हक़ और इंसाफ़ के लिए लुधियाना के मज़दूरों के आगे बढ़ते क़दम

राजविन्दर

टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में क़दम-दर-क़दम आगे बढ़ते हुए लुधियाना के टेक्सटाइल मज़दूरों का संघर्ष लूट के शिकार मज़दूरों में नयी उम्मीद जगा रहा है। पहले बहुत से मज़दूर कहते थे ‘एक परिवार के लोगों की एकता तो बनती नहीं, फिर अलग राज्य, अलग ज़िलों के लोग कैसे इकट्ठा हो जायेंगे, यह काम तो मुश्किल लगता है’। मगर अब बड़ी संख्या में मज़दूर यह समझने लगे हैं कि मज़दूर एकता बना सकते हैं और जीत भी सकते हैं।

मज़दूरों की पहलक़दमी की कुछ घटनाएँ अगस्त-सितम्बर में घटित हुईं। लुधियाना के उत्तर-पूर्व में मेहवान ग्रामीण क्षेत्र में, जो औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित हो रहा है, हरसिद्धी टेक्सटाइल फ़ैक्ट्री में दशरथ नाम का मज़दूर पिछले काफ़ी दिनों से दिल की बीमारी से पीड़ित था। पैसे की कमी के चलते ठीक से इलाज नहीं करा सका। अचानक ही 15 अगस्त के दिन उसकी हालत ज़्यादा ख़राब हो गयी। साथी मज़दूरों ने एक निजी अस्पताल में भरती किया लेकिन वहाँ से सी.एम.सी. अस्पताल भेज दिया गया जहाँ इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी। इस घटना को लेकर मज़दूरों में दुख और रोष की भावना थी। टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में आसपास की फैक्ट्रियों के मज़दूरों ने काम बन्द करके हरसिद्धी के मालिक को मुआवजे़ के तौर पर एक लाख रुपये दशरथ के बच्चों को देने के लिए मजबूर किया। यह मालिक भी बाकी फ़ैक्ट्री मालिकों की तरह ही मज़दूरों को दुर्घटना बीमा, ई.एस.आई., ई.पी.एफ. जैसी कोई भी सुविधा नहीं देता, जबकि उसका मुनाफ़ा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। अगर अचानक दुर्घटना अथवा बीमारी से मज़दूर की मौत हो जाये तो उसका परिवार भूखों मरने के लिए मजबूर होता है। मृतक दशरथ के अन्तिम संस्कार में उस इलाक़े की लगभग 20 फैक्ट्रियों के मज़दूर दो घण्टे के लिए काम बन्द करके शामिल हुए। मज़दूरों के इस भाईचारे से फ़ैक्ट्री मालिकों के दिलों में बेचैनी पैदा हो गयी। कई फ़ैक्ट्री मालिकों ने संस्कार में जाने के बारे में अपने मज़दूरों को फटकार लगायी। इस घटना से मालिकों की मुनाफ़ा-भक्ति और लुटेरा चेहरा मज़दूरों में और नंगा हुआ। कई मज़दूर जो मालिकों के भक्त थे वे भी सोचने के लिए मजबूर हो गये कि फ़ैक्ट्री मालिक अपने दोस्तों-रिश्तेदारों की मौत पर जा सकता है तो मज़दूर अपने साथी की मौत पर क्यों नहीं जा सकते!

मुआवज़ा दिलाने के लिए चार दिन की हड़ताल

इस घटना के तीन दिन बाद इसी इलाक़े की श्रीराम टेक्सटाइल में काम करने वाले मज़दूर अवधेश पाठक की अचानक मौत हो गयी। मौत के कारण का पता नहीं चल सका। लेकिन सभी मज़दूर कह रहे थे कि अन्तिम संस्कार से लौटने पर मालिक ने अवधेश को काफी डाँटा था, जिससे वह काफी परेशान लग रहा था। शुक्रवार 20 अगस्त रात को अवधेश सोया तो सुबह जागा ही नहीं।

इस घटना के बारे में मालिक को बताने पर वह आया और अवधेश के परिवार के लिए मुआवज़ा देने का वायदा करके चला गया। अवधेश के परिवार वालों को गाँव से बुलाया गया। अवधेश के अन्तिम संस्कार वाले दिन की सुबह से ही मज़दूर काम पर नहीं गये। सभी फैक्ट्रियाँ बन्द रहीं। मालिक अवधेश के भाई को 20,000 रुपये देने पर राज़ी हुआ और बोला इससे ज़्यादा नहीं देगा। मालिक के इस व्यवहार से नाराज़ मज़दूरों ने टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में मालिक से एक लाख रुपये की माँग की क्योंकि इस फ़ैक्ट्री में अवधेश 6 साल से काम करता था और यहाँ भी कोई श्रम क़ानून लागू नहीं होता था। इस घटना के कारण इस इलाक़े की लगभग 20 पावरलूम फ़ैक्ट्री के मज़दूर हड़ताल पर रहे और फ़ैक्ट्री गेट के पास धरना दिया। अन्त में अवधेश के भाई ने घर जाकर रस्में निभाने के दबाव में मालिक से 50,000 रुपये के मुआवजे़ पर समझौता कर लिया तब हड़ताल ख़त्म हुई।

घमण्डी मालिक के ख़िलाफ़ संघर्ष

शक्तिनगर इलाक़े में एक मालिक हरीश ने एक मज़दूर को धक्केशाही से काम से हटा दिया। उसका जुर्म यह था कि उसने अपने साथी मज़दूर को बोनस का पैसा दिलाने के लिए मालिक से बात की थी। मालिक की इस हरकत से नाराज़ मज़दूरों ने काम बन्द कर दिया और आसपास की फैक्ट्रियों के मज़दूर भी पूछताछ के लिए आने लगे, तभी फ़ैक्ट्री मालिक हरीश ताला लगाकर भाग गया। पुलिस स्टेशन बस्ती ओधेवाल के पुलिसकर्मी रिपोर्ट लिखने में आनाकानी कर रहे थे। मज़दूरों ने पुलिस के इस व्यवहार के विरोध में जमकर नारेबाज़ी की तो पुलिस का रुख बदला और जल्द कार्रवाई का आश्वासन देने पर ही मज़दूर शान्त हुए। इसी समय टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में मज़दूरों ने दोषी मालिक के फ़ैक्ट्री गेट पर रैली की और यह ऐलान किया कि जो मालिक आरोपी मालिक का साथ देगा उसके कारख़ाने में भी चक्काजाम कर दिया जायेगा। एक तरफ मज़दूरों की एकता के विरोध में मालिक एक भी हो जाते हैं, तो दूसरी तरफ अपने मुनाफ़े के लिए उनके बीच की गलाकाटू होड़ भी दिखायी देती है। अपना काम बन्द होने के डर से दूसरे मालिक, हरीश के साथ थाने जाने से बचते दिखे, कुछ इस घटना के लिए हरीश की निन्दा भी कर रहे थे। अगले दिन थाने में समझौता हुआ। जिस मज़दूर को मालिक निकाल रहा था उसको काम पर रखा, जिस मज़दूर के बोनस को लेकर झगड़ा था उसका बोनस दिया और आगे से  बदले की कोई कार्रवाई करने पर पुलिस ने सख़्त कार्रवाई का भरोसा दिया। इस घटना के दौरान टूटी दिहाड़ी देने लिए मज़दूरों ने मालिक को मजबूर किया और दो-दो दिन की दिहाड़ी लेकर ही काम पर गये।

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मज़दूर पंचायत का आयोजन

इसी दौरान 19 अगस्त को टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन की तरफ से मज़दूर पंचायत बुलायी गयी। ज़ोरदार बारिश के बावजूद लगभग 700 मज़दूरों ने पंचायत में हिस्सा लिया। इस पंचायत की तैयारी में यूनियन की तरफ से टेक्सटाइल व होज़री मज़दूरों में बड़ी संख्या में परचे बाँटे गये और विचार-विमर्श के लिए कुछ माँगें भी सुझायी गयीं जिन पर पंचायत में हुई चर्चा के बाद सहमति बन गयी। 25 अगस्त को एक माँगपत्रक तैयार करके सभी फैक्ट्रियों के मज़दूरों ने मालिकों तक पहुँचा दिया। यूनियन ने साफ़ कह दिया कि जो मालिक माँगों के बारे में अपने मज़दूरों से समझौता कर लेगा उसकी फ़ैक्ट्री चलती रहेगी, जो भी मालिक मज़दूरों की जायज़ माँग नहीं मानेगा उसके प्रति सभी मज़दूर मिलकर फैसला लेंगे। कुछ मालिकों ने अपने मज़दूरों से समझौता कर लिया, जिसके अनुसार पहले की 25 प्रतिशत और अभी की 13 प्रतिशत वृद्धि यानी कुल 38 प्रतिशत वेतन बढ़ोत्तरी, 8.33 प्रतिशत बोनस और सभी मज़दूरों का ई.एस.आई. कार्ड बनवाने की बात पर लिखित समझौता करने पर उन फैक्ट्रियों में काम चलता रहा। लेकिन जिन मालिकों ने इन माँगों पर ध्यान नहीं दिया उनके बारे में 16 सितम्बर को यूनियन की साप्ताहिक सभा में फैसला लिया गया कि उन फैक्ट्रियों में मज़दूर 5 बजे के बाद ओवरटाइम लगाना बन्द कर रोज़ाना मीटिंग किया करेंगे। अभी भी काफी मालिक कुछ नहीं देने की ज़िद पर अड़े हैं और मीटिंग रोज़ाना जारी है।

ई.एस.आई. दफ़्तर का घेराव

13 सितम्बर को टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में लगभग 1500 मज़दूरों ने 2 किलोमीटर लम्बा मार्च किया और ई.एस.आई. कार्यालय का घेराव किया क्योंकि पिछले वर्ष जिन फैक्ट्रियों के मज़दूरों की सूचियाँ विभाग को ई.एस.आई. की सुविधा लागू करवाने के लिए दी गयी थी उन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई थी। बहुत कम मज़दूरों को यह सहूलियत मिली थी।

ई.एस.आई. के उपनिदेशक द्वारा 15 दिन के भीतर सभी मालिकों को नोटिस भिजवाकर सभी मज़दूरों के कार्ड बनाने और अवहेलना करने वाले मालिकों के ख़िलाफ़ ई.एस.आई. एक्ट की धारा 85(जी) के तहत क़ानूनी कार्रवाई करने का आश्वासन देने के बाद ही मज़दूरों ने धरना हटाया। इस समय मेहवान क्षेत्र की 17 फैक्ट्रियों के मज़दूरों की सूची भी विभाग को सौंपी गयी। इसके साथ ही अब तक 187 फैक्ट्रियों की सूचियाँ ई.एस.आई. विभाग को भेजी जा चुकी हैं। इस धरने का असर यह हुआ कि अगले ही दिन सभी अख़बारों में नोटिस निकालकर सभी मालिकों को मज़दूरों के कार्ड बनाने के लिए कहा गया और ई.एस.आई. की टीमें फैक्ट्रियों में छापे मार रही हैं। यूनियन ने फ़ैसला किया कि आने वाले दिनों में श्रम क़ानूनों से सम्बन्धित सरकारी दफ़्तरों का घेराव किया जायेगा।

 

मज़दूर बिगुल, अक्‍टूबर 2012

 


 

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