सर्वहारा वर्ग तथा सर्वहारा की पार्टी

जोसेफ स्तालिन

Lenin and Stalin in Gorkyवो दिन गये जब लोग सीना तानकर घोषणा करते थे “रूस, एक और अविभाज्य है।” आज एक बच्चा भी जानता है कि अब “एक और अविभाज्य” रूस जैसी कोई चीज़ नहीं रही, कि बहुत पहले ही रूस दो विरोधी वर्गों में बँट चुका है – पूँजीवादी वर्ग एवं सर्वहारा वर्ग। आज यह किसी के लिए रहस्य नहीं है कि इन दो वर्गों के बीच का संघर्ष वह धुरी बन गया है जिसके चारों ओर हमारी आज की ज़िन्दगी चक्कर काट रही है।

फिर भी, अभी हाल तक इस सब पर ध्यान जाना कठिन था, कारण यह कि अब तक हमने संघर्ष के अखाड़े में कुछ व्यक्तिगत ग्रुपों को ही देखा था, क्योंकि अलग-अलग ग्रुपों (दलों) ने ही संघर्ष छेड़ा था, जबकि वर्गों के रूप में सर्वहारा तथा पूँजीपति वर्ग सामने नहीं थे, उन्हें देख पाना कठिन था। लेकिन अब शहर और जिले एक हो गये हैं, सर्वहारा के विभिन्न दलों ने हाथ मिला लिया है, मिली-जुली हड़तालें एवं प्रदर्शन शुरू हो गये हैं और हमारे सामने दो रूसों – पूँजीवादी रूस तथा सर्वहारा रूस – के बीच संघर्ष की शानदार तस्वीर उभर कर सामने आ गयी है। दो विशाल सेनाएँ मैदान में उतर चुकी हैं – सर्वहारा की सेना तथा पूँजीपति वर्ग की सेना – और इन दो सेनाओं के बीच का संघर्ष हमारे समूचे सामाजिक जीवन को समेटे हुए है।

चूँकि कोई सेना नेताओं के बगैर काम नहीं कर सकती और चूँकि हर सेना में एक अग्रिम टुकड़ी होती है जो उसके आगे चलती है और उसका पथ-प्रदर्शन करती है, इसलिए यह स्पष्ट है कि इन सेनाओं के साथ-साथ उनके नेताओं के दल या जैसा कि आमतौर पर उन्हें पुकारा जाता है, उनकी पार्टियों को भी जन्म लेना पड़ेगा।

इस तरह जो तस्वीर उभरती है वह इस प्रकार हैः एक ओर तो पूँजीपति वर्ग की सेना है जिसका नेतृत्व लिबरल पार्टी कर रही है। दूसरी ओर सर्वहारा की सेना है जिसका नेतृत्व सोशल-डेमोक्रैट पार्टी कर रही है। प्रत्येक सेना अपने वर्ग संघर्ष में अपनी पार्टी द्वारा संचालित होती है।1

हमने इस सब का ज़िक्र यहाँ इसलिए किया है कि सर्वहारा पार्टी की तुलना सर्वहारा वर्ग से कर सकें और इस प्रकार संक्षेप में पार्टी के सामान्य लक्षणों पर प्रकाश डाल सकें।

उपरोक्त बातों से यह अच्छी तरह स्पष्ट है कि सर्वहारा पार्टी नेताओं का एक जुझारू दल होने के नाते प्रथमतः सदस्यता की दृष्टि से सर्वहारा वर्ग की तुलना में बहुत छोटी होनी चाहिए; दूसरी यह कि वर्ग चेतना और अनुभव की दृष्टि से सर्वहारा वर्ग से श्रेष्ठकर होनी चाहिए; और तीसरे यह कि एक गठा हुआ संगठन होना चाहिए।

हमारे विचार से, जो कुछ कहा गया है, उसे प्रमाण की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह स्वतः-स्पष्ट है कि जब तक पूँजीवादी व्यवस्था, जिसके साथ अनिवार्य रूप से जनता की ग़रीबी और पिछड़ापन जुड़ा है, बनी रहेगी तब तक सर्वहारा सामूहिक तौर पर, वर्ग चेतना के आवश्यक स्तर तक नहीं उठ सकता है। इसलिए सर्वहारा की सेना को समाजवाद की भावना से लैस करने के लिए वर्ग-चेतन नेताओं का एक दल होना चाहिए, जोकि उसको एकबद्ध कर सके तथा उसके संघर्ष में नेतृत्व दे सके। यह भी साफ़ है कि एक पार्टी, जोकि युद्धरत सर्वहारा के नेतृत्व के लिए निकलकर आयी है, उसे व्यक्तियों का एक आकस्मिक जमघट नहीं होना चाहिए, वरन एक सुगठित, केन्द्रित संगठन होना चाहिए ताकि उसकी गतिविधियों का निर्देशन एक योजना के अनुसार किया जा सके।

संक्षेप में, यही हमारी पार्टी के सामान्य लक्ष्य हैं।

इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए आइये मुख्य प्रश्न पर आयें कि हम किसे पार्टी का सदस्य कह सकते हैं? पार्टी नियमावली का पहला पैरा ठीक इसी प्रश्न से सम्बन्धित है जो कि इस लेख का विषय है।

आइये इस प्रश्न पर विचार करें।

तो फिर हम किसे रूस को सोशल-डेमोक्रेटिक लेबर पार्टी का सदस्य कह सकते हैं – यानि, एक पार्टी सदस्य के कर्तव्य क्या हैं?

हमारी पार्टी एक समाजवादी-जनतांत्रिक पार्टी है। इसका अर्थ है कि इसका अपना एक कार्यक्रम (आन्दोलन के तात्कालिक एवं अन्तिम उद्देश्य) है, अपनी कार्यनीति (संघर्ष का तरीका) है, और अपने संगठनात्मक सिद्धान्त (संगठन का स्वरूप) हैं। कार्यक्रम, कार्यनीति, तथा संगठनात्मक विचारों की एकता वह आधार है, जिस पर हमारी पार्टी बनी है। इन विचारों की एकता ही पार्टी के सदस्यों को एक केन्द्रित पार्टी में बाँध सकती है। यदि विचारों की एकता टूटती है तो पार्टी टूटती है। फलस्वरूप, केवल वह जो पार्टी के कार्यक्रम, कार्यनीति तथा संगठनात्मक सिद्धान्तों को पूर्णतया स्वीकार करता है, उसी को पार्टी सदस्य कहा जा सकता है। केवल वह जिसने हमारी पार्टी के कार्यक्रम, कार्यनीति तथा संगठनात्मक सिद्धान्तों को पर्याप्त रूप से पढ़ा और पूर्णतः स्वीकार किया है, वही हमारी पार्टी की पंक्ति में और इस प्रकार सर्वहारा की सेना के नेताओं की पंक्ति में आ सकता है।

किन्तु क्या एक पार्टी सदस्य के लिए पार्टी का कार्यक्रम, कार्यनीति तथा संगठनात्मक विचारों को केवल स्वीकार करना ही पर्याप्त है? क्या ऐसा व्यक्ति सर्वहारा की सेना का एक सच्चा नेता माना जा सकता है? अवश्य ही नहीं। प्रथम तो हर व्यक्ति यह जानता है कि दुनिया में ऐसे अनेकों बकवास करने वाले लोग हैं जो तुरन्त पार्टी के कार्यक्रम, कार्यनीति तथा संगठनात्मक विचारों को “स्वीकार” कर लेंगे, जब कि वे बकवास करने के अतिरिक्त और कुछ करने के योग्य नहीं हैं। ऐसे बकवासी व्यक्ति को पार्टी के सदस्य (यानी कि सर्वहारा की सेना का नेता) कहना तो पार्टी की पूरी गरिमा को नष्ट कर देना होगा। और फिर, हमारी पार्टी कोई दर्शन बघारने की जगह या धार्मिक पंथ तो है नहीं। क्या हमारी पार्टी एक युद्धरत जुझारू पार्टी नहीं है? चूँकि है, अतः क्या यह स्वतः-स्पष्ट नहीं है कि वह सिर्फ अपने कार्यक्रम, कार्यनीति तथा संगठनात्मक सिद्धान्तों की मौखिक स्वीकृति से ही सन्तुष्ट न होगी, कि वह वह बेशक यह माँग करेगी कि उसके सदस्य स्वीकार किये गये सिद्धान्तों को कार्यान्वित करें। अतः, जो भी कोई हमारी पार्टी का सदस्य बनना चाहता है वह केवल हमारी पार्टी के कार्यक्रम, कार्यनीति तथा संगठनात्मक विचारों को स्वीकार कर संतुष्ट नहीं बैठ सकता, वरन उसे इन विचारों को क्रियान्वित करना चाहिए, उन्हें अमल में लाना चाहिए।

किन्तु एक पार्टी सदस्य के लिए पार्टी की नीतियों पर अमल करने का क्या अर्थ है? वह इन नीतियों को कब लागू कर सकता है? केवल तब जब वह लड़ रहा हो, जब वह पूरी पार्टी के साथ सर्वहारा की सेना के आगे चल रहा हो। क्या संघर्ष अकेले, बिखरे हुए व्यक्तियों द्वारा छेड़ा जा सकता है? कभी नहीं। इसके विपरीत पहले जनता एक हो, पहले वे संगठित हों, और उसके बाद ही वे लड़ाई के मैदान में उतरें। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो सारा संघर्ष विफल होगा। केवल जब पार्टी के सदस्य एक गठे हुए संगठन से बँधेंगे, स्पष्टतया तब ही वे लड़ने योग्य और फलस्वरूप पार्टी सिद्धान्तों को लागू करने योग्य हो सकेंगे। यह भी स्पष्ट है कि जिस संगठन में पार्टी सदस्य एकबद्ध हुए हैं वह जितना ही गठीला होगा उतना बेहतर वे लड़ने के योग्य हो सकेंगे और परिणामस्वरूप, उतना ही अधिक वे पार्टी कार्यक्रम, कार्यनीति तथा संगठनात्मक विचारों को लागू कर सकेंगे। यह यूँ ही नहीं है कि हमारी पार्टी को नेताओं का संगठन कहा जाता है न कि व्यक्तियों का जमघट। और चूँकि पार्टी नेताओं  का एक संगठन है, अतः यह स्पष्ट है कि केवल वे ही इस पार्टी के, इस संगठन के, सदस्य माने जा सकते हैं, जो इस संगठन में कार्य करते हैं और इसलिए अपनी इच्छाओं का पार्टी की इच्छाओं में विलय तथा पार्टी के साथ एक होकर कार्य करना अपना कर्तव्य समझते हैं।

अतः पार्टी सदस्य होने के लिए आपको पार्टी के कार्यक्रम, कार्यनीति तथा संगठनात्मक विचारों को लागू करना चाहिए; पार्टी के विचारों को लागू करने के लिए, आपको उनके लिए लड़ना चाहिए; और उन विचारों के लिए लड़ने के वास्ते आपको एक पार्टी संगठन के कार्य करना चाहिए, पार्टी के साथ एक होकर कार्य। स्पष्टतया, एक पार्टी सदस्य होने के लिए, आपको पार्टी के संगठनों में से किसी एक में होना चाहिए।2केवल जब हम पार्टी के संगठनों में से किसी एक में शामिल हो जायें और इस प्रकार अपने व्यक्तिगत हितों को पार्टी के हितों में मिला दें, तभी पार्टी सदस्य बन सकते हैं और फलस्वरूप सर्वहारा की सेना के वास्तविक नेता बन सकते हैं।

यदि हमारी पार्टी फालतू लोगों का जमघट नहीं है, बल्कि ऐसे नेताओं का संगठन है जा कि अपनी केन्द्रीय कमेटी के माध्यम से सर्वहारा की सेना को आगे ले जाने में योग्यतापूर्वक संचालन कर रहे हैं, तो ऊपर जो भी कहा गया है वह स्वतः स्पष्ट हो जायेगा।

निम्नलिखित बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

अभी तक हमारी पार्टी एक अतिथि-सत्कार करने वाले पितृ-सत्तात्मक परिवार के सदृश्य थी, हर सहानुभूति रखने वाले को लेने को तैयार। किन्तु अब जब हमारी पार्टी एक केन्द्रित संगठन बन चुकी है, उसने अपने पिता समान रूप को छोड़ दिया है और हर प्रकार से एक दुर्ग की तरह हो गयी है, तब उसके दरवाज़े सिर्फ़ उन लोगों के लिए ही खुले हैं जो इस योग्य हैं। यह हमारे लिए एक अत्यन्त महत्वपूर्ण बात है।ऐसे समय में जब निरंकुश शासन सर्वहारा की वर्ग चेतना को “ट्रेड-यूनियनवाद”, राष्ट्रीयतावाद, पादरीवाद, तथा ऐसी अन्य बातों से दूषित करना चाहता है और जहाँ दूसरी ओर उदारवादी बुद्धिजीवी, सर्वहारा की राजनैतिक स्वतंत्रता की हत्या तथा अपने संरक्षण को उस पर लादने के लिए हठपूर्वक प्रयास कर रहे हैं-ऐसे समय पर हमको अत्यधिक चौकसी रखना चाहिए और यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमारी पार्टी एक दुर्ग है जिसके दरवाज़े सिर्फ़ उन लोगों के लिए खुले हैं जिनकी परीक्षा हो चुकी है।

हमने यह समझ लिया है कि पार्टी सदस्यता के लिए दो आवश्यक शर्तें हैं (कार्यक्रम की स्वीकृति तथा एक पार्टी संगठन में कार्य)। यदि इसमें हम तीसरी शर्त और जोड़ दें, कि एक पार्टी सदस्य को आर्थिक सहायता भी प्रदान करनी चाहिए, तो वह सारी शर्तें पूरी हो जायेंगी जो किसी को पार्टी सदस्य के पद का अधिकार देती हैं।

अतः, रूसी सोशल-डेमोक्रैट लेबर पार्टी का सदस्य वह है जो इस पार्टी के कार्यक्रम को मानता है, पार्टी को आर्थिक सहायता प्रदान करता है और पार्टी संगठनों में से किसी एक में कार्य करता है।

इस प्रकार पार्टी निमयावली का प्रथम पैराग्राफ़ तैयार किया गया था, जिसका मसविदा कॉमरेड लेनिन3 ने बनाया था।

यह सूत्र जैसा कि आप देखते हैं, पूर्णतया इस सिद्धान्त से निकलता है कि हमारी पार्टी एक केन्द्रित संगठन है, न कि व्यक्तियों का एक जमघट।

यही इस सूत्र का औचित्य है।

किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ कॉमरेड लेनिन के इस सूत्र को इस आधार पर अस्वीकार करते हैं कि यह “संकुचित” तथा “असुविधाजनक” है, और अपना एक सूत्र प्रतिपादित करते हैं जो कि ऐसा समझा जाता है कि न तो “संकुचित” है, न ही “असुविधाजनक”। हम मार्तोव4 के सूत्र की बात कर रहे हैं, जिसका कि अब हम विश्लेषण करेंगे।

मार्तोव का सूत्र हैः “आर. एस. डी. एल. पी. का सदस्य वह है जो उसका कार्यक्रम स्वीकार करता है, पार्टी की आर्थिक सहायता करता है तथा उसके संगठनों में से एक के निर्देशन में उसे नियमित रूप से व्यक्तिगत सहयोग प्रदान करता है।” जैसा कि आप देखते हैं, यह सूत्र पार्टी की सदस्यता की तीसरी आवश्यक शर्त को छोड़ देता है; यह कि पार्टी सदस्यों का कर्तव्य है कि वे पार्टी संगठनों में से एक में कार्य करें। ऐसा लगता है कि मार्तोव इस निश्चित एवं आवश्यक शर्त को व्यर्थ मानते हैं और उन्होंने अपने सूत्र में इसकी जगह अनर्थक एवं संदिग्ध वाक्य “ पार्टी संगठनों में से एक के निर्देशन में व्यक्तिगत सहयोग” रख दिया है। ऐसा लगता है कि बिना किसी पार्टी संगठन के रहते हुए (निश्चय है, सुन्दर “पार्टी” है!) और पार्टी की इच्छा के प्रति समर्पण को कर्तव्य न समझते हुए (निश्चय ही, सुन्दर “पार्टी अनुशासन” है) भी कोई पार्टी का सदस्य हो सकता है। कैसे कोई पार्टी ‘नियमपूर्वक’ और ठीक तरह से ऐसे व्यक्तियों को निर्देश दे सकती है जो किसी पार्टी संगठन में नहीं है और फलस्वरूप पार्टी अनुशासन के प्रति समर्पण को अपना पूर्ण कर्तव्य नहीं समझते।

यह वो प्रश्न है जो पार्टी नियमावली के प्रथम पैराग्राफ़ के लिए मार्तोव के सूत्र के चिथड़े उड़ा देता है, किन्तु लेनिन के सूत्र में इसका उत्तर बहुत अच्छी तरह से मौजूद है, इस रूप में कि वह निश्चित ही यह मानता है कि पार्टी सदस्यता की तीसरी तथा आवश्यक शर्त यह है कि व्यक्ति को किसी पार्टी संगठन में कार्य करना चाहिए।

हमें बस यही करना है कि मार्तोव के सूत्र से निराकार एवं निरर्थक “पार्टी संगठनों में से एक के निर्देश में व्यक्तिगत सहयोग” को निकाल फेंकना है। इस शर्त के निकलने पर मार्तोव के सूत्र में केवल दो शर्तें बचती हैं (पार्टी कार्यक्रम की स्वीकृति तथा आर्थिक सहायता) जो कि अपने में बिल्कुल मूल्यहीन हैं क्योंकि हर लफ्फाज़ पार्टी कार्यक्रम को ‘स्वीकार’ कर सकता है और पार्टी को आर्थिक मदद कर सकता है – किन्तु यह ज़रा भी उसे पार्टी सदस्य हाने लायक नहीं बनाती।

हमें मानना होगा, क्या ही “सुविधाजनक” सूत्र है?

हम कहते हैं कि वास्तविक पार्टी सदस्य पार्टी कार्यक्रम को सिर्फ़ मानकर ही शायद आराम से नहीं बैठ सकता है, अपितु बिना चूके उस कार्यक्रम को जिसे उसने स्वीकार किया है, लागू करने का प्रयास करना चाहिए। मार्तोव उत्तर देते हैं: तुम लोग बहुत कठोर हो, क्योंकि एक पार्टी सदस्य के लिए यह बहुत आवश्यक नहीं है कि जिस कार्यक्रम को वह मानता है उसे लागू भी करे, यदि एक वह पार्टी को आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए राजी है, वगैरह। ऐसा लगता है कि मार्तोव कुछ “सोशल-डेमोक्रैट” लफ्फाज़ों को लेकर दुखी हैं और पार्टी के दरवाज़े उनके लिए बन्द नहीं करना चाहते।

और आगे हमारा कहना यह है कि कार्यक्रम के अमल में संघर्ष आवश्यक है और यह कि बिना एकता के संघर्ष असंभव है। इसलिए यह प्रत्येक अपेक्षित सदस्य का कर्तव्य है कि वह पार्टी संगठनों में से किसी एक से जुड़े, अपनी इच्छाओं को पार्टी की इच्छाओं से मिला दे तथा पार्टी के साथ एक सुर होकर सर्वहारा की सेना का नेतृत्व करे, अर्थात् उसे एक केन्द्रित पार्टी की सु-संगठित टुकड़ियों का गठन करना चाहिए। मार्तोव इसका उत्तर देते हैं: पार्टी सदस्यों के लिए सु-संगठित टुकड़ियों में गठित होकर संगठनों में एकबद्ध होना ऐसा आवश्यक नहीं; अकेले लड़ना ही काफी है।

तो, हमारी पार्टी है क्या? हम पूछते हैं व्यक्तियों का एक आकस्मिक जमघट अथवा नेताओं का एक ठोस संगठन? और यदि यह नेताओं का संगठन है तो क्या हम किसी ऐसे को सदस्य मान सकते हैं जो इसमे नहीं है और फलस्वरूप इसके अनुशासन के सामने झुकना अपना कर्तव्य नहीं समझता? मार्तोव उत्तर देते हैं कि पार्टी एक संगठन नहीं, या यूँ कि पार्टी एक असंगठित संगठन है (निश्चय ही, सुन्दर “केन्द्रीयता”!)।

स्पष्ट हो, मार्तोव की राय में हमारी पार्टी एक केन्द्रित संगठन नहीं है बल्कि क्षेत्रीय संगठनों तथा व्यक्तिगत “सोशल-डेमोक्रैट्स”, जिन्होंने हमारे पार्टी कार्यक्रम को स्वीकार किया है, इत्यादि का जमघट है। किन्तु यदि हमारी पार्टी केन्द्रित संगठन नहीं है तो यह एक ऐसा दुर्ग न होगी जिसके दरवाज़े केवल मँजे हुए लोगों के लिए ही खुल सकते हैं। और, वाकई, मार्तोव के लिए, जैसा कि उनके सूत्र से ही स्पष्ट है, पार्टी एक दुर्ग नहीं बल्कि एक भोज है, जिसमें प्रत्येक सहानुभूति रखने वाला शामिल हो सकता है। थोड़ी सी जानकारी, उतनी सी ही सहानुभूति, थोड़ी सी आर्थिक सहायता और आप आ गये, आपको पार्टी सदस्य की तरह गिनने का पूरा अधिकार है। मत सुनो – भयभीत “पार्टी सदस्यों” को उत्साहित करने के लिए मार्तोव चीखते हैं – उन लोगों की मत सुनो जो यह कहते हैं कि पार्टी सदस्य को पार्टी संगठनों में से एक में अवश्य होना चाहिए और इस प्रकार अपनी इच्छाओं को पार्टी की इच्छाओं के अधीन कर देना चाहिए। पहले तो, किसी व्यक्ति के लिए इन शर्तों को मानना कठिन है – अपनी इच्छाओं को पार्टी की इच्छाओं के मातहत कर देना कोई मज़ाक नहीं है! और दूसरे, जैसा कि मैं अपनी व्याख्या में पहले ही इंगित कर चुका हूँ, इन व्यक्तियों की राय ग़लत है। और इसलिए, महानुभावों, आपका स्वागत है – भोज के लिए।

ऐसा दिखता है कि मार्तोव कुछ अध्यापकों तथा हाई-स्कूल के छात्रों, जिनको अपनी इच्छाओं को पार्टी की इच्छाओं के अधीन करना अरुचिकर है, के प्रति दुखी हैं और इसलिए वे हमारे पार्टी-दुर्ग में ऐसी झिरी पैदा कर रहे हैं जिससे होकर यह मान्य महानुभाव पार्टी के अन्दर आ सकते हैं। वे अवसरवाद के लिए दरवाज़े खोल रहे हैं, और वह भी ऐसे समय जब हज़ारों दुश्मन सर्वहारा की वर्ग चेतना पर प्रहार कर रहे हैं।

लेकिन बस इतना ही नहीं है। बात यह है कि मार्तोव का यह संदिग्ध सूत्र हमारी पार्टी में अवसरवाद को दूसरी तरह से उभरने की संभावना पैदा करता है।

मार्तोव का सूत्र, जैसा हम जानते हैं, कार्यक्रम को स्वीकारने की बात करता है; कार्यनीति एवं संगठन के बारे में एक शब्द नहीं; और फिर, कार्यनीति एवं संगठन सम्बन्धी विचारों की एकता, पार्टी एकता के लिए कार्यक्रम की एकता से किसी भी तरह कम आवश्यक नहीं है। हमें बताया जा सकता है कि इस पर तो कॉमरेड लेनिन के सूत्र में भी कुछ नहीं कहा गया है। सही है! किन्तु कॉमरेड लेनिन के सूत्र में इस पर कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं है। क्या यह स्वयं स्पष्ट नहीं है कि जो किसी पार्टी संगठन में कार्य करता है और फलस्वरूप, पार्टी के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ता है तथा पार्टी अनुशासन के आगे झुकता है, वह पार्टी की कार्यनीति तथा पार्टी के संगठनात्मक सिद्धान्तों का पालन कर ही नहीं सकता? पर उस “पार्टी सदस्य” को आप क्या कहेंगे जो पार्टी कार्यक्रम को तो स्वीकार करता है किन्तु किसी पार्टी संगठन में नहीं है? इस बात की क्या गारंटी है कि इस “सदस्य” की कार्यनीति तथा संगठनात्मक विचार वही होंगे जो पार्टी के हैं और कुछ दूसरे नहीं? मार्तोव का सूत्र इसी बात को समझाने में असफल रहता है। मार्तोव के सूत्र के फलस्वरूप हमको यह विलक्षण ‘पार्टी’ मिलेगी, जिसके सदस्य एक ही ‘कार्यक्रम’ मानते हैं (और यह भी संदेहास्पद है!), किन्तु अपने कार्यनीति एवं संगठनात्मक विचारों में मतभेद रखते हैं! क्या आदर्शवादी विभिन्नता! हमारी पार्टी किस प्रकार एक भोज से भिन्न होगी?

बस एक प्रश्न है जो हम पूछना चाहेंगेः हमको उस सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक केन्द्रीयतावाद का क्या करना है जो कि दूसरी पार्टी कांग्रेस से हमें मिला था और जिसका कि मार्तोव का सूत्र मौलिक रूप से खण्डन करता है? इसको उठा कर फेंक दें? अगर चुनाव करने की बात है तो निस्संदेह मार्तोव के सूत्र को उठाकर फेंकना अधिक सही होगा।

ऐसा वाहियात है वो सूत्र जो मार्तोव ने कॉमरेड लेनिन के सूत्र के विरोध में पेश किया है।

हमारा विचार है कि दूसरी पार्टी कांग्रेस जिसने कि मार्तोव के सूत्र को माना है, का निर्णय एक गम्भीर ग़लती है और हम आशा करते हैं कि तीसरी पार्टी कांग्रेस दूसरी कांग्रेस की ग़लती को सुधारने में असफल न होगी तथा कॉमरेड लेनिन के सूत्र को अपनायेगी।

हम संक्षेप में दोहरा लें: सर्वहारा की सेना मैदान में आ गयी है, चूँकि हर सेना की एक अग्रिम टुकड़ी होनी चाहिए, इस सेना की भी अग्रिम टुकड़ी होनी है। अतः सर्वहारा के नेताओं का एक ग्रुप सामने आया है – रूस की सोशल-डेमोक्रैट लेबर पार्टी। एक विशेष सेना के अगले दस्ते के रूप में इस पार्टी को पहले तो अपने कार्यक्रम, कार्यनीति तथा संगठनात्मक सिद्धान्त से लैस होना चाहिए; और दूसरे यह एक ठोस संगठन होना चाहिए। इस प्रश्न का कि रूस की सोशल-डेमोक्रैट लेबर पार्टी का सदस्य किसे कहा जा सकता है? इसका सिर्फ़ एक उत्तर हो सकता हैः वो जो पार्टी कार्यक्रम मानता है, पार्टी की आर्थिक सहायता करता है, और पार्टी संगठनों में से एक में काम करता है।

यही वो प्रत्यक्ष सत्य है जिसे कॉमरेड लेनिन ने अपने श्रेष्ठ सूत्र में कहा है।

1– हमने रूस की अन्य पार्टियों का ज़िक्र नहीं किया है, क्योंकि विचाराधीन प्रश्नों का हल ढूँढने में उनकी कोई आवश्यकता नहीं है।

2– जिस प्रकार हर जटिल जीवाणु अनगिनत सरल जीवाणुओं से मिलकर बनता है, ऐसे ही अपनी पार्टी, एक जटिल तथा सामान्य संगठन होने से, अनेकों जिला तथा क्षेत्रीय विभागों, पार्टी संगठनों से मिलकर बनी है, बशर्तें कि वे पार्टी कांग्रेस अथवा केन्द्रीय कमेटी द्वारा अनुमोदित हों। जैसाकि आप देखते हैं, केवल कमेटियों को ही पार्टी संगठन नहीं कहा जा सकता है। इन संगठनों को एक योजनाबद्ध तरीके से चलाने के लिए एक केन्द्रीय कमेटी होती है, जिसके ज़रिये यह क्षेत्रीय पार्टी संगठन एक विशाल, केन्द्रित संगठन का निर्माण करते हैं।

3– लेनिन, क्रान्तिकारी सोशल- डेमोक्रैसी के एक प्रमुख सिद्धान्तकार एवं व्यावहारिक नेता।

4– मार्तोव, इस्क्रा के संपादकों में से एक।

(सर्वहारा का संग्राम, अंक 8, 1 जनवरी 1905 में प्रकाशित, बिना हस्ताक्षर के)

 

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त 2014

 


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments