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दूसरा उत्तराखंड बनने की राह पर हैं हिमाचल प्रदेश

जहाँ तक विकास का सवाल है तो इन परियोजनाओं से ‘विकास’ तो नहीं पर हाँ ‘विनाश’ जरूर हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप आज यहाँ का भौगोलिक तथा जलवायु संतुलन लगातार बिगड़ता जा रहा है, जिससे आने वाले समय में यहाँ के निवासियों को भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। इसके अतिरिक्त, पूँजीवादी व्यवस्था में विकास के नाम पर लगातार जारी प्राकृतिक संसाधनों की अंधाधुंध लूट और उससे पैदा होने वाले भयंकर दुष्परिणामों की एक झलक हमें पिछले साल उत्तराखंड में देखने को मिली, जहाँ बाढ़, बादल फटने, तथा जमीन धंसने जैसी घटनाओं के कारण हज़ारों लोग असमय काल के ग्रास में समा गये।

उत्तराखण्डः दैवी आपदा या प्रकृति का कोप नहीं यह पूँजीवाद की लायी हुई तबाही है!

पूँजीवादी विकास के मॉडल के तहत पर्यावरण की परवाह न करते हुए जिस तरह अंधाधुंध तरीक़े से सड़कें, सुरंगें व बाँध बनाने के लिए पहाड़ियों को बारूद से उड़ाई गईं, उसकी वजह से इस पूरे इलाक़े की चट्टानों की अस्थिरता और बढ़ने से भूस्ख़लन का ख़तरा बढ़ गया। वनों की अंधाधुंध कटाई और अवैध खनन से भी पिछले कुछ बरसों में हिमालय के इस क्षेत्र में भूस्खलन, मृदा क्षरण और बाढ़ की परिघटना में बढ़ोत्तरी देखने में आयी है। यही नहीं इस पूरे इलाक़े में पिछले कुछ वर्षों में हिमालय की नदियों पर जो बाँध बनाये गये या जिन बाँधों की मंजूरी मिल चुकी है उनसे भी बाढ़ की संभावना बढ़ गई है