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पर्यावरणीय विनाश के लिए ज़िम्मेदार पूँजीपति वर्ग और उसकी मार झेलती मेहनतकश आबादी

मुट्ठीभर पूँजीपतियों ने मुनाफ़े की होड़ में जलवायु संकट को इतने भयानक स्तर पर पहुँचा दिया है कि पूँजीवादी दाता एजेंसियों के टुकड़ों पर पलने वाले ऑक्सफ़ैम जैसे एनजीओ को भी आज यह लिखना पड़ रहा है कि “करोड़पतियों की लूट और प्रदूषण ने धरती को विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। समूची इंसानियत आज अत्यधिक गर्मी, बाढ़ और सूखे से दम तोड़ रही है।” इस रिपोर्ट ने एक बार फिर यह दिखा दिया है कि पर्यावरण को बचाने का हमारा संघर्ष समाज में चल रहे आम वर्ग संघर्ष का ही एक हिस्सा है। पर्यावरण के क्षेत्र में चल रहे इस वर्ग संघर्ष में भी हम मज़दूर वर्ग को ही नेतृत्वकारी भूमिका निभानी होगी।

उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य जगहों में भीषण गर्मी और लू से हुई मौतें : ये महज़ प्राकृतिक आपदा नहीं पूँजीवाद की देन हैं!

आज जलवायु परिवर्तन के विकराल होते रूप ने समूची मानवजाति के अस्तित्व को ख़तरे में डाल दिया है। लेकिन तात्कालिक तौर पर जलवायु परिवर्तन से सबसे ज़्यादा नुक़सान मेहनतकशों का ही होता है। झुलसा देने वाली लू, कड़ाके की ठण्ड, बेमौसम मूसलाधार बारिश, नियमित सूखा, बाढ़ और चक्रवात आदि आपदाओं से तात्कालिक बचाव के लिए पूँजीपतियों, धन्नासेठों, धनी किसानों और नेता मन्त्रियों के पास पर्याप्त संसाधन होते हैं। लेकिन हम मेहनतकश जो कारख़ानों, खेतों और निर्माण परियोजनाओं में काम करते हैं, बेलदारी करते हैं, डिलीवरी सर्विस में लगे हैं, रेहड़ी-खोमचे लगाकर पेट पालते हैं, हम इन आपदाओं से कैसे बचेंगे? ‘मैकिंसी ग्लोबल इन्स्टीट्यूट’ के हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत के 75 प्रतिशत मज़दूर, यानी 38 करोड़ मज़दूर, भीषण गर्मी के कारण शारीरिक तनाव झेलते हैं। लू के जानलेवा प्रभाव से निपटने के लिए सरकार का मुख्य नीतिगत उपकरण है हीट एक्शन प्लान। अब तक सिर्फ़ केन्द्र सरकार, कुछ राज्यों और शहरों ने अपने हीट एक्शन प्लान बनाये हैं। जलवायु विशेषज्ञों ने इन नीतिगत योजनाओं में कई बुनियादी ख़ामियों पर विस्तार से लिखा है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मेहनतकश वर्ग इन हीट एक्शन प्लान से पूरी तरह ग़ायब हैं। इन योजनाओं में यह नहीं बताया जाता है कि ग़रीब और मेहनतकश आबादी लू से किस तरह प्रभावित होती है और इससे बचने के लिए उन्हें क्या विशेष सुविधाएँ मिलनी चाहिए।

चीन की तानाशाह सत्ता के ख़िलाफ़ सड़कों पर उमड़ा जनाक्रोश

पिछले महीने चीन की सरकार की लॉकडाउन नीतियों के ख़िलाफ़ चीन की सड़कों पर मज़दूरों और नौजवानों का ग़ुस्सा फूट पड़ा। विरोध प्रदर्शन उत्तर पश्चिमी प्रान्त शिनजांग के उरूमची शहर से शुरू होकर, शेनज़न, शंघाई, बीजिंग, वुहान जैसे बड़े शहरों तक फैल गया। 24 नवम्बर को उरुमची शहर के एक अपार्टमेण्ट में आग लगने के कारण 10 लोगों की मौत हो गयी थी। यह दुर्घटना चीन के विभिन्न शहरों में विरोध प्रदर्शनों का तात्कालिक कारण बना। लोगों का कहना है कि देश में ग़ैर-जनवादी सख़्त लॉकडाउन नीतियों के कारण अग्निशमन विभाग द्वारा अपार्टमेण्ट में फँसे लोगों को बचाया नहीं जा सका।

द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से आम मेहनतकश आदिवासियों की जीवन स्थिति में कोई बदलाव आयेगा?

हाल ही में हुए राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू जीत हासिल कर भारत की 15वीं राष्ट्रपति बन गयी हैं। राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू ने विपक्ष के उम्मीदवार यशवन्त सिन्हा (जो पहले ख़ुद भाजपा के वरिष्ठ नेता और कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं) को भारी मतों से परास्त किया। इस तरह द्रौपदी मुर्मू देश के सर्वोच्च संवैधानिक ओहदे पर बैठने वाली दूसरी महिला और प्रथम आदिवासी बन गयीं। द्रौपदी मुर्मू ओड़िशा के मयूरभंज ज़िले के रायरंगपुर शहर से आती हैं और सन्थाल जनजाति से ताल्लुक़ रखती हैं।

पृथ्वी पर बढ़ती गर्मी और जलवायु परिवर्तन : पूँजीपतियों के मुनाफ़े की बलि चढ़ रही है हमारी धरती

हर दिन पहले से ज़्यादा भीषण होते लू, शीत लहर, बाढ़, सूखा और खाद्य संकट के पीछे का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग है। ग्लोबल वार्मिंग पूँजीवादी व्यवस्था की पैदावार है। पूँजीवादी व्यवस्था को इसकी कोई परवाह नहीं है कि पृथ्वी का तापमान और कार्बन उत्सर्जन जानलेवा स्तर तक बढ़ता जा रहा है। इसे सिर्फ़ अपने मुनाफ़े की चक्की को चलाते रहना है। मुनाफ़े के लिए गलाकाटू प्रतिस्पर्धा में लगे पूँजीपतियों और उनकी चाकरी कर रही तमाम बुर्जुआ सरकारों तथा पार्टियों से हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वे प्रकृति की तबाही को रोकने के लिए कोई सकारात्मक क़दम उठायेंगे।

देश में भयंकर गर्मी और पानी तथा बिजली के संकट का मुख्य कारण क्या है?

पिछले दो महीनों से भारतीय उपमहाद्वीप विशेषतः उत्तरी भारत तथा पाकिस्तान के मैदानी इलाके भीषण गर्मी और लू की चपेट में हैं। कड़ी गर्मी और लू के कारण इस साल मई के मध्य तक भारत और पाकिस्तान में 90 से ज़्यादा लोगों की मौत चुकी है। यह महज़ सरकारी आँकड़ा है और यह तय है कि मौत के असली आँकड़ें इससे कहीं ज़्यादा होंगे। भयंकर गर्मी और लू के साथ-साथ पानी तथा बिजली के संकट ने जनता के रोज़मर्रा के जीवन को बेहाल बना दिया है। हर आपदा की तरह इस आपदा में भी मज़दूर वर्ग और मेहनतकश जनता ही सबसे ज़्यादा तकलीफ़ झेल रही है।

यूक्रेन में जारी साम्राज्यवादी युद्ध का विरोध करो!

दो साम्राज्यवादी ख़ेमों की आपसी प्रतिस्पर्धा की क़ीमत विश्व की आम जनता एक बार फिर चुका रही है। एक ओर साम्राज्यवादी रूस और दूसरी ओर साम्राज्यवादी अमेरिका के नेतृत्व में नाटो (उत्तरी अटलाण्टिक सन्धि संगठन)। इन दोनों साम्राज्यवादी ख़ेमों की आपसी प्रतिस्पर्धा में यूक्रेन की जनता युद्ध की भयंकर आग में झुलस रही है। 24 फ़रवरी को साम्राज्यवादी रूस ने यूक्रेन पर युद्ध की घोषणा कर दी। इस घोषणा ने रूस और अमेरिका के नेतृत्व में नाटो के बीच महीनों से चल रहे वाकयुद्ध को वास्तविक युद्ध में बदल दिया है, हालाँकि नाटो इस युद्ध से किनारे हो गया है और यूक्रेन की जनता पर रूसी साम्राज्यवाद को क़हर बरपा करने के लिए खुला हाथ दे दिया है।

गिनी में तख़्तापलट : निरंकुश सरकारों और सैन्य तानाशाहों के बीच लम्बे समय से पिस रही है अफ़्रीकी जनता

पश्चिमी अफ़्रीका के देश गिनी में एक बार फिर तख़्तापलट हो गया है। 5 सितम्बर को ‘गिनी विशेष बल’ ने राष्ट्रपति अल्फ़ा कोण्डे को हिरासत में लेते हुए यह ऐलान किया कि देश की हुकूमत अब इनके हाथों में है और अब संविधान रद्द रहेगा। कर्नल मामाडी डौम्बौया, जिसके नेतृत्व में यह तख़्तापलट हुआ है, ने ख़ुद को गिनी का नया राष्ट्रपति घोषित कर दिया है। पिछले एक साल में पश्चिमी अफ़्रीका में यह चौथा सैन्य तख़्तापलट है। सिर्फ़ पश्चिमी अफ़्रीका ही नहीं बल्कि पूरा अफ़्रीकी महाद्वीप ही अपने उत्तर-औपनिवेशिक काल में भयंकर गृहयुद्धों, सैन्य तख़्तापलट और तानाशाह सत्ताओं से जूझता रहा है।

फ़रीदाबाद औद्योगिक क्षेत्र की एक आरम्भिक रिपोर्ट

आज़ादी के बाद 1949 से फ़रीदाबाद को एक औद्योगिक शहर की तरह विकसित करने का काम किया गया। भारत-पाकिस्तान बँटवारे के समय शरणाथिर्यों को यहाँ बसाया गया था। उस दौर से ही यहाँ छोटे उद्योग-धन्धे विकसित हो रहे थे। जल्द ही यहाँ बड़े उद्योगों की भी स्थापना हुई और 1950 के दशक से इसका औद्योगीकरण और तीव्र विकास आरम्भ हुआ। मुग़ल सल्तनत के काल से ही फ़रीदाबाद दिल्ली व आगरा के बीच एक छोटा शहर हुआ करता था। आज की बात की जाये तो फ़रीदाबाद देश के बड़े औद्योगिक शहरों में नौवें स्थान पर है। फ़रीदाबाद में 8000 के क़रीब छोटी-बड़ी पंजीकृत कम्पनियाँ हैं।

टोक्यो ओलम्पिक में भारत का प्रदर्शन: एक समीक्षा

अगस्त महीने में टोक्यो ओलम्पिक खेलों का समापन हुआ और भारत को इस बार एक स्वर्ण, दो रजत और चार काँस्य पदक मिले हैं। इस प्रकार कुल पदकों की संख्या सात रही है। हर छोटी से छोटी उपलब्धि की तरह मोदी जी इस बार भी मौक़े पर चौका मारने के लिए पहले से ही तैयार बैठे थे। गोदी मीडिया, आईटी सेल और अन्य सभी प्रचार तंत्रों का इस्तेमाल कर मोदी जी देशवासियों के सामने ऐसा स्वांग रच रहे हैं कि देखने वाले को लगता है जैसे मोदी जी ख़ुद ही सातों पदक जीत कर आये हैं! ख़ैर इन लफ़्फ़ाज़ियों और ढोंग को एक किनारे कर ओलम्पिक खेलों में भारत के प्रदर्शन की एक वस्तुपरक समीक्षा करने की ज़रूरत है।