Category Archives: स्‍वास्‍थ्‍य

भारत में कोरोना की दूसरी लहर, टीकाकरण के हवाई किले और मोदी सरकार की शगूफ़ेबाज़ी

आज भारत भी कोरोना की दूसरी लहर के चपेट में है और इस बार भी बिना कोई पुख़्ता इन्तज़ाम किये आंशिक या पूर्ण लॉकडाउन लगाये जाने की क़वायदें शुरू हो गयी हैं। हालाँकि सरकार इस बात से क़तई अनजान नहीं रही है कि इस दूसरी लहर की सम्भावना थी। इस मामले में एक तो दुनिया के अन्य देशों के उदाहरण सामने थे, जहाँ संक्रमण घटने के बाद एकाएक दुबारा तेज़ी से फैला था।

हरियाणा सरकार का शिक्षा व इलाज के जनता के अधिकारों पर बड़ा हमला!

हरियाणा में मेडिकल की पढ़ाई की फ़ीस में बेतहाशा बढ़ोत्तरी कर दी गयी है। सरकारी कॉलेजों/संस्थानों में एमबीबीएस यानी मेडिकल में स्नातक/ग्रेजुएशन की फ़ीस पहले जहाँ सालाना तक़रीबन 53,000 होती थी वहीं अब इसे बढ़ाकर 80,000 कर दिया गया है। यही नहीं, इसमें हर वर्ष 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी भी की जायेगी। इसके अतिरिक्त प्रत्येक छात्र को दाखिले के समय फ़ीस के अलावा 10 लाख रुपये (घटा फ़ीस) का बॉण्ड भी भरना पड़ेगा। जैसे यदि प्रथम वर्ष के छात्र की सालाना फ़ीस होगी 80,000 रुपये तो उसे 9 लाख 20 हज़ार रुपये बॉण्ड के तौर पर भरने होंगे।

कोरोना महामारी ने खोली पूँजीवादी चिकित्सा-व्यवस्था की पोल

आज जब पूरे विश्‍व में पूँजीवादी चिकित्सा व्यवस्था कोरोना महामारी के सामने लाचार नज़र आ रही है तो माओकालीन चीन की क्रान्तिकारी समाजवादी चिकित्सा व्यवस्था एक बार फिर से प्रासंगिक हो उठती है। यह अफ़सोस की बात है कि आज चीन अपनी उस क्रान्तिकारी विरासत से कोसों दूर जा चुका है, जिसके तमाम विनाशकारी दुष्परिणामों में एक यह भी है कि आज का चीन कोविड-19 की सही समय पर शिनाख्‍़त करके उसे क़ाबू में नहीं कर सका और उसे एक विश्‍वव्‍यापी महामारी में तब्दील होने से रोक नहीं सका।

कोरोना वायरस और भारत की बीमार सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ

आज नोवल कोरोना वायरस (SARS CoV 2) ने पूरे विश्व में कहर बरपा रखा है। चीन के वुहान शहर में पहली बार सामने आया यह वायरस “कोरोना वायरस बीमारी 19” (COVID 19) नाम की बीमारी करता है। चीन से दक्षिण कोरिया, इटली समेत पूरे यूरोप और अमेरिका होता हुआ यह वायरस अब भारत में भी आ धमका है। पिछले साल 17 नवम्बर को इसका पहला केस सामने आया था। उसके बाद से अब तक पूरी दुनिया में 1 लाख 45 हज़ार से ज़्यादा केस सामने आ चुके हैं, जिनमें से 5000 से ज़्यादा लोगों की मृत्यु हो चुकी है। मरने वालों में ज़्यादातर लोग चीन के हैं और ज़्यादातर वे हैं जो या तो 60 साल से ज़्यादा आयु के थे या फिर जिनको कोई गम्भीर बीमारी जैसे डायबिटीज़, टीबी, हृदय रोग या श्वास रोग पहले से थे।

आम लोगों को मौत और ग़रीबी में धकेलती चिकित्सा सेवाएँ

इस बात से शायद ही कोई इन्कार करेगा कि आज के दौर में रोटी, कपड़ा और मकान के साथ ही साथ शिक्षा और स्वास्थ्य भी इन्सान की मूलभूत ज़रूरत हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने हाल ही में यह दावा किया कि केन्द्र सरकार 2025 तक जीडीपी में स्वास्थ्य के हिस्से को 1.02 प्रतिशत से बढ़ाकर 2.5 प्रतिशत करने की मंशा रखती है। ग़ौरतलब है कि 2009 से भारत में जीडीपी का स्वास्थ्य पर प्रतिशत ख़र्च पिछले दस सालों से लगभग एक ही जैसा बना हुआ है।

बढ़ता हुआ प्रदूषण और घुटती हुई आबादी

बढ़ता हुआ प्रदूषण और घुटती हुई आबादी – डॉ. नवमीत दीवाली के अगले दिन से ही भारत के तमाम शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर बहुत ज्‍़यादा हो गया है।…

क्या आप अवसाद ग्रस्त हैं? दरअसल आप पूँजीवाद के शिकार हैं !

ज़िन्दगी की भागमभाग के बीच जब हम ठहरकर सड़कों, दफ़्तरों या स्कूलों-कॉलेजों में आते-जाते लोगों के चेहरों पर ग़ौर करते हैं तो पाते हैं कि आज के दौर में हर कोई अकेला, मायूस, ग़मगीन और तकलीफ़ों के बोझ से दबा दिखायी देता है। आज के समय की सच्चाई यह है कि हज़ारों ऑनलाइन दोस्त होने के बाद भी लोग दिल की बात किसी एक को भी बता नहीं पाते। दिल खोलकर हँसना, सामूहिकता का आनन्द लेना, बिना किसी स्वार्थ के किसी की मदद करना तो कल्पना की बातें हो गयी हैं; लोगों में नफ़रत, अविश्वास, बदहवासी, ऊब बढ़ रही है। 2018 में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट आयी थी जिसमें यह पाया गया कि दुनिया में सबसे ज़्यादा मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) के शिकार लोग भारत में रहते हैं।

एनएमसी विधेयक : मेडिकल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर फ़ासीवाद की मार

सरकार को लोगों के स्वास्थ्य या रेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता या भ्रष्टाचार से मतलब नहीं है। सरकार को सिर्फ़ पूँजीपतियों को मुनाफ़ा पहुँचाने से मतलब है। हम यह नहीं कहते कि एमसीआई कोई दूध की धुली संस्था थी। यह एक भ्रष्ट संस्था थी जिसने मेडिकल शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य को बहुत नुक़सान पहुँचाया था। लेकिन इसको ख़त्म करके भी सरकार ने पहले से ख़राब प्रणाली को और ज़्यादा ख़राब करने का ही काम किया है। हो भी क्यों न? सरकार को जनता से क्या मतलब? इसे मतलब है तो बस प्राइवेट और कॉर्पोरेट सेक्टर को मुनाफ़ा पहुँचाने से।  बाक़ी बात सिर्फ़ एक सरकार की नहीं है। बात पूरी पूँजीवादी व्यवस्था की है। जब तक यह व्यवस्था रहेगी, न तो मेडिकल शिक्षा का सुधार होने वाला है और न ही सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का। होगा तो सिर्फ़ यह कि पूँजीपतियों के मुनाफ़े की दर सुधरती जायेगी और जनता के स्वास्थ्य की दर गिरती जायेगी।

मुज़फ़्फ़रपुर : एक और सामूहिक हत्याकाण्ड

जिस वक़्त देश का खाया-पिया-अघाया मध्यवर्ग क्रिकेट मैच में पाकिस्तान को हराने की ख़ुमारी में झूम रहा था और पार्टी कर रहा था और देश का गृहमंत्री इसे एक और ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ बताते हुए ट्वीट कर रहा था, उसी समय बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले में एक्यूट इन्सेफ़लाइटिस (चमकी बुखार) से सौ से ज़्यादा बच्चों की मौत चन्द दिनों में हो चुकी थी।

नक़ली दवाओं का जानलेवा धन्धा

ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने के चक्कर में दवाओं की क्वालिटी के साथ समझौता किया जाता है, मानकों को नीचे लाया जाता है, जो मानक हैं उनके अनुसार भी काम नहीं किया जाता। इसकी वजह से दवा की क्वालिटी ख़राब होती है। या फिर जानबूझकर मिलावट की जाती है, ग़लत लेबलिंग की जाती है। पहले से ही बर्बाद स्वास्थ्य ढाँचा वैसे ही बीमारियों से लड़ नहीं पा रहा था, नक़ली और घटिया दवाओं के कारोबार ने उसे बिलकुल ही पंगु बना दिया है। इन सबका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की आम मेहनतकश आबादी को। यूँ ही मेहनतकश को स्वास्थ्य सुविधाएँ नहीं मिलती हैं, ऊपर से अगर अपनी दिन-रात की हाड़तोड़ मेहनत से की हुई कमाई से अगर दवा ख़रीदने की नौबत आ जाये तब भी उसे मिलता है दवा के रूप में ज़हर।