जारी है रिको ऑटो इंडस्ट्रीज़ के मज़दूरों का संघर्ष

– शाम मूर्ति

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के धारूहेड़ा में रिको के मज़दूरों का संघर्ष पिछले चार महीने से जारी है। छँटनी किये गये स्थायी मज़दूर लगातार प्रतिदिन एस. एच. 48 हाईवे से औद्योगिक क्षेत्र में कम्पनी गेट तक नारे लगाते हुए मार्च और प्रदर्शन कर रहे हैं।
विगत 6 नवम्बर को ए.एल.सी. ऑफ़िस, गुड़गाँव में मज़दूरों ने प्रदर्शन किया और ज्ञापन भी दिया। प्रदर्शन स्थल पर विभिन्न यूनियनों के पदाधिकारियों ने आकर अपना समर्थन जताया। इसके बाद ए.एल.सी. ऑफ़िस ने अगले दिन फिर रिको यूनियन के पदाधिकारियों को बुलाया और आश्वासन दिया कि उनकी जल्दी ही कम्पनी प्रबन्धन से बात करवायी जायेगी। यूनियन के पदाधिकारियों ने बताया कि आने वाले दिनों में संघर्ष को और तेज़ किया जायेगा।
ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन (ए.आई.सी.डब्ल्यू.यू.) लम्बे समय से रिको के मज़दूरों के हर संघर्ष का लगातार समर्थन करती आयी है। 20 अक्टूबर को प्रदर्शन स्थल पर ए.आई.सी.डब्ल्यू.यू. के शाम ने अपनी बात में यह दोहराया कि हमें समय रहते प्रबन्धन के साथ चल रहे संघर्ष और अन्य कम्पनियों के मज़दूरों के नये-पुराने आन्दोलनों और पहले के ऐतिहासिक आन्दोलनों से सबक़ लेते हुए आगे बढ़ने की ज़रूरत है।
रिको प्रबन्धन अपनी कम्पनी के मज़दूरों पर लम्बे समय से हमला तेज़ करता जा रहा है और अब तक यूनियन का काफ़ी नुक़सान भी कर चुका है। कम्पनी प्रबन्धन पहले भी स्थायी और पुराने कैजुअल मज़दूरों को निकाल चुका है। प्रबन्धन ने काम की कमी और मन्दी का बहाना बनाकर पहले लेऑफ़ (अस्थायी काम बन्दी) के ज़रिये मज़दूरों को काम पर आने से रोका। फिर मशीनों को उठाने का मामला सामने आया और अन्त में कम्पनी को जो करना था वही किया, यानी स्थायी मज़दूरों की छँटनी! ताकि भविष्य में यूनियन व स्थायी मज़दूरों से छुटकारा मिल जाये।
शाम ने अपनी बात में साफ़ किया कि हम लोग कई बार सरकार, प्रशासन को ज्ञापन दे चुके हैं; श्रम विभाग भी लगातार चक्कर ही कटवा रहा है, न प्रबन्धन सुनने के लिए तैयार है, और न ही सरकार और प्रशासन की ओर से कोई कार्रवाई की जा रही है। उल्टे श्रम क़ानूनों में मज़दूर-विरोधी बदलाव कर दिये गये हैं ताकि भविष्य में बेख़ौफ़ होकर फ़ैक्ट्री मालिकों समेत पूरा पूँजीपति वर्ग मज़दूरों को ज़्यादा से ज़्यादा निचोड़कर मुनाफ़े से अपनी तिजोरियाँ भरता रहे और कोई मज़दूर इस लूट-शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ भी न उठा पाये। ऐसे में हमारे पास संघर्ष के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है।
जहाँ तक रिको के मज़दूरों के संघर्ष की बात है, अकेले रिको के मज़दूरों द्वारा आये दिन इस संघर्ष को जीत के मुक़ाम तक ले जाना मुश्किल होता जा रहा है। ऐसे में हमें बिना देर किये अपने संघर्ष का विस्तार करना होगा। हमें ऑटो यूनियनों व इस औद्योगिक पट्टी की तमाम यूनियनों को एक साथ लेना होगा और साथ ही कैजुअल व ठेका मज़दूरों को भी। तभी जाकर हम प्रबन्धन के मंसूबों को चुनौती दे सकते हैं। यानी हमें सेक्टरगत और इलाक़ाई एकता मज़बूत करनी होगी।
इसके साथ ही शाम ने देशभर में महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती रेप और अपराध की घटनाओं के ख़िलाफ़ ऑटोमाबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन के द्वारा पिछले दिनों इलाक़े में बाँटे जा रहे पर्चे को प्रदर्शन स्थल पर वितरित किया और मज़दूरों का आह्वान किया गया कि हमें महिला सुरक्षा के लिए और महिला विरोधी अपराधों के ख़िलाफ़ मिलकर संघर्ष करना चाहिए।
इसके अलावा धारूहेड़ा के नागरिक सागरमल ने भी संघर्ष का समर्थन किया और मज़दूरों को जुझारू संघर्ष करने के लिए तैयार रहने के लिए कहा और रिको यूनियन के प्रधान राजकुमार को आश्वासन दिया कि ज़रूरत पड़ेगी तो इलाक़े के अन्य लोग भी आपके समर्थन में आयेंगे।

मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2020


 

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