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श्रम-विभाग, पुलिस-प्रशासन और ठेकेदारों की लालच ने ली 15 मज़दूरों की जान

इस इलाके में जैकेट बनाने वाले करीब 150-200 वर्कशाप हैं। इसके साथ ही यहाँ बड़े पैमाने पर जूते भी बनाए जाते है ओर कुछ जगह जीन्स रंगाई का भी काम होता है। यह सभी वर्कशाप अवैध हैं और पुलिस तथा श्रम‍-विभाग की मिलीभगत के बिना नहीं चल सकते। इन वर्कशापों में तैयार किया गया माल दिल्ली के स्थानीय बाज़ारों और फुटपाथों पर लगने वाली दुकानों में सप्लाई किया जाता है। मज़दूरों ने बताया कि एक जैकेट बनाने के पीछे एक मज़दूर को करीब 30-40 रुपये तक पीसरेट मिलता है। यदि मज़दूर को प्रतिदिन 400-500 रुपये की दिहाड़ी बनानी हो तो उसे 14-16 घंटे काम करना पड़ता है। मज़दूरों ने बताया कि इन वर्कशापों में कोई भी श्रम क़ानून लागू नहीं होता और पुलिस वाले इन अवैध कारखानों को चलते रहने की एवज़ में हर महीने अपना हिस्‍सा लेकर चले जाते है। इन वर्कशापों के मालिक छोटी पूँजी के मालिक हैं जिन्हें मज़दूर ठेकेदार कहते हैं। यह ठेकेदार 10 से 50 मशीनें डालकर इलाके में जगह-जगह अपने वर्कशाप चला रहे हैं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों से मज़दूरों को बुलाकर अपने यहाँ काम करवाते हैं। यह मज़दूर अपने गाँव, जि़ला या इलाका के आधार पर छोटे-छोटे गुटों में बंटे हुए हैं और इनके बीच वर्ग एकता का अभाव है।

शहीद भगतसिंह के 108वें जन्मदिवस पर पूँजीवाद और साम्प्रदायिक फासीवाद से लड़ने का संकल्प

विचार-चर्चा में जाति-प्रथा के पैदा होने के कारण, शुरुआती दौर में जाति-प्रथा के स्वरूप, समय के साथ इसमें आये बदलावों, और वर्तमान दौर में जाति-प्रथा को बनाये रखने में पूँजीवादी व्यवस्था की भूमिका पर खुलकर चर्चा हुई। किस तरह आज 21वीं सदी में भी जातिवादी मानसिकता लोगों के दिमागों में जड़ जमाये हुए है और दलित तथा पिछड़ी जातियों को क़दम-क़दम पर मानसिक तथा शारीरिक जाति-आधरित उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है इस पर विस्तार से बात हुई। जनता को धर्म के नाम पर बाँटने की साम्प्रदायिक संगठनों की घृणित चालों पर भी बातचीत हुई। नौभास की ओर से तपीश ने कहा कि जनता को रोजी-रोटी, गरीबी, बेरोज़गारी जैसे उसके असली मुद्दों से भटकाकर उसकी वर्ग-एकजुटता को तोड़ना ही साम्प्रदायिक ताकतों का असली मक़सद होता है। इन साम्प्रदायिक ताकतों से लड़ने के लिए आम घरों के युवाओं तथा नागरिकों को आगे आना होगा।

आज़ाद के 109वें जन्मदिवस पर गाज़ियाबाद में दिन भर का अभियान

नौभास के कार्यकर्ताओं ने रेलवे प्लेटफार्म पर छोटी-छोटी सभाएं करके लोगों को आज़ाद के प्रेरणादायी जीवन और उनके क्रान्तिकारी विचारों को बताते हुए बड़ी संख्या में पर्चे वितरित किये। दिन के दूसरे कार्यक्रम में एमएमएच इंटर कॉलेज के सामने एक पुस्तक एवं पोस्टर प्रदर्शनी लगायी गई। इस प्रदर्शनी में चन्द्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरू जैसे क्रान्तिकारियों के जीवन और उनके विचारों से जुड़ी ढेरों किताबों एवं आज के दौर की तमाम समस्याओं का क्रान्तिकारी नज़रिये से विश्लेषण करने वाली पुस्तिकाओं की स्टॉल लगायी गयी। इसके अतिरिक्त प्रदर्शनी में कई आकर्षक पोस्टर भी लगाये गये जिनमें क्रान्तिकारियों के उद्धरण व विचारोत्तेजक नारे लिखे थे। यह प्रदर्शनी विशेष रूप से युवाओं एवं आम आबादी के लिए आकर्षण का केन्द्र रही। नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ताओं ने इस प्रदर्शनी में आये लोगों के साथ क्रान्तिकारियों के विचारों को जान-समझकर उनके अधूरे सपनों को पूरा करने की ज़रूरत के बारे में बातचीत की।

पूँजीवाद में मंदी और छँटनी मज़दूरों की नियति है!

पुराने अनुभवी मज़दूर जानते हैं कि समय-समय पर औद्योगिक इलाके इसी तरह मंदी के भँवर में डूबते-उतरते रहते हैं। लेकिन पढ़े-लिखे मज़दूर तक यह नहीं जानते कि उत्पादन की पूँजीवादी व्यवस्था स्वयं ही इन संकटों को जन्म देती है।
मंदी के संकट से उबरने के लिए पूँजीपति ओवरटाइम में कटौती करते हैं, मज़दूरियों पर खर्च कम करने के लिए या तो मज़दूरियाँ घटाते हैं या फिर मज़दूरों को काम से निकालकर बेरोज़गारों की कतार में में खड़ा होने पर मजबूर करते हैं। इस उठा-पटक का अनिवार्य परिणाम मज़दूरों की बदहाली के रूप में आता है। इसके कारण कई बार छोटे कारखानेदार भी तबाह होते हैं जिसका सीधा फायदा बड़े कारखानेदारों को होता है।

ज़ोर है कितना दमन में तेरे-देख लिया है, देखेंगे!

श्रीराम पिस्टन के मालिकान, प्रबन्धन और भाड़े के गुण्डे भिवाड़ी के मज़दूरों के आन्दोलन से डर गये हैं। उन्हें लग रहा है कि मज़दूर जाग रहे हैं और इंसाफ़ की लड़ाई को फैलने से रोकना होगा। यही कारण है कि श्रीराम पिस्टन के मालिकों ने 5 मई को मज़दूर कार्यकर्ताओं पर यह कायराना हमला करवाया है। दूसरी बात, मज़दूरों पर पूँजीपतियों की नंगी तानाशाही कायम करने के काम में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सरकार और पुलिस पूरी तरह से पूँजीपतियों के साथ है। मज़दूरों के लिए इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उत्तर प्रदेश की सपा सरकार हो, राजस्थान की भाजपा सरकार हो या फिर हरियाणा की कांग्रेस सरकार हो। उनके लिए किसी भी सरकार का अर्थ यही हैः पूँजी की बर्बर और नग्न तानाशाही! तीसरी बात, भिवाड़ी के मज़दूरों पर हमले ने भिवाड़ी के बहादुर मज़दूर साथियों के संघर्ष को और मज़बूत किया था और यह ताज़ा हमला भी मज़दूरों के हौसले को और बुलन्द कर रहा है।

Deadly attack on worker activists of Gurgaon Mazdoor Sangharsh Samiti and Bigul Mazdoor Dasta by the goons of Sriram Piston company

Goons of owner and management of Sriram Piston attacked the activists of Gurgaon Mazdoor Sangharsh Samiti and Bigul Mazdoor Dasta who were distributing pamphlets at the Ghaziabad plant of Sriram Piston in support of the struggling workers of Bhiwadi plant of Sriram Piston. The deadly attack by these goons took place around 5 PM and resulted in serious injuries to four worker activists Tapish Maindola, Anand, Akhil and Ajay.

गुड़गांव मज़दूर संघर्ष समिति और बिगुल मज़दूर दस्‍ता के मज़दूर कार्यकर्ताओं पर श्रीराम पिस्‍टन के मालिकान और प्रबंधन के गुण्‍डों का जानलेवा हमला

आज शाम 5 बजे श्रीराम पिस्‍टन के भिवाड़ी के प्‍लाण्‍ट के मज़दूरों के पिछले 20 दिनों से जारी आन्‍दोलन के समर्थन में श्रीराम पिस्‍टन के ग़ाजि़याबाद के प्‍लाण्‍ट के बाहर पर्चा बांटने गये ‘गुड़गांव मज़दूर संघर्ष समिति’ और ‘बिगुल मज़दूर दस्‍ता’ की संयुक्‍त टोली पर श्रीराम पिस्‍टन के मालिकान और प्रबंधन के गुंडों ने जानलेवा हमला किया। इस हमले में चार राजनीतिक कार्यकर्ताओं तपीश मैंदोला, आनंद, अखिल और अजय को गम्‍भीर चोटें आयी हैं।