महीनों से आर्थिक नाकाबन्दी की मार झेलते नेपाल के लोग

मानव

अप्रैल और मई 2015 में आये भूचाल से अभी नेपाल के लोग उबरे भी नहीं थे कि पिछले पाँच महीनों से उन्‍हें आर्थिक नाकाबन्दी का दंश झेलने को मजबूर हैं। इस नाकेबन्दी का कारण नेपाल के भारत के साथ सटे दक्षिण-पूर्वी तराई क्षेत्र में रह रहे मधेसी लोगों की ओर से किये जा रहे प्रदर्शन हैं जिनको भारत सरकार की सहमति भी हासिल है। इस नाकेबन्दी के कारण नेपाल में ज़रूरी वस्तुओं की भारी किल्लत हो गयी है। हालात इतने गम्भीर हो चुके हैं कि यूनिसेफ़ को घोषणा करनी पड़ी है कि यदि आने वाले महीनों में इसका कोई हल न निकाला गया तो पाँच साल से कम उम्र के 30 लाख बच्चे मौत या फिर भयंकर बीमारी के दहाने में पहुँच जायेंगे।

इस मसले की शुरुआत नेपाल की अलग-अलग पार्टियों की ओर से 20 सितम्बर, 2015 को अपनाये गये नये संविधान के बाद से हुई है। नेपाल की भारत के साथ सटी सीमा पर रह रहे मधेसी लोगों की नुमाइन्दगी कर रही पार्टियों का कहना है कि यह संविधान मधेसी लोगों के साथ लम्बे समय से हो रहे भेदभाव को वैध बनाता है। उनका आरोप है कि यह संविधान मधेसी लोगों को पूरे अधिकारों की गारण्टी नहीं करता और नेपाल के 7 में से 6 राज्यों को इस तरह से बाँटा गया है कि चुनावों के समय मधेसियों को उनकी आबादी के हिसाब से उतना प्रतिनिधित्‍व नहीं  मिलता। मधेसी आबादी नेपाल की कुल आबादी का करीब 33% बनती है लेकिन सरकार, पुलिस और फ़ौज में इसका हिस्सा केवल 12% है। यही वह कारण है जिनको लेकर ‘सयुंक्त लोकतान्त्रिक मधेसी मोर्चा’ के नाम तले वहाँ के लोगों ने भारत से व्यापार का महत्त्वपूर्ण मार्ग – रक्सौल बीरगंज मार्ग – बन्द कर दिया है। इस तनाव में हुई पुलिस और लोगों की झड़पों में अभी तक तकरीबन 50 लोगों की मौत हो चुकी है।

नेपाल की राजनीतिक पार्टियाँ, मीडिया और लोग भी इस नाकाबन्दी के लिए भारत सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं। काठमाण्डू में इस नाकेबन्दी के ख़िलाफ़ कई प्रदर्शन हो चुके हैं। नेपाल के नये चुने गये प्रधानमन्त्री के.पी. शर्मा ओली ने कहा कि भारत की ओर से नेपाल की की गयी यह नाकाबन्दी “युद्ध से भी बढ़कर अमानवीय” कार्रवाई है। भारतीय सरकार की ओर से भले ही इस तरह के आरोपों को रद्द किया जा रहा है, लेकिन यह सच्चाई है कि पिछले लम्बे समय से नेपाल में संविधान बनाने की चल रही प्रक्रिया में भारत की ओर से लगातार दख़लन्दाज़ी की जाती रही है। जब पिछले साल संविधान को बनाने की प्रक्रिया चल रही थी, तब से ही भारतीय हुक़्मरानों ने नेपाल में मौजूद राजाशाही के अवशेषों, नेपाली स्वयं सेवक संघ और नेपाली हिन्दू सभा जैसे धुर-दक्षिणपन्थी संगठनों के साथ मिलकर इस प्रक्रिया को अपने हितों के अनुकूल करने के लिए रैलियाँ भी निकाली थीं। जिस दिन से यह नाकाबन्दी शुरू हुई, उसी दिन अख़बार ‘इण्डियन एक्सप्रेस’ ने ख़बर शाया की थी कि भारतीय सरकार ने नेपाल से संविधान में कुछ विशेष संशोधन करने की बात कही है। सुषमा स्वराज ने 7 दिसम्बर को बयान दिया था कि, “यदि भगवान ने चाहा और मधेसियों को इन्साफ़ मिला” तो नेपाल में आने वाले दिनों में हालात ठीक हो जायेंगे। इससे पहले स्वराज की ओर से यह भी कहा गया था कि नेपाल के साथ व्यापार के लिए इस्तेमाल किये जा रहे दूसरे मार्गों के ज़रिये ज़रूरी वस्तुओं की सप्लाई की जायेगी। लेकिन अभी तक भारत सरकार ने इस पर कोई अमल नहीं किया है। इसीलिए यह कहने का ठोस आधार है कि भारतीय सरकार की इस आर्थिक नाकाबन्दी में भूमिका है।

भारत के साथ नेपाल की 1800 किलोमीटर लम्बी सीमा है और तकरीबन 27 व्यापारिक मार्ग हैं। यदि भारतीय हुक़्मरानों को ‘इन्साफ़’ की इतनी ही फ़िक्र है तो वह ज़रूरी वस्तुओं की सप्लाई इन मार्गों के ज़रिये भी कर सकता है क्योंकि इनमें से ज़्यादातर मार्गों के ऊपर कोई प्रदर्शन नहीं चल रहे हैं। वैसे यह कोई पहली बार नहीं है कि भारतीय सरकार ने नेपाल की इस तरीक़े से आर्थिक नाकाबन्दी की हो। इससे पहले राजीव गाँधी सरकार के समय भी 23 मार्च 1989 से लेकर अप्रैल 1990 तक 13 महीनों के लिए नेपाल की इस तरीक़े से घेराबन्दी की गयी थी। उस समय मूल कारण नेपाल की ओर से चीन के साथ किये गये कुछ आर्थिक समझौते थे जिसके तहत चीन ने तिब्बत के रास्ते होते हुए नेपाल की ओर सड़कों का निर्माण करना था। चीन के साथ नेपाल के बढ़ते इन सम्बन्धों के चलते व अपने हितों को हो रहे नुक़सान के चलते भारत सरकार ने तमाम अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनों (जिसके तहत यदि किसी भूमध्यस्थ देश को अपने विदेशी व्यापार के लिए करीबी बन्दरगाहों तक पहुँचना हो तो वह अपने पड़ोसी मुल्कों के रास्ते का इस्तेमाल कर सकता है) का उल्लंघन करते हुए नेपाल के ऊपर यह आर्थिक आतंकवाद लाद दिया गया जिसके बाद नेपाल के राजा बीरेन्दर को अपनी माँगों से पीछे हटना पड़ा था और भारतीय समर्थन हासिल ‘नेपाली कांग्रेस पार्टी’ को रियायतें देनी पड़ी थीं। मौजूदा भाजपा सरकार की भी शुरू ही से नेपाल पर गिद्ध-नज़र रही है। प्रधानमन्त्री बनने के बाद मोदी की ओर से किया गया नेपाल का दौरा किसी भारतीय प्रधानमन्त्री की ओर से 17 साल बाद किया गया दौरा था। रणनीतिक दृष्टि से यह क्षेत्र बेहद अहम है और भारतीय हुक़्मरान नहीं चाहते कि इस क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढ़े। साल 2013 में चीन भारत को पीछे छोड़ नेपाल में सबसे बड़ा निवेशक बन गया था और अब भी वह नेपाल के साथ लगातार ऊर्जा के क्षेत्र में समझौते कर रहा है। जब से यह नाकेबन्दी शुरू हुई है तब से चीन नेपाल की ओर तेल और अन्य ज़रूरी वस्तुओं की सप्लाई करने के लिए समझौते कर रहा है ताकि नेपाल के ऊपर भारतीय इज़ारेदारी को ख़त्म किया जा सके।

दिसम्बर के आख़िरी सप्‍ताह में नेपाली नेतृत्‍व की बीजिंग यात्रा के दौरान दोनों देशों के दरमियान दीर्घकालिक अवधि के लिए तेल सप्लाई के समझौतों पर भी सहमति जतायी गयी। समझौते से पहले ‘नेपाल तेल कार्पोरेशन’ के प्रवक्ता दीपक बराल का कहना था कि “भारत तेल की ज़रूरी सप्लाई नहीं कर रहा, इसीलिए हमारे पास अपने दूसरे पड़ोसी चीन के साथ समझौता किये बिना और कोई रास्ता नहीं है।” चीन की ओर से पिछले कुछ समय से नेपाल के साथ किये जा रहे इन समझौतों के कारण भारतीय हुक़्मरान परेशान हैं। साथ ही, नेपाल की ओर से पारित किये गये नये संविधान में नेपाल को ‘हिन्दू राष्ट्र’ घोषित ना किया जाना भी कहीं न कहीं आरएसएस को चुभ रहा है। इन्हीं कारणों के चलते भारत की ओर से नेपाल के मधेसी लोगों के प्रदर्शनों को अपने हितों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

नेपाल अपनी बुनियादी ज़रूरतों का 60% भारत से आयात करता है। इस समय सभी आयात रुके होने की वजह से नेपाल में तेल, गैस, दवाइयों आदि बुनियादी ज़रूरतों की भारी किल्लत हो गयी है। इस नाकेबन्दी के चलते ट्रांसपोर्ट भी प्रभावित हुआ है, लोग ईंधन के लिए लकड़ी का इस्तेमाल कर रहे हैं, ज़रूरी वस्तुओं की क़ीमतें कई गुना बढ़ गयी हैं, नेपाल की आर्थिक वृद्धि दर तकरीबन 2% सिकुड़ गयी है और नेपाल के प्रमुख अस्पतालों में दवाइयाँ ख़त्म हो रही हैं व ज़रूरी टेस्ट और ऑपरेशन भी आगे डाले जा रहे हैं। नेपाल मेडिकल संघ के डा. मुक्ति राम श्रेष्ठ ने बताया कि अस्पताल सर्जरियों को कई-कई हफ़्ते आगे तक टाल रहे हैं और मरीज़ों को दवाई हासिल करने में बेहद कठिनाई हो रही है। उन्होंने कहा, “यदि यह समस्या जारी रहती है तो मरीज़ अगले दो हफ़्तों तक मरने शुरू हो सकते हैं।” साथ ही उन्होंने जोड़ा कि भारतीय सरकार उन मार्गों से भी माल की सप्लाई नहीं कर रही जहाँ कोई प्रदर्शन नहीं हो रहे।

इस तरह हम देख सकते हैं कि किस तरह भारतीय हुक़्मरान नेपाल के अन्दरूनी मामलों में दख़लन्दाज़ी कर रहे हैं और इसके चलते इस छोटे से पड़ोसी देश के लोगों को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। नेपाल के अन्दरूनी मामलों में भारत की बढ़ती यह दख़लन्दाज़ी, वैश्विक स्तर पर तीखे हो रहे उन्हीं भू-राजनीतिक तनावों का उदाहरण है जिनके चलते आज मज़दूर वर्ग के सामने युद्ध एक वास्तविक चुनौती बनकर उभर रहा है।


मज़दूर बिगुल
, जनवरी 2016


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments