Category Archives: फ़ासीवाद / साम्‍प्रदायिकता

धार्मिक बँटवारे की साज़िशों को नाकाम करो! पूँजीवादी लूट के ख़िलाफ़ एकता क़ायम करो!

जब तक लोग अपनी स्वतंत्रता का इस्तेमाल करने की ज़हमत नहीं उठायेंगे, तब तक तानाशाहों का राज चलता रहेगा; क्योंकि तानाशाह सक्रिय और जोशीले होते हैं, और वे नींद में डूबे हुए लोगों को ज़ंजीरों में जकड़ने के लिए, ईश्वर, धर्म या किसी भी दूसरी चीज़ का सहारा लेने में नहीं हिचकेंगे।

देखो देखो!

मजदूर हड़ताल पर बैठे हैं
पर यहाँ एक आश्चर्य की बात है
इसमें न तो कोई हिंदू है
और न ही सिख या मुस्लिम
यहाँ सबका एक ही धर्म है
वो है मेहनतकशों का धर्म
देखो-देखो
मजदूर जाग रहे हैं…

जॉयनवादी इज़रायली हत्यारों के संग मोदी सरकार की गलबहियाँ

हालाँकि पिछले दो दशकों में सभी पार्टियों की सरकारों ने इज़रायली नरभक्षियों द्वारा मानवता के खि़लाफ़ अपराध को नज़रअन्दाज़ करते हुए उनके आगे दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, लेकिन हिन्दुत्ववादी भाजपा की सरकार का इन जॉयनवादी अपराधियों से कुछ विशेष ही भाईचारा देखने में आता है। अटलबिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान भी भारत और इज़रायल के सम्बन्धों में ज़बरदस्त उछाल आया था और अब नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद एक बार फिर इस प्रगाढ़ता को आसानी से देखा जा सकता है। नरेन्द्र मोदी और बेंजामिन नेतन्याहू दोनों के ख़ूनी रिकॉर्ड को देखते हुए ऐसा लगता है, मानो ये दोनों एक-दूसरे के नैसर्गिक जोड़ीदार हैं। इस जोड़ी की गर्मजोशी भरी मुलाक़ात सितम्बर में संयुक्त राष्ट्र संघ की जनरल असेम्बली की बैठक के दौरान न्यूयॉर्क में हुई जिसमें नेतन्याहू ने मोदी को जल्द से जल्द इज़रायल आने का न्योता दिया जिसे मोदी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। नेतन्याहू ने यह भी बयान दिया कि “हम भारत से मज़बूत रिश्ते की सम्भावनाओं को लेकर रोमांचित हैं और इसकी सीमा आकाश है।” इज़रायली मीडिया ने नेतन्याहू-मोदी की इस मुलाक़ात को प्रमुखता से जगह दी।

भारत को ‘मैन्युफ़ैक्चरिंग हब’ बनाने के मोदी के सपने के मायने

मोदी सरकार अपनी पूर्ववर्ती सरकारों से सिर्फ़ इस मायने में अलग है कि वह अपने मालिक यानी पूँजीपति वर्ग के सामने कहीं अधिक निर्लज्जता के साथ नतमस्तक होने के लिए तत्पर है। जहाँ पहले सरकारों के प्रधानमन्त्री खुले रूप से पूँजीपतियों से अपने सम्बन्ध उजागर करने से परहेज़ करते थे, नरेन्द्र मोदी पूँजीपतियों से खुलेआम गले मिलते हैं, उनके कार्यक्रमों में शिरकत करते हैं और अपनी मालिक भक्ति की बेहिचक नुमाइश करते हैं। ‘मेक इन इण्डिया’ को औपचारिक रूप से लांच करने के कुछ ही दिनों के भीतर मोदी ने पूँजीपतियों को मुँहमाँगा तोहफ़ा देते हुए उनको तथाकथित ‘इंस्पेक्टर राज’ से मुक्त करने के नाम पर उन्हें इस बात की पूरी छूट देने का ऐलान किया कि वे मुनाफ़े की अपनी अन्धी हवस को पूरा करने की ख़ातिर श्रम क़ानूनों को ताक पर रखकर जितना मर्जी मज़दूरों की हड्डियाँ निचोड़ें, उनकी कोई जाँच-पड़ताल नहीं की जायेगी, उन पर कोई निगरानी नहीं रखी जायेगी। वैसे तो लेबर इंस्पेक्टर की जाँच और निगरानी का पहले भी मज़दूरों के लिए कोई ख़ास मायने नहीं था, लेकिन यदि मज़दूर जागरूक होकर लेबर इंस्पेक्टर पर दबाव बनाते थे तो एक हद तक श्रम क़ानूनों को लागू करवा सकते थे। परन्तु अब कारख़ाना मालिकों को इस सिरदर्द से भी निजात मिल जायेगी, क्योंकि अब उन्हें बस ‘सेल्फ सर्टिफ़ि‍केशन’ देना होगा यानी ख़ुद से ही लिखकर देना होगा कि उनके कारख़ाने में किसी श्रम क़ानून का उल्लंघन नहीं हो रहा। मोदी ने पूँजीपतियों को आश्वासन दिया है कि सरकार उन पर पूरा भरोसा करती है क्योंकि वे देश के नागरिक हैं। ‘श्रमेव जयते’ का पाखण्डपूर्ण नारा देने वाले मोदी से पूछा जाना चाहिए कि क्या मज़दूर इस देश के नागरिक नहीं हैं कि सरकार अब उन पर इतना भी भरोसा नहीं करेगी कि उनकी शिकायतों पर ग़ौर करके कारख़ाना मालिक के खि़लाफ़ कार्रवाई करे।

दिल्ली के चुनाव में वोटों की फसल की कटाई से पहले दंगों की बुवाई

जनता के असली मुद्दों को नजरों से ओझल करके ‘स्वच्छ भारत अभियान’, ‘आदर्श ग्राम योजना’, ‘जन-धन योजना’ आदि जैसी लोकरंजक योजनाओं के साथ-साथ साम्प्रदायिक आधार पर लोगों को बाँटने की कोशिश भरपूर जारी है। इतिहास गवाह है कि जब-जब पूँजीवादी व्यवस्था मन्दी का शिकार होती है तो अलग-अलग रंगों के फ़ासीवादी तारणहार बनकर सामने आते हैं। पूँजीपति अपने मुनाफ़े को बचाने के लिए इन्हीं फासीवादियों का सहारा लेते हैं।

मेहनतकश साथियो! धार्मिक जुनून की धूल उड़ाकर हक़ों पर डाका मत डालने दो!

तेज विकास की राह पर देश को सरपट दौड़ाने के तमाम दावों का मतलब होता है मज़दूरों की लूट-खसोट में और बढ़ोत्तरी। ऐसे ‘विकास’ के रथ के पहिए हमेशा ही मेहनतकशों और गरीबों के ख़ून से लथपथ होते हैं। लेकिन इतिहास इस बात का भी गवाह है कि हर फासिस्ट तानाशाह को धूल में मिलाने का काम भी मज़दूर वर्ग की लौह मुट्ठी ने ही किया है!

हरियाणा के मज़दूरों के लिए और “अच्छे दिनों” की शुरुआत!

कांग्रेस, भाजपा, इनेलो, बसपा, सपा, माकपा, भाकपा, भाकपा (माले) समेत सभी चुनावी पार्टियों में इस बात की होड़ है कि पूँजीपतियों की सेवा कौन बेहतर करेगा। मौजूदा मन्दी के दौर में पूँजीपति वर्ग के लिए मज़दूरों पर नंगी तानाशाही लागू करने के मामले में भाजपा ने सभी चुनावी मदारियों को पीछे छोड़ दिया है। भाजपा-शासित राज्यों और विशेषकर गुजरात, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मज़दूरों-मेहनतकशों पर देशी-विदेशी पूँजीपतियों की नंगी तानाशाही कायम करके भाजपा ने दिखला दिया है कि पूँजीपति वर्ग को संकट से कुछ राहत देने के लिए वह इस समय सबसे उपयुक्त पार्टी है। इसीलिए देश के पूँजीपतियों ने एकजुट होकर हज़ारों करोड़ रुपये ख़र्च करके पहले देश में और फिर हरियाणा, महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार बनवायी है। पूँजीवादी चुनावों में जीतता वही है जिसके पास पूँजीपतियों का समर्थन होता है क्योंकि इन चुनावों में सारा खेल ही बाहुबल, धनबल और मीडिया का होता है।

नरेन्द्र मोदी का “स्वच्छ भारत अभियान” : जनता को मूर्ख बनाने की नयी नौटंकी

यह एक नौटंकी है जिससे कि जनता को बेवकूफ़ बनाया जा सके, जिसका कि मोदी सरकार के प्रतीकवाद से मोहभंग हो रहा है और जो अब यह समझ रही है कि मोदी सरकार पूँजीपतियों की टुकड़खोर है। वैसे तो हर पूँजीवादी सरकार ही पूँजीपति वर्ग की मैनेजिंग कमेटी का ही काम करती है, लेकिन पूँजीपतियों के सामने दुम हिलाने और उनके तलवे चाटने में मोदी ने अब तक के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिये हैं। अगर पाँच महीने में ही मोदी सरकार की यह हालत है तो फिर आने वाले पाँच सालों में क्या होगा इसका अन्दाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है। लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि मोदी सरकार का यह प्रतीकवाद बहुत दिनों तक काम नहीं करने वाला और अन्ततः उसे अपने नंगे रूप में आना ही है और खुले व बर्बर दमन की नीतियों को अपनाना ही है। मोदी अपना दिखावटी स्वच्छता अभियान चलाकर ख़त्म कर लेगा। लेकिन जनता को भी अपने स्वच्छता अभियान की शुरुआत करनी होगी और भारत के नक्शे और फिर दुनिया के नक्शे से पूँजीवाद-रूपी गन्दगी को अपने बलिष्ठ हाथों से साफ़ करने की तैयारी करनी होगी।

दोनों हाथ मज़दूर को लूटो, बोलो ‘श्रमेव जयते’!

मोदी सरकार झूठ और पाखण्ड के भी सारे रिकॉर्ड तोड़ देने पर आमादा है। बेशर्मी से आँखों में धूल झोंकने की नयी कोशिश में अब इसने नारा दिया है ‘श्रमेव जयते’। चुनाव से पहले देशी पूँजीपतियों से और सत्ता में आने के बाद दुनिया में घूम-घूमकर विदेशी लुटेरों से नरेन्द्र मोदी यही वादे करते रहे हैं कि उनकी पूँजी लगाने और बेरोकटोक मुनाफ़ा पीटने के रास्ते की सभी बाधाओं को उनकी सरकार दूर करेगी। ‘मेक इन इण्डिया’ के नारे का मतलब ही है, आइये, हमारे भारत देश के कच्चे माल और सस्ते श्रम को जमकर लूटिये। कोई अड़चन आये, कोई आवाज़ उठाये, तो हमें बताइये – उसे पीट-पाटकर पटरा करने के लिए आपका यह सेवक हमेशा तैयार रहेगा।

मज़दूर वर्ग के प्रतिरोध को तोड़ने के लिए नरेन्द्र मोदी की रणनीति क्या है?

मज़दूर वर्ग के लिए यह समझना ज़रूरी है कि मोदी की यह फासीवादी सरकार, जो कि मज़दूरों की सबसे बड़ी दुश्मन है, वास्तव में मज़दूर वर्ग को लूटने और आवाज़ उठाने पर दबाने-कुचलने के लिए क्या रणनीति अपना रही है; आख़िर मोदी सरकार की पूरी रणनीति क्या है? क्योंकि तभी मज़दूर वर्ग को भी मोदी सरकार की घृणित चालों का जवाब देने के लिए गोलबन्द और संगठित किया जा सकता है।