इलाज के नाम पर लोगों की जान से खेल रही हैं दवा कम्पनियाँ
एक तरफ तो यह कम्पनियाँ भारत में ग़रीब जनता को धोखे में रख उनपर अपनी दवा का परीक्षण कर उनकी जान से खेल रही है वहीं दूसरी तरफ किसी ठोस क़ानून के अभाव में दवा परीक्षण के दौरान या उसके दुष्प्रभावों के कारण होने वाली मौतों से भी अपना पल्ला झाड़ लेती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार सन 2008 से लेकर 2011 तक भारत में 2031 लोग दवा परीक्षणों के दौरान मरे थे। परन्तु दवा कम्पनियों का दावा है कि इनमें से कुछ प्रतिशत लोग ही सीधे तौर पर दवाओं के दुष्प्रभावों के कारण मारे गये थे जबकि एक समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार 2010 में दवा परीक्षणों में जान गँवाने वाले 668 लोगों में से 158 की मौत सैनोफी एवेन्तीस नामक दवा कम्पनी के परीक्षण के दौरान हुई थी जिसका मुख्यालय फ्रांस में है, और 139 लोग बेयर नाम की जर्मन कम्पनी की दवाओं के परीक्षण के दौरान मरे थे। इसके अलावा 2010 में ही कैंसर रोकने वाली वैक्सीन का ट्रायल सुर्खियों में रहा था जिसके दौरान आन्ध्र प्रदेश और गुजरात में एचपीवी गर्भाशय कैंसर की रोकथाम के नाम पर वहाँ की गरीब लड़कियों पर इस टीके की जाँच की गयी थी। इस टीके के दुष्प्रभावों के कारण छह आदिवासी लड़कियों की मौत हो गयी थी। बाद में सरकार ने सिर्फ़ इतना कहकर इस पूरे मामले को दबा दिया कि लड़कियों की मौत वैक्सीन की वजह से नहीं बल्कि किसी अन्य कारण से हुई है।