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माकपा की 21वीं कांग्रेस : संशोधनवाद के मलकुण्ड में और भी गहराई से उतरकर मज़दूर वर्ग से ग़द्दारी की बेशर्म क़वायद

माकपा के नये महासचिव सीताराम येचुरी अपने साक्षात्कारों में कहते आये हैं कि मार्क्सवाद ठोस परिस्थितियों को ठोस विश्लेषण करना सिखाता है।अब कोई उन्हें यह बताये कि ठोस परिस्थितियों का ठोस विश्लेषण तो यह बता रहा है कि माकपा बहुत तेज़़ी से इतिहास की कचरापेटी की ओर बढ़ती जा रही है। हाँ यह ज़रूर है कि इतिहास की कचरापेटी के हवाले होने से पहले चुनावी तराजू में पलड़ा भारी करने के लिए बटखरे के रूप में बुर्जुआ दलों के लिए उसकी भूमिका बनी रहेगी।

मज़दूर वर्ग से ग़द्दारी और मार्क्‍सवाद को विकृत करने का गन्दा, नंगा और बेशर्म संशोधनवादी दस्तावेज़

इन सभी प्रयासों के बावजूद अगर माकपा के इस दस्तावेज़ को कोई आम व्यक्ति भी पंक्तियों के बीच ध्यान देते हुए पढ़े तो माकपा की मज़दूर वर्ग से ग़द्दारी, उसका पूँजीपति वर्ग के हाथों बिकना, उसका बेहूदे क़िस्म का संशोधनवाद और ‘भारतीय क़िस्म के समाजवाद’ के नाम पर भारतीय क़िस्म के पूँजीवाद के लक्ष्य को प्राप्त करने का उसका शर्मनाक इरादा निपट नंगा हो जाता है! इस दस्तावेज़ में माकपा के घाघ संशोधनवादी सड़क पर निपट नंगे भाग चले हैं। मज़दूर वर्ग के इन ग़द्दारों की असलियत को हमें हर जगह बेनक़ाब करना होगा! ये हमारे सबसे ख़तरनाक दुश्मन हैं। इन्हें नेस्तनाबूत किये बग़ैर देश में मज़दूर वर्ग का क्रान्तिकारी राजनीतिक आन्दोलन आगे नहीं बढ़ पायेगा!

लुधियाना के मजदूर आन्दोलन में माकपा-सीटू के मजदूर विरोधी कारनामे

भारत के मजदूर आन्दोलन पर जरा सी भी ईमानदार नजर रखने वाले लोगों के लिए आज यह बात दिन के उजाले की तरह साफ है कि सी.पी.आई.एम. (माकपा) और उसका मजदूर विंग सी.आई.टी.यू. (सीटू) किस कदर खुलकर पूँजीपतियों की सेवा में लगे हुए हैं। ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है, बस पिछले 8-10 वर्षों की इनकी कारगुजारियों पर नजर डाल ली जाये तो कोई शक नहीं रह जाता कि माकपा-सीटू के झण्डे का लाल रंग नकली है और ये मजदूरों की पीठ में छुरा घोंपने का ही काम कर रहे हैं। देश में जहाँ-जहाँ भी इनका जोर चला, इन्होंने बड़ी चालाकी के साथ मजदूर आन्दोलन का बेड़ा गर्क करने में किसी तरह की कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी।

संसदीय वामपंथियों के राज में हज़ारों चाय बाग़ान मज़दूर भुखमरी की कगार पर

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में स्थित नावेड़ा नड्डी चाय बाग़ान के 1000 मज़दूरों और उनके परिवार के सदस्यों सहित करीब 6,500 लोग भुखमरी की कगार पर हैं। यह चाय बागान दुनिया की सबसे दूसरी बड़ी चाय कम्पनी टाटा टेटली का है। यह चाय बाग़ान उस राज्य, पश्चिम बंगाल, में है जहाँ खुद को मज़दूरों की हितैषी बताने वाली मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है। मज़दूरों की यह हालत उन अमानवीय स्थितयों का विरोध करने के कारण हुई है जिनमें वे काम करने और जीने को मजबूर हैं।

केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों का संयुक्त तमाशा

भाँति-भाँति के चुनावी वामपंथी दलों की ट्रेड यूनियन दुकानदारियों में सबसे बड़े साइनबोर्ड सीटू और एटक के हैं जो क्रमश: माकपा और भाकपा से जुड़े हुए हैं। ये पार्टियाँ मज़दूर क्रान्ति के लक्ष्य और रास्ते को तो पचास साल पहले ही छोड़ चुकी हैं और अब संसद और विधानसभाओं में हवाई गोले छोड़ने के अलावा कुछ नहीं करतीं। जहाँ और जब इन्हें सत्ता में शामिल होने का मौका मिलता है वहाँ ये पूँजीपतियों को मज़दूरों को लूटने की खुली छूट देने में किसी से पीछे नहीं रहतीं। लेकिन अपना वोटबैंक बचाये रखने के लिए इन्हें समाजवाद के नाम का जाप तो करना पड़ता है और नकली लाल झण्डा उड़ाकर मज़दूरों को भरमाते रहना पड़ता है, इसलिए बीच-बीच में मज़दूरों की आर्थिक माँगों के लिए कुछ कवायद करना इनकी मजबूरी होती है।