मुज़फ़्फ़रनगर और मेरठ में बर्बर पुलिस दमन की आँखों देखी रिपोर्ट

– लता कुमारी

(27 दिसम्बर को जाँच-पड़ताल करने वाली एक टीम के साथ मैं मुज़फ़्फ़रनगर और मेरठ गयी थी। इस टीम में सुप्रीम कोर्ट के वकील, इम्तियाज़ हाशमी और मोहम्मद रेहमान के साथ मेधा पाटकर, दिल्ली के दो वकील सन्दीप पाण्डेय और विमल के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता फै़ज़ल ख़ान भी शामिल थे।)

व्यवस्था ने लोगों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी है। स्वयं आगज़नी और अराजकता फैलाकर अख़बारों के माध्यम से शान्तिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर दंगे का ठीकरा फोड़ा जा रहा है। पूरी तरह से बिकी हुई मीडिया गला फाड़-फाड़कर बता रही है कि मुसलमानों ने दंगा भड़काया है, बाहर से आये लोग शामिल थे और ऐसी ही हज़ारों बे-सिर-पैर की बातें। चाहे मुज़फ़्फ़रनगर हो, मेरठ हो या जामिया, स्पष्ट तौर पर देखने में आया है कि पुलिस के साथ मिले नक़ाबपोश पत्थरबाज़ी या हिंसा की शुरूआत करते हैं और फिर पुलिस इस सुनियोजित हिंसा की आड़ में प्रदर्शनकारियों पर आँसू गैस के गोलों, डण्डों, पत्थरों और लाठियों से हमला करती है। गुजरात के दंगों की तरह ही सभी जगह हिंसा सुनियोजित और पूर्व निर्धारित योजना के तहत भड़कायी गयी और फिर बर्बर दमन किया गया। हम यहाँ पर बेहद छोटे में मुज़फ़्फ़रनगर और मेरठ की घटनाओं का आँखो देखा हाल रखेगें। 27 दिसम्बर को गलियों में घूम-घूमकर हमने लोगों से बात की है, आहत लोगों और मृतकों के घर गये और उनकी आपबीती सुनकर आ रहे हैं।

व्यवस्था के तथाकथित पहरेदारों और न्याय व्यवस्था बनाने वालों में कितनी हैवानियत और दरिन्दगी छुपी है वह 20 दिसम्बर को मुज़फ़्फ़रनगर और मेरठ की सड़कों पर उजागर हो गया है। आरएसएस और बजरंगदल के साथ “जय श्री राम” और “हरहर महादेव” का नारा लगाते पुलिसकर्मी आगज़नी, तोड़-फोड़ का ताण्डव कई घण्टों तक सड़कों पर करते रहे। किसी को भी नहीं बख़्शा गया, चाहे 85-90 साल के बुज़ुर्ग हों, 8 साल के नन्हे बच्चे या महिलाएँ। सभी पर अपशब्दों के साथ लाठियों की बारिश की गयी, उन्हें लहूलुहान किया गया और अनगिनत को जेलों की सलाख़ों के पीछे धकेला गया। यह 150-200 पुलिसकर्मियों, बजरंगदल और आरएसएस कार्यकर्ताओं का आधी रात को निकला हुजूम किस क़दर बीमार और पतित मानसिकता का था, इसका अन्दाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 8 से 12 साल के छोटे-छोटे मासूम बच्चों को पीटते हुए पास के छोटे राम कॉलेज में ले जाया गया और वहाँ उनके कपड़े उतरवाकर, उन पर पानी डालकर डण्डों से पीटा गया। 90 साल के हामिद हसन को 6-7 पुलिसकर्मी और आरएसएस के गुण्डे बन्दूक़ की मूठ से मारते रहे और उन्हें कहा कि “मुसलमानों की जगह पाकिस्तान या क़ब्रिस्तान है”। घर में महिलाओं को भी पुलिसकर्मियों ने मारा और लोगों को लहूलुहान घसीटकर हिरासत में ले गये।

मुज़फ़्फ़रनगर

20 दिसम्बर को जुम्मे की नमाज़ के बाद सीएए और एनआरसी के विरोध में शहर में शान्तिपूर्ण प्रदर्शन का कार्यक्रम रखा गया था। नमाज़ के बाद सभी कुछ शान्तिपूर्ण चल रहा था और शहर के अलग-अलग इलाक़ों से लोग मीनाक्षी चौक पर एकत्रित हो रहे थे। साढ़े तीन-चार बजे के लगभग यह प्रदर्शन समाप्त हो गया था और लोग अपने-अपने घरों को लौट रहे थे। तभी महावीर चौक से हिंसा की शुरुआत हुई और पुलिस वाले दौड़ते हुए सभी ओर से प्रदर्शनकारियों पर टूट पड़े। पुलिस का कहना है कि महावीर चौक पर प्रदर्शनकारियों ने हिंसा की, लेकिन तथ्य है और सीसीटीवी कैमरा में भी रिेकॉर्ड है कि हिंसा की शुरुआत करने वाले कुछ देर पहले बीजेपी के सांसद संजीव बलियान के साथ देखे गये थे। किदवई नगर से आ रही भीड़ का रास्ता बदला गया और फिर हिंसा की शुरुआत हुई। पुलिस का आरोप है कि प्रदर्शनकारियों ने सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुँचायी। यह काम भी संजीव बलियान के लोगों ने किया और सार्वजनिक संपत्ति से कहीं ज़्यादा चौक की दुकानों को जलाया गया है। यदि हिंसा फैलाने वाली भीड़ मुसलमानों की थी तो उन्होंने सिर्फ़ मुसलमानों की दुकानों को आग क्यों लगायी? चुन-चुनकर मुसलमानों की दुकानों को आग लगायी गयी है। सुनियोजित हिंसा भड़काने के बाद सड़कों पर जो भी मिल रहा था उन्हें बुरी तरह पीटा गया। मोहम्मद असद, मस्जिद के इमाम को बुरी तरह पीटा गया और 2 दिनों तक हिरासत में रखा गया। कोई दवा-इलाज नहीं कराया गया और छूटते समय सख़्त हिदायत दी गयी कि किसी भी सरकारी अस्पताल में इलाज नहीं कराना है। इलाज के बाद पता चला उनका दाहिना हाथ टूट गया है और पूरे बदन में गम्भीर चोटें आयी हैं। पुलिस फ़ायरिंग में दो लोगों की जानें गयी हैं। नूर मोहम्मद, एक मज़दूर, अपने काम से घर लौट रहा था। लोगों का कहना है कि वह पुलिस की गोली का शिकार हो गया। ऐसे एक और जान गयी है।

शाम की आगज़नी, दुकानों और घरों की तोड़-फोड़ करने के बाद रक्तपिपासुओं का यह हुजूम आधी रात को आतंकित करने वाले नारे लगाता हुआ सड़कों पर उतरता। इस बार चुन-चुनकर उन घरों में घुसा जहाँ से पैसे मिलने की पूरी सूचना थी, दो प्रमुख घरों में लूटपाट की जो घटना हुई है उन दोनों घरों में बेटियों के ब्याह की तैयारी हो रही थी। कई तोले सोना पुलिस और आरएसएस के गुण्डे उठा ले गये और बाक़ी सारा सामान तोड़-फोड़ दिया। साथ ही मदरसों और यतीमख़ानों में भी दरवाज़ा तोड़कर यह वहशियों का झुण्ड पुलिस वर्दी और बिना पुलिस वर्दी में बच्चों को बेहद बुरी तरह मारता हुआ हिरासत में ले गया। 170 बच्चे जेल में भेजे गये। कई इनमें से छूट गये हैं लेकिन अभी भी कुछ जेल में हैं।

मेरठ

मेरठ में पुलिस का दमन सबसे बर्बर रहा। अभी तक 6 आधिकारिक मौतों की पुष्टि हो चुकी है लेकिन मरने वालों की संख्या इससे कहीं ज़्यादा है क्योंकि राज्य प्रशासन ने सख़्त निर्देश जारी किया है कि किसी भी निजी अस्पताल में गोली लगी चोट का इलाज नहीं किया जायेगा। ऐसी स्थिति में डॉक्टरों का लाइसेंस रद्द कर दिया जायेगा। साथ ही किसी भी सरकारी अस्पताल में गोली लगे लोगों का दाख़िला नहीं लिया जा रहा है। डॉक्टर रातों को छुप-छुपकर घरों में जा रहे हैं और कई ऑपरेशन भी घरों में किये जा रहे हैं। गोली से घायल लोगों की कुल संख्या 17 है। हमें इसकी जानकारी वहाँ के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने दी। डर और पुलिसिया ख़ौफ़ का ये आलम है कि लोग जगह-जगह गलियों में आग जलाकर रात काट रहे हैं क्योंकि पुलिस ने कुल 1500 ज्ञात और 3000 अज्ञात एफ़आईआर दर्ज किये हैं। गलियों की बिजली काट दी जाती है और लोगों को उठाया जा रहा है। इसलिए लोग रात गलियों में काट रहे हैं।

मेरठ जहाँ सबसे अधिक भयानक पुलिसिया दमन हुआ है वहाँ किसी भी प्रदर्शन की कोई योजना नहीं थी। लोग जुम्मे की नमाज के बाद लौट रहे थे, बिना किसी उकसावे के पहले भीड़ पर पुलिस ने लाठियाँ बरसानी शुरू की और फिर गोलियाँ चलायी। मरने वालों में अलीम, उम्र 24 साल, ढाबे पर रोटियाँ बनाता था और घर का समान लेकर लौट रहा था। पुलिस उन पर निसाना साध रही थी जो जीन्स नहीं पहने थे। मोहम्मद मोहसीन, उम्र 32 साल कबाड़ी का काम करता था, सामान लेने बाज़ार गया था, पुलिस की गोली लगने पर वह गिरा और कुछ लोग उसे उठाकर डॉक्टर के पास ले गये। उसने इलाज करने से मना कर दिया, फिर दूसरे अस्पताल ले गये वहाँ भी मना किया। अन्त में सरकारी अस्पताल ले जाने पर डॉक्टर ने कहा कि मौत हो चुकी है। ऐसी ही स्थिति बाक़ी के मृतकों की रही। एम्बुलेंस बुलाने पर कोई एम्बुलेंस नहीं आयी। ई-रिक्शा चलाने वाला मोहम्मद आसिफ़, उम्र मात्र 20 साल, कबाड़ का काम करने वाला मोहम्मद मोहसीन, इनके घर वालों को शरीर देने में बेहद टाल-मटोल की गयी और चुप-चाप से दफ़नाने के निर्देश दिये गये। ज़हीर अहमद बस अपने घर से बाहर बीड़ी के लिए गये थे और पुलिस की गोली का शिकार हो गये। उत्तर प्रदेश पुलिस इन सभी को दंगाई और आतंकवादी बता रही है। मोहम्मद आसिफ़ जो दो साल से मेरठ में ई-रिक्शा चला रहा था, उसकी जेब में आधार कार्ड था। यह आधार कार्ड उसकी माँ ने तब बनवाया था जब वह अपने तीन बच्चों को लेकर दिल्ली में मज़दूरी करती थी। फिर वे मेरठ लौट आये थे। अभी पुलिस इस आधार कार्ड के बिना पर कह रही है कि मोहम्मद आसिफ़ यह पूरा दंगा भड़काने का मास्टर माइण्ड था। इन मृतकों के परिजनों में बेहद रोष है, रुंधे गले से कह रहे थे एक तो हमने अपने घर के कमाने वाले खोये हैं, वहीं समाज में इन्हें आतंकवादी बताया जा रहा है। इनके बच्चों और परिवार वालों का जीवन दूभर हो जायेगा इस बदनामी के साथ।

हमने बहुत से मुस्लिम भुक्तभोगियों के साथ ही अनेक हिन्दुओं से भी बात की और लगभग सभी का कहना था कि मुज़फ़्फ़रनगर की तरह ही मेरठ में भी हिंसा भड़काने का काम पुलिस ने किया और फिर दंगे का अरोप लोगों पर थोप दिया गया।

अभी इन दोनों शहरों में लोगों के बीच ग़ुस्सा और असंतोष सुलग रहा है। पुलिस की बर्बरता देखकर लोग अभी चुप हैं लेकिन सभी इन्साफ़ की माँग कर रहे हैं। सभी इन्साफ़पसन्द नागरिकों को इस मेहनतकश आबादी का साथ देना होगा और एक धर्म के लोगों को बदनाम करने की व्यवस्था और पुलिस की साज़िश का पर्दाफ़ाश करना होगा।

मज़दूर बिगुल, जनवरी 2020


 

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