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मेहनतकशों को आपस में कौन लड़ा रहा है, इसे समझो!

बिहार और यूपी के मजबूर मज़दूरों को हाल में मार-पीटकर गुजरात से भगाने वाले गुजराती मालिक नहीं, मज़दूर ही थे। उनकी झोंपड़ियों में आग अडानी ने नहीं लगायी, बल्कि ख़ुद शोषित, बेहाल गुजराती मज़दूरों ने ही ये काम अंजाम दिया। महाराष्ट्र में तो ये वहशीपन पिछले 25-30 साल से होता आ रहा है। पंजाब में भी इसी तरह के हालात बनने की सुगबुगाहट है। कभी भी कोई घटना, जैसे गुजरात में मासूम बच्ची से बलात्कार, आग भड़का सकती है। दरअसल सर्वहारा वर्ग में ये भ्रातृघाती बैर पहले ग़ुलाम राष्ट्र और मालिक राष्ट्र वाला समीकरण पैदा करता था, यूरोप के लुटेरे मुल्क़ोें के मज़दूर ख़ुद को शासक मालिक की ही तरह, भारत जैसे गुलाम मुल्क़ों के मज़दूर का मालिक समझते थे, वैसा ही अन्तर, वैसा ही वैमनस्य आज पूँजीवाद का अन्तर्निहित असमान विकास का नियम कर रहा है। शासक वर्गों के अलग-अलग धड़े और पार्टियाँ अपने निहित स्वार्थों में इस आग को और भड़कायेंगे। इसलिए ज़रूरी है क‍ि मज़दूरों के बीच इस सच्चाई का प्रचार क‍िया जाये कि सभी मज़दूरों के हित एक हैं और उनका साझा दुश्मन वे लुटेरे हैं जो देशभर के तमाम मेहनतकशों का ख़ून चूस रहे हैं।