भारतीय ‘‘न्याय व्यवस्था’’ का एक और अन्याय : मज़दूरों का क़ातिल सलमान खान बरी

27 सितम्बर 2002 की रात मुम्बई के बान्द्रा इलाक़े में एक कार ने सड़क किनारे सो रहे चार व्यक्ति कुचल दिये थे। तीन को गम्भीर चोटें आयीं और एक की मौत हो गयी। इस कार में फ़िल्म अभिनेता सलमान खान, पुलिस मुलाजिम रविन्दर पाटिल (सलमान की सुरक्षा के लिए तैनात), और पाकिस्तानी गायक कमाल खान मौजूद था। पुलिस मुलाजिम रविन्दर पाटिल ने पुलिस व मजिस्ट्रेट के सामने दिये बयान में कहा था कि सलमान ने शराब पीकर तेज़ रफ़्तार कार चलाने के दौरान सड़क किनारे सो रहे व्यक्तियों को कुचला था। रविन्दर पाटिल ने कहा था कि उसने शराब के नशे में धुत सलमान खान को तेज़ गाड़ी चलाने से मना किया था, लेकिन वह नहीं माना। कमाल खान का कोई बयान पुलिस के पास दर्ज नहीं है। इस मामले में बीती 6 मई को सेशन कोर्ट में सलमान खान को पाँच वर्ष की क़ैद की सज़ा सुनायी गयी थी। उसे उसी दिन काम का समय ख़त्म होने के बावजूद हाईकोर्ट से स्वास्थ्य कारणों का बहाना बनाकर जमानत दे दी गयी थी। अब 10 दिसम्बर को हाईकार्ट ने उसे बरी भी कर दिया।

10-Salman-Khan-courtबॉम्बे हाईकोर्ट का कहना है कि सलमान खान के ख़िलाफ़ कोई भी ठोस सबूत नहीं है! रविन्दर पाटिल को अपना बयान बदलने के लिए बहुत डराया-धमकाया गया लेकिन वह अपने बयान पर डटा रहा। उसे एक झूठे केस में फँसाकर जेल में डाल दिया गया। जेल में बीमार होने के बाद अस्पताल में सन्दिग्ध परिस्थितियों में उसकी मौत हो गयी। सेशन कोर्ट ने उसके बयान को एक पुख्ता सबूत माना था लेकिन हाईकोर्ट ने उसकी गवाही को भरोसेलायक नहीं माना। बेशर्मी की हद देखें। तेरह साल बाद अशोक कुमार नाम के एक व्यक्ति को हाईकोर्ट में पेश किया गया जिसने कहा कि वह सलमान खान की कार चला रहा था। हाईकोर्ट के जज ने ‘‘सच’’ बोलने के लिए अशोक की जमकर तारीफ़ की और उसकी गवाही को ‘‘ठोस सबूत’’ के तौर पर माना। 13 साल बाद अचानक प्रगट हुए अशोक की गवाही सही मानी गयी, लेकिन सच के लिए डटे रहे रविन्दर पाटिल को झूठा करार दे दिया गया। हाईकोर्ट ने सुहेल खान के बॉडीगार्ड व मौक़े पर मौजूद अन्य व्यक्तियों के बयानों को नज़रअन्दाज़ कर दिया जिनके मुताबिक़ सलमान खान के साथ रविन्दर पाटिल और कमल खान के अलावा और कोई नहीं था। सलमान खान, सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट ने माना है कि सलमान खान उस रात अपने भाई सुहेल खान व अन्य व्यक्तियों से साथ बार में गया था। पुलिस द्वारा बार के बिल कोर्ट में पेश किये गये थे। सेशन कोर्ट ने माना था कि सलमान खान ने शराब पी थी। सलमान खान ने कहा कि उसने तो वहाँ सिर्फ़ निम्बू पानी पीया था! हाईकोर्ट ने यह बात मान भी ली!! कुल मिलाकर नतीजा यह निकला कि हाईकोर्ट की असीम कृपा से सलमान खान ‘‘बाइज़्ज़त’’ बरी हो गया।

सलमान खान एक ‘‘बड़ा आदमी’’ है। उसके पास कितना पैसा है इसका कोई हिसाब नहीं। राजनीतिक पार्टियों, सरकार, अफ़सरशाही में उसका मज़बूत असर-रसूख होना स्वाभाविक बात है। इसका मतलब यह नहीं कि इस ढाँचे में उसका कोई दुश्मन नहीं। ‘‘बड़े लोगों’’ की आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, साम्प्रदायिक आदि कारक, आपसी झगड़े भी एक-दूसरे को रगड़ा लगाते रहते हैं। इसी कारण ही अपने सारे असर-रसूख के बावजूद भी सेशन कोर्ट में सलमान खान को पाँच साल की सज़ा सुना दी गयी थी। लेकिन जितना बड़ा अपराध उसने किया था उसके मुताबिक़ यह सज़ा भी कम थी। हाईकोर्ट में इस फ़ैसले का पलटना दिखाता है कि सलमान खान का पलड़ा अब भारी हो गया है। ऊपरी तबके में विरोधियों के साथ इसका समझौता कोई हैरानी की बात नहीं है। बिना शक मोदी संग पतंग उड़ाये जाने, ‘बजरंगी भाईजान’ जैसी हिन्दुत्वी कट्टरपन्थियों को मुनासिब बैठती फ़िल्म बनाने, असहनशीलता के मुद्दे पर चुप्पी साधने आदि के ज़रिये भाजपा को दी गयी हिमायत का उसे काफ़ी फ़ायदा हुआ है।

पैसे और सियासी असर-रसूख के दम पर सलमान खान का बरी होना कोई हैरानी वाली बात नहीं है। जिस देश में भोपाल गैस काण्ड के ज़रिये दसियों हज़ार लोगों को मौत के घाट उतार देने के दोषी एण्डरसन को सरकार-पुलिस द्वारा खु़द जहाज़ पर चढ़ाकर भाग जाने का मौक़ा दिया जाये और वास्तविक दोषियों को 30 वर्ष गुज़र जाने पर भी सज़ा न सुनायी गयी हो, जहाँ गुज़रात, मुज़फ़्फ़रनगर, उड़ीसा, दिल्ली, हाशिमपुर (उत्तरप्रदेश), लक्षमणपुर बाथे (बिहार) आदि जगहों पर हुए मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों व दलितों के जनसंहार के दोषी न सिर्फ़ आज़ाद घूम रहे हों बल्कि संसद-विधानसभाओं में मौजूद होने के साथ ही प्रधानमन्त्री तक की कुर्सी पर विराजमान हों, जहाँ निठारी काण्ड का मुख्य दोषी पूँजीपति पंढेर बच्चों का मांस खाकर भी ‘‘बाइज़्ज़त’ समाज में आज़ाद घूम रहा हो वहाँ क़त्ल के मामले में सलमान खान का दोषी होकर भी बरी हो जाना हैरानी की बात कैसे हो सकती है? जहाँ जज, वकील, मन्त्री, अफ़सर, पुलिस सब बिकाऊ हों वहाँ जिसके पास दौलत है, वो न्याय ख़रीद सकता है। पूँजीवादी व्यवस्था में जिस तरह अन्य चीज़ें बिकाऊ माल हैं, उसी तरह न्याय भी बिकाऊ माल है। ग़रीब लोग न्याय ख़रीद नहीं सकते इसलिए करोड़ों बेगुनाह जेलों में सड़ रहे हैं। भारत में न्याय व्यवस्था है या अन्याय व्यवस्था इसे समझने के लिए किसी गहरे अध्ययन की ज़रूरत नहीं है। कड़वा सच सबके सामने है।


मज़दूर बिगुल
, जनवरी 2016


 

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