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लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राम रहीम की पैरोल पर रिहाई के मायने

एक तरफ़ देश की जेल में राजनीतिक कैदियों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, एक पैरोल की बात तो दूर उन्हें रहने-खाने बुनियादी सुविधाओं से भी महरूम रखा जाता है, दूसरी तरफ़ बलात्कारी बाबाओं को पैरोल पर पैरोल मिली जाती है। जनता के हक़ की बात करने वाले तमाम बुद्धजीवी और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को बिना चार्ज़शीट के भी सालों साल जेल में रखा जाता है और बीमार पड़ने पर भी बेल नहीं दी जाती। स्टेन स्वामी को आप भूले नहीं होंगे, जिन्हें झूठा आरोप लगा कर यू.ए.पी.ए लगा दिया गया था। जेल की बद्तर परिस्थितियों में रहने के कारण ही उनकी मौत हुई। वहीं राम रहीम जैसा बलात्कार व हत्या का आरोपी खुलेआम समाज में घूमकर भाजपा का प्रचार कर रहा है। सहज़ ही समझा जा सकता है कि फ़ासीवादी हिन्दुत्ववादी भाजपा का ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा महज़ एक ढकोसला है, बल्कि इनका असली नारा है ‘बलात्कारियों के सम्मान में भाजपा मैदान में’।

बढ़ते प्रदूषण की दोहरी मार झेलती मेहनतकश जनता

पूँजीवादी व्यवस्था की बढ़ती हवस के कारण अन्धाधुन्ध अनियन्त्रित धुआँ उगलती चिमनियों के साथ-साथ सड़कों पर हर रोज़ निजी वाहनों की बढ़ती संख्या प्रदूषण के लिए मुख्य तौर पर ज़िम्मेदार है। अकेले दिल्ली में हर रोज़ सड़कों पर लगभग एक करोड़ से भी ज्यादा मोटर वाहन चलते हैं। इसकी मूल वजह पर्याप्त मात्रा में सार्वजनिक परिवहन के साधनों का न होना और पूँजीवादी असमान विकास के कारण पूरे देश से दिल्ली में काम-धन्धे के लिए लोगों का प्रवासन है। इसके कारण दिल्ली शहर पर भारी बोझ है और बढ़ते प्रदूषण में इसका भी योगदान है। यह पूँजीवादी विकास के मॉडल का कमाल है, जो कि व्यापक मेहनतकश आबादी को उसके निवास के करीब गुज़ारे योग्य रोज़गार नहीं मुहैया करा सकता। लाखों लोग दो-दो, तीन-तीन घण्टे सफ़र करके आसपास के शहरों से रोज़ दिल्ली आते हैं और फिर वापस जाते हैं।

दिल्ली में पानी की समस्या से जूझती जनता

केजरीवाल सरकार ने 700 लीटर मुफ़्त पानी देना का जो वायदा किया उसे केवल एक ख़ास वर्ग के लिए निभाया है। एक तरफ़ दिल्ली के मध्यम और उच्च-मध्यम वर्ग की सोसायटी में पानी की दिक्कत होने पर उसे तुरन्त प्रभाव से ठीक कर दिया जाता है। उनके कुत्ते और गाड़ी धोने के लिए भी पर्याप्त पानी सप्लाई किया जाता है। इसके विपरीत दिल्ली के मज़दूर इलाक़ों में पीने के पानी के लिये भी लम्बी कतारें देखने को मिलती हैं। मज़दूर आबादी सप्ताह भर के लिए पानी स्टोर करके रखती है। इस पानी की गुणवत्ता भी पीने लायक नहीं है। इन इलाक़ों में 350 से 450 टीडीएस के बीच पानी की सप्लाई होती है। लेकिन दिल्ली के मज़दूर इलाक़ों में पानी की समस्या के लिए कोई समाधान नहीं किया जाता। मज़दूर इलाक़ों में पानी को लेकर जनता के जुझारू आन्दोलन संगठित करने की आवश्यकता है और इस दिशा में प्रयास चल भी रहे हैं।

जब बस्तियों के किनारे श्मशान बना दिये जायें तो समझो हालात बद से बदतर हो गये हैं

कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने तमाम सरकारों के चेहरे से एक बार नक़ाब उतार दिया है। स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल पट्टी पूरी तरह खुल गयी है। कोरोना महामारी से प्रतिदिन 4000 के क़रीब मौतें हो रही हैं, जो सिर्फ़ सरकारी आँकड़ा है, पर असल में सरकारी आँकड़ों से तीन-चार गुना अधिक मौतें हो रही हैं। मौत न कहकर इनको व्यवस्था द्वारा की गयी हत्या कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। चारों तरफ़ हाहाकार है, लोग ऑक्सीजन, बेड और दवाइयों के लिए भटक रहे हैं। लेकिन केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों ने अपनी ज़िम्मेदारी से हाथ उठा लिये है।