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पूँजीवादी जनतन्त्र के बारे में कार्ल मार्क्स के विचार

जनतन्त्र में पूँजीपति वर्ग का शासन मिट नहीं जाता। करोड़पति मज़दूरों में नहीं बदल जाते। बन्धुत्व और भाईचारे का नारा वर्ग वैरभाव को मिटा नहीं देता। बन्धुत्व एक सुखदायी विमुखता है, विरोधी वर्गों का भावुकतापूर्ण मेल है। बन्धुत्व वर्ग संघर्ष से ऊपर उठने की दिवास्वप्नमय कामना है। बन्धुत्व की भावना में एक उदार मादकता है जिसमें सर्वहारा और जनतन्त्रवादी झूमने लगते हैं। जनतन्त्र पुराने पूँजीवादी समाज का नया नृत्य परिधान है। यह पूँजीवाद को भयभीत नहीं करता, उससे भयभीत होता है।