Category Archives: कला-साहित्‍य

कहानी – ला सियोतात का सिपाही / बर्टोल्ट ब्रेष्ट Story – The Soldier of La Ciotat / Bertolt Brecht

पहले विश्व युद्ध के बाद, दक्षिणी फ्रांस के छोटे-से बन्दरगाह वाले शहर ला सियोतात में एक जहाज़ को पानी में उतारे जाने के जश्न के दौरान, हमने चौक में एक फ्रांसीसी सिपाही की काँसे की प्रतिमा देखी जिसके इर्दगिर्द भीड़ जमा थी। हम नज़दीक गये तो देखा कि वह एक जीवित व्यक्ति था। वह धूसर रंग का ग्रेटकोट पहने था, सिर पर टिन का टोप था, और जून की गर्म धूप में वह संगीन ताने चबूतरे पर बिल्कुल स्थिर खड़ा था। उसकी एक भी पेशी हिलडुल नहीं रही थी, पलकें तक नहीं फड़क रही थीं।

हरियाणवी रागनी – दौर-ए-संकट / रामधारी खटकड़

किसान परिवार में जन्मे रामधारी खटकड़ हरियाणा की मेहनतकश जनता की बुलन्द आवाज़ के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। ये काव्य की रागनी/रागिनी या रागणी की विशिष्ट हरियाणवी शैली में लिखते हैं। इनकी कविताई बड़े ही सहज-सरल और साफ़गोई के साथ सामाजिक यथार्थ को प्रस्तुत करने में सक्षम है।

महेश्वर की कविता : वे

वे
जब विकास की बात करते हैं
तबाही के दरवाजे़ पर
बजने लगती है शहनाई

  कहते हैं – एकजुटता

  और गाँव के सीवान से

  मुल्क की सरहदों तक

  उग आते हैं काँटेदार बाड़े

कविता – यही मौका है / नवारुण भट्टाचार्य 

ग़रीब अब गहरे जाल में फँस गए हैं
वे नहीं जानते कि उनके साथ लेनिन है या लोकनाथ
वे नहीं जानते कि गोली चलेगी या नहीं!
वे नहीं जानते कि गाँव-शहर में कोई उन्हें नहीं चाहता

कविता – अधिनायक / रघुवीर सहाय

राष्ट्र गीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है।

कविता – 26 जनवरी, 15 अगस्त… – नागार्जुन

किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है!
कौन यहाँ सुखी है, कौन यहाँ मस्त है!
सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्त है
मन्त्री ही सुखी है, मन्त्री ही मस्त है
उसी की है जनवरी, उसी का अगस्त है!

कहानी – हड़ताल / मक्सिम गोर्की Story – Strike / Maxim Gorky

कुछ हाथापाई और झगड़ा हुआ, लेकिन अचानक धूल से लथपथ दर्शकों की सारी भीड़ हिली-डुली, चीखी-चिल्लायी और ट्राम की पटरियों की ओर भाग चली। पनामा टोपी पहने हुए व्यक्ति ने टोपी सिर से उतारी, उसे हवा में उछाला, हड़ताली का कंधा थपथपाकर तथा ऊँची आवाज़ में उसे प्रोत्साहन के कुछ शब्द कहकर सबसे पहले उसके निकट लेट गया।

सच और साहस – दो दाग़िस्तानी क़िस्से / रसूल हमज़ातोव

शिखरों पर हज़ारों बरसों का जीवन है। वहाँ नायकों, वीरों, कवियों, बुद्धिमानों और सन्त-साधुओं के अमर और न्यायपूर्ण कृत्य, उनके विचार, गीत और अनुदेश जीवित रहते हैं। चोटियों पर वह रहता है जो अमर है और पृथ्वी की तुच्छ चिन्ताओं से मुक्त है।

वाचन संस्‍कृति – मेहनतकशों और मुनाफाखोरों के शासन में फर्क

आखिरकार इतना फ़र्क क्यों है? क्यों एक ऐसा देश जहाँ 1917 की क्रांति से पहले 83% लोग अनपढ़ थे वह महज़ 3 दशकों के अंदर ही दुनिया का सब से पढ़ने-लिखने वाला देश बन गया और क्यों भारत, जिस को कि आज़ाद हुए 70 साल हो गए हैं, वहाँ अभी भी पढ़ने की संस्कृति बेहद कम है? फ़र्क दोनों देशों की सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक  व्‍यवस्‍था का है। फ़र्क भारत के पूंजीवाद और सोवियत यूनियन के समाजवाद का है।

कविता : हत्यारों की शिनाख़्त / लेस्ली पिंकने हिल

तो उन्होंने चुपचाप उस पर हमला किया
और उसे खींच ले गये;
इतना मुश्किल था उनका षडयन्त्र
कि सरकार ने दिन-दहाड़े
क़ानून और व्यवस्था के जिन प्रहरियों
के हाथ उसे सौंपा था
उनको पता तक नहीं चला।