Category Archives: पर्यावरण

पृथ्वी पर बढ़ती गर्मी और जलवायु परिवर्तन : पूँजीपतियों के मुनाफ़े की बलि चढ़ रही है हमारी धरती

हर दिन पहले से ज़्यादा भीषण होते लू, शीत लहर, बाढ़, सूखा और खाद्य संकट के पीछे का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग है। ग्लोबल वार्मिंग पूँजीवादी व्यवस्था की पैदावार है। पूँजीवादी व्यवस्था को इसकी कोई परवाह नहीं है कि पृथ्वी का तापमान और कार्बन उत्सर्जन जानलेवा स्तर तक बढ़ता जा रहा है। इसे सिर्फ़ अपने मुनाफ़े की चक्की को चलाते रहना है। मुनाफ़े के लिए गलाकाटू प्रतिस्पर्धा में लगे पूँजीपतियों और उनकी चाकरी कर रही तमाम बुर्जुआ सरकारों तथा पार्टियों से हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे प्रकृति की तबाही को रोकने के लिए कोई सकारात्मक क़दम उठायेंगे।

देश में भयंकर गर्मी और पानी तथा बिजली के संकट का मुख्य कारण क्या है?

पिछले दो महीनों से भारतीय उपमहाद्वीप विशेषतः उत्तरी भारत तथा पाकिस्तान के मैदानी इलाके भीषण गर्मी और लू की चपेट में हैं। कड़ी गर्मी और लू के कारण इस साल मई के मध्य तक भारत और पाकिस्तान में 90 से ज़्यादा लोगों की मौत चुकी है। यह महज़ सरकारी आँकड़ा है और यह तय है कि मौत के असली आँकड़ें इससे कहीं ज़्यादा होंगे। भयंकर गर्मी और लू के साथ-साथ पानी तथा बिजली के संकट ने जनता के रोज़मर्रा के जीवन को बेहाल बना दिया है। हर आपदा की तरह इस आपदा में भी मज़दूर वर्ग और मेहनतकश जनता ही सबसे ज़्यादा तकलीफ़ झेल रही है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर हिमालय की तबाही पर सुप्रीम मुहर

सवाल यह है कि आख़िर मोदी सरकार सड़क को चौड़ा करने के लिए इतना तीन तिकड़म क्यों लगा रही है? इस सवाल का जवाब छिपा है सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के उस क़ानून में जिसमें यह कहा गया है कि दस मीटर से कम चौड़ी सड़कों पर कोई टोल टैक्स नहीं वसूला जा सकता। मोदी सरकार ने इस परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव के मूल्यांकन से बचाव के लिए भी एक तिकड़म लगायी है। 900 किलोमीटर की इस चार धाम परियोजना को सौ किलोमीटर से छोटी तिरपन परियोजनाओं में बाँट दिया गया है ताकि पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन की ज़रूरत ही न पड़े। सौ किलोमीटर से बड़ी परियोजनाओं के लिए ही पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करना ज़रूरी होता है।

सी.ओ.पी-26 की नौटंकी और पर्यावरण की तबाही पर पूँजीवादी सरकारों के जुमले

बीते 31 अक्टूबर से 13 नवम्बर तक स्कॉटलैण्ड के ग्लासगो में ‘कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (सीओपी) 26’ का आयोजन किया गया। पर्यावरण की सुरक्षा, कार्बन उत्सर्जन और जलवायु संकट आदि से इस धरती को बचाने के लिए क़रीब 200 देशों के प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए। कहने के लिए पर्यावरण को बचाने के लिए इस मंच से बहुत ही भावुक अपीलें की गयीं, हिदायतें दी गयीं, पर इन सब के अलावा पूरे सम्मेलन में कोई ठोस योजना नहीं ली गयी है। (ज़ाहिर है कि ये सब करना इनका मक़सद भी नहीं था।)

पर्यावरण और मज़दूर वर्ग

हर साल की तरह इस बार भी इस मौसम में दिल्ली-एनसीआर एक गैस चैम्बर बन गया है जिसमें लोग घुट रहे हैं। दिल्ली और आसपास के शहरों में धुँआ और कोहरा आपस में मिलकर एक सफ़ेद चादर की तरह वातावरण में फैला हुआ है, जिसमें हर इन्सान का साँस लेना दूभर हो रहा है। ‘स्मोक’ और ‘फॉग’ को मिलाकर इसे दुनियाभर में ‘स्मॉग’ कहा जाता है। मुनाफ़े की अन्धी हवस को पूरा करने के लिए ये पूँजीवादी व्यवस्था मेहनतकशों के साथ-साथ प्रकृति का भी अकूत शोषण करती है, जिसका ख़ामियाज़ा पूरे समाज को जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण व ध्वनि प्रदूषण के रूप में भुगतना पड़ता है।

200 मेहनतकशों की जान लेने वाली चमोली दुर्घटना सरकार और व्यवस्था की पैदाइश है!

पिछली 7 फ़रवरी की सुबह चमोली ज़िले के ऋषिगंगा हाइड्रो इलेक्ट्रिक पॉवर प्रोजेक्ट पर काम कर रहे मज़दूरों की दिनचर्या सामान्य दिनों की तरह ही शुरू हो गयी थी। क़रीब 30-35 मज़दूर वहाँ काम कर रहे थे। लेकिन काम के एक घण्टे बाद ही सब कुछ बदल गया। वहाँ मशीन पर काम कर रहे एक मज़दूर कुलदीप पटवार को ऊपर पहाड़ से धूल और गर्द का एक बड़ा ग़ुबार नीचे आता हुआ दिखायी दिया।

विकृत विकास का क़हर : फेफड़ों में घुलता ज़हर

हर साल की तरह सर्दियाँ ठीक से शुरू होने के पहले ही दिल्ली और आसपास के शहरों में धुँआ और कोहरा आपस में मिलकर सड़कों और घरों पर एक स्लेटी चादर की तरह पसर गये और लोगों का साँस लेना दूभर हो गया। ‘स्मोक’ और ‘फॉग’ को मिलाकर इसे दुनिया भर में ‘स्मॉग’ कहा जाता है। हिन्दी में धुँआ और कुहासा को जोड़कर ‘धुँआसा’ भी कहा जा सकता है। यह जाड़े के दिनों की स्थायी समस्या है जो साल-दर-साल गम्भीर होती जा रही है।

बढ़ता हुआ प्रदूषण और घुटती हुई आबादी

बढ़ता हुआ प्रदूषण और घुटती हुई आबादी – डॉ. नवमीत दीवाली के अगले दिन से ही भारत के तमाम शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत ज्‍़यादा हो गया है।…

पूँजी के राक्षसी जबड़ों से धरती और पर्यावरण को बचाना होगा

50 डिग्री गरमी के बाद एयरकण्डीशनर काम करना बन्द कर देते हैं। 52 डिग्री तापमान होने के बाद चिड़ियाँ मर जाती हैं। 55 डिग्री तापमान होने पर इंसान का ख़ून उबल जाता है और इंसान मर जाता है। सारी दुनिया में गर्मी बढ़ती जा रही है। जंगलों को काटना इसकी सबसे बड़ी वजहों में से एक है। आप सरकार चुनते हैं ताकि सरकार जंगलों को काटने वाले लोगों पर रोक लगाये। लेकिन अगर सरकार ही जंगल कटवाये तो तापमान को 55 डिग्री होने से कौन रोक सकता है।

मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल : पर्यावरण विनाशक नीतियों के निरंकुश विस्तार और उसके भयावह परिणामों के लिए तैयार रहें

कुछ महीने पहले वैश्विक पर्यावरण सूचकांक की एक रिपोर्ट आयी जिसके अनुसार दुनिया के 180 देशों में पर्यावरण के क्षेत्र में किये गये प्रदर्शन के आधार पर भारत को 177वाँ पायदान दिया गया। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट ने विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में 15 भारतीय शहरों को रखा।