Category Archives: शिक्षा और रोज़गार

विकराल बेरोज़गारी : ज़ि‍म्मेदार कौन? बढ़ती आबादी या पूँजीवादी व्यवस्था?

पिछले 15 अगस्त को देश के 72वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर से दहाड़ते हुए लम्बा-चौड़ा भाषण दिया और देश की “अल्पज्ञानी” जनता को ज्ञान के नये-नये पाठ पढ़ाये! इस बार माननीय प्रधानमंत्री जी ने ‘भारी जनसंख्या विस्फोट’ को लेकर विशेष चिन्ता भी ज़ाहिर की और उन्होंने जनता को ही इसके लिए ज़ि‍म्मेदार ठहराया।

आधुनिकीकृत मदरसा और शिक्षक बर्बादी और बदहाली के कगार पर

मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से शिक्षा तंत्र बुरी तरह से चौपट किया जा रहा है। इसका एक नमूना आधुनिकीकृत मदरसे भी हैं। ग़ौरतलब है कि 1992 में केन्द्र सरकार द्वारा मदरसों के आधुनिकीकरण हेतु उनमें हिन्दी, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान आदि आधुनिक शिक्षा देने के लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा मानदेय पर शिक्षकों की व्यवस्था की गयी। इन आधुनिकीकृत मदरसों के शिक्षकों के मानदेय के लिए एक छोटा-सा अंश राज्य सरकार को और बाक़ी केन्द्र सरकार को देना था। राज्य सरकार द्वारा ग्रेजुएट शिक्षकों को 2000 रुपये एवं पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षकों को 3000 रुपये जैसी मामूली राशि मानदेय के रूप में वहीं केन्द्र सरकार द्वारा ग्रेजुएट शिक्षकों को 6000 एवं पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षकों को 12000 प्रतिमाह दी जाने की व्यवस्था की गयी थी।

भीषण बेरोज़गारी और तबाही झेलती दिल्ली की मज़दूर आबादी

दिल्ली में 29 औद्योगिक क्षेत्र हैं, जिनमें अधिकतर छोटे व मध्यम आकार के कारख़ाने हैं। इन औद्योगिक क्षेत्रों में दिल्ली की कुल 80 लाख मज़दूर आबादी का बड़ा हिस्सा काम करता है। इसके अलावा निर्माण से लेकर लोडिंग, कूड़ा बीनने व अन्य ठेके पर काम हेतु तमाम इलाक़ों में लेबर चौ‍क पर मज़दूर खड़े रहते हैं। परन्तु आज इन सभी इलाक़ों में कामों में सुस्ती छायी हुई है, बल्कि यह मन्दी पिछले तीन सालों से छायी है। देश एक बड़े आर्थिक संकट की आगोश में घिर रहा है और इन इलाक़ों में काम की परिस्थिति और बिगड़ने जा रही है।

मोदी राज में बेरोज़गारी चरम पर पहुँची

युवाओं को कहीं बड़े स्तर पर बेरोज़गारी का सामना करना पड़ रहा है। वित्तीय वर्ष 2017-18 में 15 से 29 वर्षीय युवाओं में शहरी क्षेत्र में बेरोज़गारी दर 22.95 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र में 15.5 प्रतिशत थी। शहरी क्षेत्र के पुरुष युवाओं में यह दर 18.7 प्रतिशत और महिला युवाओं में 27.2 प्रतिशत थी। ग्रामीण क्षेत्र में पुरुष युवा 17.4 प्रतिशत और महिला युवा 13.6 प्रतिशत की दर से बेरोज़गारी का सामना कर रहे थे।

‘बसनेगा’ नमूना सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी – तेज़ी से बढ़ रही है बेरोज़गारी

‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून’ अभियान, बसनेगा द्वारा आयोजित एक प्रेस वार्ता में 20 फ़रवरी को ‘बसनेगा’ की नमूना सर्वेक्षण की रिपोर्ट का प्रो. अनिल सदगोपाल, प्रो. अरुण कुमार और प्रो. सतीश देशपाण्डे द्वारा लोकार्पण किया गया। मीडिया के सामने बेरोज़गारी के असल हालात को रखा गया।

जनता के पास नौकरी नहीं और सरकार बहादुर के पास नौकरियों के आँकड़े नहीं!

आज देश के नौजवानों के सामने सबसे बड़ी समस्या रोज़गार की है। इतना तो हम सभी जानते हैं कि किसी भी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा की कोई कमी नहीं है। एक-एक नौकरी के पीछे हज़ारों-हज़ार आवेदन किये जाते हैं। पर नौकरी तो कुछ थोड़े ही लोगों को मिलती है। हर साल इन आवेदन करने वालों की संख्या बढ़ती जाती है। इस तरीक़े से बेरोज़गारी साल दर साल भयंकर रूप से बढ़ रही है। कांग्रेस के समय में बेरोज़गारी यदि दुलकी चाल से चल रही थी तो अब भाजपा के समय में सरपट दौड़ रही है।

राजधानी दिल्ली में 3 मार्च को बसनेगा अभियान का दूसरा पड़ाव – ‘रोज़गार अधिकार रैली’ में कई राज्यों से हज़ारों की जुटान

पिछली 3 मार्च 2019 के दिन देश की राजधानी दिल्ली में हज़ारों आँगनवाड़ी कर्मियों, औद्योगिक मज़दूरों, छात्रों, युवाओं, घरेलू कामगारों और न्यायपसन्द नागरिकों ने रोज़गार अधिकार रैली निकाली। रोज़गार के मुद्दे पर आयोजित रोज़गार अधिकार रैली का यह दूसरा पड़ाव था। पहला पड़ाव था 25 मार्च 2018 का। ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून’ (बसनेगा) अभियान के मीडिया प्रभारी योगेश स्वामी ने बताया कि देश के अलग-अलग हिस्सों में बसनेगा पारित कराने के लिए विभिन्न संगठनों और यूनियनों के कार्यकर्त्ताओं की टोलियाँ पिछले काफ़ी समय से प्रचार कार्य में जुटी हुई थी। 3 मार्च की विशाल रैली इसी का परिणाम थी। रोज़गार अधिकार रैली के माध्यम से सत्ता के सामने अपने हक़ का मुक्का तो ठोंका ही गया, इसके साथ ही यह सन्देश भी गया कि देश की जनता नक़ली मुद्दों पर लड़ने की बजाय असली मुद्दों को उठाकर उन पर एकजुट संघर्ष खड़े करना भी जानती है। दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार में कार्यरत विभिन्न यूनियनों और जन-संगठनों ने दिलोजान से रोज़गार अधिकार रैली के आयोजन में ताक़त झोंकी।

13 पॉइण्ट रोस्टर सिस्टम और शिक्षा एवं रोज़गार के लिए संघर्ष की दिशा का सवाल

आरक्षित वर्ग की शिक्षा और नौकरियों में भागीदारी वैसे ही कम हो रही है, ऊपर से यदि 13 पॉइण्ट रोस्टर सिस्टम लागू होता है तो यह आरक्षित श्रेणियों के ऊपर होने वाला कुठाराघात साबित होगा। पहले ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ी जातियों से सम्बन्धित नौकरियों के बैकलॉग तक पारदर्शिता के साथ नहीं भरे जाते, ऊपर से अब 13 पॉइण्ट रोस्टर सिस्टम थोप दिया गया! इसकी वजह से नौकरियों में लागू किये गये आरक्षण या प्रतिनिधित्व की गारण्टी का अब कोई मतलब नहीं रह जायेगा। यही कारण है कि तमाम प्रगतिशील और दलित व पिछड़े संगठन 13 पॉइण्ट रोस्टर सिस्टम का विरोध कर रहे हैं। निश्चित तौर पर आरक्षण के प्रति शासक वर्ग की मंशा वह नहीं थी जिसे आमतौर पर प्रचारित किया जाता है। आरक्षण भले ही एक अल्पकालिक राहत के तौर पर था किन्तु यह अल्पकालिक राहत भी ढंग से कभी लागू नहीं हो पायी।

सरकारी स्कूलों को सोचे-समझे तरीक़े से ख़त्म करने की साजि़श

आज भारत के किसी भी राज्य में सरकारी स्कूलों के हालात अच्छे नहीं हैं। वैसे तो देश में सरकारी स्कूलों को ख़त्म करने की योजना 1990 के पहले से ही शुरू हो गयी थी। लेकिन 1990 के दशक की नव उदारवादी नीतियाँ जो देश में लागू हुईं, उसके बाद देश में पूँजीपति वर्ग की नुमाइन्दगी करने वाली किसी भी सरकार के लिए इस मुहिम को आगे बढ़ाना और भी ज़्यादा आसान काम हो गया। अब पूँजी के लिए बाज़ार खोल दिया गया और शिक्षा को भी एक बाज़ारू माल बनाने की पहलक़दमी शुरू हो गयी। अब सरकारी स्कूलों को प्लान तरीक़े से ख़त्म करने के साथ-साथ प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा दिया जाने लगा।

बेरोज़गारी की विकराल स्थिति और सरकारी जुमलेबाज़ियाँ व झूठ

काम का अधिकार वास्तव में जीने का अधिकार है। अगर आपके पास पक्का रोज़गार नहीं है, तो आपका जीवन आर्थिक और सामाजिक रूप से असुरक्षित है। देश में आज बेरोज़गारी की हालत चार दशकों में सबसे ख़राब है। एक ओर सरकार और उसका ज़रख़रीद कॉरपोरेट मीडिया अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर पर तालियाँ बजा रहे हैं, तो दूसरी ओर देश के आम मेहनतकश लोग बेरोज़गारी के कारण ख़ाली थालियाँ बजा रहे हैं।