Category Archives: शिक्षा और रोज़गार

बेरोज़गारी का गहराता संकट

बेरोज़गारी की समस्या साल दर साल विकराल रूप लेती जा रही है। स्थाई रोज़गार पाना तो जैसे शेख़चिल्ली के सपने जैसा हो गया है। देश में करोड़ों पढ़े-लिखे डिग्रीधारक युवा नौकरी ना मिलने के चलते अवसाद का शिकार हो रहे हैं। रोज़ ही नौजवानों की आत्महत्या की ख़बरें आ रही हैं। आज देश के नौजवानों के बीच रोज़गार सबसे ज्वलन्त मुद्दा है। विश्वविद्यालय और कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों, दिल्ली व कोटा जैसे महानगरों में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लगे युवाओं, छोटे क़स्बों और गाँव तक में नौजवानों का बस एक ही लक्ष्य होता है कि किसी भी तरीक़े से कोई छोटी-मोटी सरकारी नौकरी मिल जाये ताकि उनकी और उनके परिवार की दाल-रोटी का काम चलता रहे। आप सभी अपने अनुभव से यह बात जानते ही हैं कि स्थायी नौकरियाँ साल दर साल कम हो रही हैं। एक-एक नौकरी के पीछे हज़ारों हज़ार आवेदन किये जाते हैं, पर नौकरी तो मुट्ठीभर लोगों को ही मिलती है। इस प्रकार हर साल लाखों क़ाबिल नौजवान बेरोज़गारों की भीड़ में शामिल हो रहे हैं और सिवाय अपने भाग्य को कोसने के अलावा उन्हें कोई दूसरा विकल्प नही दिखाई पड़ता।

मेहनतकश और युवा आबादी पर टूटता बेरोज़गारी का क़हर

1990 के दशक में निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों के लागू होने के बाद से ही बेरोज़गारी का संकट भयंकर होता जा रहा है। फ़ासिस्टों के “अच्छे दिन” और “रामराज्य” में बेरोज़गारी सुरसा की तरह मुँह खोले नौजवानों को लीलती जा रही है। इलाहाबाद, पटना, कोटा, जयपुर जैसे शहर छात्रों-युवाओं के लिए क़ब्रगाह बन चुके हैं। हालात इतने बदतर हो चले हैं कि अकेले अप्रैल के महीने में इलाहाबाद में लगभग 35 छात्रों ने आत्महत्या कर ली। एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक़ 2019 की तुलना में 2020 में 18-45 साल की उम्र के युवाओं की आत्महत्या में 33 फ़ीसदी का इजाफ़ा हुआ है, जोकि 2018 से 2019 के बीच 4 फ़ीसदी था। ये महज़ आँकड़े नहीं हैं बल्कि देश की जीती-जागती तस्वीर है। ये आत्महत्याएँ नहीं, बल्कि मानवद्रोही मुनाफ़ा-केन्द्रित पूँजीवादी व्यवस्था के हाथों की गयी निर्मम हत्याएँ हैं।

हरियाणा में राजकीय मॉडल संस्कृति स्कूल का मतलब शिक्षा का और बाज़ारीकरण

पिछले दिनों हरियाणा में खट्टर सरकार ने शिक्षा के बाज़ारीकरण के लिए एक और क़दम उठाया।
ज्ञात हो कि हरियाणा प्रदेश में लगभग 1000 से ज़्यादा प्राथमिक स्कूलों को मॉडल संस्कृति स्कूल में बदलने का फ़ैसला लिया गया था। इस वर्ष से मॉडल संस्कृति स्कूल में छात्रों से एडमिशन फ़ीस 500 रुपये व हर माह 200 रुपये फ़ीस का प्रावधान किया गया है जो सीधे तौर पर ‘शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009’ के तहत मिलने वाली मुफ़्त शिक्षा के अधिकार का उल्लघंन है। हम जानते हैं कि ‘शिक्षा अधिकार अधिनियम-2009’ की धारा (3) में 6-14 वर्ष की उम्र के प्रत्येक बच्चे को अपने पड़ोस के स्कूल (नेबरहुड स्कूल) में निशुल्क व अनिवार्य प्रारम्भिक शिक्षा पाने का पूरा अधिकार है। साथ ही धारा (6) में भी स्पष्ट किया गया है कि कक्षा 1-5 तक के लिए 1 किलोमीटर के दायरे में स्कूल स्थापित करना सरकार की ज़िम्मेदारी है।

उपराष्ट्रपति महोदय, हम बताते हैं कि “शिक्षा के भगवाकरण में ग़लत क्या है”!

हाल ही में देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि शिक्षा के भगवाकरण में बुरा क्या है और लोगों को अपनी औपनिवेशिक मानसिकता छोड़कर शिक्षा के भगवाकरण को स्वीकार कर लेना चाहिए। लेकिन सच्चाई तो यह है कि सारे भगवाधारी उपनिवेशवादियों के चरण धो-धोकर सबसे निष्ठा के साथ पी रहे थे और इनके नेता और विचारक अंग्रेज़ों से क्रान्तिकारियों के बारे में मुख़बिरी कर रहे थे और माफ़ीनामे लिख रहे थे। इसलिए अगर औपनिवेशिक मानसिकता को छोड़ने की ही बात है, तो साथ में भगवाकरण भी छोड़ना पड़ेगा क्योंकि भगवाकरण करने वाली ताक़तें तो अंग्रेज़ों की गोद में बैठी हुई थीं और उन्होंने आज़ादी की लड़ाई तक में अंग्रेज़ों के एजेण्टों का ही काम किया था।

शान्तिश्री धुलिपुड़ी पण्डित की नियुक्ति, यानी जेएनयू पर आरएसएस-भाजपा का हमला जारी रहेगा!

इलाहाबाद में संगम के बग़ल में बसी हुई मज़दूरों-मेहनतकशों की बस्ती में विकास के सारे दावे हवा बनकर उड़ चुके हैं। आज़ादी के 75 साल पूरा होने पर सरकार अपने फ़ासिस्ट एजेण्डे के तहत जगह-जगह अन्धराष्ट्रवाद की ख़ुराक परोसने के लिए अमृत महोत्सव मना रही है वहीं दूसरी ओर इस बस्ती को बसे 50 साल से ज़्यादा का समय बीत चुका है लेकिन अभी तक यहाँ जीवन जीने के लिए बुनियादी ज़रूरतें, जैसे पानी, सड़कें, शौचालय, बिजली, स्कूल आदि तक नहीं हैं।

बेरोज़गारी के भयंकर होते हालात और रेलवे के अभ्यर्थी छात्रों का आन्दोलन

बिहार और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में रेलवे के एन.टी.पी.सी. के अभ्यार्थी आन्दोलनरत हैं। ज्ञात हो 24 जनवरी को बिहार के पटना, आरा व दरभंगा ज़िले में हज़ारों छात्रों ने बड़े स्तर पर रेल रोको आन्दोलन किया। उसके बाद से यह आन्दोलन अन्य राज्यों में भी फैल गया! लेकिन चूँकि मुख्य रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश के ही छात्रों ने एन.टी.पी.सी. का फ़ॉर्म भरा था, तो ख़ासकर इन राज्यों में छात्रों का आन्दोलन उग्र होता गया। 24 जनवरी को राजेन्द्र नगर टर्मिनल पर और आरा स्टेशन पर क़रीब 7 घण्टे तक छात्रों ने रेलवे को जाम कर दिया।

हरियाणा के निजी क्षेत्र के रोज़गार में 75 प्रतिशत स्थानीय आरक्षण के मायने

गत 15 जनवरी से राज्य में ‘हरियाणा स्टेट एम्प्लॉयमेण्ट ऑफ़ लोकल कैण्डिडेट्स एक्ट, 2020’ को लागू कर दिया है। इस एक्ट के अनुसार हरियाणा राज्य के निजी क्षेत्र में 75 फ़ीसदी नौकरियाँ प्रदेश के निवासियों के लिए आरक्षित कर दी गयी हैं। निजी क्षेत्र में आरक्षण को लागू करने वाला हरियाणा दूसरा राज्य है, इससे पहले आन्ध्रप्रदेश ने प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण लागू कर रखा है। इस एक्ट के लागू होने के बाद, अब हरियाणा में निकलने वाली ऐसी निजी भर्तियाँ जिनमें सकल वेतन 30,000 रुपये से कम होगा, उनमें नियोक्ताओं को 75% नौकरियाँ हरियाणा के निवासियों को देनी होंगी। हरियाणा के उप-मुख्यमंत्री दुष्यन्त चौटाला इसे एक ऐतिहासिक फ़ैसला बता रहे हैं।

हरियाणा में बेरोज़गारी के भयंकर होते हालात!

सेण्टर फ़ॉर मॉनिटरिंग इण्डियन इकॉनमी (सीएमआईई) के ताज़ा आँकड़ों के अनुसार देश बेरोज़गारी की भयंकर दलदल में धँसता जा रहा है। सितम्बर 2021 में आये अगस्त माह के आँकड़ों के अनुसार देश में बेरोज़गारी की दर 8.3 प्रतिशत तक पहुँच गयी है। वहीं दूसरी ओर हरियाणा में बेरोज़गारी की दर 35.7 प्रतिशत तक जा पहुँची है जोकि देश के किसी भी राज्य में सबसे ज़्यादा और राष्ट्रीय बेरोज़गारी दर के चार गुणे से भी अधिक है। रोज़गार की इतनी बुरी स्थिति होने के बावजूद भी हरियाणा की खट्टर सरकार बड़ी ही बेशर्मी के साथ अपनी पीठ थपथपा रही है कि उसने हरियाणा के नौजवानों को रोज़गार दिये हैं!

राजस्‍थान में प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर आउट, बेरोज़गार युवाओं के साथ छलावा

राजस्‍थान में 2018 के विधानसभा चुनाव में युवाओं को नौकरी देने के नाम पर कांग्रेस पार्टी सत्ता में आयी। लेकिन कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार ने आम जनता व युवाओं को छलावे के सिवा कुछ नहीं दिया। पूरे कोरोना काल में राज्‍य सरकार का कुप्रबन्धन हावी रहा। राजस्‍थान में पेट्रोल और डीज़ल पर वैट की दर सबसे अधिक है। युवाओं और बेरोज़गारों को उम्‍मीद थी कि गहलोत सरकार नयी भर्तियाँ निकालेगी व युवाओं को रोज़गार के अवसर उपलब्‍ध करायेगी।

उत्तर प्रदेश में “विकास” और रोज़गार के योगी के दावे बनाम असलियत

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार केन्द्र की मोदी सरकार के नक़्शे क़दम पर चलती नज़र आ रही है। ‘चोर मचाये शोर’ की बात चरितार्थ होते दिख रही है। बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स लगाकर, सारे प्रमुख अख़बारों में विज्ञापन देकर सरकार चार साल के कारनामों को हर जनता तक पहुँचा देना चाहती है। 2017 के चुनावी घोषणापत्र को देखने पर ऐसा लगता है कि अब विकास की गंगा यूपी में हिलोरे मारेगी। एक दरबारी ने तो योगी को भगवा समाजवादी तक घोषित कर दिया।