Category Archives: शिक्षा और रोज़गार

उत्तराखण्ड मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन के पहले चरण की शुरुआत

देश की 46 करोड़ मज़दूर आबादी में 43 करोड़ मज़दूर बिना किसी क़ानूनी और सामाजिक सुरक्षा के असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं। आज सरकारी और अर्द्धसरकारी विभागों में भी दैनिक संविदा और ठेके के तहत कर्मचारियों को रखा जा रहा है जिनके ऊपर हमेशा छटनी की तलवार लटकी रहती है। जबकि सरकार का यह दायित्व बनता है कि वह सभी कार्य कर सकने वाले नागरिकों को स्थायी रोज़गार को गारण्टी दे।

उत्तर प्रदेश में शिक्षा और रोज़गार की बदहाली के विरुद्ध तीन जनसंगठनों का राज्यव्यापी अभियान

प्रदेश में सरकारें आती-जाती रही हैं लेकिन आबादी के अनुपात में रोज़गार के अवसर बढ़ने के बजाय कम होते जा रहे हैं। सरकारी नौकरियाँ नाममात्र के लिए निकल रही हैं, नियमित पदों पर ठेके से काम कराये जा रहे हैं और ख़ाली होने वाले पदों को भरा नहीं जा रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को बन्द करने या निजी हाथों में बेचने का सिलसिला जारी है। भारी दबाव में जो भर्तियाँ घोषित भी होती हैं, उन्हें तरह-तरह से वर्षों तक लटकाये रखा जाता है, भर्ती परीक्षाएँ होने के बाद भी पास होने वाले उम्मीदवारों को नियुक्तियाँ नहीं दी जातीं! करोड़ों युवाओं के जीवन का सबसे अच्छा समय भर्तियों के आवेदन करने, कोचिंग व तैयारी करने, परीक्षाएँ और साक्षात्कार देने में चौपट हो जाता है, इनके आर्थिक बोझ से परिवार की कमर टूट जाती है।

दुनिया में सबसे अधिक बेरोज़गारों वाला देश बना भारत

देश पर राज कर रहे जुमला-नरेशों की बातों पर मत जाइये। कौवा कान ले गया की तर्ज़ पर कोई किसी के ख़िलाफ़ आपको भड़का दे तो आँखों पर पट्टी बाँधकर आग में कूदने मत लगिये। देश-समाज और अपनी ज़िन्दगी की असली तस्वीर को पहचानिये और असली सवालों पर लड़ने की तैयारी करिये। वरना कल तक बचाने के लिए कुछ बचेगा ही नहीं!

“रामराज्य” में राजस्थान में पसरी भयंकर बेरोज़गारी!

राजस्थान में पिछले 7 सालों में मात्र 2.55 लाख  सरकारी नौकरियाँ निकलीं और इनके लिए 1 करोड़ 8 लाख 23 हज़ार आवेदन किये गये यानी कि हर पद के लिए 44 अभ्यर्थियों के बीच मुकाबला हुआ! राजस्थान में हाल ही में रीट की परीक्षा हुई जिसमें केवल 54 हज़ार पद थे (शुरू में केवल 34 हज़ार पद थे जो कि चुनावी साल होने के कारण चालाकी से बढ़ाये गये) और लगभग 10 लाख नौजवानों ने परीक्षा दी। लेकिन उसमें भी भर्ती अटक गयी क्योंकि राजस्थान सरकार की काहिली के कारण पेपर आउट हो गया। क्लर्क ग्रेड परीक्षा में 6 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने परीक्षा दी थी। पुलिस कांस्टेबल 2017 की परीक्षा में 5500 पद थे जिसके लिए 17 लाख आवेदन आये यानी कि एक पद के लिए 310 लोगों ने आवेदन किया।

दिल्ली में बेरोज़गारी के गम्भीर हालात बयान करते आँकड़े

मोदी सरकार ने 2014 के चुनाव से पहले यह वादा किया था कि वो हर साल 2 करोड़ रोज़गार पैदा करेगी। लेकिन सत्ता में आने के बाद वही मोदी आज देश की ग़रीब और बेरोज़गार आबादी से पकौड़े तलने को कह रहे हैं। दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल ने भी चुनाव से पहले दिल्ली की जनता से 5 साल में 8 लाख नौकरियाँ पैदा करने और 55,000 रिक्त सरकारी पदों को भरने का चुनावी वादा किया था। लेकिन हक़ीक़त यह है कि 15-16 फ़रवरी 2018 को दिल्ली सरकार द्वारा आयोजित रोज़गार मेले में बेरोज़गारों के अनुपात में न के बराबर नौकरियों के अवसर पेश किये गये।

लगातार बढ़ती मज़ूदरों की असुरक्षा

भारत जैसे देश में जहाँ 90 प्रतिशत से ज़्यादा मज़दूर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने को मजबूर हैं, मज़ूदरों का जीवन तमाम कि़स्मे की असुरक्षाओं से घिरा रहता है। वैकल्पिक रोज़गार की अनुपलब्धता, वेतन की कमी व अनियमितता, छँटनी का ख़तरा, कार्यस्थल पर सुरक्षा उपकरणों की कमी, अपर्याप्त स्वास्थ्य   सुविधाएँ, आवास की तंगी और सामाजिक असुरक्षा उनके जीवन के जोखिम को लगातार बढ़ाती रहती हैं। कार्यस्थल पर बदसलूकी, भेदभाव और महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएँ लगातार बढ़ती रही हैं।

देश के विभिन्न राज्यों में ज़ोरों-शोरों से चलाया जा रहा है ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून’ अभियान

देश-भर के नौजवानों के सामने बेरोज़गारी की समस्या आज मुँहबाए खड़ी है। इसकी ज़िम्मेदारी सरकार को लेनी ही होगी। इस मक़सद से ही बसनेगा अभियान का बिगुल फूँका गया है। बसनेगा अभियान की मुख्य माँगों में संविधान में संशोधन करके रोज़गार को मूलभूत अधिकारों में शामिल करने और हर नागरिक को रोज़गार की गारण्टी देने की माँग शामिल हैं। रोज़गार की गारण्टी न दे पाने की सूरत में 10,000 रुपये प्रति माह बेरोज़गारी भत्ता, ठेका प्रथा तत्काल प्रभाव से समाप्त करने, रिक्त पदों की जल्द से जल्द भर्ती करने आदि की माँगों को लेकर बसनेगा अभियान पूरी सघनता से देश के कई शहरों में चलाया जा रहा है।

बढ़ती बेरोज़गारी और सत्ताधारियों की बेशर्मी

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार बेरोज़गारी की बढ़ती दर के मामले में भारत 8.0 प्रतिशत की दर के साथ एशिया में पहले स्थान पर पहुँच गया है। उप-राष्ट्रपति के पद को शोभायमान कर रहे वंकैया नायडू ने हालिया दिनों में बयान दिया था कि सभी को सरकारी नौकरी नहीं दी जा सकती व स्वरोज़गार भी काम ही है तथा साथ ही कह दिया कि चुनाव में हर पार्टी रोज़गार देने जैसे वायदे कर ही दिया करती है, तो कहने का मतलब भाजपा ने भी तो इसी गौरवशाली परम्परा को ही आगे बढ़ाया है!

बेरोज़गारी क्यों पैदा होती है और इसके विरुद्ध संघर्ष की दिशा क्या हो

बेहिसाब तकलीफ़ें, बदहाली और मौत लेकर आने वाली इस भयंकर समस्या से मज़दूर वर्ग कैसे लड़ सकता है? इस सवाल के जवाब से पहले यह ज़रूरी है कि समस्या को अच्छी तरह समझ लिया जाये, और उन शक्तियों को जान लिया जाये जो यह संकट पैदा करती हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में राजस्थान सरकार की नंगई

इस मसले का एक अन्य पहलू यह भी है कि एक मोटे आंकलन के अनुसार इन 300 स्कूलों से क़रीब 15000 अध्यापकों के पद समाप्त हो जायेंगे। इतना तो पहले चरण में ही हो रहा है, दूसरे-तीसरे चरण के आते-आते लाखों अध्यापकों के पद समाप्त होना तय है। यानी नयी अध्यापक भर्तियाँ भी बन्द होंगी। साथ ही साथ इन 300 स्कूलों को पीपीपी के अन्तर्गत ला देने से क़रीब 2.50 लाख छात्र स्कूल छोड़ने पर मजबूर हो जायेंगे। कहा जा सकता है कि शिक्षा को बिकाऊ माल बना देने की इस नीति से बड़े ठेकेदारों के तो ख़ूब वारे-न्यारे हैं, परन्तु ग़रीब तबक़े के छात्रों के लिए शिक्षा हासिल करना दूभर हो जायेगा।