आगरा में विद्युत वितरण के निजीकरण का अनुभव

– आनन्द

उत्तर प्रदेश में मई 2009 में तत्कालीन मायावती सरकार के कार्यकाल में कानपुर और आगरा में बिजली के वितरण के निजीकरण का निर्णय लिया गया था। बिजली कर्मचारियों के विरोध के चलते कानपुर की बिजली वितरण की व्यवस्था निजी हाथों में नहीं सौंपी जा सकी। लेकिन आगरा में यह व्यवस्था लागू कर दी गयी।
अप्रैल 2010 में प्रदेश सरकार ने आगरा में बिजली वितरण के लिए टोरेण्ट पावर नामक कम्पनी के साथ क़रार किया गया कि 31 मार्च 2017 तक लाइन लॉस 15 प्रतिशत तक करना होगा। लेकिन टोरेण्ट कम्पनी इस पर बिल्कुल खरी नहीं उतरी। क़रार में यह प्रावधान भी था कि बिजली विभाग पर उपभोक्ताओं से बक़ाया वसूल कर विभाग को वापस करना होगा। बक़ाया वसूल करना तो दूर 31 अक्टूबर 2016 तक बक़ाया बढ़कर लगभग 2,137 करोड़ हो गया और वर्तमान में यह 2,500 करोड़ रुपये के ऊपर है। इसमें से केवल नाममात्र का विभाग को लौटाया गया है, यानी विद्युत निगम को इसमे कोई फ़ायदा नहीं हुआ।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि टोरेण्‍ट पावर को बेहद कम रेट पर बिजली दी जा रही है। विद्युत कर्मचारियों के संगठनों का कहना है कि दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम 5.26 रुपये/यूनिट की दर पर ख़रीद कर टोरेण्ट पावर आगरा को 4.45 रुपये/यूनिट की दर पर बेच रहा है। इससे निगम को हर साल 162 करोड़ रुपये का नुक़सान हो रहा है। इसका ख़ामियाज़ा बिजली उपभोक्ताओं को महँगी बिजली के रूप में भुगतना पड़ रहा है।
पिछले वर्ष तक के आँकड़ों पर ध्यान दिया जाये तो हालात यह है कि आगरा की फ़्रेंचाइज़ी टोरेण्ट पावर से ज़्यादा राजस्व निगम को कानपुर से मिल रहा था। टोरेण्ट कम्पनी आगरा में पावर कॉरपोरेशन को 3.25 रुपये प्रति यूनिट की दर से भुगतान कर रही थी। जबकि कानपुर में पावर कॉरपोरेशन को लगभग 6.25 रुपये प्रति यूनिट राजस्व मिल रहा था। यानी निजीकरण से जनता को दो तरफ़ा नुक़सान हो रहा है। एक तो भ्रष्टाचार का सहारा लेकर टोरेरेंट कम्पनी सरकार से महँगी बिजली सस्ते में ख़रीद रही है और उसी बिजली को महँगे दाम में उपभोक्ताओं को बेच रही है।
यही नहीं आगरा में विद्युत उपभोक्ता भी टोरेण्‍ट से बहुत परेशान हैं। उपभोक्ताओं के मीटर बेतहाशा तेज़ चलने, बिल वसूली के लिए गुण्डों व बाउन्सरों के जरिए डराने-धमकाने और ग़रीब बस्तियों में कई-कई घण्टे तक जानबूझ कर बिजली कटौती करने जैसी शिकायतें बार-बार सामने आ रही हैं। आगरा में कई बार दक्षिणांचल और टोरेण्ट के दफ़्तरों पर तालाबन्दी और घेराव जैसे प्रदर्शन हुए। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले टोरेण्ट पावर के ख़ि‍लाफ़ ख़ूब प्रदर्शन हुए थे। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने भी सड़क पर उतरकर टोरेण्ट के ख़ि‍लाफ़ ख़ूब नारे लगाए थे और भाजपा के बड़े नेताओं ने सरकार बनने के बाद टोरेण्ट पर नकेल कसने की बात कही थी। लेकिन जैसे ही योगी सरकार 2017 में सत्ता में आयी वह सब भूल गयी और निजीकरण का दोषपूर्ण आगरा मॉडल को आज वह पूरे उत्तर प्रदेश में लागू करने पर आमादा है।

मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2020


 

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