अर्जेण्टीना में गम्भीर आर्थिक संकट – वर्ग संघर्ष तेज़ हुआ

रणबीर

गुज़री 8 जून को अर्जेण्टीना की सरकार का अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के साथ एक बेहद जनविरोधी समझौता हुआ। इस समझौते के तहत मुद्रा कोष अर्जेण्टीना को 500 करोड़ अमेरिकी डॉलर का क़र्ज़ देगा। अर्जेण्टीना की मॉरिसियो माकरी सरकार लगातार मुद्रा कोष के सामने क़र्ज़ देने के लिए गिड़गड़ा रही थी। आखि़र माकरी सरकार का यह गिड़गिड़ाना कामयाब हुआ। वास्तव में मुद्रा कोष की ऐसी कभी भी कोई मंशा नहीं थी कि क़र्ज़ ना दिया जाये। वह सख़्त से सख़्त शर्तों के तहत क़र्ज़ देना चाहता था। इसके लिए उसने अनेकों साजि़शों का भी सहारा लिया। अर्जेण्टीना के मज़दूर व अन्य मेहनतकश लोग सरकार द्वारा आईएमएफ़ से किये समझौते के सख़्त खि़लाफ़ हैं। लाखों लोगों ने बार-बार सड़कों पर उतर ऐसा कोई भी समझौता न करने के लिए सरकार पर दबाव बनाया, लेकिन घोर जनविरोधी माकरी सरकार ने जनता की एक भी ना सुनी।

पूँजीवादी व्यवस्था के विश्व स्तर पर छाये आर्थिक संकट के बादल अर्जेण्टीना में ज़ोरों से बरस रहे हैं। मुनाफ़े की दर बेहद गिर चुकी है। माँग में ज़ोरदार गिरावट आयी है व औद्योगिक उत्पादन भी गिर चुका है। आयात के मुकाबले निर्यात काफ़ी गिर चुका है। बेरोज़गारी की दर 9 प्रतिशत पार कर चुकी है। महँगाई दर 40 प्रतिशत को पार कर रही है। अर्जेण्टीना के केन्द्रीय बैंक को ब्याज़ दरें बढ़ाकर 40 प्रतिशत करनी पड़ी हैं, फिर भी महँगाई को लगाम नहीं लग रही, बल्कि इससे संकट और भी गहराता जा रहा है। सरकार का बजट घाटा आसमान छू रहा है यानी सरकार के ख़र्चे आमदनी से कहीं अधिक बढ़ चुके हैं। इसका कारण यह नहीं है कि सरकार जनता को हद से अधिक सहूलतें दे रही है (जिस तरह कि अर्जेण्टीना का पूँजीपति वर्ग व साम्राज्यवादी प्रचारित करते हैं) बल्कि इसका कारण पूँजीपतियों दी जा रही छूटें, सहूलतें हैं। विदेशी क़र्ज़ तेज़ी से बढ़ रहा है। बजट घाटा ख़त्म करने, महँगाई को लगाम कसने, विदेशी क़र्ज़ वापिस करने के लिए पूँजीपतियों की आमदनी पर बड़े टेक्स लगाने, कालाबाज़ारी रोकने, मालों के दाम बढ़ने से रोकने के लिए पूँजीपतियों पर बन्दिशें लगाने की जगह अर्जेण्टीना की सरकार द्वारा पूँजीपति वर्ग व साम्राज्यवाद के हितों के मुताबिक़ मज़दूरों व मेहनतकश जनता के अधिकारों पर डाका डालने की नीति अपनायी गयी है।

1 जून 2018 को अर्जेण्टीना के ख़ज़ाना मन्त्री निकोलस डूजोवने ने सरकार द्वारा जनता पर किये जाने वाले ख़र्च में 78 करोड़ अमेरिकी डॉलर की कटौती का ऐलान किया था। इसका मतलब था जनता को सरकार द्वारा बिजली, तेल, शिक्षा स्वास्थ्य, रोज़गार आदि सम्बन्धी दी जाने वाली सहूलतों/सब्सिडियों/अधिकारों पर कटौती। यह बड़ी कटौती पहले की जा रही कटौतियों की ही अगली कड़ी थी। मुद्रा कोष का कहना है कि माकरी सरकार की आर्थिक सुधारों की रफ़्तार बहुत धीमी है और इससे बजट घाटे पर क़ाबू नहीं पाया जा सकता। शर्त रखी गयी कि अगर क़र्ज़ हासिल करना है तो आर्थिक सुधारों को तेज़ी से लागू किया जाये यानी उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों के तहत आर्थिक सुधारों की रफ़्तार तेज़ की जाये।

अर्जेण्टीना से सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक का बेटा, उद्योगपति मॉरिसियो माकरी 10 दिसम्बर 2015 को अर्जेण्टीना का राष्ट्रपति बना था। आम चुनाव में तीन पार्टियों के गठबन्धन ‘कैम्बीमोस’ (पीआरओ, यूसीआर व सीसी) की बड़ी जीत थी। पिछले दस साल से अर्जेण्टीना में तथाकथित वाममोर्चे की सरकार थी। इस तथाकथित वाममोर्चे की सरकार द्वारा समाजवाद के नाम पर वास्तव में तथाकथित जनकल्याण की कीनसिआई पूँजीवादी नीतियाँ ही लागू की जा रही थीं। इसके तहत लोगों को एक हद तक सहूलतें भी हासिल हुईं। अर्जेण्टीना की सन् 2001 की महामन्दी के बाद की आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों में अर्जेण्टीना के पूँजीपति वर्ग को एक ऐसी ही सरकार की ज़रूरत थी जो पूँजीपति वर्ग के हितों की रखवाली भी करती हो और जनसंघर्ष पर ठण्डे पानी के छींटे मारने में भी कामयाब हो सके। नक़ली वामपन्थी ऐसा बख़ूबी कर सकते हैं। यही काम इन्होंने किया। इन्होंने एक हद तक विदेशी निवेश, विदेशी क़र्ज़, आदि पर रोक तो लगायी लेकिन कभी भी साम्राज्यवाद से सम्बन्ध-विच्छेद नहीं किया। पूँजीवादी व्यवस्था के संकट ने धीरे-धीरे बढ़ना ही था। विश्व पूँजीवादी व्यवस्था के आर्थिक संकट बढ़ने से इसकी हालत और भी गिर गयी। ऐसी परिस्थिति में माकरी सरकार जैसे हुकमरान की ज़रूरत थी जो कट्टर पूँजीवादी नीतियाँ लागू करने का पक्षधर हो। माकरी ने 2015 के अन्त में हुए चुनावों में खुलकर ऐलान किया कि विश्व बैंक व अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ मिलकर काम किया जायेगा, सब्सिडियों आदि पर कट लगाकर बजट घाटा घटायेगा, विदेशी क़र्ज़, विदेशी निवेश पर लगी रोकें हटायेगा। रोज़गार पैदा करने, स्त्री अधिकारों की बहाली, महँगाई को लगाम देने, स्वास्थ्य-शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने, भ्रष्टाचार के ख़ात्मे आदि के अनेकों लोकरंजक वादे भी किये गये। लेकिन इस सबके लिए उसने निजीकरण-उदारीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों की ज़रूरत को खुलकर उभारा। देसी-विदशी पूँजीपतियों ने माकरी की चुनावों में पुरज़ोर मदद की जिसके सहारे उसकी सरकार बनी। माकरी सरकार का यह साफ़ मानना था कि पूँजी निवेश को बढ़ाने के लिए उज़रतों पर ख़र्चे घटाने होंगे और पूँजीपतियों पर टेक्स कम करने होंगे।

माकरी सरकार ने शुरू से ही पूँजीपतियों के साथ अपने वादे पूरे करने शुरू कर दिये। पहले महीने में ही दस हज़ार से ऊपर कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया। बिजली की क़ीमतें 500 प्रतिशत तक बढ़ा दी गयीं। घरेलू गैस व परिवहन की क़ीमतें बढ़ा दी गयीं। शिक्षा पर सरकारी ख़र्च घटा दिया गया। 8 जनवरी 2017 सामाजिक सुरक्षा ख़र्च (बुजुर्गों, अपाहिजों, बच्चों आदि के लिए पेंशनों आदि) में 340 करोड़ डॉलर की कटौती का प्रस्ताव पेश किया गया। इस तरह 1 करोड़ 70 लाख लोगों को मिलने वाले लाभ में बड़ी कटौती कर दी गयी। स्वास्थ्य सुविधाओं पर बड़े कट लगा दिये गये। म्युनिसिपल कमेटियों के लिए फ़ण्ड कम कर दिये गये।

नवम्बर 2017 के अन्त में 23 प्रान्तों के गवर्नरों ने माकरी सरकार से एक वित्तीय समझौता किया कि वह कारोबारों पर लगाये जाने वाले टेक्स घटायेंगे और जनसुविधाओं पर ख़र्चों में कटौती करेंगे। पूँजीपति वर्ग के पक्ष में श्रम सुधारों की ओर बड़े क़दम उठाये गये। महँगाई घटाने का वादा करने वालों के राज में 2016 ख़त्म होते-होते महँगाई दर 40 प्रतिशत तक पहुँच गयी। जबकि पिछले सात वर्ष में महँगाई दर 20 प्रतिशत थी। जनवरी में माकरी सरकार ने इस साल सरकारी कर्मचारियों के वेतन न बढ़ाने और बड़े स्तर पर छँटनियों का ऐलान कर दिया। माकरी राज के दौरान अर्जेण्टीना मुद्रा पेसो की क़ीमत डॉलर के मुकाबले लगातार गिरती गयी है।

मुद्रा कोष ने माकरी सरकार के आर्थिक सुधारों को धीमी गति से किये जा रहे सुधार बताया। मुद्रा कोष ने विदेशी निवेशकों को अर्जेण्टीना में निवेश करने से रोकना शुरू कर दिया। इससे संकट और भी बढ़ गया। मई-जून में पेसो की क़ीमत तेज़ी से गिरी। पहली मई 2018 को पेसो की क़ीमत डॉलर के मुकाबले 20.5996 पेसो थी जो 15 जून होने तक 27.5500 हो गयी। यानि सिर्फ़ डेढ़ महीने में ही लगभग 34 प्रतिशत की गिरावट। बड़े पैमाने पर जमाखोरी होने लगी। महँगाई बहुत अधिक बढ़ गयी। मई महीने में सिर्फ़ आठ दिनों में ही केन्द्रीय बैंक ने ब्याज़ दरें 40 प्रतिशत बढ़ा दीं। पेसो के प्रति अविश्वास और अधिक तेज़ी से बढ़ा और डॉलर जमा करने में बेहद तेज़ी आ गयी। इस दौरान और भी बड़े पैमाने पर जनसुविधाओं पर ख़र्चे में कटौती की गयी। इस तरह 1 जून 2018 को 780 मिलीयन डॉलर की कटौती का ऐलान किया गया। 8 जून 2018 को आईएमएफ़ के साथ अर्जेण्टीना सरकार का 500 करोड़ बिलीयन डॉलर का समझौता हो गया। सन् 1975 में अर्जेण्टीना का कुल विदेशी क़र्ज़ 40 करोड़ डॉलर था, जो कि 1982 में बढ़कर 400 करोड़ डॉलर और सन् 2001 की आर्थिक मन्दी के समय 1400 करोड़ डॉलर तक जा पहुँचा था। साल 2018 में अर्जेण्टीना पर 2160 करोड़ डॉलर का विदेशी क़र्ज़ है। इससे अर्जेण्टीना की हालत का अन्दाज़ा बख़ूबी लगाया जा सकता है। अर्जेण्टीना का मौजूदा संकट सन् 2001 के संकट से कहीं अधिक गम्भीर आर्थिक संकट है।

इस सारी हालत में अर्जेण्टीना में वर्ग संघर्ष तेज़ कर दिया है। कारख़ाना मज़दूर, ट्रक डाइवर, शिक्षक, छात्र, स्त्रियाँ, बुजुर्ग, छोटे काम-धन्धे वाले मेहनतकश तबक़े लाखों की संख्या में जुझारू संघर्ष के मैदान में हैं। भले ही सरकार पक्षधर यूनियन नेता जनता के गुस्से को किसी न किसी तरह क़ाबू में रखने के लिए पुरज़ोर कोशिशें करते रहे और सरकार ने दमन का रास्ता अपनाया, लेकिन जनाक्रोश शान्त नहीं हो पर रहा है। जनता सरकार द्वारा जनसुविधाओं पर सरकारी ख़र्च में कटौती का ज़बरदस्त विरोध कर रही है और मुद्रा कोष से समझौते के सख़्त खि़लाफ़ है। बेहिसाब मुसीबतों का कारण बनी सन् 2001 की आर्थिक मन्दी को लोग भूले नहीं हैं जिसका कारण वे अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को मानते हैं।

यहाँ हम पिछले डेढ़ वर्षों में हुए संघर्षों पर संक्षेप में चर्चा करेंगे।

6 मार्च 2017 को हज़ारों अध्यापकों व मज़दूरों का रोष प्रदर्शन हुआ। अगले दिन 7 मार्च को 4 लाख मज़दूरों का सैलाब देश की राजधानी ब्यूनस आयर्स की सड़कों पर उतर आया। 8 मार्च को अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस के अवसर पर स्त्री मज़दूरों की हड़ताल हुई जिसके दौरान पलाजा डे मोइयो पर 3 लाख लोगों का प्रदर्शन हुआ। 22 मार्च को पूरे देश में 4 लाख अध्यापकों ने सार्वजनिक शिक्षा पर कटौती के खि़लाफ़ सरकार के खि़लाफ़ आवाज़ बुलन्द की। 24 मार्च को सन् 1976 में हुए फ़ौजी तख़्तापलट की 41वीं वर्षगाँठ पर इससे भी कहीं अधिक लोग रोष प्रदर्शनों में शामिल हुए, इसमें जहाँ लोगों ने फ़ौजी तानाशाही में मारे गये, दमन का शिकार हुए लोगों को याद किया वहीं माकरी सरकारी की जनविरोधी नीतियों के खि़लाफ़ ज़ोरदार आवाज़़ बुलन्द की।

6 अप्रैल 2017 को पूरे देश में 90 प्रतिशत मेहनतकश लोग आम हड़ताल में शामिल हुए। पूरे देश में चक्का जाम कर दिया गया। माकरी सरकार के 15 महीनों के दौरान यह पहली आम हड़ताल थी। सन् 2017 के अगले महीनों में भी लगातर प्रदर्शन होते रहे। 29 जून को रेडीकल वामपन्थी ग्रुपों द्वारा आह्वान पर राजधानी में आर्थिक ग़ैरबराबरी, बेरोज़गारी, जनविरोधी नीतियों के खि़लाफ़ ज़ोरदार प्रदर्शन हुआ। सड़क से क़ब्ज़ा हटाने के लिए पुलिस ने दमन का सहारा लिया। इस दौरान ज़ोरदार झड़पें हुईं व अनेकों गिरफ़्तारियाँ हुईं। दिसम्बर 2017 में अनेकों बार राजधानी में पेंशनों पर कटौती के खि़लाफ़ हज़ारों लोगों के ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन हुए। लोगों ने अर्जेण्टीना की कांग्रेस (संसद) के बाहर दरवाज़ों के आगे कूड़े के बैरीकेड लगाकर आग लगा दी और सैन्य पुलिस पर पत्थर बरसाये। सैन्य पुलिस ने रबड़ की गोलियों की बौछार, आँसू गैस के गोले, व पानी की तोपों से लोगों पर क़हर बरपाया। 18 दिसम्बर को दूसरी आम हड़ताल हुई जिसके दौरान पूरा देश ठप रहा। इस दौरान हुई झड़पों में 60 लोगों की गिरफ़्तारी हुई, 160 से अधिक जख्मी हुए। पुलिस ने भारी क़हर बरपाते हुए पाँच व्यक्तियों की आँखों में रबड़ की गोलियाँ दाग़ दीं। अनेकों स्त्रियों की छातियों में रबड़ की गोलियाँ दागी गयीं।

नये वर्ष के अवसर पर 4 जनवरी को राजकीय मज़दूरों की एसोसिएशन के आह्वान पर वेतन में वृद्धि, छँटनियाँ रद्द करने आदि मुद्दों पर 24 घण्टों की राष्ट्रीय हड़ताल की गयी। 3 जनवरी को राजधानी के हवाई अड्डों के कर्मचारियों ने हड़ताल की। 23 जनवरी को अस्पताल के स्टाफ़ की देश स्तरीय हड़ताल और रोष प्रदर्शन हुए।

2 फ़रवरी 2018 को ट्रक डाइवरों और अन्य मेहनतकश लोगों का जुटान राजधानी में हुआ। रिपोर्टों के मुताबिक़ इस जुटान में 4 लाख लोग शामिल थे। वे मज़दूरों की छँटनियाँ, श्रम सुधारों, पेंशनों में कटौती व अन्य सरकारी नीतियों के खि़लाफ़ सड़कों पर उतरे थे। 15 फ़रवरी से 21 फ़रवरी तक अनेकों यूनियनों द्वारा देश स्तरीय प्रदर्शन किये गये। 19 अप्रैल को बिजली की क़ीमतों में वृद्धि के खि़लाफ़ बड़ा प्रदर्शन हुआ। राष्ट्रपति माकरी ने 8 मई को ऐलान किया कि मुद्रा कोष से समझौते की प्रक्रिया चल रही है। इसके खि़लाफ़ अगले दिन से ही ज़ोरदार प्रदर्शन शुरू हो गये। ऐसा ही एक प्रदर्शन 25 मई को हुआ। लोगों की माँग थी कि मुद्रा कोष के साथ किसी भी तरह का कोई समझौता न किया जाये। उनके हाथों में ”देश ख़तरे में है”, ”अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष मुर्दाबाद” आदि बैनर थे। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि सरकार जनविरोधी नीतियाँ रद्द करके जनता के अधिकार बहाल करे। वे कह रहे थे कि सरकार विश्व फुटबॉल कप या मेसी के ज़रिये उनका ध्यान अधिकारों के संघर्ष से हटा नहीं पायेगी।

25 जून को मुद्रा कोष के साथ समझौते व अन्य मुद्दों पर पूरे देश में आम हड़ताल हुई। गुज़री 20 जुलाई को अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के चीफ़ क्रिस्टीने लेगार्दे के अर्जेण्टीना आने पर लोगों ने उसका स्वागत ज़ोरदार प्रदर्शनों और सड़कें जाम करके किया।

अर्जेण्टीना के पूँजीवादी आर्थिक संकट ने जहाँ मज़दूरों-मेहनतकशों पर दुख-तकलीफ़ों का पहाड़ लाद दिया है, वहीं यह भी स्पष्ट है कि पूँजीवादी-साम्राज्यवादियों को वे कभी चैन की नींद भी नहीं सोने देंगे।

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त 2018


 

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