चीन : माओ की भविष्यवाणी सही साबित हुई

लखविन्‍दर

Maoसर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति के तहत जब पूँजीवादी पथगामियों के ख़िलाफ जनान्दोलन जारी था उस समय माओ-त्से-तुङ ने कहा था कि अगर चीन की राज्यसत्ता पर पूँजीवादी पथगामी काबिज़ हो भी जाते हैं तो चीनी जनता उन्हें एक दिन भी चैन की नींद नहीं सोने देगी। कामरेड माओ की यह भविष्यवाणी पूरी तरह सच साबित हुई। चीनी मेहनतकश जनता ने पूँजीवादी पथगामियों के राज्यसत्ता हथियाने के बाद पूँजीवादी सुधारों का जवाब ज़बर्दस्त आन्दोलनों से दिया है।

 

सन् 1976 में माओ-त्से-तुङ की मृत्यु के बाद चीन में मज़दूर वर्ग से राज्यसत्ता छीनकर पूँजीपति वर्ग सत्ता पर काबिज़ हो गया था। लेकिन चीनी पूँजीपति वर्ग ने सत्ता हासिल करने के बाद भी समाजवाद का लबादा नहीं उतारा। सन् 1976 से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी मज़दूर वर्ग की पार्टी नहीं रह गयी। लेकिन दुनिया के अधिकतर लोग आज भी इस भ्रम का शिकार हैं कि चीन एक साम्यवादी देश है और वहाँ कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में है। पूँजीवादी बुद्धिजीवी, प्रिण्‍ट और इलेक्ट्रिानिक मीडिया इस भ्रम का जोरशोर से प्रचार करते हैं। चीन की बुरी परिस्थितियों का बयान वे यह कहते हुए करते हैं कि देखो साम्यवादी व्यवस्था ने चीन का क्या हाल कर रखा है। चीन के तथाकथित विकास के बारे में बात करते हुए वे कहते हैं कि चीनी कम्युनिस्ट अब साम्यवाद का रास्ता त्यागकर पूँजीवाद अपना रहे हैं जिससे कि विकास हो रहा है। पिछले दिनों चीन की सत्तारूढ़ नकली कम्युनिस्ट पार्टी ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के 90 वर्ष पूरे होने पर जश्न मनाये। इन जश्नों की ख़बरों को पूँजीवादी अख़बारों ने ख़ास जगह दी। पूँजीवादी मीडिया ने पार्टी के इस बयान को ख़ास तौर पर उछाला कि माओ-त्से-तुङ की आर्थिक नीतियों ने चीन का विकास नहीं होने दिया था। इन ख़बरों में कहा गया कि माओवादी नीतियाँ त्यागने के बाद पार्टी ने चीनी अर्थव्यवस्था को सही ट्रैक पर लाते हुए विकास किया है। आइये देखें कि चीन में इतिहास ने किसे सही साबित किया  पूँजीवाद को या माओवाद को?

माओ-त्से-तुङ की मृत्यु के बाद चीन में प्रतिक्रान्तिकारी तख्तापलट होने के बाद नये पूँजीवादी शासकों ने तथाकथित आर्थिक सुधारों को चीनी मेहनतकश जनता पर थोपना शुरू कर दिया। देहातों में सामूहिक फार्मों को तोड़ दिया गया और कृषि का निजीकरण कर दिया गया। नतीजे के तौर पर करोड़ों ग्रामीण मज़दूर अतिरिक्त मज़दूर बन गए। चीन के देशी-विदेशी उद्योगों के लिए इस तरह बेहद सस्ते श्रम का इन्तज़ाम हुआ। 1990 के बाद सरकारी संस्थानों को तेज़ी से निजी हाथों में सौंपा जाने लगा। सभी छोटे और मध्यम सरकारी उद्योगों को और कुछ बड़े सरकारी उद्योगों को निजी हाथों में कौड़ियों के मोल बेच दिया गया। सरकारी अफसर, पूर्व सरकारी उद्योगों के मैनेजर, सरकार में सम्बन्ध रखने वाले निजी पूँजीपति और मल्टीनेशनल कारपोरेशनों को इसका भरपूर फायदा मिला। चीन के नये पूँजीपति वर्ग ने इस तरह बड़े स्तर पर शुरुआती पूँजी जुटायी। दूसरी तरफ सरकारी और सामूहिक उद्योगों के लाखों मज़दूरों की छँटनी कर दी गयी और वे बेरोज़गार हो गये।

संशोधनवादी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने 2002 में सोलहवीं पार्टी कांग्रेस में पार्टी संविधान में भी बदलाव कर डाला। पहले पार्टी संविधान में लिखा गया था कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी मज़दूर वर्ग का हिरावल दस्ता है। लेकिन अब इसे बदल दिया गया। अब कहा गया कि अब पार्टी चीन की व्यापक जनता और सबसे अग्रणी उत्पादक शक्तियों के हितों का प्रतिनिधित्व करती है। संशोधनवादी चीनी पार्टी ने चीन के पूँजीपति वर्ग को सबसे अग्रणी उत्पादक शक्तियों के तौर पर पेश किया और इस तरह पार्टी में पूँजीपति को भरती करने का रास्ता खोल दिया गया।

china social strainचीन में 1980 से, लगभग पन्द्रह करोड़ लोग रोज़गार की तलाश में देहाती क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर प्रवास कर चुके हैं। एक्सपोर्ट के लिए होने वाला उत्पादन इन्हीं प्रवासी मज़दूरों के श्रम पर टिका हुआ है। चीन के ग्वांगजू, शेनज़ेन और हाँगकांग क्षेत्रों में किये गये एक सर्वेक्षण के मुताबिक दो-तिहाई मज़दूर रोजाना आठ घण्टे से अधिक काम करते हैं और उन्हें साप्ताहिक छुट्टी भी नहीं मिलती। बहुत से मज़दूरों को सोलह घण्टे तक भी काम करना पड़ता है। पूँजीवादी मैनेजर मज़दूरों को अनुशासन में रखने के लिए तरह-तरह की नाजायज़ सज़ाएँ देते हैं। चीन के लगभग बीस करोड़ मज़दूर भयानक परिस्थितियों में काम करते हैं। हर वर्ष सात लाख मज़दूर काम के दौरान गम्भीर हादसों का शिकार होते हैं। इन हादसों में लगभग एक लाख मज़दूरों को अपनी जान गँवानी पड़ती है।

चीन में आज गैर-खेतिहर श्रम शक्ति कुल श्रम शक्ति का 60 प्रतिशत हो चुकी है जो कि सन् 1980 में 31 प्रतिशत थी। इस गैर-खेतिहर श्रम शक्ति का 80 प्रतिशत श्रम शक्ति सर्वहारा है यानि ऐसे मज़दूर जो अपनी श्रम शक्ति पूँजीपतियों को बेचकर ही गुज़ारा करते हैं। सन् 1990 से लेकर सन् 2005 तक चीन के मज़दूरों की कुल आमदनी का घरेलू सकल उत्पाद में हिस्सा 50 प्रतिशत से घट कर 37 प्रतिशत रह गया है। अमीरी-ग़रीबी की भयानक रूप से चौड़ी होती जा रही खाई को यहाँ स्पष्ट देखा जा सकता है। सन् 1976 के पहले चीन सबसे अधिक समानता वाले देशों में गिना जाता था। आज वही चीन सबसे अधिक असमानता वाले देशों में गिना जाता है। वर्ल्ड वेल्थ रिपोर्ट, 2006 के अनुसार चीन के 0.4 प्रतिशत सबसे अधिक अमीर परिवार देश के कुल धन में से 70 प्रतिशत के मालिक हैं। 2006 में लगभग 3200 व्यक्तियों की निजी सम्पत्ति 10 करोड़ युआन (लगभग 1.5 करोड़ अमेरिकी डालर) थी। इनमें से 90 प्रतिशत (2900) वरिष्ठ सरकारी या पार्टी अधिकारियों की सन्तानें थीं। इन लोगों की सम्पत्ति का कुल जोड़ (लगभग 20 खरब युआन) चीन के 2006 के कुल घरेलू उत्पाद के लगभग बराबर था। चीन की जनता इस बात को अच्छी तरह समझती है कि चीनी पूँजीपति वर्ग के पास जमा हुई यह सम्पत्ति जनता की ही है। निजीकरण के दौरान 30 खरब युआन की राजकीय व सामूहिक सम्पत्ति सरकार में मिलीभगत के सहारे पूँजीपतियों ने हथिया ली। चीन के संशोधनवादी भ्रष्टाचार में पूरी तरह डूबे हुए हैं। चीन का मौजूदा प्रधानमन्‍त्री वेन जिआबाओ दुनिया के सबसे अमीर प्रधानमन्त्रियों में से एक है। उसका बेटा चीन की सबसे बड़ी निजी इक्विटी फर्म का मालिक है। उसकी पत्नी चीन के आभूषण उद्योग की इंचार्ज है। वेन परिवार के पास एक अनुमान के मुताबिक लगभग 30 खरब युआन (लगभग 4.3 अरब अमेरिकी डालर) की सम्पत्ति है। पार्टी के महासचिव और पूर्व राष्ट्रपति जिआङ जेमिन के पास अन्‍दाजन 7 अरब युआन और पूर्व प्रधानमन्‍त्री ज़ू रोंङजी के पास अन्‍दाजन 5 अरब युआन की सम्पत्ति है। अब तो चीनी पूँजीवादी बुद्धिजीवी भी मानने लगे हैं कि चीन में भ्रष्टाचार नियन्‍त्रण से बाहर जा चुका है।

समाजवादी चीन में अमीर-ग़रीब के बीच की खाई लगातार कम होती चली गयी थी। मानसिक व शारीरिक श्रम, गाँव और शहर, कृषि व उद्योग के बीच की गैरबराबरी लगातार घटती जा रही थी। लेकिन आज पूँजीवादी चीन में ये असमानताएँ लगातार तेज़ गति से बढ़ती जा रही हैं। साथ ही समाजवादी चीन में प्रदूषण पर बेमिसाल नियन्‍त्रण कायम करते हुए इसे लगातार घटाया जाता रहा। लेकिन मुनाफा कमाने की हवस में अन्धा चीनी पूँजीपति वर्ग वायुमण्डल को अभूतपूर्व ढंग से प्रदूषित कर रहा है।

समाजवादी चीन में महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति के तहत जब पूँजीवादी पथगामियों के ख़िलाफ जनान्दोलन जारी था उस समय माओ-त्से-तुङ ने कहा था कि अगर चीन की राज्यसत्ता पर पूँजीवादी पथगामी काबिज़ हो भी जाते हैं तो चीनी जनता उन्हें एक दिन भी चैन की नींद नहीं सोने देगी। कामरेड माओ की यह भविष्यवाणी पूरी तरह सच साबित हुई। चीनी मेहनतकश जनता ने पूँजीवादी पथगामियों के राज्यसत्ता हथियाने के बाद पूँजीवादी सुधारों का जवाब ज़बर्दस्त आन्दोलनों से दिया। साथ ही जैसे-जैसे ग़ैर-खेतिहर श्रम शक्ति की तादाद बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे चीन में मज़दूर आन्दोलन भी बड़ा आकार लेता जा रहा है जो चीनी पूँजीपति वर्ग और उनकी सेवक संशोधनवादी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की मुसीबतों में कई गुना इज़ाफा कर रहा है। पिछले वर्ष 2010 की गर्मियों में हुई दर्जनों हड़तालों ने चीन के ऑटो, इलेक्‍ट्रॉनिक, और टेक्सटाइल उद्योग को हिलाकर रख दिया था। पूँजीपतियों को मज़दूरों का वेतन बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ा था। पूँजीवादी समाज-वैज्ञानिक डर ज़ाहिर कर रहे हैं कि चीन हड़तालों के एक नये दौर में प्रवेश करने जा रहा है जिससे श्रम शक्ति महँगी हो जायेगी और सामाजिक अस्थिरता पैदा हो जायेगी।

पूर्व राजकीय मज़दूरों ने निजीकरण और छँटनियों के ख़िलाफ बड़े जनसंघर्ष लड़े हैं। इन संघर्षों का असर न सिर्फ इन छँटनियों का शिकार हुए मज़दूरों पर पड़ा बल्कि उन पर भी इन संघर्षों का व्यापक असर हुआ जो अभी भी इन राजकीय उद्योगों में काम करते हैं। इन संघर्षों ने चीनी सर्वहारा के इस हिस्से — राजकीय मज़दूरों — में वर्गीय और एक हद तक समाजवादी चेतना पैदा करने का काम किया है। इस ऐतिहासिक अनुभव के कारण चीनी राजकीय मज़दूरों के संघर्ष अक्सर सिर्फ तात्कालिक आर्थिक माँगों तक सीमित नहीं रहते। बहुत से मज़दूर कार्यकर्ता इस बात को समझते हैं कि उनकी मौजूदा हालत पूँजीपतियों से आर्थिक संघर्ष लड़ने से ही नहीं बदल जायेगी क्यों मूल रूप से उनकी यह हालत वर्ग युद्ध में मज़दूर वर्ग की ऐतिहासिक हार और पूँजीपति वर्ग की अस्थायी जीत की वजह से हुई है। राजकीय उद्योगों में काम करने वाले अधिकतर मज़दूर यहाँ समाजवादी दौर में पहले काम कर चुके मज़दूरों की सन्‍तानें हैं या फिर उन्होंने पुराने राजकीय मज़दूरों के साथ काम किया है, या फिर वे उन्हीं के आस-पास रहते हैं। इस तरह मौजूदा समय में राजकीय उद्योगों में काम करने वाले मज़दूर पुराने मज़दूरों के संघर्षों और उनके राजनीतिक अनुभव से प्रभावित हैं।

सन् 2005 में जिलिन प्रान्‍त में टोंघुआ स्टील कारखाने का निजीकरण कर दिया गया। 10 अरब युआन की राजकीय सम्पत्ति का कीमत सिर्फ 2 अरब यूआन लगाई गई। एक ताक़तवर निजी कम्पनी जिआनलोंग, जिसके बीजिंग में उच्च अधिकारियों से घनिष्ठ सम्बन्ध थे, ने असल में सिर्फ 80 करोड़ युआन ही अदा किये और कम्पनी का स्वामित्व हासिल कर लिया। मज़दूरों के वेतन दो-तिहाई घटा दिये गये। कारखाने में हादसे बहुत बढ़ गये। मज़दूरों पर मनमर्ज़ी के जुर्माने और सजाएँ थोपी जाने लगीं। 2007 में इस कारखाने के मज़दूरों ने प्रदर्शन शुरू किये। माओ के समय के वू नाम के एक मज़दूर, मज़दूरों के नेता बनकर उभरे। उन्होंने मज़दूरों को स्पष्ट कहा कि असल मुद्दा निजीकरण की राजनीतिक नीति से जुड़ा है। जुलाई 2009 में मज़दूरों ने उग्र हड़ताल कर दी। इसके बाद जिलिन प्रान्त में निजीकरण की योजना को ठप्प करना पड़ा। टोंघूआ स्टील मज़दूरों की जीत ने चीन के अन्य भागों के मज़दूरों को प्रेरित किया। बहुत से अन्य स्टील कारखानों के मज़दूरों ने भी विरोध की आवाज़ उठाई और स्थानीय सरकारों को निजीकरण की योजनाएँ रद्द करने के लिए मजबूर किया। चीन के ऊर्जा और भारी उद्योग क्षेत्र का बड़ा हिस्सा अभी भी राजकीय है। इस नज़रिए से भी चीन के राजकीय मज़दूर, मज़दूर वर्ग का वह हिस्सा हैं जो चीनी पूँजीपति वर्ग को बड़ी आर्थिक और राजनीतिक चुनौती दे सकते हैं।

1980 से पहले प्रोफेशनल और तकनीकी मज़दूर पूँजीवादी सुधारों और खुलेपन की नीतियों का ज़बरदस्त समर्थक था। लेकिन अब पूँजीवादी समाज में बढ़ती जा रही ग़ैरबराबरी ने उन्हें भी ज़मीन पर ला दिया है। पूँजीवादी व्यवस्था ने मध्यम वर्गीय सपनों को तार-तार कर दिया है। सन् 2010 में ग्रेजुएट होने वाले कुल कालेज विद्यार्थियों में से 25 प्रतिशत को कोई रोज़गार प्राप्त नहीं हुआ। जिन्हें रोज़गार मिलता भी है उन्हें भी अक्सर लगभग उसी वेतन पर काम करने पर मजबूर होना पड़ता है जिस पर कि प्रवासी अकुशल मज़दूरों को काम करना पड़ता है। हर वर्ष ग्रेजुएशन करने वाले कुल 60 लाख कालेज विद्यार्थियों में से 10 लाख ऐसे होते हैं जिन्हें शहरों के बाहरी हिस्सों में झुग्गी-झोपड़ी जैसी परिस्थितियों में रहना पड़ता है। आवास, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा की तेज़ गति से बढ़ती जा रही कीमतें चीन के मध्यम वर्ग की आर्थिक और सामाजिक हालत और भी बिगाड़ती जा रही हैं। मध्यम वर्गीय जीवन जीने के उनके सपने टूटते जा रहे हैं। जैसे-जैसे इस वर्ग के लोग सर्वहारा जीवन परिस्थितियों का अनुभव कर रहे हैं वैसे-वैसे इस वर्ग के अधिक से अधिक नौजवान राजनीतिक तौर पर रैडिकल होते जा रहे हैं। पिछले दशक के दौरान चीन में वामपन्‍थी राजनीतिक धारा फिर से आगे बढ़ी है। तीन वामपन्‍थी वेबसाइटें, वू यू जी जिआंग, द माओ-त्से-तुङ लीग और द चाईना वर्कर्ज़ नेटवर्क, तेज़ी से लोकप्रिय हुई हैं और राष्ट्रस्तरीय प्रभाव हासिल किया है।

 

 

मज़दूर बिगुल, जूलाई 2011

 


 

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