Category Archives: शिक्षा और रोज़गार

‘बसनेगा’ नमूना सर्वेक्षण की रिपोर्ट जारी – तेज़ी से बढ़ रही है बेरोज़गारी

‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून’ अभियान, बसनेगा द्वारा आयोजित एक प्रेस वार्ता में 20 फ़रवरी को ‘बसनेगा’ की नमूना सर्वेक्षण की रिपोर्ट का प्रो. अनिल सदगोपाल, प्रो. अरुण कुमार और प्रो. सतीश देशपाण्डे द्वारा लोकार्पण किया गया। मीडिया के सामने बेरोज़गारी के असल हालात को रखा गया।

जनता के पास नौकरी नहीं और सरकार बहादुर के पास नौकरियों के आँकड़े नहीं!

आज देश के नौजवानों के सामने सबसे बड़ी समस्या रोज़गार की है। इतना तो हम सभी जानते हैं कि किसी भी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा की कोई कमी नहीं है। एक-एक नौकरी के पीछे हज़ारों-हज़ार आवेदन किये जाते हैं। पर नौकरी तो कुछ थोड़े ही लोगों को मिलती है। हर साल इन आवेदन करने वालों की संख्या बढ़ती जाती है। इस तरीक़े से बेरोज़गारी साल दर साल भयंकर रूप से बढ़ रही है। कांग्रेस के समय में बेरोज़गारी यदि दुलकी चाल से चल रही थी तो अब भाजपा के समय में सरपट दौड़ रही है।

राजधानी दिल्ली में 3 मार्च को बसनेगा अभियान का दूसरा पड़ाव – ‘रोज़गार अधिकार रैली’ में कई राज्यों से हज़ारों की जुटान

पिछली 3 मार्च 2019 के दिन देश की राजधानी दिल्ली में हज़ारों आँगनवाड़ी कर्मियों, औद्योगिक मज़दूरों, छात्रों, युवाओं, घरेलू कामगारों और न्यायपसन्द नागरिकों ने रोज़गार अधिकार रैली निकाली। रोज़गार के मुद्दे पर आयोजित रोज़गार अधिकार रैली का यह दूसरा पड़ाव था। पहला पड़ाव था 25 मार्च 2018 का। ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून’ (बसनेगा) अभियान के मीडिया प्रभारी योगेश स्वामी ने बताया कि देश के अलग-अलग हिस्सों में बसनेगा पारित कराने के लिए विभिन्न संगठनों और यूनियनों के कार्यकर्त्ताओं की टोलियाँ पिछले काफ़ी समय से प्रचार कार्य में जुटी हुई थी। 3 मार्च की विशाल रैली इसी का परिणाम थी। रोज़गार अधिकार रैली के माध्यम से सत्ता के सामने अपने हक़ का मुक्का तो ठोंका ही गया, इसके साथ ही यह सन्देश भी गया कि देश की जनता नक़ली मुद्दों पर लड़ने की बजाय असली मुद्दों को उठाकर उन पर एकजुट संघर्ष खड़े करना भी जानती है। दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार में कार्यरत विभिन्न यूनियनों और जन-संगठनों ने दिलोजान से रोज़गार अधिकार रैली के आयोजन में ताक़त झोंकी।

13 पॉइण्ट रोस्टर सिस्टम और शिक्षा एवं रोज़गार के लिए संघर्ष की दिशा का सवाल

आरक्षित वर्ग की शिक्षा और नौकरियों में भागीदारी वैसे ही कम हो रही है, ऊपर से यदि 13 पॉइण्ट रोस्टर सिस्टम लागू होता है तो यह आरक्षित श्रेणियों के ऊपर होने वाला कुठाराघात साबित होगा। पहले ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ी जातियों से सम्बन्धित नौकरियों के बैकलॉग तक पारदर्शिता के साथ नहीं भरे जाते, ऊपर से अब 13 पॉइण्ट रोस्टर सिस्टम थोप दिया गया! इसकी वजह से नौकरियों में लागू किये गये आरक्षण या प्रतिनिधित्व की गारण्टी का अब कोई मतलब नहीं रह जायेगा। यही कारण है कि तमाम प्रगतिशील और दलित व पिछड़े संगठन 13 पॉइण्ट रोस्टर सिस्टम का विरोध कर रहे हैं। निश्चित तौर पर आरक्षण के प्रति शासक वर्ग की मंशा वह नहीं थी जिसे आमतौर पर प्रचारित किया जाता है। आरक्षण भले ही एक अल्पकालिक राहत के तौर पर था किन्तु यह अल्पकालिक राहत भी ढंग से कभी लागू नहीं हो पायी।

सरकारी स्कूलों को सोचे-समझे तरीक़े से ख़त्म करने की साजि़श

आज भारत के किसी भी राज्य में सरकारी स्कूलों के हालात अच्छे नहीं हैं। वैसे तो देश में सरकारी स्कूलों को ख़त्म करने की योजना 1990 के पहले से ही शुरू हो गयी थी। लेकिन 1990 के दशक की नव उदारवादी नीतियाँ जो देश में लागू हुईं, उसके बाद देश में पूँजीपति वर्ग की नुमाइन्दगी करने वाली किसी भी सरकार के लिए इस मुहिम को आगे बढ़ाना और भी ज़्यादा आसान काम हो गया। अब पूँजी के लिए बाज़ार खोल दिया गया और शिक्षा को भी एक बाज़ारू माल बनाने की पहलक़दमी शुरू हो गयी। अब सरकारी स्कूलों को प्लान तरीक़े से ख़त्म करने के साथ-साथ प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा दिया जाने लगा।

बेरोज़गारी की विकराल स्थिति और सरकारी जुमलेबाज़ियाँ व झूठ

काम का अधिकार वास्तव में जीने का अधिकार है। अगर आपके पास पक्का रोज़गार नहीं है, तो आपका जीवन आर्थिक और सामाजिक रूप से असुरक्षित है। देश में आज बेरोज़गारी की हालत चार दशकों में सबसे ख़राब है। एक ओर सरकार और उसका ज़रख़रीद कॉरपोरेट मीडिया अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर पर तालियाँ बजा रहे हैं, तो दूसरी ओर देश के आम मेहनतकश लोग बेरोज़गारी के कारण ख़ाली थालियाँ बजा रहे हैं।

दिल्ली में 3 मार्च 2019 को रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक आयोजित होगी ‘रोज़गार अधिकार रैली’

रोज़गार के मसले पर जनता की लामबन्दी आज बेहद ज़रूरी है। तमाम सरकारें सरकारी नौकरियों को निगल रही हैं। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार जनता को रोज़गार उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी से पूरी तरह से विमुख हो चुकी है। देश के प्रधानमन्त्री युवाओं को पकौड़े तलने का पाठ पढ़ा रहे हैं! और गन्दे नाले के ऊपर बर्तन रखकर उससे गैस सप्लाई करके चाय बनाने के गुर सिखा रहे हैं! सरकार में बैठे तमाम मन्त्री रोज़गार उपलब्धता के मामले में ऊल-जुलूल बातें बना रहे हैं, किन्तु असल बात यह है कि जनता पर बेरोज़गारी की भयंकर मार पड़ी है। रोज़गार के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।

मराठा आरक्षण के मायने

पिछले दो-तीन सालों में गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं आन्ध्र प्रदेश में भी इस तरह के आन्दोलन हुए। जिसमें उभरती मँझोली किसान जातियों ने आरक्षण की माँग उठायी है। जिसके तहत गुजरात में पाटीदार, हरि‍याणा में जाट, आन्ध्र प्रदेश में कापू शामिल हैं। महाराष्ट्र में ऐतिहासिक तौर पर मराठा, कुनबी और माली जाति कृषि पृष्ठभूमि से तालुक़ात रखती हैं। जहाँ 20वीं सदी में कुनबी और मराठा जाति अपने आपको क्षत्रिय के तौर पर स्थापित करने के लिए लड़ रहे थे। आज बदली हुई आर्थिक परिस्थितियों में अपने सामाजिक स्थिति में बदलाव के तौर पर अपने आपको पिछड़े वर्ग के तौर पर शामिल करने की लड़ाई लड़ रहे हैं।

सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़ों को दिये गये 10 प्रतिशत आरक्षण के मायने

नौकरियों की हालत देखी जाये तो हाल-फ़िलहाल रेलवे पुलिस फ़ोर्स के 10,000 पदों के लिए 95 लाख आवेदन प्राप्त हुए हैं! उससे पहले उत्तर प्रदेश में चपरासी के 62 पदों के लिए 93,000 आवेदन आये थे तथा 5वीं पास की योग्यता होने के बावजूद आवेदकों में क़रीब 5,400 पीएचडी थे! हरेक भर्ती का यही हाल है। सरकारी महकमों में लाखों पद पहले ही ख़ाली पड़े हैं, आरक्षण जैसे मुद्दे उछालकर अपने वोट बैंक के हित साधने की बजाय सरकारों को सबसे पहले तो इन ख़ाली पदों को भरना चाहिए। आज के समय आरक्षण का मुद्दा वोट बैंक को साधने के लिए एक ज़रिया बन चुका है। आर्थिक तौर पर ग़रीब सामान्य वर्ग के सामने 10 प्रतिशत आरक्षण का लुकमा फेंककर भाजपा ने एक और तो जनता का ध्यान असल सवालों से भटकाने का प्रयास किया है तथा दूसरा सामान्य वर्ग और ख़ासतौर पर स्वर्ण जातियों में अपने खिसकते जनाधार को रोकने का एक हताशाभरा क़दम उठाया है।

भगतसिंह के जन्मदिवस के दिन लखनऊ में शिक्षा-रोज़गार अधिकार अभियान ने दी पहली दस्तक

उत्तर प्रदेश में शिक्षा और रोज़गार की बिगड़ती हालत पर सरकार का ध्यान खींचने के इरादे से प्रदेशभर के छात्रों-युवाओं और नागरिकों ने शहीदेआज़म भगतसिंह के जन्मदिवस के अवसर पर 28 सितम्बर को राजधानी लखनऊ में सरकार के दरवाज़े पर दस्तक दी। नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन और जागरूक नागरिक मंच की ओर से चलाये जा रहे शिक्षा-रोज़गार अधिकार अभियान के 10 सूत्री माँगपत्रक को प्रदेशभर से जुटाये गये हज़ारों हस्ताक्षरों के साथ उपज़ि‍लाधिकारी के माध्यम से मुख्यमन्त्री को सौंपा गया। शिक्षा एवं रोज़गार से जुड़े सवालों पर प्रदेश में आन्दोलनरत विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि भी इस अवसर पर प्रदर्शन में शामिल हुए और सरकार को चेतावनी दी कि बेरोज़गारी के प्रति सरकारी उपेक्षा एवं दमन का रवैया प्रदेश में एक विस्फोटक स्थिति को जन्म दे सकता है।