Category Archives: शिक्षा और रोज़गार

बेरोज़गारी की विकराल स्थिति और सरकारी जुमलेबाज़ियाँ व झूठ

काम का अधिकार वास्तव में जीने का अधिकार है। अगर आपके पास पक्का रोज़गार नहीं है, तो आपका जीवन आर्थिक और सामाजिक रूप से असुरक्षित है। देश में आज बेरोज़गारी की हालत चार दशकों में सबसे ख़राब है। एक ओर सरकार और उसका ज़रख़रीद कॉरपोरेट मीडिया अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर पर तालियाँ बजा रहे हैं, तो दूसरी ओर देश के आम मेहनतकश लोग बेरोज़गारी के कारण ख़ाली थालियाँ बजा रहे हैं।

दिल्ली में 3 मार्च 2019 को रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक आयोजित होगी ‘रोज़गार अधिकार रैली’

रोज़गार के मसले पर जनता की लामबन्दी आज बेहद ज़रूरी है। तमाम सरकारें सरकारी नौकरियों को निगल रही हैं। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार जनता को रोज़गार उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी से पूरी तरह से विमुख हो चुकी है। देश के प्रधानमन्त्री युवाओं को पकौड़े तलने का पाठ पढ़ा रहे हैं! और गन्दे नाले के ऊपर बर्तन रखकर उससे गैस सप्लाई करके चाय बनाने के गुर सिखा रहे हैं! सरकार में बैठे तमाम मन्त्री रोज़गार उपलब्धता के मामले में ऊल-जुलूल बातें बना रहे हैं, किन्तु असल बात यह है कि जनता पर बेरोज़गारी की भयंकर मार पड़ी है। रोज़गार के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।

मराठा आरक्षण के मायने

पिछले दो-तीन सालों में गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं आन्ध्र प्रदेश में भी इस तरह के आन्दोलन हुए। जिसमें उभरती मँझोली किसान जातियों ने आरक्षण की माँग उठायी है। जिसके तहत गुजरात में पाटीदार, हरि‍याणा में जाट, आन्ध्र प्रदेश में कापू शामिल हैं। महाराष्ट्र में ऐतिहासिक तौर पर मराठा, कुनबी और माली जाति कृषि पृष्ठभूमि से तालुक़ात रखती हैं। जहाँ 20वीं सदी में कुनबी और मराठा जाति अपने आपको क्षत्रिय के तौर पर स्थापित करने के लिए लड़ रहे थे। आज बदली हुई आर्थिक परिस्थितियों में अपने सामाजिक स्थिति में बदलाव के तौर पर अपने आपको पिछड़े वर्ग के तौर पर शामिल करने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़ों को दिये गये 10 प्रतिशत आरक्षण के मायने

नौकरियों की हालत देखी जाये तो हाल-फ़िलहाल रेलवे पुलिस फ़ोर्स के 10,000 पदों के लिए 95 लाख आवेदन प्राप्त हुए हैं! उससे पहले उत्तर प्रदेश में चपरासी के 62 पदों के लिए 93,000 आवेदन आये थे तथा 5वीं पास की योग्यता होने के बावजूद आवेदकों में क़रीब 5,400 पीएचडी थे! हरेक भर्ती का यही हाल है। सरकारी महकमों में लाखों पद पहले ही ख़ाली पड़े हैं, आरक्षण जैसे मुद्दे उछालकर अपने वोट बैंक के हित साधने की बजाय सरकारों को सबसे पहले तो इन ख़ाली पदों को भरना चाहिए। आज के समय आरक्षण का मुद्दा वोट बैंक को साधने के लिए एक ज़रिया बन चुका है। आर्थिक तौर पर ग़रीब सामान्य वर्ग के सामने 10 प्रतिशत आरक्षण का लुकमा फेंककर भाजपा ने एक और तो जनता का ध्यान असल सवालों से भटकाने का प्रयास किया है तथा दूसरा सामान्य वर्ग और ख़ासतौर पर स्वर्ण जातियों में अपने खिसकते जनाधार को रोकने का एक हताशाभरा क़दम उठाया है।

भगतसिंह के जन्मदिवस के दिन लखनऊ में शिक्षा-रोज़गार अधिकार अभियान ने दी पहली दस्तक

उत्तर प्रदेश में शिक्षा और रोज़गार की बिगड़ती हालत पर सरकार का ध्यान खींचने के इरादे से प्रदेशभर के छात्रों-युवाओं और नागरिकों ने शहीदेआज़म भगतसिंह के जन्मदिवस के अवसर पर 28 सितम्बर को राजधानी लखनऊ में सरकार के दरवाज़े पर दस्तक दी। नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन और जागरूक नागरिक मंच की ओर से चलाये जा रहे शिक्षा-रोज़गार अधिकार अभियान के 10 सूत्री माँगपत्रक को प्रदेशभर से जुटाये गये हज़ारों हस्ताक्षरों के साथ उपज़ि‍लाधिकारी के माध्यम से मुख्यमन्त्री को सौंपा गया। शिक्षा एवं रोज़गार से जुड़े सवालों पर प्रदेश में आन्दोलनरत विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि भी इस अवसर पर प्रदर्शन में शामिल हुए और सरकार को चेतावनी दी कि बेरोज़गारी के प्रति सरकारी उपेक्षा एवं दमन का रवैया प्रदेश में एक विस्फोटक स्थिति को जन्म दे सकता है।

बेरोज़गारी की भयावह होती स्थिति

सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़ 2014 से लेकर 2016 के बीच दो सालों में देश के 26 हज़ार 500 युवाओं ने आत्महत्या की। 20 साल से लेकर 30-35 साल के युवा डिप्रेशन के शिकार हो जा रहे हैं, व्यवस्था नौजवानों को नहीं जीने नहीं दे रही है। बड़े होकर बड़ा आदमी बनाने का सामाजिक दबाव, माँ-बाप, नाते-रिश्तेदार सभी लोग एक ही सुर में गा रहे हैं। जिस उम्र में नौजवानों को देश-दुनिया की परिस्थितियों, ज्ञान-विज्ञान और प्रकृति से परिचित होना चाहिए, बहसों में भाग लेना चाहिए, उस समय नौजवान तमाम शैक्षिक शहरों में अपनी पूरी नौजवानी एक रोज़गार पाने की तैयारी में निकाल दे रहे हैं और फिर भी रोज़गार मिल ही जायेगा, इसकी कोई गारण्टी नहीं हैं। ऐसे में छात्र-नौजवान असुरक्षा और सामाजिक दबाव को नहीं झेल पा रहे हैं। एडमिशन न मिलने, किसी परीक्षा में सफल न होने पर आये दिन छात्र-नौजवान आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसी घटनाओं की बाढ़-सी आ गयी है।

मदरसा आधुनिकीकरण के ढोल की पोल – 50 हज़ार मदरसा शिक्षक 2 साल से तनख़्वाह से महरूम

अगर मोदी सरकार वाक़ई मदरसों में आधुनिक व वैज्ञानिक शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध होती तो वह मदरसों में हिन्दी, अंग्रेज़ी, गणित, कम्प्यूटर और विज्ञान जैसे विषयों को पढ़ाने के लिए नये शिक्षकों की भर्ती करती। परन्तु नये शिक्षकों को भर्ती करना तो दूर उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, झारखण्ड सहित 16 राज्यों में मदरसों में आधुनिक व वैज्ञानिक शिक्षा प्रदान करने के लिए नियुक्त किए गये करीब 50 हज़ार शिक्षकों को पिछले 2 सालों से केन्द्र सरकार ने कोई वेतन या मानदेय ही नहीं दिया है।

उत्तर प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के सिर पर लटकती छँटनी की तलवार

कहा जा रहा है कि काम न करने वाले और भ्रष्ट कर्मचारियों को बाहर करने के लिए यह आदेश लाया जा रहा है। लेकिन पिछले वर्षों के दौरान ऐसे आदेशों की गाज किन कर्मचारियों पर गिरी है इसे जानने वाले अच्छी तरह समझते हैं कि वास्तव में भ्रष्ट और निकम्मे कर्मचारियों पर इससे कोई विशेष आँच नहीं आयेगी, लेकिन किसी न किसी रूप में कमज़ोर, अरक्षित कर्मचारियों को जबरन रिटायर करके छँटनी की योजना पर अमल किया जायेगा। आदेश में यह भी कहा गया है कि 50 वर्ष से अधिक का कोई भी कर्मचारी ख़ुद भी रिटायरमेण्ट के लिए आवेदन दे सकता है।

अम्बानी का जियो इंस्टीट्यूट – पैदा होने से पहले ही मोदी ने तोहफ़ा दे दिया!

असल मामला कुछ और ही है जिसको लोगों के सामने नहीं आने दिया जा रहा है। पूँजीवादी अर्थिक संकट के इस दौर में जब हर सेक्टर लगभग सन्तृप्त हो चुका है और मुनाफ़े की दर में लगातार हो रही गिरावट की वजह से पूँजीपति वर्ग परेशान है, तब पूँजी निवेश के लिए अलग-अलग सेक्टरों की तलाश की जा रही है। लेकिन पूँजी की प्रचुरता के कारण नये सेक्टर भी बहुत जल्दी सन्तृप्त हो जा रहे हैं। ऐसे में पूँजीपति वर्ग सरकार पर दबाव बनाती है कि शिक्षा, चिकित्सा जैसे बुनियादी चीज़ों को भी बाज़ार के हवाले कर दिया जाये। जिओ इंस्टीट्यूट खोलने के पीछे की असली बात यह है कि रिलायंस के द्वारा कारपोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी के मद का जो पैसा समाज कल्याण के लिए ख़र्च किया जाना चाहिए, उसे भी पूँजी के रूप में निवेश करके मुनाफ़ा पीटना चाहता है।

उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में शिक्षा-रोज़गार अधिकार अभियान ने गति पकड़ी

लाखों नौजवान नौकरी की तलाश में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र अपने जीवन के सबसे शानदार दिनों को मुर्गी के दरबे नुमा कमरों में किताबों का रट्टा मारते हुए बिता देने के बाद भी अधिकांश छात्रों को हताशा-निराशा ही हाथ लगती है। बहुत सारे छात्रों के परिजन अपनी बहुत सारी बुनियादी ज़रूरतों तक में कटौती कर के पाई-पाई जोड़ करके किसी तरह अपने बच्चों को एक नौकरी के लिए बेरोज़गारी के रेगिस्तान में उतार देते हैं। लेकिन अधिकांश युवा रोज़गार की इस मृग-मारीचिका में भटकते रहते हैं। रोज़गार की स्थिति यह है कि एक अनार तो सौ बीमार। कुछ सौ पदों के लिए लाखों-लाख छात्र फॉर्म भरते हैं। पद इतने कम हैं कि आने वाले पचास सालों में आज जितने बेरोज़गार युवा हैं उनको रोज़गार नहीं दिया जा सकता।