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क्रान्तिकारी मज़दूर शिक्षण माला-10 : मालों का संचरण और मुद्रा

मुद्रा का विकास सामाजिक श्रम विभाजन और मालों के उत्पादन व विनिमय के विकास की एक निश्चित मंज़िल में होता है। जैसे-जैसे मानवीय श्रम के अधिक से अधिक उत्पाद माल बनते जाते हैं, वैसे-वैसे उपयोग-मूल्य और मूल्य के बीच का अन्तरविरोध तीखा होता जाता है क्योंकि परस्पर आवश्यकताओं का संयोग मुश्किल होता जाता है। हर माल उत्पादक के लिए उसका माल उपयोग-मूल्य नहीं होता है और वह सामाजिक उपयोग मूल्य होता है, जो तभी वास्तवीकृत हो सकता है यानी उपभोग के क्षेत्र में जा सकता है, जब उसका विनिमय हो, यानी वह मूल्य के रूप में वास्तवीकृत हो। लेकिन यह तभी हो सकता है, जब दूसरे माल उत्पादक को उस माल की आवश्यकता हो और पहले माल उत्पादक को दूसरे माल उत्पादक के माल की आवश्यकता हो। जैसे-जैसे अधिक से अधिक उत्पाद माल बनते जाते हैं, यह होना बेहद मुश्किल होता जाता है। इसी को हम उपयोग-मूल्य और मूल्य के बीच के अन्तरविरोध का तीखा होना कह रहे हैं।

मौजूदा आर्थिक संकट और मार्क्स की ‘पूँजी’

यह बात तो आज सबके सामने स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था एक बेहद गहन संकट की शिकार है। वर्तमान सत्ताधारी दल के घोर समर्थक भी अब इससे इंकार कर पाने में असमर्थ हैं, क्योंकि भयंकर रूप से बढ़ती बेरोज़गारी, घटती मज़दूरी, आसमान छूती महँगाई, अधिसंख्य जनता के लिए पोषक भोजन का अभाव, शिक्षा-स्वास्थ्य-आवास आदि सुविधाओं से वंचित होते अधिकांश लोग, कृषि में संकट और बढ़ती आत्महत्याएँ – ये सब ऐसे तथ्य हैं जिन्हें झुठलाना अब किसी के बस में नहीं। अभी बहस का मुद्दा इस संकट की वजह और इसके समाधान का रास्ता है। बीजेपी, कांग्रेस, आदि बुर्जुआ पार्टियाँ और उनके समर्थक इसके लिए एक-दूसरे की नीतियों को जि़म्मेदार ठहराते और ख़ुद की सरकार द्वारा इससे निजात दिलाने के बड़े-बड़े गलाफाड़ू दावे करते देखे जा सकते हैं, लेकिन सरकार कोई भी रहे, आम मेहनतकश जनता के जीवन में संकट है कि कम होने के बजाय बढ़ता ही जाता है।