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इस ठण्डी हत्या का जिम्मेदार कौन?

एक मालिक को अमीर बनाने में दिन-रात काम करने वाले मेहनती मजदूर पप्पू के परिवार को 20 हजार देकर उसकी जिन्दगी की कीमत अदा कर मालिक एक ठण्डी हत्या से बरी हो गया। चूँकि पप्पू पक्का वर्कर नहीं था, इसलिए मालिक कह सकता था कि उसके पास तो यह व्यक्ति काम ही नहीं करता था। अदालतों में अकसर ही इंसाफ की आस लगाये हजारों लोग रोजाना चक्कर मारते हैं, इसलिए कानून से भी परिवार को कोई उम्मीद नहीं। इस तरह रोजाना कितने ही पप्पू मर जाते हैं। ऐसे करोड़ों पप्पुओं की लाशों पर अमीरों के महल आखिर कब तक खड़े होते रहेंगे?

अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर पूँजी की सत्ता के ख़िलाफ लड़ने का संकल्प लिया मजदूरों ने

गोरखपुर में पिछले वर्ष महीनों चला मजदूर आन्दोलन कोई एकाकी घटना नहीं थी, बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में उठती मजदूर आन्दोलन की नयी लहर की शुरुआत थी। आन्दोलन के खत्म होने के बाद बहुत से मजदूर अलग-अलग कारख़ानों या इलाकों में भले ही बिखर गये हों, मजदूरों के संगठित होने की प्रक्रिया बिखरी नहीं बल्कि दिन-ब-दिन मजबूत होकर आगे बढ़ रही है। इस बार गोरखपुर में अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के आयोजन में भारी पैमाने पर मजदूरों की भागीदारी ने यह संकेत दे दिया कि पूर्वी उत्तर प्रदेश का मजदूर अब अपने जानलेवा शोषण और बर्बर उत्पीड़न के ख़िलाफ जाग रहा है।
यूँ तो विभिन्न संशोधनवादी पार्टियों और यूनियनों की ओर से हर साल मजदूर दिवस मनाया जाता है लेकिन वह बस एक अनुष्ठान होकर रह गया है। मगर बिगुल मजदूर दस्ता की अगुवाई में इस बार गोरखपुर में मई दिवस मजदूरों की जुझारू राजनीतिक चेतना का प्रतीक बन गया।

लुधियाना के मजदूर आन्दोलन में माकपा-सीटू के मजदूर विरोधी कारनामे

भारत के मजदूर आन्दोलन पर जरा सी भी ईमानदार नजर रखने वाले लोगों के लिए आज यह बात दिन के उजाले की तरह साफ है कि सी.पी.आई.एम. (माकपा) और उसका मजदूर विंग सी.आई.टी.यू. (सीटू) किस कदर खुलकर पूँजीपतियों की सेवा में लगे हुए हैं। ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है, बस पिछले 8-10 वर्षों की इनकी कारगुजारियों पर नजर डाल ली जाये तो कोई शक नहीं रह जाता कि माकपा-सीटू के झण्डे का लाल रंग नकली है और ये मजदूरों की पीठ में छुरा घोंपने का ही काम कर रहे हैं। देश में जहाँ-जहाँ भी इनका जोर चला, इन्होंने बड़ी चालाकी के साथ मजदूर आन्दोलन का बेड़ा गर्क करने में किसी तरह की कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी।

जब मालिक ने मजदूरों से हाथ जोड़कर माफी माँगी

मजदूरों के सख्त तेवर देखकर पुलिस और मालिक के होश उड़ गये। मालिक अपनी सफाई में कोई भी ठोस सबूत देकर खुद को सही साबित न कर सका। आखिर उसे अपनी गलती माननी पड़ी। उसने दोनों हाथ जोड़कर सभी मजदूरों के सामने दीपक और राज से माफी माँगी और उन्हें बकाया के अलावा तोड़े गये मोबाइल के पैसे, मेडीकल का खर्च देकर लिखित रूप में विश्वास दिलाया कि वह आगे से मजदूरों के साथ ऐसा नहीं करेगा।

बादल सरकार का महज़ एक नया ड्रामा ‘पंजाब प्रवासी कल्याण बोर्ड’

ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि किसी राज्य की सरकार ने अपने ही देश के अन्य राज्य से आये लोगों के ‘कल्याण’ के लिए अलग से कोई बोर्ड गठित किया है। वह भी उसे प्रवासी कहते हुए। भला अपने ही देश में कोई प्रवासी कैसे हो सकता है? प्रवासी शब्द का इस्तेमाल लोगों के क्षेत्रीय पूर्वाग्रहों का फ़ायदा उठाने के लिए किया गया है। इससे पंजाब में अन्य राज्यों से आकर बसे लोगों का कोई कल्याण तो होने वाला तो है नहीं, बल्कि इसकी जगह इस तरह के बोर्ड का अलग से गठन लोगों के क्षेत्रीय पूर्वाग्रहों को और मज़बूत ही बनायेगा। इससे पंजाब में पहले से रह रहे लोगों और अन्य राज्यों से आये लोगों के बीच दूरियाँ कम होने के बजाय और बढ़ेंगी क्योंकि इस बोर्ड के गठन के ज़रिये लोगों में इस पूर्वाग्रह को और मज़बूती ही मिलती है कि पंजाब में पहले से रह रहे लोगों के लिए अन्य राज्यों से आये लोग अपने नहीं पराये हैं। इससे पंजाब में अन्य राज्यों से आये लोगों के लिए समस्याएँ बढे़ंगी ही।

सूचना अधिकार क़ानून बना सरकार के गले की फाँस

अब सूचना अधिकार क़ानून हुक्मरानों के गले की हड्डी बन गया था। पिछली 14 अक्टूबर को दिल्ली में एक सरकारी मीटिंग में इस क़ानून में संशोधन का प्रस्ताव आया और अब सरकार बाक़ायदा इसमें संशोधन करने की राह पर चल पड़ी है। इस संशोधन के बाद किसी भी स्थानीय विभाग का अफ़सर (जिससे सूचना माँगी गई है) इस बात का फ़ैसला करेगा कि माँगी गयी सूचना देनी है या नहीं। अब हम लोग खुद ही यह अच्छी तरह समझ सकते हैं कि ये अफ़सर क्या फ़ैसला करेंगे। सरकार इस संशोधन पर गम्भीरता से विचार कर रही है, सम्भावना यही है कि अब इस क़ानून के पर कुतर दिये जायेंगे।

लुधियाना के मेहनतकशों के एकजुट संघर्ष की बड़ी जीत

इस जबरदस्त रैली और प्रदर्शन के सफल आयोजन ने जहाँ मज़दूरों में फैले पुलिस और गुण्डों के डर के माहौल को तोड़कर पहली जीत दर्ज करवाई थी वहीं दूसरी जीत तब हासिल हुई जब रैली को अभी दो दिन भी नहीं बीते थे कि 19 जनवरी की रात को 39 मज़दूर को जेल से बिना शर्त रिहा कर दिया गया। रिपोर्ट लिखे जाने तक 3 नाबालिग बच्चों को कुछ कागजी कार्रवाई के चलते रिहाई नहीं मिल सकी थी लेकिन उनकी रिहाई का रास्ता साफ हो चुका है। कारखाना मज़दूर यूनियन लुधियाना तथा अन्य संगठन बच्चों की रिहाई की कार्रवाई जल्द पूरी करवाने के लिए प्रशासन पर दबाव बना रहे हैं। पंजाब सरकार ने पंजाब प्रवासी कल्याण बोर्ड के जरिये पीड़ितों के लिए 17 लाख रुपये मुआवजे के तौर पर भी जारी किये हैं। संगठनों के साझा मंच ने इस मुआवजे को नाममात्र करार देते हुए पीड़ितों को उचित मुआवजा देने की माँग की है। यह जीत लुधियाना के मज़दूर आन्दोलन की बहुत बड़ी जीत है। इस जीत ने लुधियाना के मज़दूर आन्दोलन में नया जोश भरने का काम किया है।

लुधियाना के कारख़ाना मालिकों का खूँखार चेहरा फिर उजागर

असल में लुधियाना के कारख़ानों में मालिकों का जंगलराज खुलेआम चल रहा है। कारख़ाना मालिकों द्वारा श्रम कानूनों की खुलकर धज्जियाँ उड़ायी जा रही हैं। लुधियाना के लगभग सभी कारख़ानों के मज़दूरों के हक-अधिकारों पर कारख़ाना मालिकों द्वारा डाका डाला जा रहा है। न कहीं आठ घण्टे की दिहाड़ी का कानून लागू होता है, न न्यूनतम वेतन दिया जाता है, ज़बरदस्ती ओवरटाइम लगवाया जाता है। कारख़ानों में वहाँ काम कर रहे अधिकतर मज़दूरों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता। कारख़ाने में काम करते हुए अगर किसी मज़दूर के साथ कोई हादसा हो जाये या उसकी जान ही चली जाये तो वह या उसका परिवार कोई मुआवज़ा माँगने के कानूनी तौर पर हकदार नहीं रह जाते।

अक्टूबर क्रान्ति की 91वीं वर्षगाँठ पर बिगुल मज़दूर दस्ता की ओर से ”मज़दूरों का समाजवाद क्या है” विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन

महान अक्टूबर समाजवादी क्रान्ति की 91वीं वर्षगाँठ के अवसर पर 25 अक्टूबर को बिगुल मज़दूर दस्ता की ओर से लुधियाना में ”मज़दूरों का समाजवाद क्या है” विषय पर विचार संगोष्ठी का आयोजन किया गया। समराला चौक के पास स्थित इ.डब्ल्यू.एस. कालोनी के निष्काम विद्या मन्दिर स्कूल में आयोजित की गयी इस विचार संगोष्ठी में लगभग 50 मज़दूर शामिल हुए। उन्होंने अक्टूबर क्रान्ति के दौरान शहीद होने वाले हजारों मज़दूर शहीदों की याद में खड़े होकर दो मिनट का मौन रखा और मज़दूर वर्ग का अन्तरराष्ट्रीय गीत ”इण्टरनेशनल” गाया।

नये संकल्पों और नयी शुरुआतों के साथ मना शहीदेआजम भगतसिंह का जन्मदिवस

देश का शोषक हुक्मरान वर्ग जनता के सच्चे नायकों की यादों को पत्थर की मूर्तियों में बदल देना चाहता है। ऐसा ही शहीद भगतसिंह की याद के साथ किया जा रहा है। शहीद भगतसिंह के विचारों और जनता के दुश्मन वर्ग आज उनका नाम ग़लत अर्थों में ले रहे हैं। उन्होंने क्रान्तिकारी आन्दोलन के इतिहास के पन्ने पलटते हुए दिखाया कि शहीद भगतसिंह और उनके साथियों नें भारत में समाजवाद के निर्माण का सपना देखा और इसके लिए संघर्ष किया। उनका मानना था कि भारतीय मेहनतकश जनता की सच्ची आजादी समाजवाद में ही आ सकती है, सिर्फ अंग्रेजों से राजनीतिक आजादी हासिल कर लेने से जनता की हालत में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। सुखविन्दर ने कहा कि आज आजाद भारत में भी मेहनतकश ग़रीबी, भुखमरी, बदहाली की जिन्दगी जी रहे हैं। जितने जुल्म अंग्रेजों ने भारतीय मेहनतकश जनता पर किये, उससे कहीं अधिक जुल्म भारतीय हुक्मरानों के शासन में किये गये हैं। उन्होंने कहा कि शहीद भगतसिंह के सपनों के समाज के निर्माण के पथ पर चलना ही शहीद भगतसिंह की कुर्बानी और विचारधारा को सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है।