मेहनतकश जन जागो!
अपना हक लड़कर माँगो!!

मेहनतकश साथियों,

आज गुड़गाँव के चमक-दमक की चर्चा पूरे देश में हैं। गुड़गाँव के हाई-वे पर बने बड़े-बड़े अपार्टमेण्ट, शॉपिंग- मालों, आईटी, साफ्टवेयर कम्पनियों की इमारतों से लेकर आटो-सेक्टर की कम्पनियाँ देखकर खाते-पीते उच्च मध्यवर्ग को लगता है कि वाकई हरियाणा ‘नम्बर एक’ राज्य है! लेकिन असल में गुड़गाँव की चमक-दमक दास प्रथा वाले रोम की चमक-दमक के ही समान है। अगर रोम के दास-स्वामियों की समृद्धि के पीछे गुलामों का अमानवीय शोषण-उत्पीड़न मौजूद था तो आज गुड़गाँव के कम्पनियों के अरबों-खरबों के मुनाफ़े और चमक के पीछे भी लाखों-लाख उजरती गुलामों की हाड़तोड़ मेहनत मौजूद है। मज़दूरों को कोल्हू के बैल की तरह खटाकर मालिकों की पूँजी का अम्बार बढ़ता जा रहा है, जबकि मज़दूर और भी पाशविक जीवन के नर्क में धँसता जा रहा है। यूँ कहने को तो मज़दूर के लिए 260 श्रम-कानूनों से लेकर लेबर कोर्ट तक मौजूद हैं, परन्तु हम मज़दूर भी जानते हैं कि कानून और कोर्ट मालिकों और ठेकेदारों के ही पक्ष में रहते हैं। इस तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि मजदूर वर्ग इस घुटन-भरे माहौल को चुपचाप बर्दाश्त नहीं कर रह है। गुड़गाँव में पिछले दस बरसों में लगातार स्वतःस्फूर्त मज़दूर संघर्षों (होण्डा, रिको से लेकर मारुति सुजुकी तक) ने यही साबित किया है। सरकार और मैनेजेण्ट की मज़दूर-विरोधी नीतियों का हमला रोकने के लिए मज़दूरों के पास सिर्फ अपनी फौलादी वर्ग एकजुटता है।

लेकिन साथ ही हमें यह भी समझना होगा कि आज मज़दूरों के साहसपूर्ण संघर्ष ठहराव और गतिरोध की स्थिति में क्यों हैं? पहला कारण यह है कि आज गुड़गाँव ही नहीं बल्कि देश स्तर पर मज़दूर आन्दोलन को कुचलाने के लिए सभी सरकारें पूँजीपतियों के आगे नतमस्तक हैं। “औद्योगिक शान्ति” कायम करने के नाम पर मज़दूरों के लिए सरकार ने पुलिस-प्रशासन का आतंक-राज कायम कर रखा है। हरियाणा का हर मज़दूर इसका मतलब जानता है। दूसरा कारण यह है कि मालिकों ने मज़दूरों की कारखाना-केन्द्रित एकता तोड़ने के लिए उत्पादन प्रक्रिया को काफ़ी हद तक बिखरा दिया है। एक कार बनाने वाले कारखाने के नीचे सैकड़ों वेण्डर कम्पनियों के मज़दूर काम करते हैं। साथ ही, मालिकों ने मज़दूरों में स्थायी, कैजुअल और ठेका श्रेणी का बँटवारा कर मज़दूर आबादी को कई खण्डों मे बाँट रखा है। तीसरा कारण यह है कि चुनावबाज़ पार्टियों के केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संघ मज़दूर आन्दोलन में मज़दूर वर्ग के हितों के साथ लगातार ग़द्दारी कर चुके हैं और उनका काम मालिकों, प्रबन्धन और सरकार की ओर से दलाली करना हो चुका है। सोचने की बात है कि जब माकपा-भाकपा जैसे संसदीय वामपंथियों समेत इन तमाम चुनावी पार्टियों की सरकारें केन्द्र से लेकर प्रान्तों तक में मज़दूर-विरोधी नीतियाँ लागू करती हैं तो क्यों इनकी पिछलग्गू यूनियनें चूँ तक नहीं करतीं? हर वर्ष ये केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संघ एक-दो संयुक्त आम हड़तालों के कर्मकाण्ड का आयोजन करते हैं, जिस दिन एक प्रकार से सरकार भी छुट्टी की घोषणा कर देती है! इन रस्मअदायगियों से मज़दूर वर्ग के गुस्से पर कुछ ठण्डे पानी का छिड़काव किया जाता है, लेकिन आम मज़दूर आबादी को इससे कुछ भी नहीं मिलता। निश्चित रूप से आज पूरे ट्रेड यूनियन आन्दोलन में एक नये क्रान्तिकारी विकल्प की आवश्यकता के बारे में सोचना होगा।

आख़िर रास्ता किधर है?

गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल से लेकर भिवाड़ी और खुशखेड़ा तक के कारखानों में लाखों मज़दूर आधुनिक गुलामों की तरह खट रहे हैं। लगभग हर कारखाने में अमानवीय वर्कलोड, ज़बरन ओवरटाइम, वेतन में कटौती, ठेकेदारी, यूनियन अधिकार छीने जाने जैसे साझा मुद्दे हैं। हमें यह समझना होगा कि आज अलग-अलग कारखाने की लड़ाइयों को जीत पाना मुश्किल है। अभी हाल ही में हुए मारुति सुजुकी आन्दोलन से सबक लेना भी ज़रूरी है जो अपने साहसपूर्ण संघर्ष के बावजूद एक कारखाना-केन्द्रित संघर्ष ही रहा। मारुति सुजुकी मज़दूरों द्वारा उठायी गयीं ज़्यादातर माँगे-यूनियन बनाने, ठेका प्रथा खत्म करने से लेकर वर्कलोड कम करने-पूरे गुड़गाँव से लेकर बावल तक की औद्योगिक पट्टी के मज़दूरों की थीं। लेकिन फिर भी आन्दोलन समस्त मज़दूरों के साथ सेक्टरगत/इलाकाई एकता कायम करने में नाकाम रहा और केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संघों का पुछल्ला बना रहा। इसलिए हमें समझना होगा कि हम कारखानों की चौहद्दियों में कैद रहकर अपनी माँगों पर विजय हासिल नहीं कर सकते क्योंकि हरेक कारखाने के मज़दूरों के समक्ष मालिकान, प्रबन्धन, पुलिस और सरकार की संयुक्त ताक़त खड़ी होती है, जिसका मुकाबला मज़दूरों के बीच इलाकाई और सेक्टरगत एकता स्थापित करके ही किया जा सकता है, जैसा कि बांग्लादेश के टेक्सटाइल मज़दूरों ने कर दिखाया है।

गुड़गाँव मज़दूर संघर्ष समिति’ का मानना है कि आज हमें एक ओर सेक्टरगत यूनियनें (जैसे कि समस्त ऑटोमोबाइल मज़दूरों की एक यूनियन, समस्त टेक्सटाइल मज़दूरों की एक यूनियन, आदि) बनानी होंगी जो कि समूचे सेक्टर के मज़दूरों को एक साझे माँगपत्रक पर संगठित करें। वहीं हमें समूचे गुड़गाँव-मानेसर के इलाके में मज़दूरों की एक इलाकाई मज़दूर यूनियन भी बनानी होगी, जो कि इस इलाके में रहने वाले सभी मज़दूरों की एकता कायम करती हो, चाहे वे किसी भी सेक्टर में काम करते हों। ऐसी यूनियन कारखानों के संघर्षों में सहायता करने के अलावा, रिहायश की जगह पर मज़दूरों के नागरिक अधिकारों जैसे कि शिक्षा, पेयजल, चिकित्सा आदि के मुद्दों पर भी संघर्ष करेगी। जब तक सेक्टरगत और इलाकाई आधार पर मज़दूरों के ऐसे व्यापक और विशाल संगठन नहीं तैयार होंगे, तब तक उस नग्न तानाशाही का मुकाबला नहीं किया जा सकता है, जोकि हरियाणा में मज़दूरों के ऊपर थोप दी गयी है।

साथियो! यह कार्यभार कठिन ज़रूर है लेकिन नामुमकिन नहीं। और हमारे पास और रास्ता भी क्या है? अगर हम यूँ ही पीठ झुका कर खड़े रहेंगे तो दुश्मन भी अपना चाबुक बरसाता रहेगा; अगर हम चुनावी पार्टियों की पिछलग्गू यूनियनों से धोखा खाते रहेंगे, तो वे भी हमें ठगने को तैयार बैठी हैं; अगर हम अपनी नयी क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियन नहीं खड़ी करते, तो हमारे ज़ि‍न्दगी और काम के हालात दिन-पर-दिन बद से बदतर होते जाएँगे। इसलिए वक्त आ गया है कि हम सेक्टरगत और इलाकाई आधार पर अपनी एकता कायम करें, मज़दूर आन्दोलन के भितरघातियों को पहचानें और एक नयी शुरुआत करें। शुरू करने से पहले हर काम मुश्किल लगता है और एक हज़ार मील लम्बी यात्रा की शुरुआत भी पहले कदम से होती है। हम एक नयी क्रान्तिकारी शुरुआत का पहला कदम उठाने के लिए हरेक मज़दूर साथी का आवाहन करते हैं!

अब चलो नयी शुरुआत करो! मज़दूर मुक्ति की बात करो!!

गुड़गाँव-मानेसर-धारूहेड़ा-बावल के मज़दूरों की एकता कायम करो!

गुड़गाँव मज़दूर संघर्ष समिति

सम्पर्क-940436262

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