कारख़ाना इलाक़ों से
क़ानून गया तेल लेने, यहाँ तो मालिक की मर्ज़ी ही क़ानून है!

आनन्द, बादली, दिल्ली

समयपुर, लिबासपुर, यादवनगर के इलाक़े में काम ढूँढ़ने निकला तो पता लगा कि ज़्यादातर फ़ैक्ट्रियों में बुधवार की छुट्टी रहती है। कहीं-कहीं रविवार की छुट्टी है, तो कुछ फ़ैक्ट्रियों में सोमवार की छुट्टी तो कहीं शनिवार की छुट्टी होती है। ये अलग बात है कि बहुत-सी जगहों पर छुट्टी के दिन भी काम होता ही रहता है। इस इलाक़े में ज़्यादातर फ़ैक्ट्रियाँ गैस चूल्हा, कुकर, जीन्स, गत्ता बनाने की हैं। इसके अतिरिक्त चूरन, साइकिल की रिम, तार, बैटरी, पंखे, ऑटो पार्ट, नये प्रकार के कपड़े के झोले, प्रेशर पेण्ट, पीवीसी पाइप, गियर क्लच, क्रॉकरी, कपड़े पर लेमिनेशन, तिरपाल, प्लग, मोल्डिंग लाइन, केमिकल, प्रिण्टिंग प्रेस, नमकीन-बिस्कुट आदि की फ़ैक्ट्रियाँ हैं। तमाम ऐसी फ़ैक्ट्रियाँ भी हैं जिनमें बारे में मुझे फिलहाल जानकारी नहीं है।

पहले में जिस फ़ैक्ट्री में गया, उसमें अल्युमिनियम की चादर से बिलाई, कटाई करके सर्कल बनाए जाते हैं। इनसे कुकर, कढ़ाही आदि बनते हैं। तनख्वाह 12 घण्टे के लिए 5500 रुपये महीना, बुधवार की छुट्टी, लेकिन छुट्टी के दिन भी आना पड़ेगा। मैं आगे बढ़ा तो ऐसी फ़ैक्ट्री में पहुँचा जहाँ तिरपाल और पन्नी बनते हैं। यहाँ रोज़ाना 12 घण्टे काम के लिए 6000 रुपये महीना दिया जाता है, जिसमें दिनभर खड़े होकर पन्नी की तह लगानी पड़ती है। चारों तरफ मशीनें आग उगलती रहती हैं जिससे पूरी फ़ैक्ट्री में भयंकर गर्मी रहती है। यहाँ प्लास्टिक के दाने गलाकर पन्नी और तिरपाल बनते हैं। मैंने मालिक से पूछा, अभी इतनी गर्मी है तो गर्मियों के मौसम में क्या हाल होगा! इस बात पर मालिक का मिज़ाज़ भी गर्मा गया, बोले, ”तेरे लिए एसी लगवा दूँ क्या? जीन्स चढ़ाकर लाटसाहब बन रहा है, कहता है गर्मी है, हुँह। रुपए क्या खैरात में मिलते हैं? अरे यहाँ लंच का समय भी नहीं मिलेगा, क्योंकि यहाँ मशीन एक सेकण्ड के लिए भी बन्द नहीं होती। काम करना है, तो कर वरना रास्ता नाप!” वैसे लंच के समय में मालिक-सुपरवाइज़र ख़ुद आधा घण्टे के लिए काम पर लग जाते हैं, और दो मज़दूरों को खाने का समय मिल जाता है, इसलिए यहाँ तो लंच के लिए भी मारामारी है। ऐसे में ये तो किसी को पेशाब के लिए भी जाने नहीं देंगे। ख़ैर, मैंने वहाँ काम करने से मना कर दिया।

आगे बढ़ा तो एक बैटरी बनाने की फ़ैक्ट्री में घुस गया। एक मज़दूर ने इशारा करके बताया कि मालिक से पहले मिल लो। मैं मालिक के पास गया, कहा कि काम चाहिए। मालिक ने यह सुनते ही कहा, 12 घण्टे काम करना होगा, पगार मिलेगी 6000 रुपए, बुधवार को छुट्टी होगी, मंगल या वीरवार को छुट्टी की तो बुधवार के भी पैसे कट जायेंगे। महीने या 15 दिन काम करके छोड़ देगा, तो एक भी पैसा नहीं मिलेगा। करना हो तो कल से आ जाना।

वहाँ से निकलकर आगे बढ़ा, तो कपड़े की फ़ैक्ट्री थी, जहाँ पीवीसी दाना गर्म करके कपड़े पर लेमिनेशन किया जाता है। यहाँ भी वही नियम चलता है। लेकिन एक नियम और है। मालिक ने बताना शुरू किया, रविवार की छुट्टी, 12 घण्टे के 5300 रुपये महीना और काम हर रोज़ सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक तो करना ही है। इसके अलावा दूसरे-तीसरे दिन रात 9 बजे से 12 बजे तक रोक लेंगे तो दो बार के खाने का पैसा मिलेगा, जो तुम्हारी ऊपरी आमदनी होगी। मैंने पूछा कि क्या 8 घण्टे का काम नहीं है, तो बिगड़ गया और बोला 8 घण्टे वाले को हम नहीं रखते। कम से कम 16 घण्टे तो काम करना ही पड़ेगा। इसके ऊपर तुम्हारी मर्ज़ी, जितना काम करोगे, उतना कमाओगे, उतनी तुम्हारी इज्ज़त होगी, शोहरत होगी। मैंने बीच में टोकते हुए बोल दिया, मैं बैल नहीं हूँ तो बुरी तरह गुस्सा हो गया और मुझे डाँट-डपटकर गेट से बाहर कर दिया।

ऐसे उदाहरण तो ढेरों हैं, लेकिन मेरा मक़सद उदाहरण गिनाना नहीं बल्कि यह है कि लोगों को पता चले कि चमचमाती इमारतों, महँगी लम्बी गाड़ियों, चौड़ी सड़कों, आलीशान होटलों, कोठियों वाले देश में हम जैसे मज़दूरों की क्या औक़ात है। और यह भी, कि सरकार कितने ही क़ानून बना ले लेकिन मालिकों के लिए उन क़ानूनों का कोई मतलब नहीं। क़ानून का पालन भी हम जैसे मज़दूरों और ग़रीबों को ही करना पड़ता है!

 

मज़दूर बिगुलअप्रैल 2012

 


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments