दिल्ली के समयपुर व बादली औद्योगिक क्षेत्र की ख़ूनी फ़ैक्ट्रियों के ख़िलाफ़ बिगुल मज़दूर दस्ता की मुहिम

बिगुल संवाददाता

गत 30 अगस्त को ‘हितकारी ब्रदर्स’, शेड 5, बादली औद्योगिक क्षेत्र स्थित फैक्ट्री में अजय ओझा नाम के मज़दूर की सीने में लोहे की पत्ती लगने से मौत हो गयी। अजय बादली की ख़ूनी फ़ैक्ट्रियों का एक और शिकार बन गया! पिछले चन्द महीनों में इस छोटे से औद्योगिक क्षेत्र में दुर्घटना में हुई मौत की यह कम से कम छठी घटना थी।

बादली औद्योगिक क्षेत्र की फ़ैक्ट्रियाँ मज़दूरों के लिए मौत के कारख़ाने बन चुकी हैं! इन फ़ैक्ट्रियों को मज़दूरों के ख़ून का स्वाद लग चुका है। यही ख़ून मुनाफ़े में बदल कर मालिकों की तिजोरी में चला जाता है और  इस ख़ून का निश्चित हिस्सा थाने-पुलिस- नेता-अफ़सरों तक भी नियमित रूप से पहुँचता रहता है। इसी वजह से लगातार हो रही मज़दूरों की मौतों पर कोई कार्रवाई नहीं होती है! ख़ूनी कारख़ाना चलता रहता है, हत्यारे मालिक का मुनाफ़ा पैदा होता रहता है, पूँजी की देवी के खप्पर में मज़दूरों की बलि चढ़ती रहती है!

ये सभी मौतें नियमों के उल्लंघन तथा कारख़ाना मालिकों की लापरवाही के कारण हुई हैं। इतना ही नहीं, इन औद्योगिक क्षेत्रों में आये दिन होने वाली छोटी-बड़ी दुर्घटनाओं में मज़दूरों के अंग-भंग होने तथा अन्य गंभीर चोट लगने की घटनाओं की तो कोई गिनती ही नहीं है। ऐसी अधिकांश घटनाएँ  फैक्ट्रियों में सुरक्षा के न्यूनतम मानकों का पालन नहीं करने तथा मज़दूरों को सुरक्षा के न्यूनतम उपकरण भी प्रदान नहीं करने के साथ ही मशीनों की स्पीड बढ़ाकर उनसे अधिक से अधिक काम कराने के कारण होती हैं।

यहां के तमाम कारखानों में श्रम कानूनों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किया जाता है। लगभग सभी कारखानों में न्यूनतम मज़दूरी, काम के घंटों, नियमानुसार ओवरटाइम, ई.एस.आई., पी.एफ. आदि का पालन नहीं किया जाता है। काम की परिस्थितियाँ बेहद खराब तथा अस्वास्थ्यकर हैं जिसके कारण हज़ारों मज़दूरों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। अधिकांश कारखानों से होने वायु, ध्वनि तथा जल प्रदूषण के कारण इनमें काम करने वाले मज़दूरों के स्वास्थ्य के साथ ही रिहायशी इलाकों में रहने वाले मज़दूरों के परिवारों एवं स्थानीय नागरिक आबादी के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है।

बिगुल मज़दूर दस्ता ने दुर्घटना के नाम पर मज़दूरों की इन हत्याओं के खि़लाफ़ मुहिम छेड़ी है। इन हालात के ख़ि‍लाफ़ मज़दूरों को जागरूक और संगठित करने के लिए दस्ता ने इस मुद्दे पर अब तक चार पर्चे निकाले हैं और बादली, समयपुर, राजा विहार, सूरज पार्क,  लिबासपुर, सिरसपुर आदि बस्तियों में मज़दूरों के बीच सघन प्रचार अभियान चलाया है। मिलमालिकों, पुलिस और स्थानीय नेताओं की साँठगाँठ इतनी नंगी है कि जून में एक मज़दूर की मौत के बाद पर्चा बाँट रहे दस्ता की टोली को स्थानीय विधायक के दफ्तर से फ़ोन करके धमकियाँ दी गयीं। पर्चे बाँटते समय पुलिस के लोग जगह-जगह न सिर्फ़ रोकते हैं बल्कि परोक्ष रूप से धमकाते भी हैं कि इस मामले में मत पड़ो।

सितम्बर महीने के शुरू में बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को लेकर उप श्रमायुक्त और पुलिस उपायुक्त को अलग-अलग ज्ञापन दिया और कार्रवाई की माँग की। श्रमायुक्त को दिये गये ज्ञापन में कहा गया है कि:

  1. औद्योगिक दुर्घटनाओं में मज़दूरों की मृत्यु की घटनाओं की जाँच कराकर दोषी फैक्ट्री मालिकों एवं प्रबंधकों के विरुद्ध कार्रवाई की जाए एवं मृतक के परिजनों को उचित मुआवज़े का भुगतान सुनिश्चित कराया जाए।

2. बादली एवं समयपुर औद्योगिक क्षेत्रों में स्थित कारखानों में सरकार द्वारा निर्धारित सुरक्षा मानकों एवं उपायों के उल्लंघन की जाँच कराकर इनका सख्ती से अनुपालन कराया जाए।

3. फैक्ट्रियों में श्रम कानूनों के घोर उल्लंघन की जाँच कराई जाए तथा न्यूनतम मज़दूरी, काम के घण्टे, ओवरटाइम, ई.एस.आई., पी.एफ. आदि को नियमानुसार लागू कराया जाए।

पुलिस उपायुक्त को दिये ज्ञापन कहा गया है कि स्थानीय पुलिस के पक्षपातपूर्ण रवैये के कारण कानूनी प्रक्रिया आगे ही नहीं बढ़ पाती है। अधिकांश मामलों में मामला ही दर्ज नहीं किया जाता है और पोस्टमार्टम की कार्रवाई तक पूरी नहीं की जाती है।

ज्ञापन में मज़दूरों की मृत्यु की घटनाओं की जाँच कराकर दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करने एवं मृतक के परिजनों को उचित मुआवज़े का भुगतान सुनिश्चित कराने, ऐसे सभी मामलों में एफआईआर दर्ज करने, तथा फैक्ट्रियों में सुरक्षा मानकों तथा श्रम कानूनों के उल्लंघन की शिकायतों पर निष्पक्ष कार्रवाई के लिए स्थानीय पुलिस को कड़े निर्देश देने की माँग की गयी है।

दस्ता ने दिल्ली के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में दुर्घटनाओं में मज़दूरों की मौतों के बारे में एक सर्वेक्षण भी शुरू किया है और इस मुद्दे पर मज़दूरों के बीच प्रचार और आन्दोलन की मुहिम और तेज़ करने का फ़ैसला किया है।

 

 

बिगुल, सितम्‍बर 2009


 

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