Category Archives: मज़दूरों की क़लम से

मुनाफ़े की व्यवस्था में हम मज़दूरों का कोई भविष्य नहीं

मज़दूर भाइयो, यह केवल मेरी कहानी नहीं है बल्कि देश के करोड़ों मज़दूरों की ऐसी ही कहानियाँ हैं। आज हम एकजुट होकर ही मुनाफ़े की इस व्यवस्था के खि़लाफ़ लड़ सकते हैं। हमें इस लड़ाई में मिठबोले मालिकों, धन्धेबाज वकीलों, और दलाल यूनियनों से भी सावधान रहना होगा।

हालात बदलने के लिए एक होना होगा

मेरा नाम मो. हाशिम है। मैं उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ। ज़िला अलीगढ़ का रहने वाला हूँ। मेरे पापा मज़दूर थे। मेरे घर में बहुत परेशानी थी जब मैं केवल आठ साल का था तभी से गाँव में मेहनत करता था, इसके लिए मैं एक धनी किसान के पास काम करता था। वो मुझसे बहुत काम लेता था। जिस कारण मैं पढ़ नहीं पाया। बाद में मैं गाँव से अपने माँ-बाप को लेकर शहर में आया। मैं परिवार के साथ श्रीराम कालोनी, खजूरी खास दिल्ली में अपने मामा के पास मज़दूरी करता था। यहाँ भी मामा मुझे बहुत मारते थे। इनके पास मैंने करीब साल भर काम किया। एक दिन मुझे मज़दूर बिगुल अख़बार मिला। जिसको पढ़ने के बाद मुझे घुटन भरी ज़िन्दगी से लड़ने का तरीक़ा पता चला। बहुत से मेरे भाई आज भी उन्हीं फ़ैक्टरियों में काम करते हैं और मालिक की मार-फटकार सहते हैं। हम सब जैसे-तैसे ज़िन्दगी की गाड़ी खींच रहे हैं। मैं अब एक दूसरी जगह काम करता हूँ। मेरी उम्र तक़रीबन 24 साल है। वहाँ के मालिक से मैं अगर कारीगरों के हक़ के बारे में बोलता हूँ तो मालिक मुझसे चिढ़ता है और मशीन में ताला लगवा देता है। असल में सभी मालिकों की एक ही नीयत होती है – कैसे ज़्यादा से ज़्यादा मज़दूरों का ख़ून-पीसना निचोड़ा जाये।

देखो देखो!

मजदूर हड़ताल पर बैठे हैं
पर यहाँ एक आश्चर्य की बात है
इसमें न तो कोई हिंदू है
और न ही सिख या मुस्लिम
यहाँ सबका एक ही धर्म है
वो है मेहनतकशों का धर्म
देखो-देखो
मजदूर जाग रहे हैं…

वजीरपुर के मज़दूरों के संघर्ष के बारे में

मजदूर साथियो, मेरा नाम बाबूराम हैं, मैं गरम मशीन का ओपेरटर हूँ। मैं वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया में रहता हूँ। साथियों, मैं वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया के मजदूरों के हालात के बारे में लिख रहा हूँ।

मजदूर एकता ज़ि‍न्दाबाद

यह बात आज हम लोग शायद न मान पायें मगर सच यही है कि लूट, खसोट व मुनाफे पर टिकी इस पूँजी की व्यवस्था में उम्रदराज लोगों का कोई इस्तेमाल नहीं है। और पूँजी की व्यवस्था का यह नियम होता है कि जो माल(क्योंकि पूँजीवादी व्यवस्था में हर व्यक्ति या रिश्ते-नाते सब माल के ही रूप होते हैं) उपयोग लायक न हो उसे कचरा पेटी में डाल दो। हम अपने आस-पास के माहौल से दिन-प्रतिदिन यह देखते होंगे कि फलाने के माँ-बाप को कोई एक गिलास पानी देने वाला भी नहीं जबकि उनके चार-चार लड़के हैं। फलाने के कोई औलाद नहीं और वो इतने गरीब है कि उनका बुढ़ापा जैसे-तैसे घिसट-घिसट कर ही कट रहा है। फलाने के लड़के नहीं है मगर लड़की व दामाद ने तीन-तिकड़म कर सम्पत्ति‍ पर कब्जा करके माँ-बाप को सड़क पर ला दिया।

वो कहते हैं

राम, कृष्ण, अल्लाह, मसीह की पूजा करो
– अपने धर्म की सेवा करो
तो तुम्हारी जिन्दगी बदलेगी
और नहीं बदली
तो यह तुम्हारे पिछले जन्म के कर्मों का फ़ल है
शायद वो यह नहीं जानते
राम, कृष्ण, अल्लाह, मसीह की पूजा कर.कर के ही
हमारा ये हाल है
पर वो कहते हैं
तुम कुछ नहीं जानते

आपस की बात

हम ‘मज़दूर बिगुल’ के लेखों को चाव से पढ़ते हैं साथ ही इससे सीख भी लेते हैं तथा अपने अन्य मज़दूर भाइयों को भी इसके बारे में बताते हैं। साथियो मैं आप सबसे यही कहना चाहूँगा कि हमें एकजुट होना होगा और मज़दूर राज कायम करना होगा तभी हम अपने दुखों से छुटकारा पा सकते हैं।

काम की तलाश में

आखिर समझ में नही आता कि इतनी बड़ी,
मज़दूर आबादी का ही भाग्य क्यों मारा जाता है,
भगवान इन्हीं लोगों से क्यों नाराज रहता है,

इस लूटतन्त्र के सताये एक नाबालिग मज़दूर की कहानी

मै पिण्टू, माधोपुरा बिहार का रहने बाला हूँ, अपने घर में बहन-भाई में सबसे बड़ा मैं ही हूँ। मेरी उम्र 15 साल है। मुझसे छोटी मेरी दो बहने हैं। 2010 मे मेरे पापा गुजर गये, तो अब मेरी माँ व हम तीन भाई-बहन ही हैं। ग़रीबी तो पहले से ही थी, लेकिन पापा के गुजरने के बाद दुनिया के तमाम नाते-रिश्तेदारों ने भी हमसे नाता तोड़ लिया। गाँव के कुछ लोग गुड़गाँव मे काम करते थे तो मेरी माँ ने बड़ी मुसीबत उठाकर 4 रुपये सैकड़ा पर 1000 रुपये लेकर व जो काम करते थे उनसे हाथ जोड़कर मुझे जैसे-तैसे गुड़गाँव भेज दिया। क्योंकि घर मे सबसे बड़ा मैं ही था और गाँव पर भी मेरी माँ और मैं मज़दूरी करके ही पेट पाल रहे थे। खेत व जमीन मेरे पास कुछ नहीं है, बस रहने के लिए गाँव में एक झोपड़ी है।

इलाक़ाई एकता ही आज की ज़रूरत है!

यह बात तो जगजाहिर है कि आज सभी कम्पनियों मे मज़दूरों को ठेकेदार के माध्यम से, पीसरेट, कैजुअल व दिहाड़ी पर काम पर रखा जाता है। मज़दूरों को टुकड़ो मे बाँटने के लिए आज पूरा मालिक वर्ग सचेतन प्रयासरत है। ऐसी विकट परिस्थतियों मे भी आज तमाम मज़दूर यूनियन के कार्यकर्ता या मज़दूर वर्ग से गद्दारी कर चुकीं ट्रेड यूनियनें उसी पुरानी लकीर को पीट रहे हैं कि मज़दूर एक फैक्ट्री मे संघर्ष के दम पर जीत जाऐगा। बल्कि आज तमाम फैक्ट्रियों मे जुझारू आन्दोलनों के बाबजूद भी मज़दूरों को जीत हासिल नहीं हो पायी। क्योंकि इन सभी फैक्ट्रियों मे मज़दूर सिर्फ एक फैक्ट्री की एकजुटता के दम पर संघर्ष जीतना चाहते थे। दूसरा इन तमाम गद्दार ट्रेड यूनियनों की दलाली व मज़दूरों की मालिक भक्ति भी मज़दूरों की हार का कारण है। वो तमाम फैक्ट्रियाँ जिनमे संघर्ष हारे गये – रिको, बजाज, हीरो, मारूति, वैक्टर आदि-आदि।