Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

हरियाणा के मज़दूरों के लिए और “अच्छे दिनों” की शुरुआत!

कांग्रेस, भाजपा, इनेलो, बसपा, सपा, माकपा, भाकपा, भाकपा (माले) समेत सभी चुनावी पार्टियों में इस बात की होड़ है कि पूँजीपतियों की सेवा कौन बेहतर करेगा। मौजूदा मन्दी के दौर में पूँजीपति वर्ग के लिए मज़दूरों पर नंगी तानाशाही लागू करने के मामले में भाजपा ने सभी चुनावी मदारियों को पीछे छोड़ दिया है। भाजपा-शासित राज्यों और विशेषकर गुजरात, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मज़दूरों-मेहनतकशों पर देशी-विदेशी पूँजीपतियों की नंगी तानाशाही कायम करके भाजपा ने दिखला दिया है कि पूँजीपति वर्ग को संकट से कुछ राहत देने के लिए वह इस समय सबसे उपयुक्त पार्टी है। इसीलिए देश के पूँजीपतियों ने एकजुट होकर हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च करके पहले देश में और फिर हरियाणा, महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार बनवायी है। पूँजीवादी चुनावों में जीतता वही है जिसके पास पूँजीपतियों का समर्थन होता है क्योंकि इन चुनावों में सारा खेल ही बाहुबल, धनबल और मीडिया का होता है।

नरेन्द्र मोदी का “स्वच्छ भारत अभियान” : जनता को मूर्ख बनाने की नयी नौटंकी

यह एक नौटंकी है जिससे कि जनता को बेवकूफ़ बनाया जा सके, जिसका कि मोदी सरकार के प्रतीकवाद से मोहभंग हो रहा है और जो अब यह समझ रही है कि मोदी सरकार पूँजीपतियों की टुकड़खोर है। वैसे तो हर पूँजीवादी सरकार ही पूँजीपति वर्ग की मैनेजिंग कमेटी का ही काम करती है, लेकिन पूँजीपतियों के सामने दुम हिलाने और उनके तलवे चाटने में मोदी ने अब तक के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिये हैं। अगर पाँच महीने में ही मोदी सरकार की यह हालत है तो फिर आने वाले पाँच सालों में क्या होगा इसका अन्दाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है। लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि मोदी सरकार का यह प्रतीकवाद बहुत दिनों तक काम नहीं करने वाला और अन्ततः उसे अपने नंगे रूप में आना ही है और खुले व बर्बर दमन की नीतियों को अपनाना ही है। मोदी अपना दिखावटी स्वच्छता अभियान चलाकर ख़त्म कर लेगा। लेकिन जनता को भी अपने स्वच्छता अभियान की शुरुआत करनी होगी और भारत के नक्शे और फिर दुनिया के नक्शे से पूँजीवाद-रूपी गन्दगी को अपने बलिष्ठ हाथों से साफ़ करने की तैयारी करनी होगी।

दोनों हाथ मज़दूर को लूटो, बोलो ‘श्रमेव जयते’!

मोदी सरकार झूठ और पाखण्ड के भी सारे रिकॉर्ड तोड़ देने पर आमादा है। बेशर्मी से आँखों में धूल झोंकने की नयी कोशिश में अब इसने नारा दिया है ‘श्रमेव जयते’। चुनाव से पहले देशी पूँजीपतियों से और सत्ता में आने के बाद दुनिया में घूम-घूमकर विदेशी लुटेरों से नरेन्द्र मोदी यही वादे करते रहे हैं कि उनकी पूँजी लगाने और बेरोकटोक मुनाफ़ा पीटने के रास्ते की सभी बाधाओं को उनकी सरकार दूर करेगी। ‘मेक इन इण्डिया’ के नारे का मतलब ही है, आइये, हमारे भारत देश के कच्चे माल और सस्ते श्रम को जमकर लूटिये। कोई अड़चन आये, कोई आवाज़ उठाये, तो हमें बताइये – उसे पीट-पाटकर पटरा करने के लिए आपका यह सेवक हमेशा तैयार रहेगा।

मज़दूर वर्ग के प्रतिरोध को तोड़ने के लिए नरेन्द्र मोदी की रणनीति क्या है?

मज़दूर वर्ग के लिए यह समझना ज़रूरी है कि मोदी की यह फासीवादी सरकार, जो कि मज़दूरों की सबसे बड़ी दुश्मन है, वास्तव में मज़दूर वर्ग को लूटने और आवाज़ उठाने पर दबाने-कुचलने के लिए क्या रणनीति अपना रही है; आख़िर मोदी सरकार की पूरी रणनीति क्या है? क्योंकि तभी मज़दूर वर्ग को भी मोदी सरकार की घृणित चालों का जवाब देने के लिए गोलबन्द और संगठित किया जा सकता है।

नरेन्‍द्र मोदी की जापान यात्रा और मेहनतक़श जनता के लिए इसके निहितार्थ

जापानी कम्‍पनियाँ मज़दूरों की हड्डियाँ निचोड़ने में कितनी बेरहम होती हैं, श्रम कानूनों को किस प्रकार वे ताक पर धर देती हैं और इन कम्‍पनियों के हड़ताली मज़दूरों को कुचलने में भारत सरकार किस प्रकार बर्बर दमन का रुख अपनाकर जापानी साम्राज्‍यवाद की सेवा करती है, यह पिछले वर्षों होण्‍डा, मारुति और कई अन्‍य जापानी कम्‍पनियों में चले मज़दूर संघर्षों के दौरान देखा जा चुका है। आने वाले दिनों में मज़दूरों के अतिशोषण और विरोध में उठने वाली हर आवाज़ के बर्बर दमन का पुख्‍ता इंतजाम मोदी सरकार कर चुकी है और मोदी टोक्‍यो जाकर इसकी पक्‍की गारण्‍टी भी दे आये हैं।

सावधान! कहीं आप मालिकों की भाषा तो नहीं बोल रहे?

देश का पूँजीपति वर्ग राजनीतिक तौर पर बेहद जागरूक और संगठित है। उसे पता है कि अपने वर्ग के आम हितों की रक्षा कैसे की जाती है। अब दारोमदार इस बात पर है कि हमारे देश के मज़दूर भी अपने साझा वर्ग हितों को समझने की शुरुआत कब तक करेंगे। हालांकि इसके समय की भविष्यवाणी करना तो काफ़ी कठिन है लेकिन एक बात तय है कि उनके पास गँवाने के लिए बहुत अधिक वक़्त नहीं है।

श्रम कानूनों में “सुधार” मोदी सरकार का मज़दूरों के अधिकारों पर ख़तरनाक हमला

अभी तीन महीने भी नहीं हुए हैं मोदी सरकार को आये हुए लेकिन आते ही उसने घोषणा कर दी कि श्रम-कानूनों में बड़े बदलाव किये जाएँगे। स्पष्ट है देशी-विदेशी कॉरपोरेट घरानों और पूँजीपतियों के मुनाफे का घोड़ा बेलगाम दौड़ता रहे, इसके लिए जरूरी है कि उनके राह के सबसे बड़े रोड़े को यानी कि रहे-सहे श्रम-कानूनों को भी किनारे लगा दिया जाये। इसका मतलब है कि मजदूरों को श्रम-कानूनों के तहत कम-से-कम काग़जी तौर पर जो हक़ हासिल हैं अब वे भी छीन लिये जाएँगे।

एक बार फिर देश को दंगों की आग में झोंकने की सुनियोजित साजि़श

संघ, भाजपा तथा मोदी भी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि नव-उदारवादी नीतियों ने जिस तरह महँगाई, लगातार कम होती मज़दूरियाँ, बेरोज़गारी और भुखमरी के दानव को खुला छोड़ दिया है उससे त्रस्त जनता एक न एक दिन ज़रूर ही संगठित होकर मैदान में खड़ी हो जायेगी। इसी लिए साम्प्रदायिक फ़ासीवादी ताकतें देशभर में सीमित पैमाने के छोटे-बडे़ दंगे करवा रही हैं। वो चाहते हैं कि मध्यम स्तर का साम्प्रदायिक तनाव समाज में लगातार बना रहे ताकि समय आने पर इसे पूरे ज़ोरों से भड़काया जा सके। इस तरह जनता के गुस्से को झूठा दुश्मन खड़ा करके जनता के ही ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने की फ़ासीवादी सोच काम कर रही है।

हिन्दू दिलों और बुर्जुआ दिमागों को छूकर चीन से होड़ में आगे निकलने की क़वायद

पिछली 3-4 अगस्त के बीच सम्पन्न नरेन्द्र मोदी की दो दिवसीय नेपाल यात्रा को भारत और नेपाल दोनों ही देशों की बुर्जुआ मीडिया ने हाथों हाथ लिया। एक ऐसे समय में जब घोर जनविरोधी नव-उदारवादी नीतियों की वजह से त्राहि-त्राहि कर रही आम जनता में “अच्छे दिनों” के वायदे के प्रति तेजी से मोहभंग होता जा रहा है, मोदी ने नेपाल यात्रा के दौरान सस्ती लोकप्रियता अर्जित करने वाले कुछ हथकण्डे अपनाकर अपनी खोयी साख वापस लाने की कोशिश की। अपनी यात्रा के पहले दिन मोदी ने नेपाल की संसद/संविधान सभा में सस्ती तुकबन्दियों, धार्मिक सन्दर्भों और मिथकों से सराबोर एक लंबा भाषण दिया जिसे सुनकर ऐसा जान पड़ता था मानो एक बड़ा भाई अपने छोटे भाई को अपने पाले में लाने के लिए पुचकार रहा हो और उसकी तारीफ़ के पुल बाँध रहा हो। हीनताबोध के शिकार नेपाल के बुर्जुआ राजनेता इस तारीफ़ को सुन फूले नहीं समा रहे थे। यात्रा के दूसरे दिन मोदी ने पशुपतिनाथ मन्दिर के दर्शन के ज़रिये भारत और नेपाल दोनों देशों में अपनी छवि ‘हिन्दू हृदय सम्राट’ के रूप में स्थापित करने के लिए कुछ धार्मिक एवं पाखण्डपूर्ण टिटिम्मेबाजी की। बुर्जुआ मीडिया भला इस सुनहरे अवसर को कैसे छोड़ सकती थी! मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के बाद यह पहला ऐसा मौका था जब उसे एक बार फिर से मोदी की लोकप्रियता का उन्माद खड़ा करने के लिए मसाला मिला और उसने उसे जमकर भुनाया और अपनी टीआरपी बढ़ायी। नेपाली मीडिया में भी मोदी की नेपाल यात्रा को नेपाल के लोगों के दिल और दिमाग को छू लेने वाला बताया। इस बात में अर्धसत्य है कि मोदी ने नेपाल के लोगों के दिलो-दिमाग को छुआ, पूरी सच्चाई यह है कि दरअसल मोदी ने हिन्दू दिलों और बुर्जुआ दिमागों को छुआ।

जनसंघर्ष को कुचलने के लिए पंजाब सरकार के फासीवादी काले कानून के खिलाफ़ पंजाब की जनता संघर्ष की राह पर

सरकार का मकसद जनता के संघर्षों को कुचलना ही है। केन्द्र व राज्य सरकारों की पूँजीपतियों के पक्ष में लागू की जा रही निजीकरण, उदारीकरण, विश्वीकरण की नीतियों की जनता की हालत बेहद खराब कर दी है। गरीबी, बेरोजगारी, महँगाई तेजी से बढ़ी है। इसके खिलाफ जनता के एकजुट रोष भी बढ़ता जा रहा है। हुक्मरान आने वाले दिनों में उठ खड़े होने वाले भीषण जनान्दोलनों से भयभीत है। जनता की आवाज सुनने की बजाए सरकारें जन आवाज को ही कुचल देना चाहती हैं। इसीलिए अब काले कानून बनाए जा रहे हैं। पंजाब सरकार द्वारा पारित यह नया काला कानून भारतीय हुक्मरानों के घोर जनविरोधी दमनकारी चरित्र को जाहिर करता है।