम्बन्ध रखने वाली कम्पनियों व ब्राण्डों के उत्पादों का लोग कर रहे हैं बहिष्कार!
बिगुल संवाददाता
यह रिपोर्ट लिखे जाने तक फ़िलिस्तीन में इज़रायली बस्तीवादियों द्वारा भयंकर क़त्लेआम जारी है। फ़िलिस्तीन की ग़ज़ा पट्टी को मलबे में तब्दील कर दिया गया है। वेस्ट बैंक के तमाम इलाक़ों में भी इज़रायली सैनिक और ज़ायनवादी गुण्डा गिरोह आये दिन हमले कर रहे हैं। फ़िलिस्तीन के बहादुर योद्धाओं द्वारा किये गये 7 अक्तूबर 2023 के जुझारू प्रतिरोध के बाद से ज़ायनवादियों ने पचास हज़ार से ज़्यादा फ़िलिस्तीनियों को मौत के घाट उतार दिया है। मरने वालों में तक़रीबन 70 प्रतिशत संख्या महिलाओं और बच्चों की है। इसके अलावा लाखों जन घायल हैं और कई हज़ार लोग गायब हैं। फ़िलिस्तीन पर यह हमला कोई नया नहीं है। फिलिस्तीन की जनता 1948 से ही इज़रायली कब्ज़े और इसके द्वारा अंजाम दिये जा रहे एक भीषण जनसंहार की चपेट में है। हम भारतीय जन जिन्होंने तक़रीबन 200 वर्ष तक औपनिवेशिक ग़ुलामी झेली है वे इस ग़ुलामी के दर्द को और आज़ादी की क़ीमत को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।
अपने निर्माण के साथ ही इज़रायली सेटलर औपनिवेशिक राज्य ने फ़िलिस्तीनी क़ौम को ख़ून की नदी में डुबोने की कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ी है। असल में इज़रायल कोई देश नहीं है बल्कि एक जारी औपनिवेशिक परियोजना है जिसका अस्तित्व ही फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की क़ीमत पर क़ायम हुआ है। इस सेटलर बस्ती ने पहले ब्रिटिश साम्राज्यवाद की शह पर और उसके बाद अमरीकी साम्राज्यवाद की मदद के दम पर फ़िलिस्तीनी कौम पर एक भीषण युद्ध थोप रखा है। इज़राइल का काम मध्यपूर्व में अमरीकी सैन्य चौकी का काम करना है और उसके आर्थिक और राजनीतिक हितों की सुरक्षा करना है। जहाँ दमन होता है वहाँ प्रतिरोध का होना भी अवश्यम्भावी होता है। इज़रायल द्वारा अपने लोगों की नस्लकुशी को फ़िलिस्तीन के बहादुर लोग गर्दन झुकाकर सहन करने के लिए तैयार नहीं हैं। याद रखें, फ़िलिस्तीनी राष्ट्र का अर्थ सिर्फ़ मुसलमान नहीं हैं। हालाँकि ऐसा होता तो भी हर इन्साफ़पसन्द मेहनतकश, नौजवान और नागरिक उनके इज़रायली हत्यारों द्वारा नरसंहार का विरोध ही करता। लेकिन फ़िलिस्तीनी राष्ट्र में मुसलमानों के साथ अरबी यहूदी, अरबी ईसाई व बद्दू कबीलों के लोग भी शामिल हैं। दूसरी बात, अकेले हमास ही उनकी राष्ट्रीय मुक्ति की लड़ाई को नेतृत्व देने वाला संगठन नहीं है बल्कि पी.एफ.एल.पी. जैसे संगठन भी हैं, जो विचारधारा से सेक्युलर हैं। ऊपर से हमास भी अब एक सेक्युलर फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना को अपना लक्ष्य मानता है, हालाँकि उसकी अपनी सांगठनिक विचारधारा इस्लामी विचारधारा है। लेकिन फ़िलिस्तीन के लोग हमास के अस्तित्व में आने से पहले भी अपनी राष्ट्रीय आज़ादी के लिए लड़ते हैं और कल हमास न रहे, तो भी लड़ते रहेंगे। जो भी ताक़त इस लड़ाई की अगुवाई करने को तैयार होगी, फ़िलिस्तीन की जनता उससे विचारधारा के स्तर पर सहमत हो या असहमत हो, उसका साथ देगी क्योंकि उनके लिए सबसे पहला सवाल है अपने राष्ट्र की औपनिवेशिक ग़ुलामी से आज़ादी। आज़ादी और न्याय की ख़ातिर फ़िलिस्तीनियों का प्रतिरोध हिम्मत, जज़्बे, बहादुरी और जिजीविषा के नये-नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।
अरब देशों ही नहीं बल्कि दुनिया भर के इन्साफ़पसन्द लोग फ़िलिस्तीनी कौम के साथ गहरी हमदर्दी रखते हैं। तमाम देशों के जनद्रोही शासक वर्ग भले ही कहीं खुले तो कहीं छुपे तौर पर इज़रायल नामक हत्यारे औपनिवेशिक सेटलमेण्ट के साथ हाथ मिला रहे हों लेकिन सभी महाद्वीपों के तमाम देशों के आम लोग फ़िलिस्तीनियों के समर्थन में लाखों-करोड़ों की तादाद में सड़कों पर उतर रहे हैं।
लोगों ने ज़ायनवादी इज़रायल के विरोध का एक और तरीक़ा भी ईज़ाद किया है। यह है ‘बीडीएस अभियान’। इस अभियान का मतलब है बी यानी बॉयकोट (बहिष्कार), डी यानी डाइवेस्टमेण्ट (विनिवेश) और एस यानी सैंक्शन (प्रतिबन्ध)। ‘बीडीएस’ अभियान’ के तहत दुनियाभर की इन्साफ़पसन्द जनता के सामने इज़रायली ज़ायनवादियों के मालिकाने वाली और इज़रायल में निवेश करने वाली और उनके नरसंहार का वित्तपोषण करने वाली कम्पनियों/ब्राण्डों के उत्पादों के पूर्ण बहिष्कार का आह्वान किया जा रहा है। साम्राज्यवादी मदद से इतर इज़रायल इन्हीं कम्पनियों के पैसे की मदद से ही फ़िलिस्तीन में क़त्लेआम जारी रखे हुए है। इसीलिए इनका बहिष्कार ज़रूरी है। ‘बीडीएस’ मुहिम के तहत इज़रायली ज़ायनवादी बुद्धिजीवियों, लेखकों, कलाकारों, अकादमिकों, फ़िल्मों आदि का भी बहिष्कार किया जा रहा है।
‘बीडीएस’ अभियान’ के तहत भारत के विभिन्न शहरों में प्रदर्शन और अभियान लगातार जारी हैं। ‘फ़िलिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन’ (इण्डियन पीपल इन सोलिडेरिटी विद पैलेस्टाइन) के बैनर तले विभिन्न जन संगठन ‘बीडीएस’ अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। दिल्ली, उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान, हरियाणा समेत देश भर में ‘बीडीएस’ अभियान जारी है। इसके तहत इज़रायली ज़ायनवादीयों द्वारा जारी जनसंहार के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किये जा रहे हैं और जनता से ‘बीडीएस’ अभियान के साथ जुड़कर इज़रायली ज़ायनवादियों के हर रूप में पूर्ण बहिष्कार करने के लिए आग्रह किया जा रहा है। इस दौरान व्यापक स्तर पर पर्चा वितरण भी किया जाता है ताकि लोग फ़िलिस्तीन-इज़रायल मामले की पूरी सच्चाई को जान सकें।
‘बीडीएस’ अभियान के तहत देश की राजधानी दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर प्रदर्शन का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शन में भारत की क्रान्तिकारी मज़दूर पार्टी (RWPI) के साथ नौजवान भारत सभा और दिशा छात्र संगठन शामिल थे। दिल्ली के खजूरी इलाक़े की श्री राम कॉलोनी में ‘बीडीएस’ अभियान चलाया गया और पर्चा वितरण किया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इसलामिया विश्वविद्यालय में भी ‘बीडीएस’ अभियान जारी है। उत्तराखण्ड के सीमावर्ती क्षेत्र नांगल इलाक़े में ‘बीडीएस’ अभियान के तहत नुक्कड़ सभाओं का आयोजन किया गया। हरिद्वार की मज़दूर बस्ती में नुक्कड़ सभाओं के साथ पर्चा वितरण किया गया और जनता से ज़ायनवादी इज़रायल के बहिष्कार का आह्वान किया गया। आन्ध्र प्रदेश के विशाखापटनम में प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स लीग द्वारा स्ट्रीट आर्ट के साथ पर्चा वितरण करते हुए विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया जा चुका है। बिहार की राजधानी पटना में सब्ज़ीबाग व गोंसाई टोला जैसे इलाकों में नुक्कड़ सभाएँ व पर्चा वितरण के साथ ‘बीडीएस’ अभियान चलाया गया। तेलंगाना के हैदराबाद में अशोक नगर, भगत सिंह नगर आदि में तथा यहाँ की प्रख्यात ओसमानिया यूनिवर्सिटी में ‘बीडीएस’ अभियान चलाया गया। महाराष्ट्र के पुणे में फ़िलिस्तीन के ऊपर ज़ायनवादी हमले के विरोध में प्रदर्शन किया गया। महाराष्ट्र के पुणे, मुम्बई और अहमदनगर के विभिन्न रिहयशी इलाक़ों में ‘बीडीएस’ अभियान लगातार जारी है। उत्तर प्रदेश के लखनऊ, गोरखपुर, इलाहाबाद, गोरखपुर, बनारस, अम्बेडकर नगर, मथुरा आदि के विभिन्न स्थानों पर नुक्कड़ सभाओं, पर्चा वितरण और घर-घर अभियान के रूप में ‘बीडीएस’ कैम्पेन लगातार जारी है। राजस्थान के जयपुर में पर्चा वितरण और घर-घर अभियान के रूप में अभियान लगातार जारी है। इसके अलावा हरियाणा, पंजाब, चण्डीगढ़, बंगाल, केरल आदि में भी अगल-अलग रूपों में ‘बीडीएस’ अभियान लगातार जारी है।
फ़िलिस्तीन के प्रति एकजुटता दर्शाने के लिए ‘बीडीएस’ नामक यह अभियान दुनिया भर में तेज़ी से फ़ैल रहा है। ‘बीडीएस’ अभियान का ही प्रभाव है कि कई देशों में इज़रायल की समर्थक कम्पनियों/ब्राण्डों की दुकानें बन्द हो चुकी हैं। कुछ देशों में तो फ़िलिस्तीन पर हमले की समर्थक कई कम्पनियाँ दिवालिया तक हो चुकी हैं। इज़रायली सेटेलमेण्ट की समर्थक स्टारबर्क्स नामक कॉफी कम्पनी की मलेशिया में कम से कम 50 दुकाने (आउटलेट) बन्द हो चुकी हैं। मध्यपूर्व के देशों में यही कम्पनी काम की कमी के चलते हज़ारों कर्मचारियों की छँटनी कर चुकी है। तुर्की में मैकडोनाल्ड नामक इज़रायल समर्थक कम्पनी दिवालिया हो चुकी है और मिश्र में इसकी बिक्री 70 प्रतिशत तक गिर चुकी है। एक सर्वे के अनुसार जॉर्डन नामक देश के 93 प्रतिशत लोगों ने ‘बीडीएस’ मुहिम हो अपना समर्थन दिया है। तमाम अरब देशों के साथ दुनिया के अलग-अलग देशों में ‘बीडीएस’ मुहिम के असर देखने को मिल रहे हैं। हमें यह याद रखना होगा कि दक्षिण अफ़्रीका से नस्लभेदी औपनिवेशिक सत्ता के पाँव उखाड़ने में ऐसी बहिष्कार मुहिमों ने अहम भूमिका अदा की थी। निश्चय ही इज़रायल नामक ज़ायनवादी सेटलर कॉलोनी की उल्टी गिनती शुरू कराने में ‘बीडीएस’ अभियान का भी ख़ास योगदान होगा। ‘बीडीएस’ अभियान’ फ़िलिस्तीन के समर्थन और ज़ायनवादी इज़रायल के खिलाफ़ हमें सक्रिय रूप से कुछ करने का मौक़ा देता है। भारत के इनसाफ़पसन्द लोगों को न्याय और आज़ादी की ख़ातिर लड़ने वाले अपने फ़िलिस्तीनी भाइयों के समर्थन में ‘बीडीएस’ मुहिम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए।
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