Tag Archives: आनन्द

आज़ाद भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति: एक ऐतिहासिक रूपरेखा

आज़ाद भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति: एक ऐतिहासिक रूपरेखा – आनन्द सिंह भारत में आम लोग कोरोना महामारी के पहले से ही अपने अनुभव से भारत में स्वास्थ्य सेवाओं…

म्यांमार में बर्बर दमन के बावजूद सैन्य तानाशाही के ख़ि‍लाफ़ उमड़ा जनसैलाब

गत 1 फ़रवरी को म्यांमार में एक बार फिर सेना ने तख़्तापलट करके शासन-प्रशासन के समूचे ढाँचे को अपनी गिरफ़्त में ले लिया। वहाँ की निर्वाचित ‘स्टेट काउंसलर’ आंग सान सू की और उनकी पार्टी नेशनल लीग फ़ॉर डेमोक्रेसी के सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया और एक साल के लिए देश में आपातकाल लागू कर दिया गया।

हरियाणा में नौकरियों में स्थानीय लोगों को आरक्षण : मज़दूर वर्ग को बाँटने की साज़ि‍श

हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने मार्च के पहले सप्ताह में राज्य में निजी क्षेत्र की प्रति माह 50 हज़ार रुपये तक की तनख़्वाह वाली नौकरियों में 75 प्रतिशत स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण सम्बन्धी क़ानून पारित करवा लिया। इससे पहले गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु व उत्तराखण्ड सहित कई राज्यों में भी इस तरह के क़ानून पारित हो चुके हैं या उनकी क़वायद चल रही है। हाल ही में झारखण्ड में भी यह क़वायद शुरू हो चुकी है।

नेपाल में राजनीतिक-संवैधानिक संकट: संशोधनवाद का भद्दा बुर्जुआ रूप खुलकर सबके सामने है!

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (नेकपा) के भीतर के.पी. शर्मा ओली और पुष्प कमल दाहाल (प्रचण्ड) के धड़ों के बीच महीनों से सत्ता पर क़ब्ज़े के लिए चल रही कुत्ताघसीटी की परिणति पिछले साल 20 दिसम्बर को ओली द्वारा नेपाल की संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा को भंग करने की अनुशंसा और के रूप में हुई। राष्ट्रपति विद्या भण्डारी ने बिना किसी देरी के प्रतिनिधि सभा को भंग करने के फैसले पर मुहर लगा दी। आगामी 30 अप्रैल व 10 मई को मध्यावधि चुनावों की घोषणा भी कर दी गयी है।

केन्द्रीय बजट : पूँजीपरस्त नीतियों पर जनपक्षधरता का मुलम्मा चढ़ाने का प्रयास

गत एक फ़रवरी को केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन द्वारा संसद में वित्तीय वर्ष 2021-22 का बजट प्रस्तुत करने के बाद शेयर बाज़ार में रिकॉर्डतोड़ उछाल देखने में आया। वजह साफ़ थी! यह बजट पूँजीपतियों के लिए मुँहमाँगे तोहफ़े से कम नहीं था।
टीवी चैनलों पर पूँजीपतियों के भाड़े पर काम करने वाले भाँति-भाँति के विशेषज्ञों ने इस बजट की तारीफ़ों के पुल बाँधने में कोई कसर नहीं छोड़ी। किसी ने बजट को ऐतिहासिक बताया तो किसी ने इसे अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी की संज्ञा दी। लेकिन सच्चाई तो यह थी कि यह बजट आर्थिक संकट के दौर में मुनाफ़े की गिरती दर के ख़तरे से बिलबिलाये पूँजीपति वर्ग के लिए संजीवनी के समान था।

कोरोना वैक्सीन के नाम पर जारी है बेशर्म राजनीति

मोदी सरकार देश में हर उपलब्धि का सेहरा ख़ुद के सिर बाँधने और हर विफलता का ठीकरा विपक्षी दलों पर फोड़ने के लिए कुख्यात है। कोरोना महामारी के दौर में भी सरकार का ज़ोर इस महामारी पर क़ाबू पाने की बजाय ख़ुद के लिए वाहवाही लूटने पर रहा है। जिन लोगों की राजनीतिक याददाश्त कमज़ोर नहीं है उन्हें याद होगा कि किस प्रकार सरकार ने इण्डियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के ज़रिये वैक्सीन बनाने वाली कम्पनियों पर दबाव डाला था कि 15 अगस्त तक कोरोना की वैक्सीन तैयार हो जानी चाहिए ताकि प्रधान सेवक महोदय लाल किले से दहाड़कर वैक्सीन की घोषणा कर सकें और ख़ुद की पीठ थपथपा सकें।

महामारी के दौर में भी चन्द अरबपतियों की दौलत में भारी उछाल! या इलाही ये माज़रा क्या है?

इस साल कोरोना महामारी के बाद भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में लम्बे समय तक आंशिक या पूर्ण लॉकडाउन लगाया गया जिसकी वजह से दुनिया भर में उत्पादन की मशीनरी ठप हो गयी और विश्व पूँजीवाद का संकट और गहरा गया। लेकिन हाल ही में कुछ संस्थाओं की ओर से जारी किये गये आँकड़े यह दिखा रहे हैं कि महामारी के दौर में भारत और दुनिया के कई अरबपतियों की सम्पत्ति में ज़बर्दस्त इज़ाफ़ा हुआ है। ये आँकड़े यह साबित करते हैं कि इन अरबपतियों ने गिद्ध की भाँति आपदा में भी अवसर खोज लिया है जिसकी इजाज़त मौजूदा व्यवस्था ही देती है।